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6 जून 2013, स्थान-गुलाबा
पांच बजे अलार्म बजा लेकिन उठा सात बजे। बाहर निकला तो एक गाय अभी भी टैण्ट से सटकर बैठी थी। टैण्ट पर पतला गोबर भी कर रखा था, पानी से धो दिया। सामान समेटने, बांधने व साइकिल पर चढाने में साढे आठ बज गये। जब आगे के लिये चला तो आठ बजकर पचास मिनट हो गये थे।
आज सामान बांधने में एक परिवर्तन किया। टैण्ट को हैण्डल पर बांध दिया, हैण्डल के नीचे। इसके दो फायदे हुए, एक तो पीछे वजन कम हो गया और अगले पहिये पर भी कुछ वजन आ गया। अब गड्ढों व ऊबड-खाबड रास्तों पर चलने में अगला पहिया उठेगा नहीं। पीछे कैरियर के ऊपर बैग बांधा व बराबर में डिस्क ब्रेक के कुछ ऊपर कैरियर से ही स्लीपिंग बैग लटका दिया। हवा भरने का पम्प स्लीपिंग बैग से ही बंधा था। कल कुछ दूर चलते ही सारा सामान असन्तुलित हो गया था व एक तरफ झुक गया था। अब सबकुछ सन्तुलित लग रहा है। बाकी कुछ दूर चलने पर पता चल जायेगा।
मेरा कल का लक्ष्य था मढी पहुंचने का। 13 किलोमीटर पीछे रुकना पडा। साथ ही अपनी औकात भी पता चल गई कि ऐसी चढाई पर कैसी स्पीड से चल सकता हूं। रोहतांग तक तो चढाई है ही, दूरी 30 किलोमीटर, समय लगेगा दस घण्टे। चूंकि कल के मुकाबले आज मैं बेहतर हूं, इसलिये आठ घण्टे में भी पहुंचा जा सकता है। नौ बजे चलना शुरू किया, रोहतांग पहुंचने में पांच बज जायेंगे। उसके बाद नीचे ही उतरना है, यातायात भी नहीं रहेगा। कोकसर की 22 किलोमीटर की दूरी डेढ घण्टे में तय की जा सकती है।
कल शाम जहां यातायात नीचे उतर रहा था, वही आज ऊपर जा रहा है। अन्तहीन सिलसिला।
चार किलोमीटर आगे चलकर चाय की दुकान मिली। चूंकि स्थायी दुकान नहीं लगाई जा सकती, इसलिये कार या जीप में सारा सामान लाया जाता है। इसी तरह दिन ढलने पर सामान समेटकर नीचे।
चढाई तो साइकिल पर मुश्किल ही होती है लेकिन हर पैडल के साथ दूरी भी कम होती जाती है।
गुलाबा से 9 किलोमीटर आगे एक मोड पर आराम करने रुक गया। ऊपर गाडियों की कतार खडी दिख रही थी। जाम लगा था। एक के पीछे एक। मढी अभी भी चार किलोमीटर था। यह जाम मढी तक तो लगा ही होगा।
एक साइकिल वाले को गुजरते देखकर आवाजें आतीं- अरे देखो साइकिल। सांस लेने रुकता तो लोग घेर लेते- कहां से आये हो? कहां जाओगे? लद्दाख। हे भगवान! कितने दिन में? आठ दिन में। हे भगवान! कितने जने हो? अकेला। हे भगवान!
...
