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दुधवा रेलवे - भारतीय रेल का कश्मीर

13 मार्च 2018 आखिरकार वो दिन आ ही गया, जब मैं दिल्ली से शाहजहाँपुर के लिए ट्रेन में बैठा। पिछले साल भी इस यात्रा की योजना बनाई थी और मैं आला हजरत में चढ़ भी लिया था, लेकिन गाजियाबाद से ही लौट आया था - पता नहीं क्यों। लेकिन आज काशी विश्वनाथ पकड़ी और शाम छह बजे जा उतरा शाहजहाँपुर। यहाँ बुलेट लेकर नीरज पांडेय जी मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे और अपने घर ले गए, जहाँ मिठाई व पानी से मेरा स्वागत किया गया। शाम को शहर से बाहर एक रेस्टोरेंट में चल दिए, जहाँ मच्छर-दंश से अपनी टांगें खुजाते हुए मैंने इसे गूगल मैप पर फाइव-स्टार रेटिंग भी दी। होटल मालिक पांडेय जी का दोस्त था - “हमारी एक खास बात है। हमारे यहाँ किसी भी हालत में कोई भी दारू नहीं पी सकता। ऐसा करने से मैं अपने बहुत सारे मालदार ग्राहकों को खो चुका हूँ, लेकिन मुझे बड़ा सुकून है कि हमारी पहचान एक ऐसे रेस्टोरेंट के तौर पर हो रही है, जहाँ कोई भी दारू नहीं पी सकता।” “हाँ, सही कहा भाई आपने। यही आपकी पहचान है।” - होटल मालिक के एक अन्य मित्र ने दारू का पव्वा काँच के गिलास में उड़ेलते हुए कहा, जो अभी-अभी अपने बच्चों को थोड़ी ही दूर एक पेड़ के नीचे बैठाकर आय...

आंबलियासन से विजापुर मीटरगेज रेलबस यात्रा

19 मार्च, 2017 मैं महेसाणा स्टेशन पर था - “विजापुर का टिकट देना।”  क्लर्क ने दो बार कन्फर्म किया - “बीजापुर? बीजापुर?”  नहीं विजापुर। वी जे एफ। तब उसे कम्प्यूटर में विजापुर स्टेशन मिला और 15 रुपये का टिकट दे दिया। अंदाज़ा हो गया कि इस मार्ग पर भीड़ नहीं मिलने वाली। प्लेटफार्म एक पर पहुँचा तो डी.एम.यू. कहीं भी नहीं दिखी। प्लेटफार्म एक खाली था, दो पर वीरमगाम पैसेंजर खड़ी थी। फिर एक मालगाड़ी खड़ी थी। क्या पता उसके उस तरफ डी.एम.यू. खड़ी हो। मैं सीढ़ियों की और बढ़ने लगा। बहुत सारे लोग पैदल पटरियाँ पार कर रहे थे, लेकिन जिस तरह हेलमेट ज़रूरी है, उसी तरह स्टेशन पर सीढियाँ।

गुजरात मीटरगेज ट्रेन यात्रा: बोटाद से गांधीग्राम

18 मार्च 2017 पहले तो योजना थी कि आज पूरे दिन भावनगर में रुकूँगा और विमलेश जी जहाँ ले जायेंगे, जाऊँगा। उन्होंने मेरे लिये बड़ी-बड़ी योजनाएँ बना रखी थीं और रेलवे के कारखाने में मेरे एक लेक्चर की भी प्लानिंग थी। लेकिन जब मुझे पता चला कि आंबलियासन से विजापुर वाली मीटरगेज की लाइन चालू है और उस पर रेलबस भी चलती है, तो मेरा मन बदल गया। अगर इस बार उस लाइन पर यात्रा नहीं की तो पता नहीं कब इधर आना हो और कौन जाने तब तक वो लाइन बंद भी हो जाये। विजापुर से आदरज मोटी, कलोल से महेसाणा और अहमदाबाद से खेड़ब्रह्म वाली लाइनें पहले ही बंद हो चुकी हैं। गेज परिवर्तन का कार्य जोरों पर चल रहा है। यही बात विमलेश जी को बतायी तो वे इसके लिये तुरंत राज़ी हो गये। तय हुआ कि आज बोटाद से अहमदाबाद तक यात्रा करूँगा और कल आंबलियासन से विजापुर। बोटाद से अहमदाबाद जाने के लिये दो बजे वाली ट्रेन पकडूँगा और यहाँ भावनगर से बोटाद के लिये साढ़े ग्यारह वाली। यानी आज साढ़े ग्यारह बजे तक हमारे पास समय रहेगा विमलेश जी के कारखाने में घूमने का। बाइक उठायी और निकल पड़े।

