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15 जून 2013
साढे सात बजे आंख खुली। ध्यान दिया कि तम्बू चू रहा है, वो भी कई जगहों से। कुछ बूंदें तो मेरे बिस्तर पर भी गिर रही थीं। जब तम्बू के ऊपर रेन कवर नहीं लगायेंगे, तो ऐसा ही होगा। अचानक यह सोचकर झुरझुरी दौड गई कि बारिश हो रही है।
बाहर निकला तो कुदरत बारिश से भी ज्यादा खतरनाक खेल खेल रही थी। बर्फ पड रही थी। अभी तंगलंग-ला पार करना बाकी है। यहां 4630 मीटर की ऊंचाई पर ही बर्फबारी हो रही है, तो 5300 मीटर ऊंचे तंगलंग-ला पर क्या हो रहा होगा, इसका अन्दाजा था मुझे।
बर्फबारी के बीच निकल पडूं या यहीं रुका रहूं- यह प्रश्न मन में था। मन ने कहा कि यहीं रुका रह। बर्फबारी जब बन्द हो जायेगी तो आठ किलोमीटर आगे डेबरिंग चले जाना। बाकी दूरी कल पूरी कर लेना। बर्फबारी में निकलना ठीक नहीं।
तभी एक कोने में से दबी सी आवाज निकली- अभी निकल पड। क्यों निकलूं अभी? एक तो बर्फ इतनी ज्यादा नहीं है कि चला ही नहीं जायेगा। सामने देख, जमीन पर नाम भी नहीं है बर्फ का। थोडी बहुत किसी कठोर चीज पर ही जमी है बस। दूसरे, हवा नहीं चल रही है। हवा चली होती तो बर्फीली हवा शरीर को अन्दर तक बेध देती। तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात कि पता नहीं कब तक ऐसा मौसम रहे। अगर दो-तीन दिन और ऐसा ही रहा तो तंगलंग-ला बन्द हो जायेगा। इस समय तेरा परम कर्तव्य है कि शीघ्रातिशीघ्र जैसे भी हो, तंगलंग-ला पार कर ले।
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मनाली-लेह-श्रीनगर साइकिल यात्रा
1. साइकिल यात्रा का आगाज
2. लद्दाख साइकिल यात्रा- पहला दिन- दिल्ली से प्रस्थान
3. लद्दाख साइकिल यात्रा- दूसरा दिन- मनाली से गुलाबा
4. लद्दाख साइकिल यात्रा- तीसरा दिन- गुलाबा से मढी
5. लद्दाख साइकिल यात्रा- चौथा दिन- मढी से गोंदला
6. लद्दाख साइकिल यात्रा- पांचवां दिन- गोंदला से गेमूर
7. लद्दाख साइकिल यात्रा- छठा दिन- गेमूर से जिंगजिंगबार
8. लद्दाख साइकिल यात्रा- सातवां दिन- जिंगजिंगबार से सरचू
9. लद्दाख साइकिल यात्रा- आठवां दिन- सरचू से नकी-ला
10. लद्दाख साइकिल यात्रा- नौवां दिन- नकी-ला से व्हिस्की नाला
11. लद्दाख साइकिल यात्रा- दसवां दिन- व्हिस्की नाले से पांग
12. लद्दाख साइकिल यात्रा- ग्यारहवां दिन- पांग से शो-कार मोड
13. शो-कार (Tso Kar) झील
14. लद्दाख साइकिल यात्रा- बारहवां दिन- शो-कार मोड से तंगलंगला
15. लद्दाख साइकिल यात्रा- तेरहवां दिन- तंगलंगला से उप्शी
16. लद्दाख साइकिल यात्रा- चौदहवां दिन- उप्शी से लेह
17. लद्दाख साइकिल यात्रा- पन्द्रहवां दिन- लेह से ससपोल
18. लद्दाख साइकिल यात्रा- सोलहवां दिन- ससपोल से फोतूला
19. लद्दाख साइकिल यात्रा- सत्रहवां दिन- फोतूला से मुलबेक
20. लद्दाख साइकिल यात्रा- अठारहवां दिन- मुलबेक से शम्शा
21. लद्दाख साइकिल यात्रा- उन्नीसवां दिन- शम्शा से मटायन
22. लद्दाख साइकिल यात्रा- बीसवां दिन- मटायन से श्रीनगर
23. लद्दाख साइकिल यात्रा- इक्कीसवां दिन- श्रीनगर से दिल्ली
24. लद्दाख साइकिल यात्रा के तकनीकी पहलू
barish me kitna bhayanak lag raha hoga,
ReplyDeleteफोटोज के बारे में पहले ही सूचित कर देना, अच्छा लगा।
ReplyDeleteआप अपने मनोभावों और अपनी कमजोरियों को जिस निरपेक्ष तरीके से शब्दों में बताते हैं, इन्हें पढने में मजा आता है।
पहाडवासी चोरी नहीं करते, मेरा ये विश्वास दृढ हो गया आपकी विचारों से।
केवल इसी ब्लॉग को पढने के बाद लगता है कि हां किसी घुमक्कड का ब्लॉग पढ रहे हैं।
धन्यवाद और प्रणाम
नीरज भाई , आपकी यात्रा तो ठीक ठाक चल रही है!
ReplyDeleteफोटोज के बारे में पहले ही सूचित कर देना, अच्छा लगा।
पर सचिन का क्या हाल है , रस्ते में भेंट हुआ या नहीं ................!!!!
तो आप श्राप भी देते हैं मुनिवर ?
ReplyDelete- Anilkv
आप को सलाम है।एशे ही चलते रहों मुसाफिर।
ReplyDeleteItni visham paristhitiyan buni hui hai safar me..
ReplyDeletePehli wali photo tho bahut zabardasst hai..
इस लेह यात्रा में आपने विदेशियों को भी मात दे दी अपने दृढ निश्चय से .... और इस यात्रा का लाभ क्या हुआ ये वो नहीं जान सकता जिसने कभी गाडी से नीचे उतर के न देखा हो....
ReplyDeleteसाहस का काम है..रोचक भी..
ReplyDeleteबेहद रोमांचक वृतांत
ReplyDeleteश्राप तो मिलने ही थे ट्रकों को
aapki himmat aur jajbe ko bayan karne ke liye koi shabd nhi.
ReplyDeleteshubhkamnayen............
फोटू की कमी खल रही है ..कम से से कम गिरती हुई बर्फ का एक फोटू तो होना ही चाहिए था ..और तम्बू का भी जहाँ पैर रखने की जगह नहीं थी और चोर मजदुर थे .....
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