Skip to main content

लद्दाख साइकिल यात्रा- उन्नीसवां दिन- शम्शा से मटायन

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें
22 जून 2013
सुबह उठा तो बच्चों ने घेर लिया। पानी का मग्गा लाकर पकडा दिया। न चाहते हुए भी जाना पडा। शौचालय लद्दाखी तरीके वाला था। दो छोटे छोटे कमरे होते हैं ऊपर नीचे। ऊपर वाले के लकडी के फर्श में एक बडा सा छेद होता है ताकि गन्दगी नीचे गिरती रहे। साथ ही ऊपर वाले में मिट्टी का ढेर भी होता है जिसमें से थोडी थोडी मिट्टी नीचे गिरा देते हैं। इससे गन्दगी ढक जाती है, बदबू नहीं आती और वह बंजर मिट्टी खाद बन जाती है जिसे खेतों में डाल देते हैं।
मोटी मोटी बडी बडी रोटियां मिलीं चाय के साथ। घर की मालकिन ने आग्रह किया कि मैं लद्दाखी चाय पीऊं- नमकीन चाय जिसे बडी लम्बी प्रक्रिया से गुजरना पडता है। सही बात तो यह है कि मैंने आज तक यह लद्दाखी नमकीन चाय नहीं पी है। फिर भी मैंने मना कर दिया। मना करने के बाद दिमाग में आया कि पी लेनी चाहिये थी।
मैं एक ही रोटी खा सका। भूख तो लगी थी लेकिन स्वाद नहीं आया। एक तो फीकी रोटियां चाय के साथ, फिर कम से कम एक दर्जन आंखें भी देख रही थीं खाते हुए। ऐसे मुझे आनन्द नहीं आता। कल ही पता चल गया था कि करीब पांच किलोमीटर आगे बीआरओ के कैम्प हैं और वहां एक ढाबा भी है। सोच लिया कि वहां जाकर आलू के परांठे खाऊंगा।
...
इस यात्रा के अनुभवों पर आधारित मेरी एक किताब प्रकाशित हुई है - ‘पैडल पैडल’। आपको इस यात्रा का संपूर्ण और रोचक वृत्तांत इस किताब में ही पढ़ने को मिलेगा।
आप अमेजन से इसे खरीद सकते हैं।



शम्शा में मुश्ताक के घर से नीचे सडक पर उतरते हुए।


रास्ते में मिला एक गांव पंडरस

इन्होंने स्वयं मुझे रोका और फोटो खींचने के लिये कहा।


द्रास की ओर

द्रास की ओर


यहीं थे जिन्होंने मेरी बोतल ले ली और पानी आने तक इंतजार करने को कहा।

जब मैंने खाली बोतल ही वापस मांगी तो मुल्लाजी बोतल लेकर दूर चले गये कि लडका आयेगा पानी लेकर तो पानी पिलाकर ही जाने देंगे।



द्रास की ओर




द्रास से छह किलोमीटर पहले युद्ध संग्रहालय













द्रास


टाइगर हिल के साये में बसा द्रास

द्रास








मटायन गांव


बच्चों ने टैण्ट लगा दिया।




अगला भाग: लद्दाख साइकिल यात्रा- बीसवां दिन- मटायन से श्रीनगर

मनाली-लेह-श्रीनगर साइकिल यात्रा
1. साइकिल यात्रा का आगाज
2. लद्दाख साइकिल यात्रा- पहला दिन- दिल्ली से प्रस्थान
3. लद्दाख साइकिल यात्रा- दूसरा दिन- मनाली से गुलाबा
4. लद्दाख साइकिल यात्रा- तीसरा दिन- गुलाबा से मढी
5. लद्दाख साइकिल यात्रा- चौथा दिन- मढी से गोंदला
6. लद्दाख साइकिल यात्रा- पांचवां दिन- गोंदला से गेमूर
7. लद्दाख साइकिल यात्रा- छठा दिन- गेमूर से जिंगजिंगबार
8. लद्दाख साइकिल यात्रा- सातवां दिन- जिंगजिंगबार से सरचू
9. लद्दाख साइकिल यात्रा- आठवां दिन- सरचू से नकी-ला
10. लद्दाख साइकिल यात्रा- नौवां दिन- नकी-ला से व्हिस्की नाला
11. लद्दाख साइकिल यात्रा- दसवां दिन- व्हिस्की नाले से पांग
12. लद्दाख साइकिल यात्रा- ग्यारहवां दिन- पांग से शो-कार मोड
13. शो-कार (Tso Kar) झील
14. लद्दाख साइकिल यात्रा- बारहवां दिन- शो-कार मोड से तंगलंगला
15. लद्दाख साइकिल यात्रा- तेरहवां दिन- तंगलंगला से उप्शी
16. लद्दाख साइकिल यात्रा- चौदहवां दिन- उप्शी से लेह
17. लद्दाख साइकिल यात्रा- पन्द्रहवां दिन- लेह से ससपोल
18. लद्दाख साइकिल यात्रा- सोलहवां दिन- ससपोल से फोतूला
19. लद्दाख साइकिल यात्रा- सत्रहवां दिन- फोतूला से मुलबेक
20. लद्दाख साइकिल यात्रा- अठारहवां दिन- मुलबेक से शम्शा
21. लद्दाख साइकिल यात्रा- उन्नीसवां दिन- शम्शा से मटायन
22. लद्दाख साइकिल यात्रा- बीसवां दिन- मटायन से श्रीनगर
23. लद्दाख साइकिल यात्रा- इक्कीसवां दिन- श्रीनगर से दिल्ली
24. लद्दाख साइकिल यात्रा के तकनीकी पहलू




Comments

  1. Aapki post ki khaas baat ye hai ke subah sabse pehle mein aapki post padhkar niptata hoon.

    ReplyDelete
  2. Happy krishna janamastmi
    चारो ओर फैली खुबसूरती को आपने बहुत खुभी से केमरे मे उतारा है।बच्चो का प्यार आपपे खुब आ रहा है।कारगिल म्युजियम अचछा लगा। लेकिन वह जानकारी नही मिल पाई की पकिस्तानी सेना इतना असला बारूद आखिर ले कैसे आई हमारे हिन्दुस्तान मे?क्या म्युजियम मे भी इस बात का पता नही चल पाया?

    ReplyDelete
    Replies
    1. ये जानकारी तो अटल जी को भी नहीं मिल पायी थी.. तभी तो पाक सेना इतनी आगे तक आ गयी थी... भारतीय गुप्तचर तंत्र सिर्फ राजनेताओं की गुप्तचरी तक सीमित है...

      Delete
  3. shame shame aakhir kanjusi ki bhi hadd hoti hai......................... Dont mind just joking

    ReplyDelete
  4. नीरज भाई , हैट्स ऑफ़ :) कमाल बेमिसाल , मालामाल , क्या कहूं और कैसे कहूं । घुमक्कडी जिंदाबाद । आपकी खींची फ़ोटो की एक एक्ज़ीबीशन के बारे में गंभीरता से सोच रहा हूं , किसी मित्र को सुझाता हूं । यकीनन ये एक बेहतरीन किताब बन सकती है और बनेगी भी मुझे विश्वास है ।

    ReplyDelete
  5. Yahan ke kashmiri srinagar k behude kashmirion se lakh darze sabhya maloom dete hain..
    kargil yudh ke bare me padh k dil me aag lag jati hai.

    ReplyDelete
  6. Mera matlab srinagar k mullaon se hai.

    ReplyDelete
  7. आसपास आबादी देखकर आश्चर्य होता है की आबादी के इतने पास बंकर बने कैसे होंगे? इतने अधिक हथियार, सैनिक, रसद कैसे सीमा के इतने अन्दर पहुंचे होंगे? जबकि हाइवे के आसपास बारह महीने सैन्य गतिविधि रहती है. कुछ तो गड़बड़ है, बहुत कुछ छिपाया गया है.

    ReplyDelete
  8. इस ब्लॉग पर आपकी लद्दाख यात्रा, लद्दाख के आखिरी पड़ाव पर है और मेरी लद्दाख यात्रा तीन दिनों बाद शुरू होने को है।

    हमेशा की तरह अच्छा विवरण और बेहतरीन तस्वीरें। बहुत खूब !!

    - Anilkv

    ReplyDelete
  9. अपने को तो रोहतांग पास की ठंड में ही कुल्फ़ी जम गई थी, द्रास में तो पता नहीं क्या होगा.. आपने इतनी ठंड में साईकिल कैसे चलाई होगी.. क्या विशेष किस्म के कपड़े लेकर गये थे और जब आप द्रास पहुँचे तब वहाँ का तापमान कितना था यह भी बताईये ।

    ReplyDelete
  10. दुर्भाग्‍य कह सकता हूँ अपना जो आपके ब्‍लॉग तक अब पहुंचना हो सका। खैर देर आयद दुरस्‍त आयद। बहुत अच्‍छा लगा आपके ब्‍लॉग के इस यात्रा संस्‍मरण को पढ़कर। कभी लैंसडॉउन के आगे पौड़ी गढ़वाल की ओर भी रुख करें। मैं आपको भरोसा दिलाता हूँ वहां रहने,ठहरने,खाने की दिक्‍कत नहीं होगी।

    ReplyDelete
  11. यात्रा संस्मरण पढ़कर यात्रा में ही खो गये। इससे ज्यादा कुछ कह भी नही सकता।

    ReplyDelete
  12. Kaisa lag raha hai 300Rs bacha kar?

    ReplyDelete
  13. श्री प्रवीण पाण्डे जी का आभार जिनका आलेख पढ कर इस ब्लाग तक पहुँच सकी । सचमुच यह आपके लेखन का कमाल है कि पढते हुए एक एक चित्र सामने आता प्रतीत होता है । आपकी ऊर्जा ऐसी ही बनी रहे । सारी दुनिया का सफलता पूर्वक भ्रमण करें और हमें भी उन अनुभूतियों में शामिल करें ।

    ReplyDelete
  14. श्री प्रवीण पाण्डे जी का आभार जिनका आलेख पढ कर इस ब्लाग तक पहुँच सकी । सचमुच यह आपके लेखन का कमाल है कि पढते हुए एक एक चित्र सामने आता प्रतीत होता है । आपकी ऊर्जा ऐसी ही बनी रहे । सारी दुनिया का सफलता पूर्वक भ्रमण करें और हमें भी उन अनुभूतियों में शामिल करें ।

    ReplyDelete
  15. प्रणाम स्वीकार करें घुमक्कड जी

    ReplyDelete
  16. नीरज जी,
    आपकी लेखनी, फोटोग्राफ्स, और आपकी हिम्मत की तारीफ़ करना तो जैसे सूरज को दीपक दिखाना है, सब कुछ बेजोड़ है।

    बस आज की पोस्ट में पैसे वाली बात पढ़कर कहीं न कहीं तकलीफ हुई। कुछ न कुछ तो उम्मीद उनलोगों को रही होगी आपसे, यूँ ही किसी अजनबी को अपने घर में ठहराना किसी का शौक नहीं होता. आपने यूँ ही अपना दामन छुड़ा के भागने के बजाय थोडा शांत दिमाग से सोच होता, शायद कुछ हल निकल जाता। आप अपनी तरफ से घर के मालिक से पूछ सकते थे की कितना चार्ज हुआ, अगर वो कुछ बोलता तो फिर आप अपना पांच सौ का नोट देकर अपने बाकी पैसे वापिस मांग सकते थे। खैर ये आपका निजी मामला है ..........

    ReplyDelete
  17. DRASS SECTOR K SAMNE TIGER HILL.... WAOOO KISI NE KHUBH KHA HAI ZANNAT HAI TO SIRF HINDUSTAN MEIN..... JAI HIND

    ReplyDelete
  18. पाँच सो का नोट _ ऐसी बात लिखनी के लिए भी हिम्मत चाहिए। नीरज जी अपनी लेखनी में बिलकुल इमानदारी से अपनी अच्छाई -बुराई -कमियां बिना किसी संकोच के प्रकट करतें हैं।
    इसीलिए इनके यात्रा वर्णन का इन्तजार रहता हे. . जिसको कोई झुठला नहीं सकता।
    प्रणाम स्वीकार करें घुमक्कड जी

    ReplyDelete
  19. घर में जगह हो न हो,
    दिल बड़ा होना चाहिए,
    जगह खुद-ब-खुद निकल आती है.

    गुस्ताखी माफ़, पर ऐसे बड़े दिलवालों के लिए ५०० भी कम हैं. इन मौकों पर पैसे नहीं गिने जाते.

    ReplyDelete
  20. Paise apne saath nark me le jaaiyo. Lekh accha harbaar kee tarah lekin niyat mei marwari kaa bhi number peeche. Sharam kya Meerut mei dafna dee hai.

    ReplyDelete
  21. अबे, कंजूस 500रु दे देता तो क्या होता ? यहाँ शहर में हम इन निकम्मों के आगे रोज ठगे जाते है ..वो गरीब मासूम लोगो के दिल कितने बड़े थे की कुछ सामान न होने पर भी उन्होंने इतनी अच्छी मेहमान नवाजी की ... कुछ पैसो से उनको ख़ुशी मिलती
    खेर. चित्र बहुत ही बढ़िया है हमेशा की तरह ...

    ReplyDelete
  22. नीरज जी नमस्कार
    लद्दाख का यात्रा विवरण पढ़ा , आनंद आ गया। मै आपके ब्लॉग को बहुत दिनों से पढ़ रहा हूँ। एक समस्या आ रही है की आपके फोटो आधे कटे हुए दीखते हैं ,साइड का जो अल्फाबेटिकल यात्राओ का बार है उसकी वजह से फोटो कट जाते है. क्या करें कि वो पूरे दिख सके.
    - ब्रजेश मिश्रा
    लखनऊ

    ReplyDelete
  23. क्या करें कि फोटो पूरे दिख सके कोई और अगर मेरी समस्या का समाधान कर दे तो बहुत धन्यवाद
    - ब्रजेश मिश्रा
    लखनऊ

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब...