Skip to main content

लद्दाख साइकिल यात्रा- अट्ठारहवां दिन- मुलबेक से शम्शा

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें
21 जून 2013
हमेशा की तरह आराम से सोकर उठा। आज आराम कुछ भारी पड सकता है क्योंकि बताया गया कि आगे कारगिल के बाद सिर्फ द्रास में ही रुकने का इन्तजाम है। यहां से कारगिल 40 किलोमीटर और द्रास 100 किलोमीटर है। पूरी यात्रा में मैं कभी भी इतनी दूर तक साइकिल नहीं चला सका, चढाई तो दूर ढलान पर भी नहीं। आज कहीं भी ढलान नहीं है, अपवादस्वरूप कारगिल तक यदा-कदा ढलान मिल सकता है, उसके बाद जोजीला तक तो कतई नहीं। तो सीधी सी बात है कि कारगिल चार घण्टों में पहुंच जाऊंगा लेकिन किसी भी हालत में द्रास नहीं पहुंच सकूंगा। अन्धेरे में मैं साइकिल नहीं चलाया करता।
आज की एक और भी समस्या है। मुझे यात्रा शुरू करने से पहले ही बताया गया था कि कारगिल और द्रास के बीच में करीब पन्द्रह किलोमीटर का रास्ता ऐसा है जो पाकिस्तानी सेना की फायरिंग रेंज में आता है। सन्दीप भाई के यात्रा विवरण को पढा, वे मोटरसाइकिल पर थे लेकिन उन्होंने लिखा था कि इस रास्ते पर उन्हें कोई होश नहीं था सिवाय जल्दी से जल्दी इसे पार कर लेने के। फिर यह रास्ता चढाई भरा है। पन्द्रह किलोमीटर यानी मुझे चार घण्टे लगेंगे। मैं इसी को सोच-सोचकर डरा जा रहा था। यहां तक कि सोच भी लिया था कि इस रास्ते को किसी ट्रक में बैठकर पार करूंगा।
नाश्ता वाश्ता करके साढे नौ बजे यहां से चल पडा। सीधे तौर पर मैं कम से कम दो घण्टे विलम्ब से चला। शुरू में तो सडक अच्छी है, लेकिन उसके बाद खराब मिलने लगी। जगह जगह काम भी चल रहा था, इसलिये तेज धूप में धूल धक्कड का भी सामना करना पडा।
...
इस यात्रा के अनुभवों पर आधारित मेरी एक किताब प्रकाशित हुई है - ‘पैडल पैडल’। आपको इस यात्रा का संपूर्ण और रोचक वृत्तांत इस किताब में ही पढ़ने को मिलेगा।
आप अमेजन से इसे खरीद सकते हैं।








कारगिल की ओर








कारगिल शहर


कारगिल

कारगिल के बाद





सडक की मरम्मत चल रही है।



यहीं वो संगम है जो पाकिस्तानी सेना की फायरिंग रेंज में आता है। यहां बायें से द्रास नदी आती है और सामने वाली नदी पाकिस्तान के नियन्त्रण से आती है। सम्भवतः सामने दूर जो पहाडी दिख रही है, वो पाकिस्तानी नियन्त्रण वाली हो। सडक निर्माण के कारण चेतावनी बोर्ड हट गया और मैं बेधडक होकर यहां से निकला। अगर चेतावनी दिख जाती तो बडी समस्या हो जाती।


