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भारत में नेशनल पार्क

नेशनल पार्क यानी एक ऐसा क्षेत्र जो इकोसिस्टम के लिए अत्यधिक विशेष हो, किसी जीव के लिए विशेष हो, किसी वनस्पति के लिए विशेष हो... और उसे संरक्षित करना जरूरी हो... हमारे लिए यह प्रसन्नता की बात है कि भारत में बहुत सारे नेशनल पार्क हैं, जहाँ हम उन जीवों का दीदार करने या प्रकृति को प्राकृतिक वातावरण में देखने जा सकते हैं। ज्यादातर नेशनल पार्क किसी न किसी जीव के लिए जाने जाते हैं; जैसे जिम कार्बेट बाघ के लिए, काजीरंगा गैंडों के लिए, राजाजी हाथी के लिए, गीर शेर के लिए... लेकिन इन जंगलों में इन जानवरों के अलावा और भी बहुत सारे जानवर रहते हैं... ज्यादातर नेशनल पार्कों में हिरणों की अलग-अलग प्रजातियाँ निवास करती हैं; जैसे नीलगाय, सांभर, चीतल, चिंकारा, जंगली सूअर, काकड़ आदि... इन शाकाहारी जानवरों के अलावा एक मांसाहारी जानवर भी लगभग सभी नेशनल पार्कों में मिलता है... वो है तेंदुआ... पक्षियों की अनगिनत प्रजातियाँ सभी नेशनल पार्कों में मिलती हैं.. तो इस लेख में हम भारत के ज्यादातर नेशनल पार्कों का उल्लेख करेंगे और उनमें पाए जाने वाले उस विशेष जानवर का भी नाम लिखेंगे...

भारत परिक्रमा- दसवां दिन- बोरीवली नेशनल पार्क

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये  यहाँ क्लिक करें । 17 अगस्त 2012 आज का दिन बहुत खराब रहा। बल्कि खराबी रात से ही आनी शुरू हो गई। पता नहीं क्या हुआ कि दाहिने हाथ के कन्धे में बडा तेज दर्द होने लगा। मंगलौर से चला था तो कम था लेकिन मडगांव से निकला तो बढ गया। लेटने की ज्यादातर अवस्थाओं में यह असहनीय हो जाता। मात्र एक अवस्था में दर्द नहीं होता था- बिल्कुल सीधे लेटकर दाहिना हाथ पेट पर रखकर सोने पर। लेकिन मेरे लिये पेट पर हाथ रखकर सोने से अच्छा है कि ना ही सोऊं। क्योंकि पेट पर हाथ रखकर सोने से मुझे बडे भयंकर डरावने सपने आते हैं। मुझे याद है, होश संभालने से अब तक, जब भी मुझे डरावने सपने आते हैं, इसका मतलब पेट पर हाथ ही होता है। मैं भूलकर भी इस अवस्था में नहीं सोता हूं, लेकिन कभी कभी नींद में ऐसा हो जाता है। पसीने से लथपथ हो जाता हूं और आंख खुल जाती है। आज भी ऐसा ही हो रहा था। नींद आती और गडबड शुरू, पसीना और नींद गायब। पेट से हाथ हटाते ही असहनीय दर्द। फिर से वही हाथ रखना पडता। और यह चक्र मुम्बई आने तक चलता रहा। इस दौरान कई बार कभी मुझपर तो कभी घर-परिवार पर भयंकर आपदा टूट...

चीला के जंगलों में

इस इतवार को हमने मूड बनाया चीला में घूमने का। राजाजी राष्ट्रीय पार्क में तीन मुख्य रेंज हैं-चीला, मोतीचूर और एक का नाम याद नहीं। सुबह ही हल्का नाश्ता करके मैं, डोनू और सचिन तीनों चल पड़े। हरिद्वार बस स्टैंड से पैदल हर की पैडी पहुंचे।

राजाजी राष्ट्रीय पार्क में मोर्निंग वाक

बात करीब दो साल पुरानी है। उस समय मैं कॉलेज में पढता था। फाइनल इयर की परीक्षाएं होने को थी। इन परीक्षाओं के बाद मेरा मन आगे पढने का नहीं था, बल्कि नौकरी करने का था। मैंने सोचा कि परीक्षा ख़त्म होने के बाद BHEL हरिद्वार में एक साल की ट्रेनिंग करूंगा। इसके लिए पहले ही आवेदन करना जरूरी था। इसलिए एक दिन समय निकालकर मैं और कमल हरिद्वार पहुँच गए। अप्रैल का महीना था। सुबह सुबह चार बजे हम दोनों हरिद्वार रेलवे स्टेशन पर थे। हमें BHEL ग्यारह बजे के बाद जाना था। सात घंटे अभी भी बाकी थे। इतना टाइम कैसे गुजारें। तय हुआ कि चंडी देवी मन्दिर तक घूम कर आते हैं। यह हरिद्वार से छः किलोमीटर दूर पहाडी पर स्थित है। रास्ता भी पैदल का ही है। चल पड़े दोनों। गंगा का पुल पार करके हम बाइपास रोड पर पहुंचे। यह रोड आगे ऋषिकेश चली जाती है। इसी में से एक रास्ता दाहिने से कटकर ऊपर चंडी देवी मन्दिर तक जाता है। मैंने सोचा कि मन्दिर जायेंगे, वहां पर कम से कम ग्यारह ग्यारह रूपये का प्रसाद भी चढाना पड़ेगा। चलो आज इस रोड पर सीधे चलते है। कमल कहने लगा कि पता नहीं यह रोड कहाँ जाती है। आगे पूरा इलाका राजाजी राष्ट्रीय पार्...