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Showing posts with the label Himachal Pradesh

यदि पंजाब की राजधानी जालंधर होती...??

1947 में जब भारत का बँटवारा हुआ, तो पंजाब के भी दो हिस्से हुए... एक हिस्सा पाकिस्तान में चला गया और एक हिस्सा भारत में आ गया... चूँकि पूरे पंजाब की राजधानी लाहौर थी, तो लाहौर के पाकिस्तान में चले जाने के कारण भारतीय पंजाब राजधानी-रहित हो गया... उसी समय पंजाब के लिए नई राजधानी की आवश्यकता पड़ी और चंडीगढ़ को बसाने का विचार आया... जब तक चंडीगढ़ का निर्माण हुआ, तब तक पंजाब की राजधानी शिमला रही... लेकिन बात इतनी ही नहीं है... इसी क्षेत्र में कुछ रियासतें ऐसी थीं, जो बँटवारे के समय अंग्रेजों के अधीन नहीं थीं... इनमें पटियाला, जींद, कपूरथला, नाभा, फरीदकोट, मलेरकोटला, कलसिया, नालागढ़ और बहावलपुर की रियासतें थीं... बहावलपुर का विलय पाकिस्तान में हो गया और बाकी सभी रियासतें भारत में शामिल हो गईं... ये रियासतें राजनैतिक रूप से पंजाब से अलग थीं... तो बँटवारे के बाद जो रियासतें भारत में शामिल हुईं, उन्हें पेप्सू का नाम दिया गया... PEPSU - Patiala and East Punjab States Union... 1956 तक पेप्सू भारत का एक राज्य था... Source Link पेप्सू के अलावा बाकी पंजाब अर्थात पेप्सू के बाहर का वर्तमान हरियाणा और पंजाब...

एक यात्रा स्कूली बच्चों के साथ

जब से हम Travel King India Private Limited कंपनी बनाकर आधिकारिक रूप से व्यावसायिक क्षेत्र में आए हैं, तब से हमारे ऊपर जिम्मेदारी भी बढ़ गई है और लोगों की निगाहें भी। कंपनी आगे कहाँ तक जाएगी, यह तो हमारी मेहनत पर निर्भर करता है, लेकिन एक बात समझ में आ गई है कि यात्राओं का क्षेत्र असीमित है और इसके बावजूद भी प्रत्येक यात्री हमारा ग्राहक नहीं है। अपनी सरकारी नौकरी को किनारे रखकर एक साल पहले जब मैं इस क्षेत्र में उतरा था, तो यही सोचकर उतरा था कि प्रत्येक यात्री हमारा ग्राहक हो सकता है, लेकिन अब समझ में आ चुका है कि ऐसा नहीं है। मैं अपनी रुचि का काम करने जा रहा हूँ, तो यात्राओं में भी मेरी एक विशेष रुचि है, खासकर साहसिक और दूरस्थ यात्राएँ; तो मुझे ग्राहक भी उसी तरह के बनाने होंगे। जो ग्राहक मीनमेख निकालने के लिए ही यात्राएँ करते हैं, वे हमारे किसी काम के नहीं। खैर, मैं बहुत दिनों से चाहता था कि दस साल से ऊपर के छात्रों को अपनी पसंद की किसी जगह की यात्रा कराऊँ। छात्रों को इसलिए क्योंकि इनमें सीखने और दुनिया को देखने-समझने की प्रबल उत्सुकता होती है। इनके माँ-बाप अत्यधिक डरे हुए लोग ...

