6 फरवरी 2018 यानी पूर्वोत्तर से लौटने के ढाई महीने बाद ही हम फिर से पूर्वोत्तर जा रहे थे। मोटरसाइकिल वहीं खड़ी थी और तेजपाल जी पता नहीं उसे कितना चला रहे होंगे। हालाँकि हम चाहते थे कि वे इसे खूब चलाएँ, लेकिन हमें पता था कि ढाई महीनों में यह ढाई किलोमीटर भी नहीं चली होगी। मशीनें भी इंसानों की ही तरह होती हैं। काम नहीं होगा, तो आलसी हो जाएँगी और बाद में उनसे काम लेना मुश्किल हो जाएगा। कभी बैटरी का बहाना बनाएगी, तो कभी कुछ। इसलिए दीप्ति दो दिन पहले चली गई, ताकि अगर जरूरी हो तो वह बैटरी बदलवा ले या अगला पहिया बदलवा ले या सर्विस ही करा ले। दीप्ति ट्रेन से गई। ट्रेन चौबीस घंटे विलंब से गुवाहाटी पहुँची। इससे पहले दीप्ति ने कभी भी इतनी लंबी ट्रेन-यात्रा अकेले नहीं की थी। वह बोर हो गई। उधर 6 फरवरी को मैंने जेट एयरवेज की फ्लाइट पकड़ी। और जिस समय आसमान में मेरे सामने नाश्ता परोसा जा रहा था, मैं समझ गया कि यात्रा बहुत मजेदार होने वाली है।
नीरज मुसाफिर का यात्रा ब्लॉग