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18 जून 2013
नौ बजे सोकर उठा। उठने के मामले में कभी जल्दबाजी नहीं की। रात शानदार नींद आई।
लेह शहर में मैं जनवरी में अच्छी तरह घूम चुका था, अब घूमने की आवश्यकता नहीं थी। खारदूंगला भी जाना चाहिये था लेकिन सबसे पहली बात कि मन नहीं था, दूसरी बात मौसम खराब होने और भारी बर्फबारी की वजह से खारदूंगला का परमिट भी नहीं दिया जा रहा था। फिर लगातार समाचार आ रहे थे कि हिमाचल और उत्तराखण्ड में बारिश ने भारी तबाही मचा दी है। लद्दाख में तो खैर उतना भय नहीं है लेकिन जोजीला के बाद जम्मू तक अवश्य बारिश व्यवधान पैदा कर सकती है। अगर कोई व्यवधान हो गया तो रास्ते में पता नहीं कितने दिन रुकना पड जाये। अब जरूरी था जल्द से जल्द इस यात्रा को समाप्त करके दिल्ली पहुंचना।
लेह से श्रीनगर तक तीन दर्रे पडते हैं- फोतू-ला, नामिक-ला और जोजी-ला। इनमें फोतू-ला सबसे ऊंचा है- 4100 मीटर। सारे उतार-चढावों को ध्यान में रखते हुए सात दिन में श्रीनगर पहुंचने का कार्यक्रम इस प्रकार बनाया- लेह से ससपोल, ससपोल से लामायुरू, लामायुरू से मुलबेक, मुलबेक से कारगिल या खारबू, कारगिल या खारबू से द्रास, द्रास से सोनामार्ग और सोनामार्ग से श्रीनगर।
गर्म पानी आ रहा था। दस दिन पहले आठ तारीख को गोंदला में ही नहाया था। तब से लगातार पसीना बहा रहा हूं। शरीर पर कहीं भी हाथ लगा दूं, मैल की परतें उतरने लगती। सबसे जरूरी था मुंह अच्छी तरह धोना लेकिन मुंह पर हाथ लगाना भी मुश्किल था। नाक बिल्कुल जल चुकी थी, ऊपर से गर्म पानी लगता तो और भी जलन होती। साबुन और भी भयंकर। यहां प्रतिज्ञा की कि श्रीनगर तक 434 किलोमीटर के रास्ते में एक किलोमीटर भी मुंह उघाडकर साइकिल नहीं चलाऊंगा। एक सप्ताह बाद जब दिल्ली पहुंचूंगा तो काफी हद तक चेहरा ठीक हो जाना चाहिये।
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इस यात्रा के अनुभवों पर आधारित मेरी एक किताब प्रकाशित हुई है - ‘पैडल पैडल’। आपको इस यात्रा का संपूर्ण और रोचक वृत्तांत इस किताब में ही पढ़ने को मिलेगा।
आप अमेजन से इसे खरीद सकते हैं।
लेह का मुख्य चौक। बायें मनाली, सीधे श्रीनगर। मौसम भी खराब। |
दुनिया का सबसे ऊंचा बोटलिंग प्लांट। |
गुरुद्वारा पत्थर साहिब |
पत्थर साहिब से निम्मू की तरफ का नजारा। |
यही है वो चट्टान जिसपर गुरूजी की आकृति है। |
गुरूद्वारे के अन्दर |
गुरूजी की यात्राओं का नक्शा |
“भारी वाहन पार्किंग” |
सिन्धु नदी |
सिन्धु जांस्कर संगम। बायें सिन्धु, सामने जांस्कर। |
सामने निम्मू है। |
बासगो से आगे चढाई। |
अब यह राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 1 है। पहले 1D था। |
किलोमीटर के पत्थरों पर ज्यादातर अंग्रेजी में लिखा है, कहीं कहीं हिन्दी में भी लेकिन स्थानीय लद्दाखी में दुर्लभ हैं। ऐसा ही एक दुर्लभ पत्थर। इस पर लिखा है ससपोल 12 किलोमीटर। |
ससपोल में गेस्ट हाउस में। |
कमरे की खिडकी से |
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अगला भाग: लद्दाख साइकिल यात्रा- सोलहवां दिन- ससपोल से फोतूला
मनाली-लेह-श्रीनगर साइकिल यात्रा
1. साइकिल यात्रा का आगाज
2. लद्दाख साइकिल यात्रा- पहला दिन- दिल्ली से प्रस्थान
3. लद्दाख साइकिल यात्रा- दूसरा दिन- मनाली से गुलाबा
4. लद्दाख साइकिल यात्रा- तीसरा दिन- गुलाबा से मढी
5. लद्दाख साइकिल यात्रा- चौथा दिन- मढी से गोंदला
6. लद्दाख साइकिल यात्रा- पांचवां दिन- गोंदला से गेमूर