रघुपुर किले की फटाफट यात्रा

19 जुलाई 2019, शुक्रवार... दोपहर बाद दिल्ली से करण चौधरी का फोन आया - "नीरज, मैं तीर्थन वैली आ रहा हूँ।” "आ जाओ।” फिर दोपहर बाद के बाद फोन आया - "नीरज, मैं नहीं आ रहा हूँ।” "ठीक है। मत आओ।” शाम को फोन आया - " हाँ नीरज, कैसे हो?... क्या कर रहे हो?... मैं आ रहा हूँ।” "आ जाओ।” रात नौ बजे फोन आया - "अरे नीरज, खाना खा लिया क्या?... सोने की तैयारी कर रहे होंगे?... बस, ये बताने को फोन किया था कि मैं नहीं आ रहा हूँ।” "ठीक है। मत आओ।” रात दस बजे फोन आया - "अरे बड़ी जल्दी सो जाते हो तुम।... इतनी जल्दी कौन सोता है भाई!... मैं आ रहा हूँ... बस में बैठ गया हूँ... ये देखो फोटो... सबसे पीछे की सीट मिली है।” "खर्र.र्र.र्र..." रात ग्यारह बजे फोन आया - "अरे सुनो, एक पंगा हो गया। बस वाले ने मुझे बाइपास पर उतार दिया है। उस बस में पहले से ही किसी और की बुकिंग थी और बस वाले ने मुझे भी बैठा लिया था। अब उतार दिया है। तो अब मैं नहीं आ रहा हूँ।" "खर्र.र्र.र्र... खर्र.र्र.र्र..." रात साढ़े ग्यारह बजे फोन आया...

राज ठाकुर का गाँव: बीजल

शांघड़ में थे, तो बड़ी देर तक राज ठाकुर को फोन करता रहा, लेकिन उसने उठाया नहीं। उसने आज हमें अपने घर पर बुलाया था - लंच के लिए और हमने उसका निमंत्रण स्वीकार कर लिया था। निमंत्रण इसलिए लिख रहा हूँ, क्योंकि लंच करके हमें वहाँ से चले जाना था। अगर चले जाने की बात न होती, तो आमंत्रण लिखता। उसके घर में कुछ काम चल रहा है, इसलिए वह अतिथियों का अच्छा सत्कार नहीं कर पाएगा, इसका उसे डर था और इसीलिए वह हमें ठहराने से मना कर रहा था। आधे घंटे बाद जब उसका फोन आया, तो मेरा उत्तर था - “भाई जी, आपने फोन नहीं उठाया और हम बंजार पहुँच गए हैं। अब फिर कभी आएँगे।” “ओहो... मुझे पता नहीं चला... मोबाइल खराब हो गया है... देख लो अगर आ सको तो...” “नहीं आ सकते...” “ये क्या हो गया मुझसे! ये तो बड़ी भारी गलती हो गई...” “अच्छा, अच्छा ठीक है... आ रहे हैं आधे घंटे में... अभी शांघड़ से चले हैं... और अबकी बार फोन उठा लेना।” रोपा में कमल जी को अलविदा कहा, क्योंकि उन्हें आज शिमला जाना था। लेकिन शाम को पता चला कि वे कसोल चले गए। मैं नशे से मीलों, कोसों, प्रकाश वर्षों दूर रहता हूँ, इसलिए मुझे कसोल और मलाणा कतई पस...

शांघड़: बेहद खूबसूरत मुकाम

मनु ऋषि मंदिर से लौटकर हम रोपा में एक ढाबे पर चाय पी रहे थे। रसोई के दरवाजे पर लिखा था - "नो एंट्री विदाउट परमिशन"... और अजीत जी ने रसोई में घुसकर मालिक के हाथ में ढेर सारी प्याज और मालकिन के हाथ में ढेर सारे टमाटर देकर बारीक काटने को कह दिया। वे दोनों बाहर बैठकर प्याज-टमाटर काटने में लगे थे और अजीत जी रसोई में अपनी पसंद का कोई बर्तन ढूँढ़ने में लगे थे। इस तरह एक बेहद स्वादिष्ट डिश हमारे सामने आई - साकशुका। मैं और कमल रामवाणी जी इस नाम को बार-बार भूल जाते थे और आखिरकार कमल जी ने इसका भारतीय नामकरण किया - सुरक्षा। अब हम यह नाम कभी नहीं भूलेंगे। जमकर ‘सुरक्षा’ खाई और बनाने की विधि मालिक-मालकिन दोनों को समझा दी। अब बारी थी शांघड़ जाने की। आप गूगल पर शांघड़ (Shangarh) टाइप कीजिए, आपको ऐसे-ऐसे फोटो देखने को मिलेंगे कि आप इस स्थान को अपनी लिस्ट में जरूर नोट कर लेंगे। पक्का कह रहा हूँ। भरोसा न हो, तो करके देख लेना। तो हमने भी इसे नोट कर रखा था और आज आखिरकार उधर जा रहे थे। रोपा से एक किलोमीटर आगे से शांघड़ की सड़क अलग होती है। दूरी 7 किलोमीटर है। नई बनी सड़क है और अभी कच्ची ही...