गुजरात मीटरगेज ट्रेन यात्रा: जूनागढ़ से देलवाड़ा

17 मार्च 2017 रात अच्छी नींद आयी। एक चूहे ने एक बार आसपास चहलकदमी की, एक दो डरावने सपने आये: फिर भी सब ठीक रहा। इतने बड़े रेस्ट हाउस में मैं अकेला ही था। भूतों के अस्तित्व को मैं मानता हूँ। रेलवे लाइन के किनारे बने इस सुनसान रेस्ट हाउस में भूत रहते होंगे, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। धन्यवाद भूतों, मुझे शांति से सोने देने के लिए। जूनागढ़ से ट्रेन ठीक समय पर चल दी। भीड़ बिल्कुल नहीं थी। जैसे ही शहर से बाहर निकले, गिरनार पर्वत दिखायी पड़ने लगा। काफ़ी ऊँचा पर्वत है और जूनागढ़ के साथ-साथ गुजरात का भी बहुत बड़ा धार्मिक आस्था का केंद्र है। दूर से ही नमस्कार किया - भविष्य में दीप्ति के साथ आने का वादा करके। वीसावदर में हमारी ट्रेन पहुँचने के बाद खिजडिया-जूनागढ़ पैसेंजर आ गयी। लग रहा था कि अब हमारी ट्रेन खाली हो जाएगी, लेकिन खिजडिया ट्रेन के आधे से ज्यादा यात्री इसमें चढ़ गए। सभी सीटें भर गयीं और कुछ यात्री खड़े भी रहे। मैं कल इस मार्ग पर यात्रा कर चुका था, इसलिए मेरे काम पर इस भीड़ का उतना प्रभाव नहीं पड़ा।

गिर फोरेस्ट रेलवे: ढसा से वेरावल

इस यात्रा-वृत्तांत को आरंभ से पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें । दो घंटे ढसा में खड़ी रहकर यही ट्रेन अब वेरावल के लिये चल दी। ढसा से ब्रॉड़गेज की एक लाइन भावनगर जाती है और एक महुवा। ट्रेन चली तो एक कंटेनर ट्रेन महुवा की ओर जाती दिखी। धीरे-धीरे मीटरगेज की ट्रेन सरक रही थी, थोड़ी ही दूरी पर य्यै लंबी कंटेनर ट्रेन। बड़ा शानदार दृश्य था यह। मैं इसमें इतना खो गया कि फोटो लेना भी याद नहीं रहा। हालाँकि एक-दो फोटो जाती-जाती के ले ज़रूर लिये। अमरेली स्टेशन पर एक सूचना-पट्ट लगा हुआ था, जिस पर पीली बैकग्राउंड में काले अक्षरों में ताज़ा ही लिखा हुआ था - आरक्षण चार्ट। मैं चौंक गया। अरे, यह क्या लिख दिया इन्होने? अमरेली में आरक्षण चार्ट? गिनी चुनी दो तीन पैसेंजर ट्रेनें आती हैं - जनरल डिब्बों वाली। जिसने भी यह काम करवाया है, उसने बीस रूपये का काम कराके हज़ार का बिल बनाया होगा। फेसबुक पेज पर एक लाइव वीडियो चला दी। यार लोग खुश हो गए। पूछने लगे कहाँ का है, कहाँ का है। उनसे अगर बता देता कि अमरेली का है तो कोई भी यह पता लगाने की ज़हमत नहीं उठाता कि अमरेली है कहाँ। उल्टा मुझसे ही पूछते।