7. लद्दाख साइकिल यात्रा- छठा दिन- गेमूर से जिंगजिंगबार
8. लद्दाख साइकिल यात्रा- सातवां दिन- जिंगजिंगबार से सरचू
9. लद्दाख साइकिल यात्रा- आठवां दिन- सरचू से नकी-ला
10. लद्दाख साइकिल यात्रा- नौवां दिन- नकी-ला से व्हिस्की नाला
11. लद्दाख साइकिल यात्रा- दसवां दिन- व्हिस्की नाले से पांग
12. लद्दाख साइकिल यात्रा- ग्यारहवां दिन- पांग से शो-कार मोड
13. शो-कार (Tso Kar) झील
14. लद्दाख साइकिल यात्रा- बारहवां दिन- शो-कार मोड से तंगलंगला
15. लद्दाख साइकिल यात्रा- तेरहवां दिन- तंगलंगला से उप्शी
16. लद्दाख साइकिल यात्रा- चौदहवां दिन- उप्शी से लेह
17. लद्दाख साइकिल यात्रा- पन्द्रहवां दिन- लेह से ससपोल
18. लद्दाख साइकिल यात्रा- सोलहवां दिन- ससपोल से फोतूला
19. लद्दाख साइकिल यात्रा- सत्रहवां दिन- फोतूला से मुलबेक
20. लद्दाख साइकिल यात्रा- अठारहवां दिन- मुलबेक से शम्शा
21. लद्दाख साइकिल यात्रा- उन्नीसवां दिन- शम्शा से मटायन
22. लद्दाख साइकिल यात्रा- बीसवां दिन- मटायन से श्रीनगर
23. लद्दाख साइकिल यात्रा- इक्कीसवां दिन- श्रीनगर से दिल्ली
24. लद्दाख साइकिल यात्रा के तकनीकी पहलू
बहुत रोमांचक रही ये यात्रा.
ReplyDeleteGreat
ReplyDeleteसिन्धु जांस्कर संगम।
ReplyDeleteनीरज जी यह वही जगह हे जहाँ पर आप ने जनवरी मै चादर ट्क किया था.?
आज की याञा सडक मारग पर जयादा रही ।फोटो मे सुनदरता बहुत दिखाई हे आपने।पतथर साहिब के दशॅन कर मन को अचछा लगा।
Pichle saal jis ghar me ruke the unse milne ka khayaal nahi aya mun me??
ReplyDeleteek sardaarji ka bhi photo chap dete ji.. bhool guye..
badhiya photos..
हमेशा शिकायतें ही शिकायतें!
Deleteवो जनवरी वाला घर चिलिंग में है। चिलिंग निम्मू से चालीस किलोमीटर ऊपर जांस्कर घाटी में है। जाना और आना अस्सी किलोमीटर हो जाता। इसी से बचने के लिये चिलिंग नहीं गया।
अरे नहीं जी कोई शिकायत नहीं थी ये .. मन में बात आई तो पूछा ..
Delete"अच्छा हां" कई पोस्टों के बाद दिखा।
ReplyDeleteमैं तो इसे आपकी सभी पोस्टों में ढूंढता रहता हूं :-)
प्रणाम
यात्रा का अगला चरण शुरू हो गया है।
ReplyDeleteभई वाह !!
आज की तस्वीरें भी अच्छी हैं
और मैं जानता हूँ की अगले दिन कुछ बेहतरीन वायुक्षरण तस्वीरें दिखने वाली है।
- Anilkv
नीरज जी! नमस्कार, अभी तक अपने अपनी जली नाक के बारे में कई पोस्ट में जिक्र कर चुके हैं लेकिन अभी उस तस्वीर के दर्शन नही करये।
ReplyDeleteनीरज सरदार जी की किस्मत अच्छी निकली की आपने वहाँ खाना नही खाया नही तो सरदार जी क्या खाता?
ReplyDeleteजितने भी महापुरुष हुये हैं, गजब के घुमक्कड़ हुये हैं। बिना घुमक्कड़ी देश को समझना संभव ही कहाँ है।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रही लेह की यात्रा ....एक बार फिर पत्थर साहेब के दर्शन मन को प्रफुल्लित कर गए .....वो "नाक " कहाँ है ठाकुर ...
ReplyDeleteShandar Nazare, Guest House behtarin hai,
ReplyDeleteहिंद में ब्लॉग लिखना जयदा सरल है क्योकि यह हमारी मात्र भाषा है आप का ब्लॉक में जानकारी क लियें धन्यबाद शंकर सिंह कुशवाहा आगरा ९३५८३४३८८४
ReplyDeleteहिंदी में ब्लॉग लिखना जयदा सरल है क्योकि यह हमारी मात्र भाषा है आप का ब्लॉक में जो यात्रा बृतान्त साइकिल की यात्रा भाई मजा आ गया हम बास्तव में इसी खोज में थे हम गुमाक्कर को पढ़ रहें थे जानकारी के लियें धन्यबाद शंकर सिंह कुशवाहा आगरा ९३५८३४३८८४
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