इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें।
19 जून 2013
चूंकि नौ बजे ससपोल से चल पडा तो इसका अर्थ है कि साढे सात बजे उठ भी गया होऊंगा। कल लेह में नहाया था, आज तो सवाल ही नहीं। गेस्ट हाउस चूंकि घर ही होते हैं। और यह भी काफी बडा था। खूब ताक-झांक कर ली, कोई नहीं दिखा। आन्तरिक हिस्से में मैं झांका नहीं करता। कुछ देर बाद जब लडकी दिखाई पडी तो पता चला कि उसकी मम्मी लामायुरू गई हैं, वहां कोई पूजा है। घर में लडकी अकेली ही थी। उसने नाश्ते के बारे में पूछा, मैंने तुरन्त हां कर दी। पूछने लगी कि यहीं आपके कमरे में लाऊं या आप अन्दर चलोगे रसोई में। मेरी इच्छा तो थी कि लद्दाखी घर में अन्दर जाऊं लेकिन पापी मन अकेली लडकी की वजह से मना भी कर रहा था। कह दिया कि यहीं ले आओ। वह जैसा तुम चाहो कहकर चली गई। अचानक पुनः प्रकट हुई। बोली नहीं भैया, आप अन्दर ही चलो, कोई परेशानी नहीं है। मुझे काफी सारा सामान उठाकर लाना पडेगा। मैं झट पीछे पीछे हो लिया।
मैं जनवरी में चिलिंग में दो दिनों तक होमस्टे के तौर पर एक लद्दाखी घर में ठहर चुका था। यह भी लगभग उसी की तरह था- मोटे मोटे नरम गद्दे, बैठने को लम्बे चौडे पीढे, चाहो तो उन पर सो जाओ। और सामने बुद्ध भगवान। दीवारों पर रैक बनाकर बर्तन सजाकर रखे थे। और जबरदस्त साफ सफाई।
...
इस यात्रा के अनुभवों पर आधारित मेरी एक किताब प्रकाशित हुई है - ‘पैडल पैडल’। आपको इस यात्रा का संपूर्ण और रोचक वृत्तांत इस किताब में ही पढ़ने को मिलेगा।
आप अमेजन से इसे खरीद सकते हैं।
ससपोल गांव |
ससपोल के पास सिन्धु |
सिन्धु के साथ साथ राष्ट्रीय राजमार्ग-1 |
खालसी में एक पुल |
खालसी में पुल के ऊपर पुल |
खालसी से तीन किलोमीटर आगे वो तिराहा जहां से दाहिने सडक बटालिक जाती है और बायें कारगिल। |
सिन्धु छोडकर इस संकरी घाटी में प्रवेश करते हैं। |
नदी पार कर रहे हैं ये |
यह थी अपनी वेशभूषा। आंखों पर चश्मा होता था और कोई नहीं कह सकता था कि यह भारतीय है या विदेशी। |
रास्ते में मिला एक छोटा सा गोम्पा |
लामायुरु की ओर |
वहीं नीचे से आया हूं अभी। इस चढाई ने जान निकाल दी थी। |
लामायुरू से कुछ पहले ‘मूनलैण्ड’ है। |
मूनलैण्ड |
मूनलैण्ड और मून |
यह है मूनलैण्ड का जबरदस्त फोटो |
यह चित्र मुझे बडा प्यारा लगता है, किसी स्वप्नलोक की तरह। |
लामायुरू में आपका स्वागत है। |
लामायुरू में मेला है। |
अलविदा लामायुरू! फिर मिलेंगे। |
लामायुरू से आगे। |
अगला भाग: लद्दाख साइकिल यात्रा- सत्रहवां दिन- फोतूला से मुलबेक
मनाली-लेह-श्रीनगर साइकिल यात्रा
1. साइकिल यात्रा का आगाज
2. लद्दाख साइकिल यात्रा- पहला दिन- दिल्ली से प्रस्थान
3. लद्दाख साइकिल यात्रा- दूसरा दिन- मनाली से गुलाबा
4. लद्दाख साइकिल यात्रा- तीसरा दिन- गुलाबा से मढी
5. लद्दाख साइकिल यात्रा- चौथा दिन- मढी से गोंदला
6. लद्दाख साइकिल यात्रा- पांचवां दिन- गोंदला से गेमूर
7. लद्दाख साइकिल यात्रा- छठा दिन- गेमूर से जिंगजिंगबार
8. लद्दाख साइकिल यात्रा- सातवां दिन- जिंगजिंगबार से सरचू
9. लद्दाख साइकिल यात्रा- आठवां दिन- सरचू से नकी-ला
10. लद्दाख साइकिल यात्रा- नौवां दिन- नकी-ला से व्हिस्की नाला
11. लद्दाख साइकिल यात्रा- दसवां दिन- व्हिस्की नाले से पांग