एक यात्रा सैंज वैली की

मैं जब अप्रैल 2019 के दूसरे सप्ताह में दिल्ली से हिमाचल के लिए निकला था, तो यही सोचकर निकला था कि तीर्थन वैली में रहूँगा और ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में ट्रैकिंग किया करूँगा। लेकिन समय का चक्र ऐसा चला कि न मैं तीर्थन वैली में रह पाया और न ही ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में जा पाया। तीर्थन वैली के बगल में एक छोटी-सी वैली है - जीभी वैली। इस वैली के घियागी गाँव में अपना ठिकाना बना और मेरा सारा समय घियागी में ही कटने लगा। अभी पिछले दिनों अजीत सिंह जी आए और जीभी वैली से बाहर कहीं घूमकर आने को उकसाने लगे। मैं उनके उकसाए में नहीं आता और कल चलेंगे, परसों चलेंगे कहकर बच जाता। फिर कल-परसों आते-आते शनिवार आ जाता और मैं “वीकएंड पर बहुत भीड़ रहेगी और हम जाम में फँसे रहेंगे" कहकर फिर से अपना बचाव कर लेता। हालाँकि यहाँ न भीड़ होती है और न ही जाम। और कमाल की बात ये है कि घियागी की खाली सड़क पर मैं अजीत सिंह जी को भरोसा दिला देता कि भीड़ बहुत है और जाम भी लगा है। लेकिन शुक्रवार 28 जून को मेरी नहीं चली और हम अपनी-अपनी मोटरसाइकिलों से सैंज वैली की ओर बढ़े जा रहे थे। आज मेरी न चलने का भी एक कार...

देवदार के खूबसूरत जंगल में स्थित है बाहू और बालो नाग मंदिर

एक दिन की बात है मैं मोटरसाइकिल लेकर घियागी से बाहू की तरफ चला। इरादा था गाड़ागुशैनी और छाछगलू पास तक जाना। छाछगलू पास का नाम मैंने पहली बार तरुण गोयल से सुना था और इस नाम को मैं हमेशा भूल जाता हूँ। तब हमेशा गोयल साहब से पूछता हूँ और आज भी गोयल साहब से पूछने के बाद ही लिख रहा हूँ। उनसे पूछने का एक कारण और भी है कि वे इसे “छाछगळू” बोलते हैं। और इस तरह बोलते हैं जैसे मुँह में छाछ और गुड़ भरकर बोल रहे हों। तो मुझे यह उच्चारण सुनना बड़ा मजेदार लगता है और मैं बार-बार उनसे इसका नाम पूछता रहता हूँ। तो उस दिन मैं बाहू तक गया और सामने दिखतीं महा-हिमालय की चोटियों को देखकर मंत्रमुग्ध हो गया। यह समुद्र तल से 2300 मीटर ऊपर है और एकदम सामने ये चोटियाँ दिखती हैं। जीभी और घियागी तो नीचे घाटी में स्थित हैं और वहाँ से कोई बर्फीली चोटी नहीं दिखती। तो यहाँ आकर ऐसा लगा जैसे रोज आलू खाते-खाते आज शाही पनीर मिल गया हो। जीभी से इसकी दूरी 10 किलोमीटर है और शुरू में बहुत अच्छी सड़क है, फिर थोड़ी खराब है, फिर और खराब है और आखिर में जब आप बाहू में खड़े होते हैं और कोई बस गुजर जाए, तो आप धूल से सराबोर हो ज...

