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दूसरा दिन: पोखरण फोर्ट और जैसलमेर वार मेमोरियल

पिछली पोस्ट: जोधपुर में मेरा मन नहीं लगा 12 दिसंबर 2019... अपने आप सुबह सुबह ही आँख खुल गई। और खुलती भी क्यों न? हमने खुद ही कल ऐलान किया था कि सुबह 8 बजे हर हाल में सबको गाड़ी में बैठ जाना है। रेस्टोरेंट में पहुँचे, तो देखा कि सबने नाश्ता कर लिया है... बस, हम ही बाकी थे। गाड़ी में चढ़ा, तो सामने गुप्ता जी दिखे, फिर भी मैंने आवाज लगाई... "गुप्ता जी आ गए क्या??" गुप्ता जी ने हँसते हुए कहा... "हाँ जी, आ गए।" असल में कल सभी लोग गाड़ी में बैठ जाते और गुप्ता जी को फोन करके बुलाना पड़ता। कई बार ऐसा हुआ। हो सकता है कि एकाध बार किसी को खराब लगा हो, लेकिन यह सबसे युवा जोड़ी थी और फिर गुप्ता जी को आवाज लगाना हमारा नियमित क्रियाकलाप बन गया। पहले तो ओसियाँ के रास्ते जाने का विचार था, लेकिन अब गाड़ी जैसलमेर वाले सीधे रास्ते पर दौड़ रही थी। बाहर धूप निकली थी, लेकिन रात बूँदाबाँदी हो जाने के कारण ठंडक बढ़ गई थी, इसलिए किसी ने भी खिड़की नहीं खोली। आधे घंटे के अंदर सब के सब सो चुके थे। मैं खुद गहरी नींद में था। दो-ढाई घंटे बाद आँख खुली। गाड़ी एक होटल के सामने र...

जंजीरा किले के आसपास की खूबसूरती

19 सितंबर 2018 उस दिन मुंबई में अगर प्रतीक हमें न बताता, तो हम पता नहीं आज कहाँ होते। कम से कम जंजीरा तो नहीं जाते और दिवेआगर तो कतई नहीं जाते। और न ही श्रीवर्धन जाते। आज की हमारी जो भी यात्रा होने जा रही है, वह सब प्रतीक के कहने पर ही होने जा रही है। सबसे पहले चलते हैं जंजीरा। इंदापुर से जंजीरा की सड़क एक ग्रामीण सड़क है। कहीं अच्छी, कहीं खराब। लेकिन आसपास की छोटी-छोटी पहाड़ियाँ खराब सड़क का पता नहीं चलने दे रही थीं। हरा रंग कितने प्रकार का हो सकता है, यह आज पता चल रहा था। रास्ते में एक नदी मिली। इस पर पुल बना था और पानी लगभग ठहरा हुआ था। यहाँ से समुद्र ज्यादा दूर नहीं था और ऊँचाई भी ज्यादा नहीं थी, इसलिए पानी लगभग ठहर गया था। ऐसी जगहों को ‘क्रीक’ भी कहते हैं। दोनों तरफ वही छोटी-छोटी पहाड़ियाँ थीं और नजारा भी वही मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। जंजीरा गाँव एक गुमसुम-सा गाँव है। गूगल मैप के अनुसार सड़क समाप्त हो गई थी और यहीं कहीं जंजीरा किले तक जाने के लिए जेट्टी होनी चाहिए थी, लेकिन हमें मिल नहीं रही थी। अपने घर के बाहर बैठे एक बुजुर्ग ने हमारे रुकते ही हमारी मनोदशा समझ ली और बिना कुछ बोले एक...

भानगढ- एक शापित स्थान

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । आज की शुरूआत एक छोटी सी कहानी से करते हैं। यह एक तान्त्रिक और एक राजकुमारी की कहानी है। तान्त्रिक राजकुमारी पर मोहित था लेकिन वह उसे कोई भाव नहीं देती थी। चूंकि राजकुमारी भी तन्त्र विद्या में पारंगत थी, इसलिये उसे दुष्ट तान्त्रिक की नीयत का पता था। एक बार तान्त्रिक ने राजकुमारी की दासी के हाथों अभिमन्त्रित तेल भिजवाया। तेल की खासियत यह हो गई कि वह जिसके भी सिर पर लगेगा, वो तुरन्त तान्त्रिक के पास चला जायेगा। राजकुमारी पहचान गई कि इसमें तान्त्रिक की करामात है। उसने उस तेल को एक शिला पर फेंक दिया और जवाब में वह शिला तान्त्रिक के पास जाने लगी। बेचारे तान्त्रिक की जान पर बन गई। शिला क्रिकेट की गेंद तो थी नहीं कि तान्त्रिक रास्ते से हट जायेगा और वो सीधी निकल जायेगी। अभिमन्त्रित थी, तो तान्त्रिक कितना भी इधर उधर भागेगा, शिला भी उतना ही इधर उधर पीछा करेगी। जब तान्त्रिक के सारे उपाय निष्क्रिय हो गये, तो उसने श्राप दे दिया। श्राप के परिणामस्वरूप शिला फिर से बावली हो गई और अब वो नगर को ध्वस्त करने लगी। उसी ध्वस्त नगर का नाम है भा...