द्रास की ओर।

द्रास की ओर। सडक ने दिल जीत लिया।


सबसे बायें मुश्ताक अहमद, उसके बाद और बच्चे।




अगला भाग: लद्दाख साइकिल यात्रा- उन्नीसवां दिन- शम्शा से मटायन

मनाली-लेह-श्रीनगर साइकिल यात्रा
1. साइकिल यात्रा का आगाज
2. लद्दाख साइकिल यात्रा- पहला दिन- दिल्ली से प्रस्थान
3. लद्दाख साइकिल यात्रा- दूसरा दिन- मनाली से गुलाबा
4. लद्दाख साइकिल यात्रा- तीसरा दिन- गुलाबा से मढी
5. लद्दाख साइकिल यात्रा- चौथा दिन- मढी से गोंदला
6. लद्दाख साइकिल यात्रा- पांचवां दिन- गोंदला से गेमूर
7. लद्दाख साइकिल यात्रा- छठा दिन- गेमूर से जिंगजिंगबार
8. लद्दाख साइकिल यात्रा- सातवां दिन- जिंगजिंगबार से सरचू
9. लद्दाख साइकिल यात्रा- आठवां दिन- सरचू से नकी-ला
10. लद्दाख साइकिल यात्रा- नौवां दिन- नकी-ला से व्हिस्की नाला
11. लद्दाख साइकिल यात्रा- दसवां दिन- व्हिस्की नाले से पांग
12. लद्दाख साइकिल यात्रा- ग्यारहवां दिन- पांग से शो-कार मोड
13. शो-कार (Tso Kar) झील
14. लद्दाख साइकिल यात्रा- बारहवां दिन- शो-कार मोड से तंगलंगला
15. लद्दाख साइकिल यात्रा- तेरहवां दिन- तंगलंगला से उप्शी
16. लद्दाख साइकिल यात्रा- चौदहवां दिन- उप्शी से लेह
17. लद्दाख साइकिल यात्रा- पन्द्रहवां दिन- लेह से ससपोल
18. लद्दाख साइकिल यात्रा- सोलहवां दिन- ससपोल से फोतूला
19. लद्दाख साइकिल यात्रा- सत्रहवां दिन- फोतूला से मुलबेक
20. लद्दाख साइकिल यात्रा- अठारहवां दिन- मुलबेक से शम्शा
21. लद्दाख साइकिल यात्रा- उन्नीसवां दिन- शम्शा से मटायन
22. लद्दाख साइकिल यात्रा- बीसवां दिन- मटायन से श्रीनगर
23. लद्दाख साइकिल यात्रा- इक्कीसवां दिन- श्रीनगर से दिल्ली
24. लद्दाख साइकिल यात्रा के तकनीकी पहलू




Comments

  1. ईश्वर कश्मीर को किसी की नज़र न लगे। इतना सौन्दर्य दिया है, थोड़ी शान्ति भी दे दे।

    ReplyDelete
  2. Hard to believe people like मुश्ताक अहमद are in this world. God bless

    ReplyDelete
  3. भाई, मुझे तो यह बताओ कि यह साइकिल कौन सी है, कितने में खरीदी और इसमें आगे-पीछे दोनों शाक एब्जार्बर लगे हैं क्या..

    ReplyDelete
    Replies
    1. मेरे पास Format की साइकिल है। अभी फिलहाल उसका मॉडल नम्बर नहीं पता। इसमें एल्यूमिनियम बॉडी, एल्यूमिनियम रिम, दोनों पहियों में डिस्क ब्रेक, केवल अगले पहिये में सस्पेंशन (शॉक एब्जार्वर), 7x3 का गियर अनुपात है। इसे पिछले साल 15000 में खरीदा था झण्डेवालां साइकिल बाजार से। किसी भी कम्पनी की हो, अगर उपरोक्त चीजें हैं तो सभी इतने ही रेट में उपलब्ध हैं।

      Delete
  4. कश्मीर की पहचान ये लम्बे लम्बे पेड़ ...कारगिल शहर बहुत खुबसूरत लगा भीड़ भी काफी थी---यही वो जगह थी जहाँ पिछली लड़ाई हुई थी ---तेरा दिल सडक ने जीता और मेरा जीत लिया खबसूरत नजारों ने ....वाह !!!!!
    मुस्लिम बच्चे कितने खुबसूरत है ..ये लोग इतने बच्चे क्यों पैदा करते है जब खिला नहीं सकते, एक बात समझ नहीं आई जब खाने को नहीं था तो बगेर पैसे लिए वो लड़का तुम्हे घर क्यों ले गया???
    कारगिल को देखकर एक गीत याद आ रहा है ----"ये कश्मीर है ....

    ReplyDelete
    Replies
    1. दर्शन कौर जी,
      हम बडे बडे महानगरों में रहने वाले हमेशा ऐसा ही सोचते हैं। हमारे यहां खाने खिलाने के लिये बहुत भोजन है, लेकिन हम चाहते हैं कि कोई अतिथि तो क्या, रिश्तेदार तक न आ धमके।
      जबकि वहां ऐसा नहीं है। वे ऐसा नहीं सोचते।

      Delete
  5. pakistan ki range ki photo khinch kar badi himmat dikhayi....kbi socha nhi tha ki kargil me itni bheed b hogi...kbi vha jaunga to ye post boht kaam ayega....Thanks for posting such things....

    ReplyDelete
  6. "मैंने तुरन्त उसके पैरों की तरफ देखा। पैर तो ठीक थे। आगे की ओर ही थे और जमीन पर भी टिके थे"

    शुक्र है, आप बाल-बाल बचे। हा- हा- हा !!!

    - Anilkv

    ReplyDelete
  7. Mushtak Ahmed ka parivar kafi accha laga, is yatra ka sabse majedar pahlu ...sath main mehman ka swagat..

    ReplyDelete
  8. काश क़ि घर में एक अदद अंडा भी न होता .. तो इस यात्रा के साथ एक नया तजुर्बा जुड़ जाता ..

    आगे काम भी आता ..

    ReplyDelete
    Replies
    1. सही कह रहे हो शर्मा जी। हर काम की कभी न कभी शुरूआत करनी ही होती है। इस बहाने मांसाहार की शुरूआत हो जाती, तो पूरी दुनिया अपनी हो जाती। कहीं भी आलू रोटी के लिये न भटकना पडता। लगता है किस्मत में अभी अण्डे खाने ही लिखे हैं।

      Delete
  9. नीरज भाई,
    कारगिल से आगे नदी किनारे की वोह मोटी सी दीवार दिखी की नहीं...
    वही दीवार है, जो पाकिस्तानी फायरिंग रेंज से सड़क और काफिले को बचने बनाई गए है...

    ReplyDelete
    Replies
    1. हां जी, दिखी थी। एक तरफ पहाड और दूसरी तरफ नदी की साइड में दीवार। मैं सोच तो रहा था कि क्या मामला है लेकिन नजरअन्दाज कर दिया। आपने उसके बारे में बताकर अच्छा किया। धन्यवाद।

      Delete
  10. नीरज भाई , मांसाहार मत करना ! बाकी सब अपने आप ठीक हो जाएगा ! फोटो जबरदस्त !

    ReplyDelete
    Replies
    1. अमन भाई, मांसाहार को तो तैयार बैठे हैं। लेकिन शाकाहार के संस्कार इतने मजबूत हैं कि आसानी से शुरूआत नहीं हो पा रही।

      Delete
    2. नीरज भाई , मेरे मांसाहार के संस्कार इतने मजबूत है की चाह कर भी तौबा नहीं कर पा रहा हूँ लेकिन दिल से मांसाहारी बने रहने का इच्छा नहीं करता !

      Delete
  11. Muslaman ka atithi prem dekhkar mansahar karne ko taiyar ho gaye . Aesa kesa atithi prem ?????????? Bachcheko dekhakar sari thakan dur ho jati he .
    Tum jalim kya janoge . Muslaman atithiprem ki bat se bahut naraj hu . Bachche to allha ki den he . Ha ha ha

    ReplyDelete
    Replies
    1. श्री गायत्री जी, आप मेरे मुसलमान के घर में ठहरने से नाराज हैं, मैं आपकी इस संकीर्ण सोच पर नाराज हूं। हम कहीं भी घूमने जाते हैं। और कोशिश करते हैं कि वहां के स्थानीय माहौल में स्थानीय खाना भी मिल जाये तो यात्रा सफल हो जाये। लद्दाख जाते हैं तो बौद्धों के यहां, दक्षिण में जाते हैं तो तमिल-मलयालियों के यहां रुकना परम सौभाग्य मानते हैं। अगर कश्मीर गये तो कश्मीरियों के यहां रुकने पर ऐतराज क्यों?????
      ध्यान रहे कि मैं किसी मुसलमान के यहां नहीं रुका था। मैं कश्मीर में था और एक कश्मीरी परिवार में रुका था।

      Delete
    2. Neeraj , aapane likha he isaka aatithi prem dekhakar aaj muje mansahar bhi karna padega , me ghar se or mansahar se bhi naraj nahi hu magar atithi prem dekhakar khana padega .
      Hamara to itane din ka koi prem hi nahi he. Aap samaj gaye hoge jab aapke ghar me aaya tha .
      Jao is bat par me aashirvad deta hu ki aapake marrige ho jae . Shrp to nahi de shakta . Hamare ghar aap aaye the to pyar se 1/2 rotala diya tha vo bhi nahi khaya tha . Aap hamare HIRO he . UMESH JOSHI

      Delete
  12. खूबसूरत बच्चे, खूबसूरत नजारे
    मुसाफिर चल चला चल

    प्रणाम

    ReplyDelete
  13. नीरज जी बहुत बढिया याञा वणॅन व चिञ भी।अतिथी देवो भवः इस परमपरा को उस बचचे मुसताख अहमद ने बनायी रखी।

    ReplyDelete
  14. ULTIMATE PHOTOGRAPHY.....KARGIL VALLEY BEAUTIFUL....

    ReplyDelete
  15. शानदार वर्णन। कश्‍मीर में मुश्‍ताक के मिलने से हमें राहम मिली वरना कम से कम अपना अनुभव तो कश्‍मीरियों के साथ बहुत सुखद नहीं है... लद्दाखी कहीं अधिक जीवंत व सहृदय लोग लगे हमें तो।

    ReplyDelete
  16. अमां हमें तो लगा कि आप पाकिस्तान की ओर तो नहीं निकल लिए । क्या धांसू यात्रा और क्या धांसू फ़ांसू फ़ोटो हैं । हमें खुशी और फ़ख्र है कि आप जैसे जाबांज़ मित्तर हैं हमारे । घुमक्कडी जिंदाबाद ।

    ReplyDelete
  17. image pr caption ko jaroori karo neeraj bhai chaho to is masale pr voting kra lo

    ReplyDelete
    Replies
    1. सुपर बाजार साहब,
      हर फोटो पर कैप्शन लगाना मुझे ठीक नहीं लगता। अगर फोटो कहीं प्रतियोगिता में जा रहे हैं, तब तो ठीक है। जिस फोटो पर कैप्शन नहीं लगा है, मुझे उम्मीद है कि आप समझ जाते होंगे कि इस फोटो में क्या है और क्या दिखाने की कोशिश की गई है। जहां मुझे लगता है कि आप नहीं समझ सकेंगे, मैं कैप्शन लगा देता हूं।

      Delete
    2. "जहां मुझे लगता है कि आप नहीं समझ सकेंगे, मैं कैप्शन लगा देता हूं।"

      ----यानी नीरज को सब पता है कि लोग क्या समझ पायेंगे क्या नहीं ? क्या बात है जी...क्या कान्फीडेंस है जी ...क्या ज्ञान है जी....

      Delete
  18. Neeraj Bhai aap ghumakkar ho, yani ekdam neutral ho. Kahan rukte ho kahan khate ho kya khate ho is baat se koi antar nahi padta.
    Jo lok is tarah ki baat kartein hain wo bahot choti samaj wale hote hain.
    Aap lage raho.
    Thanks.

    ReplyDelete
  19. यूं तो अपना अपना शौक है जी...... पर हम तो यह सोचा रहे हैं पर पता ही नहीं चल रहा कि क्या काम-धाम छोड़कर व्यर्थ घूमने से ...अपने देश में लूट, भ्रष्टाचार,बलात्कार कम होसकते हैं क्या...

    ReplyDelete
    Replies
    1. neeraj ke na ghumane se loot,bharshtachar,rape kam ho jayenge. aap ek travel blog pe ho. aapko travel enjoy karna chahiye.
      in my opinion, ye ek personal travel blog hai. jo bhi likha ja raha hai, wo neeraj ke apne vichar hain. kisi aur ko kyun problem honi chahiye.
      cities ke ac me rahne main aur ladakh travel kkarne me- wo bhi cycle pe- bahut fark hai. ise kewal wahi samajh sakta hai,jisne ye kiya hai.

      very well written neeraj, best blog in hindi, aise hi ghumte rahiye aur hame nai-nai jaghon ke darshan ghar baithe karate rahiye.

      Delete
    2. neeraj ke na ghumane se loot,bharshtachar,rape kam ho jayenge. aap ek travel blog pe ho. aapko travel enjoy karna chahiye.
      in my opinion, ye ek personal travel blog hai. jo bhi likha ja raha hai, wo neeraj ke apne vichar hain. kisi aur ko kyun problem honi chahiye.
      cities ke ac me rahne main aur ladakh travel kkarne me- wo bhi cycle pe- bahut fark hai. ise kewal wahi samajh sakta hai,jisne ye kiya hai.

      very well written neeraj, best blog in hindi, aise hi ghumte rahiye aur hame nai-nai jaghon ke darshan ghar baithe karate rahiye.

      Delete
    3. नीरजजाटजी, क्यों काम-धाम छोडकर व्यर्थ घूमते हो?
      श्याम गुप्ता जी की तरह दोहे, कविता, भजन-आरती लिखकर अपने देश में लूट, भ्रष्टाचार, बलात्कार कम करो भाई।
      आपको अन्दाजा भी नहीं है कि श्याम गुप्ता जी ने कितना अंकुश लगा दिया है, इन बुराईयों पर, बस आप और लग पडो तो समाप्त ही समझो।
      और एक-आध पोस्ट में Miss Diva और Fation shows के अखबारों की कटिंग भी लगाते रहियेगा।

      प्रणाम

      Delete
  20. shyam gupta ?ye kya cheez hai? बड़ी ही निम्न स्तर की सोच है इसकी

    इस के लिए जवाब तो मेरे पास भी बहुत अच्छा है लेकिन ये ब्लॉग किसी और का है उसकी मर्यादा का ख़याल रखते हुए कुछ नहीं लिख रहा .

    ट्रक के पीछे लिखा होता है " जलो मगर दिए की तरह खामखा फ़ुको मत "

    ReplyDelete
  21. neeraj ji ... kaafi achha likha hai aap ne.... pic kamal ki hai

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब...