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8 जून 2013
साढे आठ बजे आंख खुली। और अपने आप नहीं खुल गई। सचिन ने झिंझोडा, आवाज दी, तब जाकर उठा। वो हेलमेट लगाकर जाने के लिये तैयार खडा था। मैंने उसे कल ही बता दिया था कि भरपूर नींद लूंगा, इसीलिये उसने जल्दी उठकर मुझे नहीं उठाया। मेरी आंख खुलते ही उसने मेरी योजना पूछी। मैं भला क्या योजना बनाता? कल योजना बनाई थी भरपूर सोने की और अभी मेरी नींद पूरी नहीं हुई है। पता नहीं कब पूरी हो, तुम चले जाओ। मैं उठकर जहां तक भी पहुंच सकूंगा, पहुंच जाऊंगा। आज रात भले ही केलांग या जिस्पा में रहूं लेकिन कल जिंगजिंगबार में रात गुजारूंगा। उधर सचिन का इरादा आज जिस्पा या दारचा में रुककर अगली रात जिंगजिंगबार में रुकने का था। जिंगजिंगबार बारालाचा-ला का सबसे नजदीकी मानव गतिविधि स्थान है। आज तो पता नहीं हम मिलें या न मिलें, लेकिन कल जिंगजिंगबार में अवश्य मिलेंगे।
सचिन के जाने के बाद मैं फिर सो गया। साढे ग्यारह बजे आंख खुली। असल में पिछली दो रातें स्लीपिंग बैग में गुजारी थीं, उनसे पहली रात दिल्ली से मनाली बस में और उससे भी पहले चार नाइट ड्यूटी। नाइट ड्यूटी करके दिन में कम ही सोता था व यात्रा की तैयारी करता था। यानी पिछले एक सप्ताह से मैं ढंग से सो नहीं पाया था। आज सारी कसर निकल गई।
सबसे पहले नहाया। गीजर था, पानी गर्म करने में कोई समस्या नहीं थी। चार दिन पहले दिल्ली में ही नहाया था, अब छह सात दिन तक नहाने की सम्भावना भी नहीं।
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गोंदला से दिखता चन्द्रा के उस तरफ का नजारा |
गोंदला का किला |
दूर से दिखता गोंदला गांव |
गोंदला से टाण्डी जाने वाली सडक |
अगला पेट्रोल पम्प 365 किलोमीटर आगे है और सारा रास्ता ऊंचे ऊंचे पहाडों व दर्रों से होकर जाता है। |
टाण्डी पुल भागा नदी पर बना है। |
टाण्डी पुल से लिया गया फोटो। सामने दिख रहा है चन्द्रा भागा संगम। |
टाण्डी से दूरियां |
केलांग पहुंचने वाला हूं। |
टाण्डी से पांच किलोमीटर आगे |
केलांग में आपका स्वागत है। |
केलांग |
केलांग से आगे |
अगला भाग: लद्दाख साइकिल यात्रा- छठा दिन- गेमूर से जिंगजिंगबार
मनाली-लेह-श्रीनगर साइकिल यात्रा
1. साइकिल यात्रा का आगाज
2. लद्दाख साइकिल यात्रा- पहला दिन- दिल्ली से प्रस्थान
3. लद्दाख साइकिल यात्रा- दूसरा दिन- मनाली से गुलाबा
4. लद्दाख साइकिल यात्रा- तीसरा दिन- गुलाबा से मढी
5. लद्दाख साइकिल यात्रा- चौथा दिन- मढी से गोंदला
6. लद्दाख साइकिल यात्रा- पांचवां दिन- गोंदला से गेमूर
7. लद्दाख साइकिल यात्रा- छठा दिन- गेमूर से जिंगजिंगबार
8. लद्दाख साइकिल यात्रा- सातवां दिन- जिंगजिंगबार से सरचू
9. लद्दाख साइकिल यात्रा- आठवां दिन- सरचू से नकीला
10. लद्दाख साइकिल यात्रा- नौवां दिन- नकीला से व्हिस्की नाला
11. लद्दाख साइकिल यात्रा- दसवां दिन- व्हिस्की नाले से पांग
12. लद्दाख साइकिल यात्रा- ग्यारहवां दिन- पांग से शो-कार मोड
13. शो-कार (Tso Kar) झील
14. लद्दाख साइकिल यात्रा- बारहवां दिन- शो-कार मोड से तंगलंगला
15. लद्दाख साइकिल यात्रा- तेरहवां दिन- तंगलंगला से उप्शी
16. लद्दाख साइकिल यात्रा- चौदहवां दिन- उप्शी से लेह
17. लद्दाख साइकिल यात्रा- पन्द्रहवां दिन- लेह से ससपोल
18. लद्दाख साइकिल यात्रा- सोलहवां दिन- ससपोल से फोतूला
19. लद्दाख साइकिल यात्रा- सत्रहवां दिन- फोतूला से मुलबेक
20. लद्दाख साइकिल यात्रा- अठारहवां दिन- मुलबेक से शम्शा
21. लद्दाख साइकिल यात्रा- उन्नीसवां दिन- शम्शा से मटायन
22. लद्दाख साइकिल यात्रा- बीसवां दिन- मटायन से श्रीनगर
23. लद्दाख साइकिल यात्रा- इक्कीसवां दिन- श्रीनगर से दिल्ली
24. लद्दाख साइकिल यात्रा के तकनीकी पहलू
neeraj ji ram-ram.uttam yatra varnan aur adhbuth nazare charo or. maje aagye kasam se.