आश्चर्यचकित कर देने वाली इमारत: चैहणी कोठी

घर की मुर्गी दाल बराबर... इस वजह से हम डेढ़ महीने यहाँ गुजारने के बाद भी चैहणी कोठी नहीं जा पाए। हमारे यहाँ घियागी से यह जगह केवल 10 किलोमीटर दूर है और हम ‘चले जाएँगे’, ‘चले जाएँगे’ ऐसा सोचकर जा ही नहीं पा रहे थे। और फिर एक दिन शाम को पाँच बजे अचानक मैं और दीप्ति मोटरसाइकिल से चल दिए। चलते रहे, चलते रहे और आखिर में सड़क खत्म हो गई। इससे आगे काफी चौड़ा एक कच्चा रास्ता ऊपर जाता दिख रहा था, जिस पर मोटरसाइकिल जा सकती थी, लेकिन कुछ दिन पहले यहाँ आए निशांत खुराना ने बताया कि उस कच्चे रास्ते पर मोटरसाइकिल से बिल्कुल भी मत जाना। तो इस बारे में वहीं बैठे एक स्थानीय से पूछा। उसने भी एकदम निशांत वाले शब्द कहे। मोटरसाइकिल यहीं किनारे पर खड़ी करने लगे, तो उसने कहा - “यहाँ की बजाय वहाँ खड़ी कर दो। अभी बस आएगी, तो उसे वापस मुड़ने में समस्या आएगी।” यहाँ से आगे पैदल रास्ता है। “कितना दूर है? आधे घंटे में पहुँच जाएँगे क्या?” “नहीं, आधे घंटे में तो नहीं, लेकिन पौण घंटे में पहुँच जाओगे।” उसी स्थानीय ने बताया। “मतलब दो किलोमीटर दूर है।” “हाँ जी।”

जलोड़ी जोत से लांभरी हिल का ट्रैक

अभी हाल ही में तरुण गोयल साहब ने बशलेव पास का ट्रैक किया। यह ट्रैक तीर्थन वैली में स्थित गुशैनी से शुरू होता है। कुछ दूर बठाहड़ गाँव तक सड़क बनी है और कुल्लू से सीधी बसें भी चलती हैं। बशलेव पास लगभग 3300 मीटर की ऊँचाई पर है और ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के एकदम बाहर है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस नेशनल पार्क के अंदर जितना घना जंगल है, उससे भी ज्यादा घना जंगल नेशनल पार्क के बाहर है। काले भालू और तेंदुए तो इतने हैं कि दिन में भी देखे जा सकते हैं। मैं भी आजकल इसी ‘आउटर’ जंगल में स्थित एक गाँव घियागी में रहता हूँ। हालाँकि मुझे कोई भी जानवर अभी तक दिखाई नहीं दिया है। एक बार रात को टहलते समय नदी के पार भालू के चीखने की आवाज सुनी थी, तो उसी समय से रात में टहलना बंद कर दिया था। और अभी दो-तीन दिन पहले ग्रामीणों ने बताया कि शाम के समय जीभी और घियागी के बीच में एक तेंदुआ सड़क पर आ गया था, जिसे बस की सभी सवारियों ने देखा। तो मैं बता रहा था कि गोयल साहब सपरिवार बशलेव पास का ट्रैक करके आए। और जिस दिन वे बशलेव पास पर थे, उस दिन मैं भी ट्रैक कर रहा था और उनसे 8 किलोमीटर ही दूर था। उन्होंने अपन...

तीर्थन डायरी - 1 (7 मई 2019)

आज की इस पोस्ट का नाम “होटल ढूँढो टूर” होना चाहिए था। असल में जब से हमारे दोस्तों को यह पता चला है कि हम कुछ महीने यहाँ तीर्थन वैली में बिताएँगे, तो बहुत सारों ने आगामी छुट्टियों में शिमला-मनाली जाना रद्द करके तीर्थन आने का इरादा बना लिया है। अब मेरे पास तमाम तरह की इंक्‍वायरी आती हैं। बहुत सारे दोस्त तो ऐसी बातें पूछ लेते हैं, जिनका एक महीना बिताने के बाद मुझे भी नहीं पता। फिर मैं पता करता हूँ, तो खुद पर हँसता हूँ। एक दोस्त ने 5-6 दिन यहाँ बिताने और अपने लिए एक यात्रा डिजाइन करने का ठेका मुझे दिया। अब मैं तो खाली बैठा हूँ। लग गया डिजाइन करने में। पहले दिन ये, दूसरे दिन वो... फिर ये, फिर वो। सबसे महँगे होटलों में उनके ठहरने का खर्चा भी जोड़ दिया और टैक्सी आदि का भी। फिर जब सारा टोटल किया, तो मेरे होश उड़ गए। करोड़ों रुपये का बिल बन गया। अबे इतना खर्चा थोड़े ही होता है... कम कर, कम कर... फिर सस्ते होटल की कैलकुलेशन करी। खर्चा कुछ कम तो हुआ, लेकिन था फिर भी करोड़ों में ही। और मैंने उन्हें कह दिया - “सर जी, आपकी फैमिली के लिए इतने करोड़ रुपये का बिल बना है।” जैसी उम्मीद थी, वैसा ही...

