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14 जून 2013
सुबह साढे सात बजे आंख खुली। दोनों होटल संचालिकाओं ने जुले कहकर नये प्रभात की शुभकामनाएं दीं। अब मैं ‘जुले-जुले’ की धरती पर हूं। हर व्यक्ति एक दूसरे को जुले जुले कहने में लगा है। झारखण्डी मजदूर भी मौका मिलते ही जुले कहते हैं। विदेशी आते हैं भारत घूमने। हवाई अड्डे पर उतरते ही उन्हें सबसे पहले नमस्ते कहना सीखना होता है। लद्दाख में नमस्ते किसी काम का नहीं, यहां जुले का शासन है। सोचते होंगे बडा अजीब देश है, हजार किलोमीटर चले नहीं, अभिवादन का तरीका बदल गया। नमस्ते सीखा था इतनी मेहनत से, एक झटके में बेकार हो गया।
साइकिल पर जब सामान बांध रहा था तो स्पीति वाले तीर्थ यात्री मिले। उनमें से एक का नाम रणजीत सिंह है। बौद्ध नाम कुछ और है। उनके पिता पंजाबी थी, तो रणजीत नाम रख दिया। गांव में सभी रणजीत के ही नाम से जानते हैं, सभी कागज-पत्र रणजीत सिंह के हैं। बौद्ध नाम किसी को नहीं पता। पिन घाटी स्थित अपने गांव शगनम में ट्रैकिंग कराते हैं। न्यौता दिया कि कभी पिन-पार्वती पास या भाभा पास ट्रैक करना हो, तो अवश्य मिलना। भला नीचे का आदमी पिन-पार्वती या भाभा पास करने पहले शगनम क्यों जायेगा? सभी लोग मणिकर्ण या किन्नौर से ट्रैक शुरू करते हैं व मुद में खत्म करते हैं। उल्टा रिवाज कौन शुरू करना चाहेगा?
नौ बजे पांग से चल पडा। पांग 4486 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। आज का लक्ष्य 52 किलोमीटर दूर 4800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित डेबरिंग पहुंच जाने का है ताकि कल तंगलंग-ला पार कर सकूं।
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पांग से आगे कुछ चढाई है। |
चढाई से दिखता पांग |
धूप निकली हो तो लद्दाख की कई पहाडियां स्वर्णिम हो जाती हैं। |
मोरे मैदान |
यह चित्र मेरे लैपटॉप का स्क्रीन सेवर है। |
यह है भेड चराने वाले लद्दाखी घुमन्तू गडरियों का ठिकाना |
आज आखिरी पन्द्रह किलोमीटर के आसपास ऐसी सडक पर चलना पडा। |
ऐसा रंग संयोजन केवल लद्दाख में ही सम्भव है। |
शो-कार मोड |
अगला भाग: शो-कार (Tso Kar) झील
मनाली-लेह-श्रीनगर साइकिल यात्रा
1. साइकिल यात्रा का आगाज
2. लद्दाख साइकिल यात्रा- पहला दिन- दिल्ली से प्रस्थान
3. लद्दाख साइकिल यात्रा- दूसरा दिन- मनाली से गुलाबा
4. लद्दाख साइकिल यात्रा- तीसरा दिन- गुलाबा से मढी
5. लद्दाख साइकिल यात्रा- चौथा दिन- मढी से गोंदला
6. लद्दाख साइकिल यात्रा- पांचवां दिन- गोंदला से गेमूर
7. लद्दाख साइकिल यात्रा- छठा दिन- गेमूर से जिंगजिंगबार
8. लद्दाख साइकिल यात्रा- सातवां दिन- जिंगजिंगबार से सरचू
9. लद्दाख साइकिल यात्रा- आठवां दिन- सरचू से नकी-ला
10. लद्दाख साइकिल यात्रा- नौवां दिन- नकी-ला से व्हिस्की नाला
11. लद्दाख साइकिल यात्रा- दसवां दिन- व्हिस्की नाले से पांग
12. लद्दाख साइकिल यात्रा- ग्यारहवां दिन- पांग से शो-कार मोड
13. शो-कार (Tso Kar) झील
14. लद्दाख साइकिल यात्रा- बारहवां दिन- शो-कार मोड से तंगलंगला
15. लद्दाख साइकिल यात्रा- तेरहवां दिन- तंगलंगला से उप्शी