ReplyDeleteबस पढ़ते जा रहे हैं, बढ़ते जा रहे हैं, आनन्द भी उठाते जा रहे हैं।
ReplyDeleteVERY NICE Please GO AHEAD
ReplyDeleteचलते चलो। हम भी साथ साथ ही चल रहे हैं।
ReplyDeleteme bhi gum chuka hu Niraaj jat ke sath. lekin keval khayalo or in tasveerro me . bahut khoob aapke yatra varnan is kadar jivant hote he ki padne walo ko bhi ye lagta he ki vo bhi ghoom rahe he
ReplyDeletebahut khub kaya yata hai
ReplyDeleteआप तो मुकद्दर के सिकंदर हो नीरज भाई।
ReplyDeleteयात्रा-वृतान्त पढ़कर काफी मजा आ रहा है। भाई वाह
- Anilkv
wonderful. if there is not a post everyday, i feel miserable. god bless.
ReplyDeleteabe doctor ka naam bhi likh dete .....
ReplyDeleteजट महाराज के साथ घूम लो। इससे ज्यादा कुछ नही कह सकता।
ReplyDeletewenderful
ReplyDeleteजिस स्थान पर मैंने लाइट बैग से निकालकर हेलमेट पर चिपकाई, वहां पर एक सडक ऊपर जाती दिख रही थी। इसमें कई लूप भी थे यानी मुश्किल चढाई। रास्ता स्टिंगरी से ही चढाई वाला था लेकिन मैं इस लूप वाली तीव्र चढाई के लिये तैयार नहीं था। मना रहा था कि वह लेह वाला रास्ता न हो। तभी उस सडक से एक ट्रक आता दिखा। लेह रोड पर ही ट्रकों की ज्यादा आवाजाही रहती है। इसके बाद मेरे बगल से दो बुलेट गुजरीं। वे भी आगे जाकर उसी चढाई पर चढती दिखीं। पक्का हो गया कि मुझे भी वहीं से गुजरना होगा। तभी एक राहत भरी बात हुई। पंजाब की दो गाडियां मेरे पास से गईं व चढाई पर नहीं चढीं। इसके दो ही कारण हो सकते हैं- या तो आगे तिराहा है या फिर दोनों गाडियां रुक गईं हैं। ऐसे निर्जन स्थान पर व इस अन्धेरे में पंजाब की गाडियों का रुकना हजम नहीं हुआ। तिराहा ही हो सकता है।
ReplyDeleteBADA CONFUSION HO GUYA NEERAJ JI.. JUB PEHLE CHADHAII WALE RASTE PE JANA THA THO PHIR NEECHE JANE WALI SADAK KYUN PAKAD LI???
ऊपर वाली सडक लूप बनाती हुई ऊपर जा रही थी। लूप वाली सडक पर चढाई ज्यादा तो होती ही है, वह दिखती भी खतरनाक है। फिर अन्धेरा और अत्यधिक थकान। जब मुझे दूसरा विकल्प दिखा यानी नीचे जाने वाली सडक दिखी तो स्वतः ही उसी पर चल दिया। सोचा कि कहीं तो पहुचूंगा ही। अगर गलत रास्ता होता तो किसी गांव में शरण मिल जाती या फिर टैण्ट लगाता लेकिन संयोग से वह नीचे वाला रास्ता सही रास्ता निकला।
Deleteदिमाग ........................!
DeleteAb theek hai..
Deleteअनुपम, अप्रतिम एवं अतुलनीय.....
ReplyDeleteयह लूप क्या होता है ?
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