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गुलाबा में टैण्ट |
रोहतांग के रास्ते में खाने-पीने का इंतजाम |
एक झरना |
मढी से चार किलोमीटर पहले |
लम्बा जाम |
जाम ही जाम |
सरदारजी बडे खुश हुए साइकिल से लद्दाख जाने वाले के साथ फोटो खिंचवाकर। |
ब्यास नाला |
मढी |
आज मढी में ही रुकना है। |
मढी से दिखता नीचे तक जाम |
मढी में भी टैण्ट लगाना पडा। |
अगला भाग: लद्दाख साइकिल यात्रा- चौथा दिन- मढी से गोंदला
मनाली-लेह-श्रीनगर साइकिल यात्रा
1. साइकिल यात्रा का आगाज
2. लद्दाख साइकिल यात्रा- पहला दिन- दिल्ली से प्रस्थान
3. लद्दाख साइकिल यात्रा- दूसरा दिन- मनाली से गुलाबा
4. लद्दाख साइकिल यात्रा- तीसरा दिन- गुलाबा से मढी
5. लद्दाख साइकिल यात्रा- चौथा दिन- मढी से गोंदला
6. लद्दाख साइकिल यात्रा- पांचवां दिन- गोंदला से गेमूर
7. लद्दाख साइकिल यात्रा- छठा दिन- गेमूर से जिंगजिंगबार
8. लद्दाख साइकिल यात्रा- सातवां दिन- जिंगजिंगबार से सरचू
9. लद्दाख साइकिल यात्रा- आठवां दिन- सरचू से नकीला
10. लद्दाख साइकिल यात्रा- नौवां दिन- नकीला से व्हिस्की नाला
11. लद्दाख साइकिल यात्रा- दसवां दिन- व्हिस्की नाले से पांग
12. लद्दाख साइकिल यात्रा- ग्यारहवां दिन- पांग से शो-कार मोड
13. शो-कार (Tso Kar) झील
14. लद्दाख साइकिल यात्रा- बारहवां दिन- शो-कार मोड से तंगलंगला
15. लद्दाख साइकिल यात्रा- तेरहवां दिन- तंगलंगला से उप्शी
16. लद्दाख साइकिल यात्रा- चौदहवां दिन- उप्शी से लेह
17. लद्दाख साइकिल यात्रा- पन्द्रहवां दिन- लेह से ससपोल
18. लद्दाख साइकिल यात्रा- सोलहवां दिन- ससपोल से फोतूला
19. लद्दाख साइकिल यात्रा- सत्रहवां दिन- फोतूला से मुलबेक
20. लद्दाख साइकिल यात्रा- अठारहवां दिन- मुलबेक से शम्शा
21. लद्दाख साइकिल यात्रा- उन्नीसवां दिन- शम्शा से मटायन
22. लद्दाख साइकिल यात्रा- बीसवां दिन- मटायन से श्रीनगर
23. लद्दाख साइकिल यात्रा- इक्कीसवां दिन- श्रीनगर से दिल्ली
24. लद्दाख साइकिल यात्रा के तकनीकी पहलू
आदरणीय नीरज जी.... आप महान हो... इतना ही कह सकूँगा.....
ReplyDeleteराम राम जी, हिमालय की खूबसूरती को बखूबी दिखा रहे हो, धन्यवाद, ऐसे ही एक जाम में हम एक बार फंसे थे और मढ़ी से वापस लौटे थे. वन्देमातरम .....
ReplyDeleteWah Neerajbhai wah,
ReplyDeleteगजब के साहसी हो भाई, यात्रा वृतांत पढ कर आनंद आरहा है, बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
आपकी यात्रा तरह, इसका वृतान्त भी थोडा धीरे-धीरे ही चल रहा है। ये दिल मांगे मोर।
ReplyDeleteबढ़िया फोटो एवं दिलचस्प विवरण :)
- Anilkv
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteराहुल सांक्र्य्तान के बाद अगर कोई है तो नीरज जाट
ReplyDeleteram-ram ji. hum aapki is yatra ka pora luft utha rahe hai.aap cha gyai jaat ji.
ReplyDeleteशिलाजीत के भाव था? :) राम राम
ReplyDeleteधीरे धीरे आनन्द बढ़ता जा रहा है...
ReplyDeleteनीरज जी देश के कोने कोने तक हमें ले जाने का आपका बहुत आभार ... उम्मीद है आप हर चीज़ में सफल होंगे और आगे बढ़ेंगे । लेकिन भाई साब , इतनी ठण्ड में सिर्फ चड्डी पहेनकर बहार निकलना आपको ज़ुकाम दे देगा
ReplyDeleteगुलाबा तक ही मैं भी जा सकी थी , आगे हमें जाने नहीं दिया गया था ..बहुत बर्फ थी ...मस्त है सारी तस्वीरे ....
ReplyDeleteराम राम भाई..
ReplyDeleteवो अंग्रेजी बोलण वाले तन्ने अंग्रेज समझ रहे होंगे.... ;)
और मदद करने जज्बा काबिले तारीफ़ है...
नीरज जी
ReplyDeleteरात में टेंट लगा के सोने के दौरान किस किस तरह की
परेशानियां आ सकती है।।।
कृपया इस बारे में हमें बताये।।।
क्या किसी भी पहाड़ी इलाकों में टेंट लगा सकते है।।।
क्या किसी से अनुमति लेनी होती है।।।
कृपया बताये।।।।।