Skip to main content

पौषपत्री का शानदार भण्डारा

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें
अमरनाथ यात्रा में महागुनस चोटी को पार करके एक स्थान आता है- पौषपत्री। जहां महागुनस (महागणेश) चोटी समुद्र तल से 4276 मीटर की ऊंचाई पर है वहीं पौषपत्री की ऊंचाई 4114 मीटर है। यहां से एक तरफ बरफ से ढकी महागुनस चोटी दिखाई देती है, वही दूसरी ओर दूर तक जाता ढलान दिखता है। पौषपत्री से अगले पडाव पंचतरणी तक कहीं भी चढाई वाला रास्ता नहीं है। टोटल उतराई है।
पौषपत्री का मुख्य आकर्षण यहां लगने वाला भण्डारा है। देखा जाये तो पौषपत्री पहुंचने के दो रास्ते हैं। एक तो पहलगाम से और दूसरा बालटाल से पंचतरणी होते हुए। यह शिव सेवक दिल्ली वालों द्वारा लगाया जाता है। मुझे नहीं लगता कि इतनी दुर्गम जगह पर खाने का सामान हेलीकॉप्टर से पहुंचाया जाता होगा। सारा सामान खच्चरों से ही जाता है। हमें यहां तक पहुंचने में डेढ दिन लगे थे। खच्चर दिन भर में ही पहुंच जाते होंगे, वो भी महागुनस की बर्फीली चोटी को लांघकर।
वैसे तो यात्रा में अनगिनत भण्डारे लगते हैं। लेकिन सबसे शानदार भण्डारा मुझे यही लगा। खाने के आइटमों के मामले में। अभी फोटो और एक वीडियो दिखा रहा हूं। इसे देखकर किसी अमीर बाप को अपने इकलौते बेटे की शादी की पार्टी देने में भी शर्म आने लगेगी।

AMARNATH 1
महागुनस चोटी को पार करके पौषपत्री आता है।

AMARNATH 2
यह भण्डारे वालों ने ही लगा रखा है।

AMARNATH 3
पौषपत्री से पंचतरणी जाने का रास्ता।

AMARNATH 4
यह है भण्डारा- फ्री में।

AMARNATH 5
पहले डोसा खाओ।

AMARNATH 6
AMARNATH 7
नमकीन खाने की भरमार है तो…

AMARNATH 8
… मीठे की भी भरमार है।

AMARNATH 9
खाने से पहले यह भी सोचना पडेगा कि हम इस समय खडे कहां पर हैं। समुद्र तल से 4114 मीटर की ऊंचाई पर, वो भी डेढ दिन से पैदल यात्रा करके यहां पहुंचे हैं। बरफ और ठण्ड को झेलते हुए। धन्य हैं वे लोग जो यात्रा में भण्डारे लगाते हैं।

AMARNATH 10
एक सच्चाई यह भी है। “घोडे और पिट्ठू वालों का भण्डारा नीचे है।” स्थानीय लोगों के लिये अलग से भण्डारे लगाये जाते हैं। उन्हे ज्यादातर जगहों पर मुख्य भण्डारे में नहीं घुसने दिया जाता। उनके भण्डारे में सब्जी-रोटी और चावल होते हैं।

AMARNATH 11
यह है असली सूरत पौषपत्री की। पीछे महागुनस दर्रा दिख रहा है।

AMARNATH 12
अब चल पडे पंचतरणी की ओर। अभी पंचतरणी 6-7 किलोमीटर और है।

AMARNATH 13
पंचतरणी की ओर जाते यात्री।

AMARNATH 14
पीछे महागुनस पर्वत।



अमरनाथ यात्रा
1. अमरनाथ यात्रा
2. पहलगाम- अमरनाथ यात्रा का आधार स्थल
3. पहलगाम से पिस्सू घाटी
4. अमरनाथ यात्रा- पिस्सू घाटी से शेषनाग
5. शेषनाग झील
6. अमरनाथ यात्रा- महागुनस चोटी
7. पौषपत्री का शानदार भण्डारा
8. पंचतरणी- यात्रा की सुन्दरतम जगह
9. श्री अमरनाथ दर्शन
10. अमरनाथ से बालटाल
11. सोनामार्ग (सोनमर्ग) के नजारे
12. सोनमर्ग में खच्चरसवारी
13. सोनमर्ग से श्रीनगर तक
14. श्रीनगर में डल झील
15. पटनीटॉप में एक घण्टा

Comments

  1. विहंगम निवास और भोले का भण्डारा।

    ReplyDelete
  2. ठीक दावत उडाई.. अगली बार मुझे भी जाना पड़ेगा...

    लेकिन ये स्थानीय लोगों से भेदभाव ठीक नहीं लगा... बल्कि उन्हें तो ज्यादा मिलना चाहिए.. उन्हें बिना आप यात्रा की कल्पना नहीं कर सकते.. पर ये हिन्दुस्तान है.. श्रम की कोई कीमत नहीं.... भोलेनाथ शायद ये बेशर्मी देख कर ही पिघल जाते होगें...

    ReplyDelete
  3. धन्य हैं भण्डारे लगाने वाले.