गुजरात मीटरगेज रेल यात्रा: जेतलसर से ढसा

अंधा क्या माँगे? मुझे ट्रेन में जो बर्थ सबसे ज्यादा पसंद है, वो है अपर बर्थ। आप अपने बैग से कई सामान अपने इर्द गिर्द फैला सकते हैं और चोरी होने व गिरने का डर भी नहीं। मोबाइल को कान के पास रख रकते हैं, कोने में पानी की बोतल, मोबाइल के पास बैटरी बैंक, थोड़ा नीचे कैमरा, केले या अंगूर। यह उन्मुक्तता किसी दूसरी बर्थ पर नहीं मिलती। वरीयता क्रम में इसके बाद मिड़ल बर्थ, लोअर बर्थ, साइड़ अपर और साइड़ लोअर। साइड़ लोअर भले ही पाँचवे नंबर पर हो, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि यह मुझे पाँचवे नंबर पर पसंद है। बल्कि यह बर्थ मुझे सबसे ज्यादा नापसंद है। और आज जब चार्ट बना तो आर.ए.सी. क्लियर होने के बाद मुझे मिली 39 नंबर की बर्थ - साइड़ लोअर। मैं इस पर जाकर दो अन्य लोगों के बीच जगह बनाता हुआ बैठ गया और इंतज़ार करने लगा कि कोई आये और मुझसे किसी भी बर्थ के बदले बदली कर ले। ज्यादा देर प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी और आठ मुसलमानों के दल के एक सदस्य ने जैसे ही अपनी कहानी सुनानी शुरू की, मैंने तपाक से कहा - “हाँ, बदल लूँगा। कौन-सी बर्थ पर जाना है?” उन्होंने कहा - “22 नंबर पर।” सेकंड का हजारवाँ हिस्सा भी नहीं लगा, गणना ...

गुजरात मीटरगेज रेल यात्रा: अहमदाबाद से रणुंज

14 मार्च 2017 जब से मेरठ-सहारनपुर रेलवे लाइन बिजली वाली हुई है और इस पर बिजली वाले इंजन, बिजली वाली ट्रेनें चलने लगी हैं, गोल्डन टेम्पल मेल में डीजल इंजन लगना बंद हो गया है। निजामुद्दीन में इंजनों की अदला-बदली होती थी, तो यहाँ इस ट्रेन के लिए तीस मिनट का ठहराव निर्धारित था, लेकिन अब इसे घटाकर पंद्रह मिनट कर दिया गया है। पहले यह सात बजकर पैंतीस पर निजामुद्दीन से चलती थी, जबकि अब सात बीस पर ही चल देती है। सात बजे मेरी नाईट ड्यूटी समाप्त होती है, तो इन बीस मिनटों में निजामुद्दीन कैसे पहुँचा, यह बात केवल मैं और धीरज ही जानते हैं। धीरज बाइक लेकर वापस चला गया, मैं निजामुद्दीन रह गया। जब फुट ओवर ब्रिज पर तेजी से प्लेटफार्म नंबर एक की और जा रहा था, तो एक गाड़ी की सीटी बजने लगी थी और वह गाड़ी थी - गोल्डन टेम्पल मेल।

मीटरगेज ट्रेन यात्रा: महू-खंड़वा

29 सितंबर 2016 सुबह साढ़े पाँच बजे इंदौर रेलवे स्टेशन पर मैं और सुमित बुलेट पर पहुँचे। बाइक पार्किंग में खड़ी की और सामने बस अड्ड़े पर जाकर महू वाली बस के कंडक्टर से पूछा, तो बताया कि सात बजे बस महू पहुँचेगी। क्या फायदा? तब तक तो हमारी ट्रेन छूट चुकी होगी। पुनः बाइक उठायी और धड़-धड़ करते हुए महू की ओर दौड़ लगा दी। खंड़वा जाने वाली मीटरगेज की ट्रेन सामने खड़ी थी - एकदम खाली। सुमित इसके सामने खड़ा होकर ‘सेल्फी’ लेने लगा, तो मैंने टोका - ज़ुरमाना भरना पड़ जायेगा। छह चालीस पर ट्रेन चली तो हम आदतानुसार सबसे पीछे वाले ‘पुरुष डिब्बे’ में जा चढ़े। अंदर ट्रेन में पन्नी में अख़बार में लिपटा कुछ टंगा था। ऐसा लगता था कि पराँठे हैं। हम बिना कुछ खाये आये थे, भूखे थे। सुमित ने कहा - नीरज, माल टंगा है कुछ। मैंने कहा - देख, गर्म है क्या? गर्म हों, तो निपटा देते हैं। हाथ लगाकर देखा - ठंड़े पड़े थे। छोड़ दिये।