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22 जून 2013
सुबह उठा तो बच्चों ने घेर लिया। पानी का मग्गा लाकर पकडा दिया। न चाहते हुए भी जाना पडा। शौचालय लद्दाखी तरीके वाला था। दो छोटे छोटे कमरे होते हैं ऊपर नीचे। ऊपर वाले के लकडी के फर्श में एक बडा सा छेद होता है ताकि गन्दगी नीचे गिरती रहे। साथ ही ऊपर वाले में मिट्टी का ढेर भी होता है जिसमें से थोडी थोडी मिट्टी नीचे गिरा देते हैं। इससे गन्दगी ढक जाती है, बदबू नहीं आती और वह बंजर मिट्टी खाद बन जाती है जिसे खेतों में डाल देते हैं।
मोटी मोटी बडी बडी रोटियां मिलीं चाय के साथ। घर की मालकिन ने आग्रह किया कि मैं लद्दाखी चाय पीऊं- नमकीन चाय जिसे बडी लम्बी प्रक्रिया से गुजरना पडता है। सही बात तो यह है कि मैंने आज तक यह लद्दाखी नमकीन चाय नहीं पी है। फिर भी मैंने मना कर दिया। मना करने के बाद दिमाग में आया कि पी लेनी चाहिये थी।
मैं एक ही रोटी खा सका। भूख तो लगी थी लेकिन स्वाद नहीं आया। एक तो फीकी रोटियां चाय के साथ, फिर कम से कम एक दर्जन आंखें भी देख रही थीं खाते हुए। ऐसे मुझे आनन्द नहीं आता। कल ही पता चल गया था कि करीब पांच किलोमीटर आगे बीआरओ के कैम्प हैं और वहां एक ढाबा भी है। सोच लिया कि वहां जाकर आलू के परांठे खाऊंगा।
...
इस यात्रा के अनुभवों पर आधारित मेरी एक किताब प्रकाशित हुई है - ‘पैडल पैडल’। आपको इस यात्रा का संपूर्ण और रोचक वृत्तांत इस किताब में ही पढ़ने को मिलेगा।
आप अमेजन से इसे खरीद सकते हैं।
शम्शा में मुश्ताक के घर से नीचे सडक पर उतरते हुए। |
रास्ते में मिला एक गांव पंडरस |
इन्होंने स्वयं मुझे रोका और फोटो खींचने के लिये कहा। |
द्रास की ओर |
द्रास की ओर |
यहीं थे जिन्होंने मेरी बोतल ले ली और पानी आने तक इंतजार करने को कहा। |
जब मैंने खाली बोतल ही वापस मांगी तो मुल्लाजी बोतल लेकर दूर चले गये कि लडका आयेगा पानी लेकर तो पानी पिलाकर ही जाने देंगे। |
द्रास की ओर |
द्रास से छह किलोमीटर पहले युद्ध संग्रहालय |
द्रास |
टाइगर हिल के साये में बसा द्रास |
द्रास |
मटायन गांव |
बच्चों ने टैण्ट लगा दिया। |
अगला भाग: लद्दाख साइकिल यात्रा- बीसवां दिन- मटायन से श्रीनगर
मनाली-लेह-श्रीनगर साइकिल यात्रा
1. साइकिल यात्रा का आगाज
2. लद्दाख साइकिल यात्रा- पहला दिन- दिल्ली से प्रस्थान
3. लद्दाख साइकिल यात्रा- दूसरा दिन- मनाली से गुलाबा
4. लद्दाख साइकिल यात्रा- तीसरा दिन- गुलाबा से मढी
5. लद्दाख साइकिल यात्रा- चौथा दिन- मढी से गोंदला
6. लद्दाख साइकिल यात्रा- पांचवां दिन- गोंदला से गेमूर
7. लद्दाख साइकिल यात्रा- छठा दिन- गेमूर से जिंगजिंगबार
8. लद्दाख साइकिल यात्रा- सातवां दिन- जिंगजिंगबार से सरचू
9. लद्दाख साइकिल यात्रा- आठवां दिन- सरचू से नकी-ला
10. लद्दाख साइकिल यात्रा- नौवां दिन- नकी-ला से व्हिस्की नाला
11. लद्दाख साइकिल यात्रा- दसवां दिन- व्हिस्की नाले से पांग
12. लद्दाख साइकिल यात्रा- ग्यारहवां दिन- पांग से शो-कार मोड
13. शो-कार (Tso Kar) झील
14. लद्दाख साइकिल यात्रा- बारहवां दिन- शो-कार मोड से तंगलंगला
15. लद्दाख साइकिल यात्रा- तेरहवां दिन- तंगलंगला से उप्शी
16. लद्दाख साइकिल यात्रा- चौदहवां दिन- उप्शी से लेह
17. लद्दाख साइकिल यात्रा- पन्द्रहवां दिन- लेह से ससपोल
18. लद्दाख साइकिल यात्रा- सोलहवां दिन- ससपोल से फोतूला
19. लद्दाख साइकिल यात्रा- सत्रहवां दिन- फोतूला से मुलबेक
20. लद्दाख साइकिल यात्रा- अठारहवां दिन- मुलबेक से शम्शा
21. लद्दाख साइकिल यात्रा- उन्नीसवां दिन- शम्शा से मटायन
22. लद्दाख साइकिल यात्रा- बीसवां दिन- मटायन से श्रीनगर
23. लद्दाख साइकिल यात्रा- इक्कीसवां दिन- श्रीनगर से दिल्ली
24. लद्दाख साइकिल यात्रा के तकनीकी पहलू
Aapki post ki khaas baat ye hai ke subah sabse pehle mein aapki post padhkar niptata hoon.