किन्नर कैलाश की डिजीटल यात्रा

अभी कल्पा में हूँ और सामने किन्नर कैलाश चोटी भी दिख रही है और शिवलिंग भी। चोटी लगभग 6000 मीटर की ऊँचाई पर है और शिवलिंग लगभग 4800 मीटर पर। यात्रा शिवलिंग की होती है और लोग बताते हैं कि वे चोटी तक की यात्रा करके आए हैं। कुछ समय पहले तक मैं चोटी और शिवलिंग को एक ही मानता था और इसी चिंता में डूबा रहता था कि 6000 मीटर तक जाऊँगा कैसे? दूसरी चिंता ये बनी रहती थी कि वे कौन लोग होते हैं जो 6000 मीटर तक पहुँच जाते हैं? 6000 मीटर की ऊँचाई और ट्रैकिंग बहुत ज्यादा होती है... बहुत ही ज्यादा...। मेरी अपर लिमिट 5000 मीटर की है, हद से हद 5200 मीटर तक... बस। जिस दिन इससे ज्यादा ऊँचाई का ट्रैक कर लूँगा, उस दिन एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे के बराबर मान लूँगा खुद को।  पिछले साल गोयल साहब किन्नर कैलाश का ट्रैक करके आए... और आते ही सबसे पहले तो उन लोगों को खरी-खोटी सुनाई, जो बताते हैं कि यात्रा 6000 मीटर तक होती है। और फिर बताया कि यात्रा केवल 4800 मीटर तक ही होती है। यह सुनते ही मुझे बड़ा सुकून मिला। अभी तक जो किन्नर कैलाश मेरी अपर लिमिट से बहुत ऊपर था, अब अचानक अपर लिमिट के अंदर आ गया।...

इन छुट्टियों में हिमाचल में तीर्थन वैली जाइए

हम आपको भारत के अल्पप्रसिद्ध स्थानों के बारे में बताते रहते हैं। लेकिन अब हमने बीड़ा उठाया है आपको इन स्थानों की यात्रा कराने का... वो भी एकदम सुरक्षित और सुविधाजनक तरीके से। तो चलिए, इसकी शुरूआत करते हैं तीर्थन वैली से। दिल्ली-मनाली हाइवे पर मंडी से 40 किलोमीटर आगे और कुल्लू से 30 किलोमीटर पीछे एक स्थान है औट। यहाँ 3 किलोमीटर लंबी एक सुरंग भी बनी हुई है, जो किसी जमाने में भारत की सबसे लंबी सड़क सुरंग हुआ करती थी। इस सुरंग का एक छोटा-सा दृश्य ‘थ्री ईडियट्स” फिल्म में भी दिखाया गया है। औट के पास ब्यास नदी पर एक बाँध बना हुआ है। और ठीक इसी स्थान पर ब्यास में तीर्थन नदी भी आकर मिलती है और यहीं से तीर्थन वैली की शुरूआत हो जाती है। अब अगर हम तीर्थन नदी के साथ-साथ चलें, तो सबसे पहले जो नदी इसमें मिलती है, उस नदी की घाटी को सैंज वैली कहते हैं। उसके बारे में हम फिर कभी बात करेंगे। फिलहाल तीर्थन वैली की ही बात करते हैं। तो औट से चलने के 20 किलोमीटर बाद एक कस्बा आता है, जिसका नाम है बंजार। यह यहाँ का तहसील मुख्यालय भी है और तीर्थन वैली का सबसे बड़ा और सबसे मुख्य स्थान भी है। बंजार समु...