12. लद्दाख साइकिल यात्रा- ग्यारहवां दिन- पांग से शो-कार मोड
13. शो-कार (Tso Kar) झील
14. लद्दाख साइकिल यात्रा- बारहवां दिन- शो-कार मोड से तंगलंगला
15. लद्दाख साइकिल यात्रा- तेरहवां दिन- तंगलंगला से उप्शी
16. लद्दाख साइकिल यात्रा- चौदहवां दिन- उप्शी से लेह
17. लद्दाख साइकिल यात्रा- पन्द्रहवां दिन- लेह से ससपोल
18. लद्दाख साइकिल यात्रा- सोलहवां दिन- ससपोल से फोतूला
19. लद्दाख साइकिल यात्रा- सत्रहवां दिन- फोतूला से मुलबेक
20. लद्दाख साइकिल यात्रा- अठारहवां दिन- मुलबेक से शम्शा
21. लद्दाख साइकिल यात्रा- उन्नीसवां दिन- शम्शा से मटायन
22. लद्दाख साइकिल यात्रा- बीसवां दिन- मटायन से श्रीनगर
23. लद्दाख साइकिल यात्रा- इक्कीसवां दिन- श्रीनगर से दिल्ली
24. लद्दाख साइकिल यात्रा के तकनीकी पहलू
Nice Click Neerajbhai
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद इस ब्लॉग पर आई हूँ ... एक से एक फोटो ...अभी पढ़ा तो नहीं ही है ...:-P
ReplyDeleteनीरज जी! नस्कार! आपकी सभी तस्वीर अच्छी लगी, वो सबसे अच्छी तस्वीर जिसमें चारो तरफ पहाड़ और बीच में हरियाली मजा आ गया।
ReplyDeleteमुझे ऐसी जगहों पर भूत से डर लगता है। रात को सन्नाटे में जहां दूर दूर तक कोई भी न हो, मुझे हर आवाज भूत की लगती है, हर तरफ भूत दिखाई भी देने लगते हैं। दिन में मैं भूतों के खिलाफ बोल सकता हूं। भूत नहीं होते, इस बात को सिद्ध भी कर सकता हूं। लेकिन रात को वो भी ऐसी जगह पर मैं उनके खिलाफ सोच तक नहीं सकता। टैण्ट लगाते ही स्लीपिंग बैग में घुस गया और सुबह होने तक आंख नहीं खोली।
ReplyDeleteआज 70 किलोमीटर साइकिल चलाई। bahut badiya or sach swikarne ki himmat par dad
तस्वीरें जान डाल दे रही हैं, इस यात्रा में.
ReplyDeleteकैमरा कौन सा इस्तेमाल कर रहे हैं?
Sony HX 200V
Deletesare hi fotu mst hai ....sabhi swpnlok se dikh rahe hai ....
ReplyDeleteमूनलैण्ड और मून..
ReplyDeleteशानदार ..
देस्सी रजिस्टर कित सै? हा - हा - हा !!!
ReplyDeleteनीरज भाई आपने फोतूला के बारे में जो पंक्ति लिखी है - "तू लेह-मनाली रोड पर सबसे ऊंचा दर्रा है"
इसमें एक छोटी सी टाइपिंग भूल हो गयी लगता है, लेह-श्रीनगर रोड की जगह लेह-मनाली रोड छप गया है।
-Anilkv
अनिल जी,
Deleteगलती की तरफ ध्यान आकृष्ट कराने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
गलती सुधार ली गई है।
याञा वणॅन मे फोटो जान डाल देते हे आज का वणॅन हर लिहाज से काबीलेतारीफ हे । सभी रस इस याञा मे मौजुद हे।आज भय रस भी पढने को मिला।
ReplyDeleteNeeraj, fir bhoot ki koi awaaz aayi kya???
ReplyDeleteराम राम जी, आपने तो कमाल ही कर दिया हैं. इससे पहले लद्दाख क्षेत्र के इतने सुंदर चित्र नही देखे. अब तो आप एक पुस्तक केवल लद्दाख यात्रा पर लिख डालो. मेरे ख्याल से यह यात्रा आपकी सबसे अच्छी यात्रा हैं. मून वेल्ली के चित्र ग़ज़ब हैं...बहुत बढ़िया, हमे गर्व हैं आप पर....
ReplyDeleteभूत नहीं होते, इस बात को सिद्ध भी कर सकता हूं..
ReplyDeleteker k dikhaao tho jaane hum..
बहुत सुन्दर जगह है.
ReplyDeleteअद्भुत दृश्य, कितना सुन्दर है देश हमारा
ReplyDeleteखूबसूरत तस्वीरे
ReplyDeleteप्रणाम