ReplyDeleteबहुत अच्छा..
ReplyDeleteHappy krishna janamastmi
ReplyDeleteचारो ओर फैली खुबसूरती को आपने बहुत खुभी से केमरे मे उतारा है।बच्चो का प्यार आपपे खुब आ रहा है।कारगिल म्युजियम अचछा लगा। लेकिन वह जानकारी नही मिल पाई की पकिस्तानी सेना इतना असला बारूद आखिर ले कैसे आई हमारे हिन्दुस्तान मे?क्या म्युजियम मे भी इस बात का पता नही चल पाया?
ये जानकारी तो अटल जी को भी नहीं मिल पायी थी.. तभी तो पाक सेना इतनी आगे तक आ गयी थी... भारतीय गुप्तचर तंत्र सिर्फ राजनेताओं की गुप्तचरी तक सीमित है...
Deleteshame shame aakhir kanjusi ki bhi hadd hoti hai......................... Dont mind just joking
ReplyDeleteनीरज भाई , हैट्स ऑफ़ :) कमाल बेमिसाल , मालामाल , क्या कहूं और कैसे कहूं । घुमक्कडी जिंदाबाद । आपकी खींची फ़ोटो की एक एक्ज़ीबीशन के बारे में गंभीरता से सोच रहा हूं , किसी मित्र को सुझाता हूं । यकीनन ये एक बेहतरीन किताब बन सकती है और बनेगी भी मुझे विश्वास है ।
ReplyDeleteYahan ke kashmiri srinagar k behude kashmirion se lakh darze sabhya maloom dete hain..
ReplyDeletekargil yudh ke bare me padh k dil me aag lag jati hai.
Mera matlab srinagar k mullaon se hai.
ReplyDeleteआसपास आबादी देखकर आश्चर्य होता है की आबादी के इतने पास बंकर बने कैसे होंगे? इतने अधिक हथियार, सैनिक, रसद कैसे सीमा के इतने अन्दर पहुंचे होंगे? जबकि हाइवे के आसपास बारह महीने सैन्य गतिविधि रहती है. कुछ तो गड़बड़ है, बहुत कुछ छिपाया गया है.
ReplyDeleteइस ब्लॉग पर आपकी लद्दाख यात्रा, लद्दाख के आखिरी पड़ाव पर है और मेरी लद्दाख यात्रा तीन दिनों बाद शुरू होने को है।
ReplyDeleteहमेशा की तरह अच्छा विवरण और बेहतरीन तस्वीरें। बहुत खूब !!
- Anilkv
अपने को तो रोहतांग पास की ठंड में ही कुल्फ़ी जम गई थी, द्रास में तो पता नहीं क्या होगा.. आपने इतनी ठंड में साईकिल कैसे चलाई होगी.. क्या विशेष किस्म के कपड़े लेकर गये थे और जब आप द्रास पहुँचे तब वहाँ का तापमान कितना था यह भी बताईये ।
ReplyDeleteदुर्भाग्य कह सकता हूँ अपना जो आपके ब्लॉग तक अब पहुंचना हो सका। खैर देर आयद दुरस्त आयद। बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग के इस यात्रा संस्मरण को पढ़कर। कभी लैंसडॉउन के आगे पौड़ी गढ़वाल की ओर भी रुख करें। मैं आपको भरोसा दिलाता हूँ वहां रहने,ठहरने,खाने की दिक्कत नहीं होगी।
ReplyDeleteयात्रा संस्मरण पढ़कर यात्रा में ही खो गये। इससे ज्यादा कुछ कह भी नही सकता।
ReplyDeleteKaisa lag raha hai 300Rs bacha kar?