मोटरसाइकिल यात्रा: सुकेती फॉसिल पार्क, नाहन

जून का तपता महीना था और हमने सोच रखा था कि 2500 मीटर से ऊपर ही कहीं जाना है। मई-जून में घूमने के लिए सर्वोत्तम स्थान 2500 मीटर से ऊपर ही होते हैं। और इसमें चकराता के आगे वह स्थान एकदम फिट बैठता है, जहाँ से त्यूनी की उतराई शुरू हो जाती है। इस स्थान का नाम हमें नहीं पता था, लेकिन गूगल मैप पर देवबन लिखा था, तो हम इसे भी देवबन ही कहने लगे। इसके पास ही 2700 मीटर की ऊँचाई पर एक बुग्याल है और इस बुग्याल के पास एक गुफा भी है - बुधेर गुफा। बस, यही हमें देखना था। उधर इंदौर से सुमित शर्मा अपनी बुलेट पर चल दिया था। वह 5 जून की शाम को चला और अगले दिन दोपहर बाद दिल्ली पहुँचा। पूरा राजस्थान उसने अंधेरे में पार किया, क्योंकि लगातार धूलभरी आँधी चल रही थी और वह दिन में इसका सामना नहीं करना चाहता था। लेकिन उसे क्या पता था कि इन आँधियों ने दिल्ली का भी रास्ता देख रखा है। दिल्ली पूरी तरह इनसे त्रस्त थी। जब मैं ऑफिस से लौटा तो सुमित बेसुध पड़ा सो रहा था। एक टांग दीवार पर इस तरह टिकी थी कि अगर वह जगा होता तो कोशिश करने पर भी इस स्टाइल में नहीं लेट सकता था। उसे रात मैंने सलाह भी दी थी कि चित्तौड़गढ़, अजमेर या जय...

जंजैहली से छतरी, जलोड़ी जोत और सेरोलसर झील

इस यात्रा वृत्तांत को आरंभ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें । पिछली पोस्ट ‘ शिकारी देवी यात्रा ’ में मित्र आलोक कुमार ने टिप्पणी की थी - “एक शानदार यात्रा वृतांत... वरना हिमाचल में हम लोग कुल्लू-मनाली और शिमला के अलावा जानते ही क्या हैं!” बिल्कुल सही बात कही है आलोक जी ने। और इसी बात को आगे बढ़ाते हुए आज हम आपको हिमाचल के एक ऐसे स्थान की यात्रा कराएँगे, जिसके बारे में मुझे भी नहीं पता था। आज 1 अप्रैल 2018 था। यात्रा कार्यक्रम के अनुसार तय था कि ब्रेकफास्ट के बाद नीरज मिश्रा जी हमसे विदा ले लेंगे और शाम तक आराम से मंडी पहुँचकर दिल्ली की बस पकड़ लेंगे। शाम आठ बजे उनकी बस थी। वे बड़े आराम से इसे पकड़ लेते। और हम क्या करते? हमारे पास मोटरसाइकिल थी। क्या हम आज का पूरा दिन जंजैहली से दिल्ली लौटने में खर्च करते? यह बात जँच नहीं रही थी। मई में हमें फिर से कुछ मित्रों को इधर लाना है और उनकी यात्रा में जंजैहली के साथ-साथ जलोड़ी जोत के साथ-साथ तीर्थन घाटी को भी शामिल करना है, तो हमें उधर जाना ही पड़ेगा।

शिकारी देवी यात्रा

इस यात्रा-वृत्तांत को आरंभ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें । 30 मार्च 2018 शिवालिक होमस्टे के मालिक का नाम तो नहीं पता और न ही यह पता कि पराँठे उसने बनाए या उसकी घरवाली ने; लेकिन आज सुबह-सुबह हम सभी अपनी जिंदगी के सर्वश्रेष्ठ आलू-पराँठे खा रहे थे। एक सुर में सभी ने एक-साथ नारा लगाया - “एक-एक पराँठा और।” फिर थोड़ी देर बाद किसी ने “एक-एक और” तो किसी ने “आधा-आधा और” के नारे लगाए। सामान्यतः हिमाचल वालों से न तो जोरदार तड़क-भड़क वाली सब्जी बनती है, न ही जोरदार पराँठे। लेकिन यहाँ सब्जी भी शानदार थी और पराँठे भी। “भाई जी, आपने कोई ट्रेनिंग ली है क्या?” “किस चीज की?” “खाना बनाने की।” “नहीं।” तब तक टैक्सी ड्राइवर भी आ गया। वह हमें आज शिकारी देवी छोड़कर आ जाएगा और 1200 रुपये लेगा। दूरी 16 किलोमीटर है। वैसे तो हम चार जने दो मोटरसाइकिलों पर भी शिकारी देवी तक जा सकते थे, लेकिन चूँकि हमें कल वहाँ से पैदल दूसरे रास्ते से आना है, तो मोटरसाइकिल से जाने का इरादा त्याग दिया।

जंजैहली भ्रमण: मित्रों के साथ

जनवरी में रैथल ग्रुप यात्रा से उत्साहित होकर तय किया कि मार्च में जंजैहली जाएँगे। रैथल यात्रा के दौरान हमें कई बहुत अच्छे मित्र मिले, तो लगने लगा कि साल में कभी-कभार ग्रुप यात्राएँ आयोजित कर लेनी चाहिए। मार्च के आखिर में कई छुट्‍टियाँ थीं और 1 अप्रैल का रविवार था, तो कार्यक्रम बना लिया। लेकिन एक शर्त थी। वो यह कि सभी को स्वयं ही जंजैहली पहुँचना था। मैं और दीप्ति मोटरसाइकिल से जाने वाले थे। जंजैहली भले ही सामान्य यात्रियों में लोकप्रिय न हो, लेकिन वहाँ पहुँचना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है। सुंदरनगर और मंडी से नियमित बसें चलती हैं और दिल्ली तक से भी सीधी बस चलती है। अब हमारी बारी थी जंजैहली में मित्रों के ठहरने की व्यवस्था करने की। अगर केवल हमें ही जाना होता, तब तो हम इस बारे में कुछ भी नहीं सोचते, लेकिन अब सोचना जरूरी था। क्या एक चक्कर कुछ दिन पहले लगाया जाए?

बाइक यात्रा: कुमारहट्टी से जानकीचट्टी - भाग दो

इस यात्रा-वृत्तांत को आरंभ से पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें । 18 मई 2017 हम सुबह ही उठ गये। मतलब इतनी सुबह भी नहीं। फ्रेश होने गये तो एहसास होने लगा कि 500 रुपये का कमरा लेकर ठगे गये। चार-पाँच कमरों का एक साझा टॉयलेट ही था। उसमें भी इतनी गंदगी कि मामला नीचे उतरने की बजाय वापस ऊपर चढ़ गया। होटल मालिक हालाँकि अब नशे में तो नहीं था, लेकिन आँखें टुल्ल ही थीं। वह पूरे दिन शायद पीता ही रहता हो। सैंज समुद्र तल से लगभग 1400 मीटर की ऊँचाई पर है। जब छैला तिराहे पर पहुँचा तो मैं आगे था। मुझसे आगे एक बस थी, जिसे ठियोग की तरफ़ जाना था। तिराहे पर वह एक ही फेरे में नहीं मुड़ सकी तो ड्राइवर उसे बैक करके दोबारा मोड़ने लगा। इतने में रणविजय और नरेंद्र तेजी से पीछे से आये और ठियोग की तरफ़ मुड़कर चल दिये। मैं जोर से चीखा - “ओये।” लेकिन दोनों में से किसी पर कुछ भी असर नहीं हुआ। फोन किया - “वापस आओ।” आज्ञाकारी शिष्यों की तरह दोनों लौट आये।

बाइक यात्रा: कुमारहट्टी से जानकीचट्टी

इस यात्रा को क्या नाम दूँ? समझ नहीं पा रहा। निकले तो चांशल पास के लिये थे, लेकिन नहीं जा सके, इसलिये चांशल यात्रा भी कहना ठीक नहीं। फिर दिशा बदलकर उत्तराखंड़ में चले गये, फिर भी उत्तराखंड़ यात्रा कहना ठीक नहीं। तो काफ़ी मशक्कत के बाद इसे यह नाम दिया है - कुमारहट्टी से जानकीचट्टी की यात्रा। उत्तरकाशी यात्रा में मेरे सहयात्री थे रणविजय सिंह। यह हमारी एक साथ पहली यात्रा थी। बहुत अच्छी बनी हम दोनों में। इसी से प्रेरित होकर अगली यात्रा के लिये भी सबसे पहले रणविजय को ही टोका - “एक आसान ट्रैक पर चलते हैं 16 से 20 मई, बाइक लेकर।” रणविजय - “भई वाह, बस बजट का थोड़ा-सा अंदाज़ा और बता दो।” “हम खर्चा करते ही नहीं। बाइक का तेल और 2000 और जोड़ लो। 1000-1200 किलोमीटर बाइक चलेगी।” रणविजय - “फ़िर तो ठीक है। चलेंगे।” ... कुछ दिन बाद... मैं - “एक मित्र पीछे बैठकर जाना चाहते हैं। मैं तो बैठाऊँगा नहीं। क्या तुम बैठा लोगे?”

जनवरी में स्पीति: काजा से दिल्ली वापस

10 जनवरी 2016 कल की बात है। जब पौने पांच बजे रीकांग पीओ से बस आई तो इसमें से तीन-चार यात्री उतरे। एक को छोडकर सभी स्थानीय थे। वो एक बाहर का था और उसकी कमर पर बडा बैग लटका था और गले में कैमरा। उस समय हम चाय पी रहे थे। बातचीत हुई, तो वह चण्डीगढ का निकला। जनवरी में स्पीति घूमने आया था। चौबीस घण्टे पहले उसी बस से चण्डीगढ से चला था, जिससे हम कुछ दिन पहले चण्डीगढ से रीकांग पीओ आये थे। वह बस सुबह सात बजे रीकांग पीओ पहुंचती है और ठीक इसी समय वहां से काजा की बस चल देती है। वह पीओ नहीं रुका और सीधे काजा वाली बस में बैठ गया। इस प्रकार चण्डीगढ से चलकर बस से चौबीस घण्टे में वह काजा आ गया। उसकी क्या हालत हो रही होगी, हम समझ रहे थे। वैसे तो उसकी काजा में रुकने की बुकिंग थी, हालांकि भुगतान नहीं किया था लेकिन हमसे बात करके उसने हमारे साथ रुकना पसन्द किया। तीनों एक ही कमरे में रुक गये। मकान मालकिन ने 200 रुपये अतिरिक्त मांगे। रात खाना खाने के लिये मालकिन ने अपने कमरे में ही बुला लिया। अंगीठी के कारण यह काफी गर्म था और मन कर रहा था कि खाना खाकर यहीं पीछे को लुढक जायें। लेकिन मैं यहां जिस बात की तारीफ क...

जनवरी में स्पीति: किब्बर में हिम-तेंदुए की खोज

9 जनवरी 2016 कल जब हम दोरजे साहब के यहां बैठकर देर रात तक बातें कर रहे थे तो हिम तेंदुए के बारे में भी बातचीत होना लाजिमी था। किब्बर हिम तेंदुए के कारण प्रसिद्ध है। किब्बर के आसपास खूब हिम तेंदुए पाये जाते हैं। यहां तक कि ये गांव में भी घुस आते हैं। हालांकि हिम तेंदुआ बेहद शर्मीला होता है और आदमी से दूर ही दूर रहता है लेकिन गांव में आने का उसका मकसद भोजन होता है। यहां कुत्ते और भेडें आसानी से मिल जाते हैं। दोरजे साहब जिन्हें हम अंकल जी कहने लगे थे, का घर नाले के बगल में है। किब्बर इसी नाले के इर्द-गिर्द बसा है। घर में नाले की तरफ कोई भी रोक नहीं है, जिससे कोई भी जानवर किसी भी समय घर में घुस सकता है। कमरों में तो अन्दर से कुण्डी लग जाती है, लेकिन बाहर बरामदा और आंगन खुले हैं। अंकल जी ने बताया कि रात में तेंदुआ और रेड फॉक्स खूब इधर आते हैं। आजकल तो बर्फ भी पडी है। उन्होंने दावे से यह भी कहा कि सुबह आपको इन दोनों जानवरों के पदचिह्न यहीं बर्फ में दिखाऊंगा। यह बात हमें रोमांचित कर गई।