चुनार का किला व जरगो बांध

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । अगले दिन वाराणसी से निकलकर हम तीनों चन्द्रेश के गांव की तरफ चल पडे। आज चूंकि एक ही बाइक थी इसलिये तीनों उसी पर सवार हो गये। दूसरी बाइक हमें गांव से मिलेगी। वाराणसी से करीब पच्चीस किलोमीटर दूर मिर्जापुर जिले में उनका गांव है। कल पूरे दिन हम बाइकों पर घूमे थे, आज फिर से बाइक ही झेलनी पडेगी। हालांकि मैं पहले ही बाइक पर लम्बे समय तक बैठे रहने के पक्ष में नहीं था, लेकिन फिर सोचा कि आज बाइकों की वजह से हमें देश के उन हिस्सों को देखने का सौभाग्य मिलेगा, जो कथित रूप से पर्यटक स्थलों की श्रेणी में नहीं आते। बिल्कुल नई जगह। आज हमें इलाहाबाद-बनारस जैसे अति प्रसिद्ध जगहों के बीच की जमीन पर विचरण करना था, लेकिन गंगा के दक्षिण में। सबसे पहले शुरूआत होती है रामनगर किले से। यह किला वाराणसी के गंगापार स्थित रामनगर कस्बे में स्थित है। यह कभी काशी नरेश की राजधानी हुआ करता था। आजकल इसमें सैन्य गतिविधियां चल रही हैं, इसलिये हम इसके अन्दर नहीं गये। वैसे बताते हैं कि इसमें चोखेर बाली फिल्म की शूटिंग भी हुई थी और इसमें एक संग्रहालय भी है।

आगरा का किला

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । ताजमहल देखने के बाद अब बारी थी किला देखने की। ताजमहल से करीब दो किलोमीटर दूर आगरा का प्रसिद्ध किला है। सीधी सडक जाती है, हालांकि मुझे एक जगह रास्ता पूछने की जरुरत पडी। "आगरे का किला भारत के किलों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। बाबर, हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब सभी मुगल सम्राट यहां रहे और यहीं से सारे देश का शासन हुआ। इस किले में ही राज्य का सबसे बडा खजाना और टकसाल थी। यहां विदेशी राजदूत, यात्री और वे सभी हस्तियां आईं जिन्होंने मध्यकालीन इतिहास के निर्माण में योगदान दिया। भारत के किसी अन्य किले को यह सम्मान प्राप्त नहीं है।" "यह किला एक प्राचीन दुर्ग है जो ठीक यमुना नदी के तट पर स्थित है। यह ईंटों का दुर्ग था और चौहान राजपूतों के अधिकार में था। इसका सबसे पहला उल्लेख 1080 में हुआ, जब गजनी की एक सेना ने इसे जीत लिया। सिकन्दर लोदी (1481-1517) दिल्ली का पहला सुल्तान था जो आगरा आया और इस किले में रहा। यहीं से उसने देश का शासन चलाया और आगरे को दूसरी राजधानी का महत्व मिल गया। 1517 में यहीं उसकी म...

जलोडी जोत के पास है रघुपुर किला

जुलाई में जब हम श्रीखण्ड जा रहे थे तो इसी यात्रा में जलोडी जोत देखने का कार्यक्रम भी बनाया। शिमला से करीब 90 किलोमीटर आगे सैंज है। यहां से एक सडक कुल्लू जाती है जो जलोडी जोत (JALORI PASS) को पार करके ही जाती है। जलोडी जोत की ऊंचाई तकरीबन 3200 मीटर है। यहां से एक रास्ता चार किलोमीटर दूर सेरोलसर झील जाता है तो इसके ठीक विपरीत दिशा में दूसरा रास्ता रघुपुर किले की तरफ जाता है। रघुपुर किला- इसके बारे में इंटरनेट पर जानकारी बस इतनी ही मिली है जो मैंने ऊपर वाले पैरा में दी है। किसने बनाया, कब बनाया- कोई जानकारी नहीं है। लेकिन इस स्थान के कुल्लू जिले में होने के कारण ऐसा लगता है कि इसे कुल्लू के राजा ने या उसके अधीन किसी बडे अधिकारी ने ही बनवाया होगा। पहले जो भी रियासतें थीं, उन्हें एकीकृत भारत में जिले का दर्जा दे दिया गया है। जलोडी जोत से यह करीब तीन किलोमीटर दूर है। दुकान वाले से रास्ता पूछकर हम चारों- मैं, सन्दीप पंवार , नितिन जाट और विपिन गौड निकल पडे। मैं दिल्ली से ही चार स्पेशल लठ लेकर चला था लेकिन बाकी किसी को भी लठ की महिमा पल्ले नहीं पडी। जब सेरोलसर झील गये तो मेरे अलावा सभी...