ReplyDeleteश्री प्रवीण पाण्डे जी का आभार जिनका आलेख पढ कर इस ब्लाग तक पहुँच सकी । सचमुच यह आपके लेखन का कमाल है कि पढते हुए एक एक चित्र सामने आता प्रतीत होता है । आपकी ऊर्जा ऐसी ही बनी रहे । सारी दुनिया का सफलता पूर्वक भ्रमण करें और हमें भी उन अनुभूतियों में शामिल करें ।
ReplyDeleteश्री प्रवीण पाण्डे जी का आभार जिनका आलेख पढ कर इस ब्लाग तक पहुँच सकी । सचमुच यह आपके लेखन का कमाल है कि पढते हुए एक एक चित्र सामने आता प्रतीत होता है । आपकी ऊर्जा ऐसी ही बनी रहे । सारी दुनिया का सफलता पूर्वक भ्रमण करें और हमें भी उन अनुभूतियों में शामिल करें ।
ReplyDeleteप्रणाम स्वीकार करें घुमक्कड जी
ReplyDeleteनीरज जी,
ReplyDeleteआपकी लेखनी, फोटोग्राफ्स, और आपकी हिम्मत की तारीफ़ करना तो जैसे सूरज को दीपक दिखाना है, सब कुछ बेजोड़ है।
बस आज की पोस्ट में पैसे वाली बात पढ़कर कहीं न कहीं तकलीफ हुई। कुछ न कुछ तो उम्मीद उनलोगों को रही होगी आपसे, यूँ ही किसी अजनबी को अपने घर में ठहराना किसी का शौक नहीं होता. आपने यूँ ही अपना दामन छुड़ा के भागने के बजाय थोडा शांत दिमाग से सोच होता, शायद कुछ हल निकल जाता। आप अपनी तरफ से घर के मालिक से पूछ सकते थे की कितना चार्ज हुआ, अगर वो कुछ बोलता तो फिर आप अपना पांच सौ का नोट देकर अपने बाकी पैसे वापिस मांग सकते थे। खैर ये आपका निजी मामला है ..........
DRASS SECTOR K SAMNE TIGER HILL.... WAOOO KISI NE KHUBH KHA HAI ZANNAT HAI TO SIRF HINDUSTAN MEIN..... JAI HIND
ReplyDeleteपाँच सो का नोट _ ऐसी बात लिखनी के लिए भी हिम्मत चाहिए। नीरज जी अपनी लेखनी में बिलकुल इमानदारी से अपनी अच्छाई -बुराई -कमियां बिना किसी संकोच के प्रकट करतें हैं।
ReplyDeleteइसीलिए इनके यात्रा वर्णन का इन्तजार रहता हे. . जिसको कोई झुठला नहीं सकता।
प्रणाम स्वीकार करें घुमक्कड जी
घर में जगह हो न हो,
ReplyDeleteदिल बड़ा होना चाहिए,
जगह खुद-ब-खुद निकल आती है.
गुस्ताखी माफ़, पर ऐसे बड़े दिलवालों के लिए ५०० भी कम हैं. इन मौकों पर पैसे नहीं गिने जाते.
Paise apne saath nark me le jaaiyo. Lekh accha harbaar kee tarah lekin niyat mei marwari kaa bhi number peeche. Sharam kya Meerut mei dafna dee hai.
ReplyDeleteअबे, कंजूस 500रु दे देता तो क्या होता ? यहाँ शहर में हम इन निकम्मों के आगे रोज ठगे जाते है ..वो गरीब मासूम लोगो के दिल कितने बड़े थे की कुछ सामान न होने पर भी उन्होंने इतनी अच्छी मेहमान नवाजी की ... कुछ पैसो से उनको ख़ुशी मिलती
ReplyDeleteखेर. चित्र बहुत ही बढ़िया है हमेशा की तरह ...
pdne or dekhne m mza a rha h......
ReplyDeleteनीरज जी नमस्कार
ReplyDeleteलद्दाख का यात्रा विवरण पढ़ा , आनंद आ गया। मै आपके ब्लॉग को बहुत दिनों से पढ़ रहा हूँ। एक समस्या आ रही है की आपके फोटो आधे कटे हुए दीखते हैं ,साइड का जो अल्फाबेटिकल यात्राओ का बार है उसकी वजह से फोटो कट जाते है. क्या करें कि वो पूरे दिख सके.
- ब्रजेश मिश्रा
लखनऊ
क्या करें कि फोटो पूरे दिख सके कोई और अगर मेरी समस्या का समाधान कर दे तो बहुत धन्यवाद
ReplyDelete- ब्रजेश मिश्रा
लखनऊ
ब्राऊजर बदल कर देखिये
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