16. लद्दाख साइकिल यात्रा- चौदहवां दिन- उप्शी से लेह
17. लद्दाख साइकिल यात्रा- पन्द्रहवां दिन- लेह से ससपोल
18. लद्दाख साइकिल यात्रा- सोलहवां दिन- ससपोल से फोतूला
19. लद्दाख साइकिल यात्रा- सत्रहवां दिन- फोतूला से मुलबेक
20. लद्दाख साइकिल यात्रा- अठारहवां दिन- मुलबेक से शम्शा
21. लद्दाख साइकिल यात्रा- उन्नीसवां दिन- शम्शा से मटायन
22. लद्दाख साइकिल यात्रा- बीसवां दिन- मटायन से श्रीनगर
23. लद्दाख साइकिल यात्रा- इक्कीसवां दिन- श्रीनगर से दिल्ली
24. लद्दाख साइकिल यात्रा के तकनीकी पहलू
आपको अंग्रेजी नहीं आती तो अंग्रेज को ही थोडा जाट भाषा सिख देते। फोटो हमेशा की तरह शानदार। उस इलाके की खूबसूरती को आपने बहुत अच्छे से कैमरे में कैद किया है. बधाई
ReplyDeletesandar photos
ReplyDeleteसही कहा...
ReplyDeleteरंग संयोजन देखना हो तो बस लद्दाख ही है, ऐसा लगता है बस बात कर देखते ह इराहो....
अद्भुत जगह है....
इससे अच्छा है शो-कार देख आऊं।
ReplyDeleteDEKH AAYE THO HUME BHI DIKHA DETE..
PHOTO UPLOAD KARNE ME 2 MINUTE HE LAGTE..
UNCHAII AUR UTRAAI KI MATHEMATICAL SAMEEKSHA ME ULJHA DIYA IS BAAR THO..
आपकी बात का रिप्लाई जरूर करना पडेगा।
Deleteक्या आपको लगता है कि मैं शो-कार देखने गया और यहां वर्णन नहीं करूंगा? वर्णन होगा और बहुत शानदार होगा। अगली पोस्ट का इन्तजार करो बस।
और हां, फोटो अपलोड करने में दो मिनट नहीं आधा घण्टा लगता है। मेरी मेहनत की इतनी सस्ती कीमत मत लगाओ। :)
DARNE K LIYE DHANYAWAAD!!
DeleteAre nahi aisa nahi.. mujhe laga ki jheel ko skip ker diya post me.. AApki mehtant k tho hum kayal hain neerajji.. Her post k sath aur hote jaate hain.. keemat lagane jaisa tho nahi kaha..
parson ka intejaar rahega bhaiji..
मैंने कहा- न्यू कहदे बेरा ना
ReplyDeleteJe ke hove hai..
“बेरा ना” माने पता नहीं।
Delete“न्यू कहदे बेरा ना” यानी उससे बोल कि पता नहीं।
जै ऐक नई बोली सिखने मिली मन्ने थारे से छोरो ..
Deleteवर्ना जै बोली का मन्ने “बेरा ना”..
अंगरेजी जाणते तो यहां बोनट खोलकै खडे होत्ते?
ReplyDeleteहा .. हा .. हा
- Anilkv
वाह, आनंद आरहा है, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
इतना बड़ा मैदान देख कहीं किसी को नगर बसाने की समक्ष न लग जाये।
ReplyDeleteवह जाने की इच्छा और बढ गई ....
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteshaandaar photo, maza aa gya Neeraj bhai
ReplyDeleteबल्ले बल्ले हिमांक
तेरा नही मुक़ाबला ?
Neeraj ji ram-ram.bahut sunder photo aur aapke bech -bech me jaato wali bahsa ka pryog isileya toh aap great ho.
ReplyDeleteShayad agar tum Saridiyo mein yahan jaate to aur bhi sunder photo dekhne ko milte...
ReplyDeletegood Bhai
ReplyDeleteइस सड़क को मैंने फिल्म 'जब तक है जान '.में देखा है जहाँ मोटर साइकिल पर शाहरुख जाता है और बेक ग्राउंड में गाना बजता है ..
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