नाहरगढ़ किला, जयपुर

इस यात्रा-वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें । सिटी पैलेस देखने के बाद समय बच गया तो हम जयगढ किला देखने निकल पडे। जब तक वहां पहुंचे तो किला बंद हो चुका था। चार साढे चार बजे के आसपास किला बंद हो जाता है। इसके पास ही नाहरगढ किला है। यह अंधेरा होने पर बंद होता है। वैसे तो जयगढ किला ज्यादा भव्य बताया जाता है लेकिन नाहरगढ भी कम नहीं है। यह एक पहाडी पर बना है। यहां से पूरे जयपुर शहर का विहंगम नजारा दिखाई देता है। इसका निर्माण 1734 में महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने करवाया था। 1857 में यह किला आसपास के इलाकों से भागे हुए अंग्रेजों की शरणस्थली के रूप में काम आया। इसका शिल्प ज्यादा उन्नत नहीं है। लेकिन इसकी लोकेशन इसे खास बनाती है। यहां से सूर्यास्त और जयपुर शहर बडे भव्य दिखते हैं।

जयपुर यात्रा- आमेर किला

पिछले साल दिसम्बर के महीने में अचानक जयपुर का कार्यक्रम बना। यहां मैं अकेला नहीं गया बल्कि एक मित्र के साथ गया। सबसे पहले पहुंचे आमेर जो जयपुर से सात-आठ किलोमीटर पहले है। पहुंचते ही एक गाइड सिर हो गया कि मैं सरकारी गाइड हूं, सौ रुपये में आपको सबकुछ दिखा और घुमा दूंगा। मैं तो सहमत नहीं था लेकिन मित्र साहब नहीं माने। गाइड भी हमारे साथ ही हो लिया। आमेर किला इतनी प्रसिद्ध जगह है कि कोई भी पर्यटक अपना जयपुर भ्रमण यही से शुरू करता है। अगर सभी अपना-अपना यात्रा वृत्तान्त लिखने बैठे तो शुरूआत करेंगे कि इसका नाम भगवती अम्बा के नाम पर आम्बेर (Amber) पडा जो बाद में आमेर हो गया। अकबर के सेनापति और नवरत्नों में से एक मानसिंह का नाम भी लिया जायेगा। लेकिन आज इससे ज्यादा नहीं बताऊंगा। उस गाइड का नाम अब भूल गया हूं। लेकिन उसने मुझे बहुत प्रभावित किया। पहली बात तो ये कि बन्दा हमारे साथ पूरे किले में घूमता रहा। किले से बाहर निकले तो पास ही एक बाजार है, हाथ के बने सामान मिलते हैं। मित्र साहब घण्टे भर तक खरीदारी करते रहे। जयपुरी रजाई खरीदी। उनकी देखादेखी मैंने भी एक जयपुरी रजाई खरीद डाली, आज तक काम दे...

कांगड़ा का किला

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । किला - जहाँ कभी एक सभ्यता बसती थी। आज वीरान पड़ा हुआ है। भारत में ऐसे गिने-चुने किले ही हैं, जहाँ आज भी जीवन बसा हुआ है, नहीं तो समय बदलने पर वैभव के प्रतीक ज्यादातर किले खंडहर हो चुके हैं। लेकिन ये खंडहर भी कम नहीं हैं - इनमे इतिहास सोया है, वीरानी और सन्नाटा भी सब-कुछ बयां कर देता है। ... भारत में किलों पर राजस्थान का राज है। महाराष्ट्र और दक्षिण में भी कई प्रसिद्द किले हैं। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में भी किले हैं। दिल्ली में लाल किला और पुराना किला है। लेकिन हिमालय क्षेत्र में बहुत कम किले हैं। क्योंकि हिमालय खुद एक प्राकृतिक किला है। इसमें शिवालिक जैसी मजबूत बाहरी दीवार है। पहाड़ इतने दुर्गम हैं कि किसी आक्रमणकारी की कभी हिम्मत नहीं हुई। फिर भी हिमालय क्षेत्र में कई किले हैं। इनमे से एक है - कोट कांगड़ा यानी कांगड़ा का किला।