इस यात्रा के फोटो आरंभ से देखने के लिये यहाँ क्लिक करें । 28 मई 2016 “हम मानसिक और शारीरिक रूप से इतने थक चुके थे कि 5500 मीटर चढ़ने के लिये - अपना एक रिकार्ड़ बनाने के लिये - हम काला पत्थर नहीं जाने वाले थे। यदि मौसम साफ़ होता, तो एवरेस्ट देखने के लालच में जा भी सकते थे, लेकिन ऊँचाई के लालच में कभी नहीं जायेंगे।” “मेरी शिखर पर चढ़ने की कभी इच्छा नहीं होती। बेसकैंप तक आने की इच्छा थी और आज बेसकैंप मेरे सामने था।” “बेसकैंप से लौटते समय एक कसक भी थी कि एवरेस्ट के दर्शन नहीं हुए। लेकिन आभास भी हो रहा था कि वह हमें देख रही है और हम उसके साये में चल रहे हैं।” “सोने से पहले आज के दिन के बारे में सोचने लगे। निःसंदेह आज का दिन हमारी ज़िंदगी का एक अहम दिन था। जिस ट्रैक पर जाने की इच्छा सभी ट्रैकर्स करते हैं, आज हमने उसी ट्रैक को पूरा कर लिया था। एवरेस्ट बेस कैंप। हालाँकि प्रत्येक पर्वत का एक बेसकैंप होता है, लेकिन अगर कहीं दो ट्रैकर्स खड़े ‘बेसकैंप’ का ज़िक्र कर रहे हों, तो समझ लेना कि एवरेस्ट बेसकैंप की ही चर्चा चल रही होगी।”
नीरज मुसाफिर का यात्रा ब्लॉग