    ReplyDelete
  4. बिलकुल ! भोले के दरबार में भेद-भाव गलत है , निंदनीय है . अबे इस से अच्छा तो छोले - चावल, दाल -रोटी बाँट लो . धर्म का मर्म कठिन इसीलिए कहा गया है . एक तो वैसे ही कश्मीर घाटी देशद्रोही तत्वों से भरी हुई है और उनमें से भी जो ग़रीब-गुरबे , चाहे रोज़ी-रोटी के लिए सही, यात्रियों के काम आते हैं उन्हें इस तरह अलग करना शर्मनाक है, महा बकवास वाकया है ये . फोटो बढ़िया हैं पर मज़ा किरकिरा कर दिया सच बता कर .

    ReplyDelete
  5. नीरज दावत उडा रहे हो? बहुत अच्‍छी जानकारी और फोटोज हैं।

    ReplyDelete
  6. ....शायद ज़्यादा ही भावुक हो गया मैं लेकिन भेद-भाव की बात सुन कर ,पढ़ कर बर्दाश्त नहीं होता . खैर..... आगे के किस्से का इंतज़ार रहेगा .

    ReplyDelete
  7. नीरज भाई रिपोर्ट तो जबरदस्त है . आपके रिपोर्ट को पढकर अमरनाथ यात्रा की एक अलग पहलु सामने आया है . सराहनीय प्रयास

    और हां ये स्थानीय लोगों से भेदभाव मुझे भी
    ठीक नहीं लगा

    मृत्युंजय कुमार

    ReplyDelete
  8. रोम हर्षक चित्र....आप धन्य हैं...क्या चित्र लिए हैं...कमाल के
    नीरज

    ReplyDelete
  9. देख भाई भटकती आत्मा, रिपोर्ट, तस्वीर और विडियो तो लाजवाब है पर घोडे वालों का अलग भंडारा होने का कारण कुछ और है या क्या है? इस पर प्रकाश डालना था. ये भेदभाव वाली बात है या कुछ और?

    रामराम

    ReplyDelete
  10. बढ़िया जानकारी और चित्र! धन्यवाद!

    ReplyDelete
  11. गज़ब का भंडारा...शायद कभी गये तो इन्हीं भंडारे वाली तस्वीरों की ताकत ले जायेगी. :)

    ReplyDelete
  12. lingrajpatel.wordpress.com


    आपके रिपोर्ट को पढकर अमरनाथ यात्रा की एक अलग पहलु सामने आया है

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

दिल्ली से गैरसैंण और गर्जिया देवी मन्दिर

   सितम्बर का महीना घुमक्कडी के लिहाज से सर्वोत्तम महीना होता है। आप हिमालय की ऊंचाईयों पर ट्रैकिंग करो या कहीं और जाओ; आपको सबकुछ ठीक ही मिलेगा। न मानसून का डर और न बर्फबारी का डर। कई दिनों पहले ही इसकी योजना बन गई कि बाइक से पांगी, लाहौल, स्पीति का चक्कर लगाकर आयेंगे। फिर ट्रैकिंग का मन किया तो मणिमहेश परिक्रमा और वहां से सुखडाली पास और फिर जालसू पास पार करके बैजनाथ आकर दिल्ली की बस पकड लेंगे। आखिरकार ट्रेकिंग का ही फाइनल हो गया और बैजनाथ से दिल्ली की हिमाचल परिवहन की वोल्वो बस में सीट भी आरक्षित कर दी।    लेकिन उस यात्रा में एक समस्या ये आ गई कि परिक्रमा के दौरान हमें टेंट की जरुरत पडेगी क्योंकि मणिमहेश का यात्रा सीजन समाप्त हो चुका था। हम टेंट नहीं ले जाना चाहते थे। फिर कार्यक्रम बदलने लगा और बदलते-बदलते यहां तक पहुंच गया कि बाइक से चलते हैं और मणिमहेश की सीधे मार्ग से यात्रा करके पांगी और फिर रोहतांग से वापस आ जायेंगे। कभी विचार उठता कि मणिमहेश को अगले साल के लिये छोड देते हैं और इस बार पहले बाइक से पांगी चलते हैं, फिर लाहौल में नीलकण्ठ महादेव की ट्रैकिंग करेंग...

भंगायणी माता मन्दिर, हरिपुरधार

इस यात्रा-वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें । 10 मई 2014 हरिपुरधार के बारे में सबसे पहले दैनिक जागरण के यात्रा पृष्ठ पर पढा था। तभी से यहां जाने की प्रबल इच्छा थी। आज जब मैं तराहां में था और मुझे नोहराधार व कहीं भी जाने के लिये हरिपुरधार होकर ही जाना पडेगा तो वो इच्छा फिर जाग उठी। सोच लिया कि कुछ समय के लिये यहां जरूर उतरूंगा। तराहां से हरिपुरधार की दूरी 21 किलोमीटर है। यहां देखने के लिये मुख्य एक ही स्थान है- भंगायणी माता का मन्दिर जो हरिपुरधार से दो किलोमीटर पहले है। बस ने ठीक मन्दिर के सामने उतार दिया। कुछ और यात्री भी यहां उतरे। कंडक्टर ने मुझे एक रुपया दिया कि ये लो, मेरी तरफ से मन्दिर में चढा देना। इससे पता चलता है कि माता का यहां कितना प्रभाव है।