ध्यान दें: डायरी के पन्ने यात्रा-वृत्तान्त नहीं हैं।
1 फरवरी: इस बार पहले ही सोच रखा था कि डायरी के पन्ने दिनांक-वार लिखने हैं। इसका कारण था कि पिछले दिनों मैं अपनी पिछली डायरियां पढ रहा था। अच्छा लग रहा था जब मैं वे पुराने दिनांक-वार पन्ने पढने लगा।
तो आज सुबह नाइट ड्यूटी करके आया। नींद ऐसी आ रही थी कि बिना कुछ खाये-पीये सो गया। मैं अक्सर नाइट ड्यूटी से आकर बिना कुछ खाये-पीये सो जाता हूं, ज्यादातर तो चाय पीकर सोता हूं।। खाली पेट मुझे बहुत अच्छी नींद आती है। शाम चार बजे उठा। पिताजी उस समय सो रहे थे, धीरज लैपटॉप में करंट अफेयर्स को अपनी कापी में नोट कर रहा था। तभी बढई आ गया। अलमारी में कुछ समस्या थी और कुछ खिडकियों की जाली गलकर टूटने लगी थी। मच्छर सीजन दस्तक दे रहा है, खिडकियों पर जाली ठीकठाक रहे तो अच्छा। बढई के आने पर खटपट सुनकर पिताजी भी उठ गये।
सात बजे बढई वापस चला गया। थोडा सा काम और बचा है, उसे कल निपटायेगा। इसके बाद धीरज बाजार गया और बाकी सामान के साथ कुछ जलेबियां भी ले आया। मैंने धीरज से कहा कि दूध के साथ जलेबी खायेंगे। पिताजी से कहा तो उन्होंने मना कर दिया। यह मना करना मुझे बहुत खराब लगा। बेड पर बैठे थे, नीचे आंखें गडाये हुए गर्दन हिला दी; बस।
असल में उनके अनुसार उनका पेट फटने को हो रहा है- मेरा पेट फाट्टन नै होरा। एक सप्ताह से रोज यह बात कई बार सुनने को मिल रही हैं। एक दिन डॉक्टर के पास गये तो आते ही उसे गालियां देने लगे- उल्लू के पट्ठे ने मुट्ठा भरके गोलियां दे दीं, चेक कुछ किया नहीं। उनकी इच्छा थी कि डॉक्टर अल्ट्रासाउंड, एक्सरे करने को कहेगा और बतायेगा कि बडी भयंकर बीमारी है। ऐसे में उन्हें बडा आनन्द आता है। फिर सबको फोन करके बतायेंगे कि मुझे ये बीमारी है, बडी भयंकर है। यार-दोस्त-रिश्तेदार सहानुभूति जतायेंगे। फिर कोई कुछ तरीका बतायेगा, कोई कुछ तरीका कि ये दवाई खाओ, ये दवाई खाओ। फिर शुरू होता है दवाई खाने का दौर- होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक, यूनानी, ईरानी; जो भी जैसा भी नुस्खा बताता चला जायेगा, पिताजी सब खाते चले जायेंगे। पिछले बीस साल से मैं उन्हें यह सब करते देख रहा हूं।
एक दिन मैंने समझाया कि देखो, ऐसा मुझे भी होता है। यह सब बिल्कुल सामान्य बात है। आपको भूख ठीक लग रही है, टट्टी ठीक आ रही है और नींद ठीक आ रही है तो समझो कि सबकुछ ठीक है। एकदम भडक गये- नींद कहां आ रही है? रातभर कराहता रहता हूं। कई दिन हो गये सोये हुए। पेट फाट्टन नै हुआ रहै।
जबकि मैं कई दिनों से उन पर निगाह रखे हुए हूं। रात को अगर मेरी नाइट ड्यूटी नहीं है तो मैं दो बजे तक भी जगा रहता हूं और तीन बजे तक भी। अक्सर उनके कमरे में जाकर आवाज लगाता हूं। आवाज इस हिसाब से लगाता हूं कि कोई अगर हल्की नींद में सो रहा हो तो जग जाये। वे नहीं जगते। जाहिर है कि उन्हें ठीक नींद आ रही है। इसके अलावा खाना भी उतना खा रहे हैं जितना वे अमूमन खाते हैं। रोज सुबह शाम टहलने भी जाते हैं, वो भी नहीं छोडा। इससे पता चलता है कि आन्तरिक मशीनरी ठीक है।
वैसे हैं एक नम्बर के खुशमिजाज इंसान। बूढों में बैठ जाते हैं तो बूढे हो जाते हैं, बच्चों के साथ बच्चे। आज भी गली में छोटे छोटे बच्चों के साथ क्रिकेट खेलते हैं। आउट हो जाते हैं तो ‘बेइमानी’ भी करते हैं। मेरे उनके बीच भी कोई पर्दा नहीं है। यहां तक कि मेरी गर्लफ्रेण्ड और महिला मित्रों के बारे में खुलकर बात होती है। लेकिन इतना होने के बाद भी उन्हें कभी कभी याद आ जाता है कि वे ‘बाप’ भी हैं। कुछ काम केवल बाप के ही करने के होते हैं। इनमें बच्चों की शादी भी शामिल है। पिछले कुछ समय से मेरी शादी का मामला गर्म चल रहा है। लडकी के परिजन बिल्कुल राजी नहीं हैं। हम उन्हें मनाने में जुटे हैं। हम कोर्ट मैरिज करें या आर्य समाज मन्दिर में जायें; यह भी पिताजी को अच्छा नहीं लग रहा। चाहते हैं कि शादी पांच दस लाख रुपये लगाकर धूमधाम से हो। पिछले दिनों उन्होंने मुझसे कहा भी था कि शादी में कम से कम पांच लाख का खर्च तो हो ही जायेगा। मैंने कहा कि इतने पैसे मेरे पास तो हैं नहीं, उधार लेना पडेगा। और उधार मैं लूंगा नहीं। इस बात पर नाराज हो गये थे। उनका स्वभाव व इतिहास भयंकर गुस्से वाला रहा है। अब चूंकि वे गुस्सा नहीं कर सकते। लेकिन ‘बीमार’ तो हो सकते हैं। आज ही अगर मैं कह दूं कि चलो, ले लो उधार तो अभी एकदम उनका पेट फटने से बच जायेगा। बिल्कुल चंगे हो जायेंगे।
दूसरी बात धीरज से सम्बन्धित है। वो प्रतियोगी परीक्षाओं के लिये जबरदस्त तैयारी करता है लेकिन उसकी तैयारियों में कुछ त्रुटि ही है कि सफल नहीं हो पा रहा। मुझे उसका कमजोर सामान्य ज्ञान और कमजोर अंग्रेजी ही ज्यादा जिम्मेदार दिख रहे हैं। मैं इन दोनों विषयों में उच्च स्तर की हैसियत रखता हूं। एक बार उसे घेर-घोटकर पढाना भी शुरू किया था लेकिन जब उसने कहा कि मुझे तुझसे पढते समय हीनभावना महसूस होती है तो उसे पढाना छोड दिया। फिर भी यदा-कदा मैं उसे कहता रहता हूं जैसे कि डिस्कवरी पर एक कार्यक्रम आता है- ट्रैप्ड इन केदारनाथ। मैंने पूछ लिया कि ट्रैप्ड का क्या मतलब होता है। तुरन्त बोला- केदारनाथ में तबाही। मैंने मना करते हुए गर्दन हिला दी। पूछने लगा कि फिर तू ही बता। मैंने हमेशा की तरह कह दिया कि अगर तू चाहेगा तो मेरे बिना बताये भी पता कर लेगा। हुआ वही जो हमेशा होता है। उसने पता करने की कोई कोशिश नहीं की।
आज जब उसे देखा कि वो लैपटॉप में नेट चलाकर करंट अफेयर्स अपनी कापी में नोट कर रहा है तो हंसी भी आई और यह देखकर निराशा भी हुई। करंट अफेयर्स अंग्रेजी में थे। मुझे पता है कि उसे क्या समझ में आ रहा होगा- घण्टा। जब मैं सो जाता हूं तब वो नेट चलाता है और मेरे उठने पर या उठने से पहले करंट अफेयर्स या जीके खोलकर बैठ जाता है और अपनी कापी में नोट करने लगता है। उसे अभी तक यह नहीं पता कि नेट जब हम चलाते हैं तो ब्राउजर में हिस्ट्री भी देखी जा सकती है। बाद में हिस्ट्री देखकर पता कर लेता हूं कि दिनभर उसने नेट पर क्या-क्या किया। मैं पता सब कर लेता हूं लेकिन कभी उसे बताता नहीं हूं कि मुझे पता है।
2 फरवरी: वही नाइट ड्यूटी से आकर सो गया। एक फोन आया- निशा का फोन था, वही लडकी जिससे शादी की बात चल रही है। वह अपने गांव से दिल्ली आ रही थी। कहने लगी कि वो आला हजरत ट्रेन से आ रही है। मिलने को कहने लगी, मैंने मना कर दिया। अब नींद से कौन उठे? बस पांच मिनट के लिये; मैंने उसके लिये भी मना कर दिया और फोन को साइलेंट करके सोने लगा। उधर पिताजी अपने इलाज के लिये गाजियाबाद गये थे। हमारी एक बहन यहीं पास ही में साहिबाबाद में रहती हैं। पिताजी बहनोई के साथ गये थे। और मुझसे यह कहकर गये थे कि अगर किसी कारणवश डॉक्टर नहीं मिला या कोई और बात हुई तो वे उधर से उधर ही गांव चले जायेंगे। नब्बे प्रतिशत सम्भावना थी कि वे गांव जायेंगे ही जायेंगे। अब मन में एक खुराफात आई। पिताजी को फोन किया- निशा दिल्ली आ रही है। अगर कहो तो उसे क्वार्टर पर बुला लूं। तुरन्त बोले कि बुला ले। -लेकिन आप तो गांव चले जाओगे। -नहीं जाऊंगा। डॉक्टर को दिखाकर सीधा आ रहा हूं। -तो एक काम करना, भाईसाहब को भी लेते आना। हम बहनोई को भाईसाहब कहते हैं। निशा को बता दिया कि शास्त्री पार्क ही आ जा। फोन की साइलेंटनेस समाप्त कर दी।
खैर, पहले निशा आई; कुछ देर बाद साहिबाबाद वाली बहन, भाईसाहब व भानजी भी आ गये। जहां कायदे से निशा के मम्मी और पापा को आना था, अब वहां स्वयं आई हुई थी। बातें हुईं। एक बार तो यह भी तय हो गया कि आखिरी बार उनके घर चलते हैं और उन्हें फिर से मनाने की कोशिश करते हैं। कुछ निशा ने और कुछ मैंने सन्देह व्यक्त किया कि पिछली बार गये थे तो ठीकठाक लौट आये थे। क्या पता इस बार उसकी मम्मी गाली-गलौच पर उतर आये। उसकी मम्मी इस विवाह का विरोध कर रही हैं। पापा समर्थक हैं लेकिन मम्मी के सामने उनकी घिग्घी बंध जाती है और कुछ नहीं बोल पाते।
आखिर में तय हुआ कि आर्य समाज मन्दिर में फरवरी में ही विवाह कर लेते हैं। निशा की तरफ से कोई आयेगा तो ठीक, लेकिन हमारी तरफ से घर-परिवार के सभी सदस्य शामिल होंगे। विवाह के कुछ दिन बाद यार-दोस्तों के लिये भोज का आयोजन किया जायेगा। उसके पिताजी चूंकि इस विवाह के लिये राजी हैं, इसलिये कुछ न कुछ करके उन्हें भी बुलाने की कोशिश करेंगे। भले ही उन्हें घण्टे भर के लिये उनके ऑफिस से उठाकर लाना पडे।
इसके बाद तो पिताजी बिल्कुल ठीक हो गये। शायद दवाई की पहली खुराक भी न ली हो।
# धीरज को त्रिवेन्द्रम जाना है इसरो में कोई प्रवेश परीक्षा देने। आठ फरवरी को परीक्षा है। कहने लगा कि पांच तारीख को केरला एक्सप्रेस में तत्काल बुकिंग करनी है ताकि सात तक वहां पहुंच सके। मैंने कहा कि दो दिन पहले चला जा। कहने लगा कि दो दिन पहले जाकर वहां क्या करूंगा? मैंने कहा कि रामेश्वरम और कन्याकुमारी देख लेना। तुरन्त बोला कि रामेश्वरम-कन्याकुमारी वहीं हैं क्या?
कल सुबह यानी तीन फरवरी की सुबह उसका तमिलनाडु सम्पर्क क्रान्ति में मदुरई का आरक्षण कर दिया। पूरा कार्यक्रम बनाकर उसे दे दिया। मैंने पूछा कि पैसे कितने चाहिये? तपाक से बोला- छह हजार। छह हजार सुनकर मेरी फूंक निकल गई। क्यों, क्या करेगा? बाकी रातें तो ट्रेन में हो जायेंगी, लेकिन तीन रातों के लिये कमरा लेना पडेगा। एक-एक हजार का कमरा मिलेगा। मैंने कहा तो कुछ नहीं लेकिन तभी त्रिवेन्द्रम स्टेशन पर दो रातों के लिये वातानुकूलित डोरमेट्री में साढे पांच सौ रुपये में बिस्तर बुक कर दिया। कन्याकुमारी में विश्रामालय नहीं है, इसलिये वहां की बुकिंग नहीं हो सकी। स्टेशन के पास ही विवेकानन्द आश्रम है। कह दिया कि वहां जाकर उनसे सम्पर्क कर लेना। अति सस्ते में काम बन जायेगा। उसका तीन रातों के रुकने का इंतजाम हो गया। उसकी मांग छह हजार में से तीन हजार रुपये काटकर तीन हजार रुपये उसे दे दिये।
5 फरवरी: 6 साल पहले बीमे की एक पॉलिसी ली थी। दस साल की पॉलिसी थी और उसमें शुरूआती पांच साल तक बीस-बीस हजार रुपये जमा करने थे। पैसे जमा करने का दौर कभी का समाप्त हो गया था, अब तो बस दस साल समाप्त होने की प्रतीक्षा चल रही थी। लेकिन ये एक लाख रुपये पिताजी को खटक रहे हैं बहुत दिनों से। अब जब विवाह प्रकरण आरम्भ हुआ तो पिताजी ने अपनी बडी बडी मांगें रखनी शुरू कर दीं जिनमें कम से कम डेढ दो लाख का खर्च होना ही है। मैंने कहा कि मामले को छोटा ही रखो, ज्यादा मत बढाओ तो तपाक से कहा- वे पैसे निकाल ले। पहले मैंने एक दो बार मना भी किया था लेकिन वे भडक जाते थे। यह भडकना मुझे बुरा लगता है। उनकी बात न मानो तो वे दिन-रात कराहने लगते हैं और भयंकर बीमार पड जाते हैं। मानते चले जाओ तो दिन-रात गाने गुनगुनाते रहेंगे।
मैं चाहता हूं कि वे गाने ही गुनगुनाते रहें, इसके लिये बडी सूझबूझ से चलना पडता है।
आज शाम को मैं घर से निकला और सीधा पहुंचा बीमे वालों के कार्यालय। उन्होंने कहा कि आप कल सुबह आ जाओ। मैं वापस आ गया और पिताजी को कहानी सुना दी- वे बता रहे हैं कि अगर समय से पहले निकालोगे तो 80 प्रतिशत ही मिलेंगे यानी अस्सी हजार। पिताजी माथा पकडकर बैठ गये कि एक लाख जमा किये हैं, अस्सी हजार मिलेंगे। आधे घण्टे तक गुमसुम बैठे रहे। मैं सोचता रहा कि पैसों का इंतजाम चूंकि मुझे ही करना है, इसलिये चिन्ता भी मुझे ही करनी चाहिये। ये बेवजह ही माथा पकडे बैठे हैं। बैठा रहने दे, देखने हैं क्या कहते हैं।
आधे घण्टे बाद उनमें हलचल हुई। बोले- अस्सी हजार ही निकाल ले। मैंने तुरन्त सहमति दे दी। मना करता तो बहसबाजी होती। सहमति मिलते ही वे खुश हो गये और गाना गुनगुनाने लगे। यही सर्वोत्तम समय होता है पिताजी के विरोध में कुछ कहने का। मैंने कहा- देखो, पैसे तो मैं कल जाकर निकाल लाऊंगा। लेकिन आप अभी एक बार एक-एक खर्चे का हिसाब लगाओ कि कहां-कहां कितना खर्च होने की सम्भावना है। कहने लगे कि लडकी के गहने बनेंगे। कंजूसी से काम लेंगे तो कम से कम एक तोला सोना लेना पडेगा यानी 28-30 हजार का। इसके अलावा उसके कपडे-लत्ते। ये कपडे, वो कपडे, इतने के, उतने के, पन्द्रह-बीस हजार तो लगेंगे ही। दस बारह हजार विवाह के दौरान भी चाहिये। फिर उसके बाद दावत का खर्चा।
मैंने कहा- आपने सब बता दिया। अब यह सब खर्च मुझे करना है। आप बिल्कुल इस बारे में सोचना बन्द कर दो। अगर बीमे की पॉलिसी को बचाते भी हैं, तब भी सारा इंतजाम हो जायेगा, वो भी बिना उधार लिये। पूछने लगे- कैसे होगा? मैंने कहा- आपको सोचना ही नहीं है इस बारे में। तो पूछो भी मत। वे फिर से गाना गुनगुनाने लगे। पॉलिसी बच गई।
खाते में इस समय लगभग 16000 रुपये हैं। महीने का पहला सप्ताह है यह। आने वाला समय ही बतायेगा कि मैं पैसों की समस्या कैसे सुलझाऊंगा।
6 फरवरी: निशा को शास्त्री पार्क बुला लिया। आज विवाह-पूर्व पहली खरीदारी होगी। उधर गाजियाबाद से दीदी और भाईसाहब भी आ गये। शाहदरा पहुंचे। दो घण्टे तक भी जब कुछ नहीं खरीदा जा सका तो मैं वापस आ गया। शाम को पता चला कि आज निशा के लिये नौ हजार के कपडे खरीदे गये। अब बचे खाते में लगभग सात हजार। अब अगला लक्ष्य गहने लेने का है जिसमें कम से कम तीस हजार लगने हैं। गहनों को मैं और निशा दोनों मना कर रहे हैं। वह नहीं पहनती। पहनेगी भी नहीं। कहीं सन्दूक में पडे रहेंगे। लेकिन तसल्ली इस बात की है कि गहने खरीदना एक तरह का निवेश ही है। लेकिन ऐसी तंगी के समय में मुझे गहने खरीदना अच्छा नहीं लग रहा। पैसे उधार लेने ही पडेंगे। गहने न खरीदना पडे, तो बिना उधार लिये बात बन सकती है।
मेट्रो से लोन मिल जाता है। मुझे सवा लाख तक का लोन मिल सकता है। बाद में धीरे धीरे सैलरी से कटता रहेगा। इसका सबसे बडा फायदा यही है कि चुक भी जाता है और पता भी नहीं चलता। इसके लिये सोमवार को आवेदन करूंगा। एक सप्ताह अप्रूव होने में लगेगा और फिर एक सप्ताह पैसे खाते में आने में। इन दो सप्ताहों के लिये कुछ पैसे उधार लेने पडेंगे।
10 फरवरी: पिताजी दो दिनों से गांव गये हुए थे। आज आये तो बताया कि घर के बडे लोग कोर्ट मैरिज के पक्ष में हैं। पिछले एक साल से रोज यही हो रहा है कि उसके पापा राजी हैं, मम्मी राजी नहीं हैं, ऐसा है, वैसा है; तो सभी इन बातों से तंग आ गये हैं। जब एक साल में बात आगे बढ ही नहीं रही तो आखिरी चारा यही बचता है कि कोर्ट मैरिज कर लो। हम तीनों बाप-बेटों ने बैठकर सोमवार 16 फरवरी की तारीख पक्की कर ली। निशा को बता दिया और अपने अति नजदीकी मित्रों व रिश्तेदारों को भी बता दिया। सभी ने राहत की सांस ली और अब विवाह की उल्टी गिनती शुरू हो गई।
निशा से यह भी कह दिया कि अपने पापा से भी विवाह की तारीख के बारे में बता दे। ऐसा करने में साधारणतया खतरा होता है कि कहीं घरवाले लडकी को ‘कैद’ न कर लें। लेकिन जिस तरह उसकी मम्मी को छोडकर पूरा परिवार उसके समर्थन में था, उसे देखते हुए उसके बंदी होने की सम्भावना नहीं थी। हुआ भी यही। जब उसने घर पर बताया तो जाहिर है कि उसकी मम्मी ही विरोध करेंगी- तू धोखा खायेगी, वे लोग अच्छे नहीं हैं, नीरज बहुत कमीना है, उसके पापा बहुत बुरे हैं; तू हमारी नाक कटवायेगी, हम कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं बचेंगे। तुझे इसीलिये पाला था, इसीलिये पढाया था, हमारी सारी मेहनत तूने बर्बाद कर दी।
15 फरवरी: आज रविवार है। कल हमारी शादी है। वकील से पहले ही बात कर रखी थी। वह कागज-पत्र तैयार करके रखेगा और साथ के साथ आर्य समाज मन्दिर में सात फेरे ले लिये जायेंगे। निशा ने कहा कि वह बिना बताये घर से आयेगी। मैंने कहा कि बताकर आना। बोली कि डर लग रहा है। मैंने कहा कि जितनी हिम्मत तूने एक साल में दिखाई है, बस आखिरी बार थोडी हिम्मत और कर। आखिरकार उसने अपने पापा से बता ही दिया कि आज वह घर से विदा ले लेगी और कल शादी कर लेगी। अपने पापा से भी उसने प्रार्थना की कि आप चूंकि अभी तक मेरे समर्थन में हो, इसलिये आप भी आ जाना। उसके पापा ने, मम्मी ने हालांकि उससे फिर से मना किया लेकिन वह सबके सामने खाली हाथ घर से निकल गई। रास्ते में थी, तब भी मम्मी-पापा ने वापस लौटने को कहा लेकिन वह वापस लौटने को थोडे ही निकली थी?
16 फरवरी: गांव से ताऊजी आ गये थे, एक बडे भाई आ गये, साहिबाबाद वाली बहन का परिवार था ही, एक-दो मित्र आ गये और बारात चल पडी तीस हजारी कोर्ट की ओर। वकील ने सभी कागज-पत्र पहले ही तैयार करके रखे हुए थे। जाकर खूब सारे हस्ताक्षर हुए, खूब सारे अंगूठे लगे, शादी रजिस्टर हो गई। फिर समीप ही आर्य समाज मन्दिर में गये। वहां पण्डित जी एक शादी कराने में व्यस्त थे। हमें देखते ही उनसे कहा कि उठो, फेरे लो। फेरे लिये, दक्षिणा ली और कह दिया कि जाओ, हो गई शादी। फिर हमें बुला लिया। जब तक हमारा भी मामला समाप्त नहीं हुआ कि एक जोडा और आ गया। खैर, फेरे हुए, सर्टिफिकेट मिला और हम भी शादीशुदा हो गये। दोनों कुंवारे गये थे और एक घण्टे में ही शादीशुदा होकर लौटे। कई दिनों तक यकीन सा ही नहीं हुआ कि मैं अब शादीशुदा हूं।
अब जब घर पर सभी बडे बैठे थे तो विचार-विमर्श हुआ कि अब क्या किया जाये। खासकर दावत के सम्बन्ध में। तय हुआ कि 23 फरवरी सोमवार को दावत का आयोजन करेंगे। कहां करेंगे? मेरी राय थी कि दावत दिल्ली में ही हो। इसका कारण था कि ऐसा करने से मित्र तो सभी शामिल हो जायेंगे लेकिन गांव-मोहल्ले और रिश्तेदारी के कम लोग आयेंगे। मैं केवल उन्हीं को बुलाना चाहता था जो मुझे जानते हों। लगभग दस सालों से मैं गांव में नहीं रहता। रिश्तेदारी में तो आना-जाना है ही नहीं। ज्यादातर लोग मुझे नहीं पहचान सकेंगे। मैंने कहा भी यही कि गांव-मोहल्ले और रिश्तेदारी में केवल उन्हीं को बुलाओ, जो हमारे घनिष्ठ हैं और कम से कम महीने में एक बार बात हो जाती है। लेकिन पिताजी इसके लिये राजी नहीं थे। कहने लगे कि जिनका हमने खा रखा है, उन्हें तो बुलाना ही पडेगा। इसका मतलब था कि पूरे गांव को बुलाना होगा और ऐसे ऐसे रिश्तेदारों को भी बुलाना पडेगा जिनका नाम हम भूल भी गये हैं। बाद में जब आगन्तुकों की गिनती करने बैठे तो बहुत से तो ऐसे थे जिनका नाम न पिताजी को पता था और न ही ताऊजी को।
यह भी तय हुआ कि गांव से एक बस यहां दिल्ली आयेगी। कम से कम दो सौ आदमियों की गिनती हो गई। बाद में और भी बढेंगे। हलवाई की जिम्मेदारी मनदीप को सौंप दी। फेसबुक पर अपने खास-खास मित्रों को सूचना भेज दी कि फलां तारीख को दावत का आयोजन शास्त्री पार्क में किया जा रहा है।
टैंट वाले से बात की। उसने सारी गणनाएं करने के बाद बताया कि बाइस हजार लगेंगे, अगर जनरेटर चाहिये तो पन्द्रह हजार उसके अलग से। मैंने उसे कल के लिये टाल दिया। उधर गांव में पिताजी सभी रिश्तेदारों को दिल्ली के लिये आमन्त्रित कर चुके थे। बस भी बुक हो गई थी। इधर खर्च को देख-देखकर मेरे सिर में दर्द बढता जा रहा था। दूसरी बात कि यहां सारा इंतजाम मुझे ही करना था। किसी को जानता भी नहीं था। मनदीप पच्चीस किलोमीटर दूर रहता है, उससे हर बात पूछना मुझे अच्छा नहीं लगता था। समय कम था। कुछ भूल-चूक हो गई तो सारा मजा किरकिरा हो जायेगा।
आखिरकार पिताजी को कह दिया कि कार्यक्रम दिल्ली में नहीं करेंगे, बल्कि गांव में ही करेंगे। चार दिन अभी भी हाथ में थे, गांव में आसानी से सब इंतजाम हो सकता था। सभी लोग, हलवाई, टैंट वाले; सब अपने ही लोग थे। बस भी समझो कि अपनी ही थी, बिना खर्च के बुकिंग रद्द हो गई। मनदीप ने दिल्ली में हलवाई को मना कर दिया। उसे हम पांच सौ रुपये दे चुके थे। पहले दिन तो सबने समझाया कि कार्यक्रम दिल्ली में ही कर ले लेकिन मैं टस से मस नहीं हुआ।
23 फरवरी: हम कल ही गांव आ गये थे। निशा चूंकि नई-नवेली दुल्हन थी, इसलिये उसे बस में नहीं ले जाया जा सकता था। साहिबाबाद वाली दीदी की कार काम आई। शाम पांच बजे हम गांव पहुंचे थे। मोहल्ले भर की महिलाएं एकत्र थीं। वैसा ही सत्कार हुआ, जैसा कि पारम्परिक विवाहों में होता है जब लडका दुल्हन को अपने घर लाता है। निशा गुलाबी साडी में बहुत सुन्दर लग रही थी। एक सप्ताह पहले फेरे तो सूट-सलवार में ही पड गये थे।
आज बहुत सारे रिश्तेदार आये, मित्र आये। पानीपत से सचिन जांगडा आया। फिर फरीदाबाद से रोहित कल्याणा, बडौत से अरुण पंवार भी आये। लेकिन मुझे जो सबसे ज्यादा खुशी मिली, वो दो मित्रों के आने से मिली। एक तो दौराला से रोहित और दूसरे गाजियाबाद से योगेश कंसल साहब। रोहित और मैं साथ पढे हैं। कुछ समय गुडगांव में साथ नौकरी भी की है। बात तो कम ही होती है लेकिन सुख दुख में हमारा पूरे परिवार का आना-जाना है। परसों जब मैंने उसे सारी कथा बताई तो बडा खुश हुआ। लेकिन कहा कि आज वह पार्टी में नहीं आ सकता। उसकी घरवाली की तबियत खराब थी, आज उसे हॉस्पिटल ले जाना पडेगा। उसकी मम्मी से भी बात हुई थी। आज जब सुबह ही दोनों मां-बेटे आये तो जो खुशी मिली, उसे बयां नहीं कर सकता।
शाम तक जब सभी लोग खा-पीकर जा चुके तो खाने का जो सामान बचा था, उसे अपने बर्तनों में भरकर टैंट वाले के बर्तन खाली कर रहे थे तो बाहर एक गाडी आकर रुकी। मेरा सारा ध्यान रसगुल्लों को अपने टब में भरने पर था। मुझे आवाज दी गई। एक हाथ मेरी तरफ बढा- बधाई हो नीरज जी, मैं योगेश कंसल...। मेरी खुशी और हैरानी की सीमा न रही। चाशनी से भीगा हाथ ही उनसे मिला लिया। बाद में धोने दौडा। कंसल साहब अपने पूरे परिवार और एक मित्र के साथ आये थे।
कंसल साहब से मेरी पहली और आखिरी बात करीब सालभर पहले हुई थी। तब से अब तक कोई बात नहीं हुई। हम कभी मिले भी नहीं। फेसबुक पर भी कोई आदान-प्रदान नहीं। उन्होंने बताया भी नहीं कि वे आ रहे हैं। पूछा भी नहीं कि कैसे आना है। गांव में मेन रोड पर पहुंचकर किसी से यही पूछा होगा कि नीरज के घर जाना है। मुझे गांव में बहुत कम लोग जानते हैं। दस से पूछा होगा, तब एक ने बताया होगा।
अगले दिन हम दोनों मियां-बीवी दिल्ली लौट आये। अगले रविवार यानी 1 मार्च को फिर से गांव जाना है। देवताओं की पूजा होगी ताकि वे खुश रहें और कोई विघ्न न डालें। बडे देवताओं से ज्यादा ऊधम ये छोटे देवता मचाते हैं- क्षेत्रपाल देवता जिसे हमारे यहां भुमिया कहते हैं; कुछ मर चुके परिजन हैं, वे भी बहुत ज्यादा ऊधमी होते हैं। समाज की कुछ मान्यताएं होती हैं, शुरू शुरू में मानूंगा; फिर उसके बाद वही पुरानी बेपरवाही।
पिताजी को निशा से बहुत उम्मीदें हैं। पहली तो यही कि लडके का घूमना बन्द हो जाये। वे भूल जाते हैं कि लडके ने अपनी पसन्द की लडकी से विवाह किया है, यह सब पहले ही इंतजाम किया होगा। अब मेरा काम निशा को घुमक्कडी सिखाने का है। घुमक्कडी के कुछ उसूल हैं, निशा उन सबको बहुत जल्दी सीख जायेगी। वह मुझसे ज्यादा तंदुरुस्त है, मुझसे अच्छी मोटरसाइकिल भी चलानी जानती है। बर्फ पिघलने लगेगी, उसे हाई एल्टीट्यूड का अनुभव कराऊंगा। ट्रेनों में कैसे यात्रा करते हैं, भीड में कैसे जाते हैं, रात में कैसे जाते हैं, जगह न मिले तो कहां सोना चाहिये; वह सब जानती है। पहले मैं अकेले जाया करता था, अब एक जैसे दो हो जायेंगे।
अब एक सन्देश उन मित्रों के लिये जो किसी से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं। पहली शर्त तो यही है कि आप अपने पैरों पर खडे हों। अगर लडका लडकी दोनों अपने पैरों पर खडे हों, तो कोई ताकत नहीं है जो आपको रोक सके। अगर घरवालों को भी साथ लेकर चलना चाहते हैं तो धीरे-धीरे करके थोडा-थोडा करके उनके भी कान में डालते रहना चाहिये। अचानक सबकुछ बताओगे तो बवाल मच जायेगा। आपको इस तरह बताना है कि उन्हें पता भी चल जाये और बवाल भी न मचे। जैसे कि जब मैंने पहली बार अपने घर पर बताया तो कैसे बताया था- “मेरे एक जान-पहचान वाले हैं। मेरा लिखा पढते हैं, बडी इज्जत करते हैं। आना-जाना भी है। एक-दो बार गया हूं उनके यहां।” बस, इतना बताया। कुछ दिनों बाद इससे आगे की बात जोडी- “वे भी जाट हैं। लेकिन मुझे लग रहा है कि वे अपनी लडकी का रिश्ता मुझसे करना चाह रहे हैं। मुझे लगा ऐसा।” घरवालों को करंट सा लगा- “उनके चक्कर में मत पडना। उनके यहां जाना बन्द कर दे।” मैंने कहा- हां ठीक है। उन्होंने कहा तो नहीं। बस, मुझे लगा तो आपको बता दिया।”
इतना काफी था। उनके पास सन्देश पहुंच गया और तूफान भी नहीं मचा। इसके बाद बडी शान्ति रही। मैंने घोषणा कर दी कि विवाह नहीं करूंगा। घरवाले परेशान रहने लगे। इसी तरह सालभर निकल गया। बस, फिर एक दिन मुझे गढमुक्तेश्वर के मेले में अपने छोटे से बातूनी भतीजे को लेकर गंगा पार करनी पडी, वहां निशा से मिलना पडा, निशा ने आइसक्रीम खिलाई और काम हो गया। बिना सिखाये-पढाये भतीजे ने अपना काम बखूबी किया- पापा जी, बाबा जी, रास्ते में नीरज चाचा की एक दोस्त मिली थी, उसने हमें आइसक्रीम खिलाई, हमारे एक भी पैसे ना लगे। ये देखो, आइसक्रीम भी खा आये और बीस रुपये ज्यों के त्यों हैं। उसने कहा था कि हमने फ्री में आइसक्रीम खाई लेकिन सब बडों को सुनाई दिया कि नीरज की भी कोई दोस्त है। फिर तो उन्हें यह भी पता चल गया कि जाट है, एम-एड कर रही है, उसके पापा सीआरपीएफ में हैं, नीरज को पसन्द है। इतना काफी था।
हवा चल गई और तूफान भी खडा नहीं हुआ।
इसी तरह निशा ने किया। वह भी अपने घरवालों से उतना ही डरती थी, जितना कि कोई आम भारतीय लडकी डरती है। मेरे कहने पर उसने एक बार अपने घर पर कहा- पापा, आज नीरज ने बात की। उसने ये कहा, वो कहा। बस, शुरूआत के लिये इतना काफी था। हवा चलनी चाहिये। फिर बडे दिनों बाद, मेरे बहुत जिद करने पर निशा ने अपने पापा से कहा- “पापा, नीरज का फोन आया था। वो मुझसे शादी करना चाहता है। मैंने कह दिया कि पापा से पूछकर बताऊंगी।” तब उसके पापा ने कोई जवाब नहीं दिया। लेकिन हम जो सन्देश उन्हें देना चाहते थे, वो उन तक पहुंच चुका था। फिर एक महीने बाद दोबारा निशा ने यही बात पूछी कि नीरज को क्या जवाब दूं? आप कहो तो मना कर दूं? उसके पापा ने कहा कि मना मत कर।
हमें और क्या चाहिये था। हवा चल गई और तूफान भी खडा नहीं हुआ। हालांकि उसकी मम्मी राजी नहीं हुईं। इसीलिये आखिरकार सब तरह से मान-मनौव्वल करके हमें आर्य समाज मन्दिर में शादी करनी पडी। रही बात आने-जाने की तो आना-जाना तो जुड ही जायेगा। उसकी मम्मी आखिरी समय तक यही माने बैठी रहीं कि हमारी लडकी है, हम जो चाहें इसके साथ करें। अब उनका भी भ्रम टूटेगा। घर के बाकी सदस्य पहले ही राजी थे। बस एक सदस्य को ही राजी होना था। फिर समाज में सन्देश जायेगा कि इनकी लडकी घर से भाग गई है। बडी बदनामी की बात है यह। आना-जाना तो हो ही जायेगा, इसमें कोई शक नहीं। और यह भी हो सकता है कि हमारी दोबारा शादी हो जाये। समाज को दिखाने के लिये हो सकता है कि निशा के घरवाले उस तरीके से शादी करने को सहमत हो जायें जिस तरीके से हम सालभर से कहते आ रहे थे। मैं तो इसके लिये भी तैयार बैठा हूं। निशा बेचारी अपने भाई को छोडकर आई है, बहनों को छोडकर आई है। ये सब हमेशा उसके साथ थे। जितनी जल्दी आना-जाना शुरू हो जाये, उतना ही अच्छा।
गांव में गृह-प्रवेश |
रोहित, जाटराम, जॉनी और सचिन जांगडा |
डायरी के पन्ने - 29 .......... डायरी के पन्ने - 31
niraj ji sadi ki bhut bhut badhaie ho,,,,,,,,,,,,,
ReplyDeleteधन्यवाद आपका...
Deleteमाँ बाप को बच्चों की शादी का बहुत चाव होता है , आशा है निशा की माता जी बहुत जल्दी आपको बुलावा भेजेंगी।
ReplyDeleteधन्यवाद शर्मा जी...
Deleteneeraj fb pe Bhanwar Thalor ki friend requst add kro,,,,,,,
ReplyDeleteकर ली...
Deleteनीरज भाई
ReplyDeleteआपका वैवाहिक जीवन मंगलमय हो, ईश्वर से यही प्रार्थना है.!
धन्यवाद अरुण भाई...
Deleteनीरज भाई शादी की बधाई...
ReplyDeleteमै नही आ सका कारण आपको बता ही दिया था..पर जल्द ही मिलते है..
बिल्कुल भाई...
Deleteनीरज जी,
ReplyDeleteविवाह की बहुत बहुत शुभकामनाएं. अपने पूरे परिवार सहित ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ की आप के लिए ये बंधन मंगलमय हो और आपके जीवन में ढेर सारी खुशियाँ व्याप्त रहें. आपके विवाह में सपरिवार शिरकत करने की बहुत तमन्ना थी, लेकिन दोनों बच्चों की परीक्षाएं २१ फरवरी से शुरू हो रही थी सो ये ख्वाहिश अधूरी ही रह गई. खैर जल्द ही आप और निशा जी से मिलने का प्रयास करेंगे. एक बार फिर शादी की असीम शुभकामनाएं।
मुकेश ......
धन्यवाद भालसे साहब। आपको आज यानी 2 मार्च को दिल्ली आना था लेकिन किन्हीं कारणों से नहीं आ पाये। अगली बार कार्यक्रम बने तो जरूर सूचित करना...
Deleteबधाइ ह विवाह की...उम्मीद थी की विवाह का आमंत्रण मिलेगा. . पर ..चलो कोइ बात नहीं.. बहुत खुशी हुई.. मेरी शुभकामनाए है आप दौनो के साथ..तो एकसाथ पहली विवाहोपुरांत यात्रा की योजना कब और कहा की है।
ReplyDeleteआपकी मित्र
आशिष गुटगुटिया
धन्यवाद आशीष जी...
Deletebhai eshi post ka intzar tha hamari
ReplyDeletetharf se aap dono ko baadahi ho
धन्यवाद गुप्ता जी...
Deleteबहुत-बहुत बधाई - चिर जीवै जोड़ी जुरै कस न सनेह गँभीर ..!
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतिभा जी...
Deleteजबरदस्त कार्यक्रम रहा।
ReplyDeleteसचिन भाई, आप आये। बहुत अच्छा लगा।
Deleteनीरज भाई !
ReplyDeleteआप दोनों को एक बार फिर से विवाह की ढेरों बधाइयाँ ! वैवाहिक जोड़ा बहुत ही सुंदर है ! मेरी तो ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वो आपकी हर मनोकामना पूर्ण करे और आपका वैवाहिक जीवन मंगलमय हो ! उम्मीद है कि विवाह के उपरांत भी लेखों का ये सिलसिला यूँही चलता रहेगा !
धन्यवाद चौहान साहब...
Deleteबहुत-2 बधाई व शुभकमानाएँ!
ReplyDeleteधन्यवाद रविशंकर जी...
Deleteनीरज जी आपकी शादी का वर्णन पढ़ कर बहुत ख़ुशी हुई भगवान आपकी को बहुत खुशियां दे अब आपकी जिम्मेदारियां हैं अब तो सारे सफर जोडे में ही करने हैं। हमरी शुभ कामनाएं आपके साथ हैं
ReplyDeleteधन्यवाद निरंजन जी...
Deleteआपका पोस्टल एड्रेस लिखें शादी का उपहार भेजना है
ReplyDeleteDear Neeraj,
ReplyDeleteMany -2 heartily congratulation. May God bless you both.
Keep traveling and keep writings-- Naresh Sehgal
धन्यवाद नरेश भाई...
Deleteनीरज जी शादी की बहुत बहुत बधाई, भगवान् आप दोनों को सुखी रखे, और लम्बी उम्र दे, दूधो नहाओ, पूतो फलो....
ReplyDeleteधन्यवाद गुप्ता जी...
Deleteआप और भाभीजी दोनों को शादी की ढेर सारी बधाईयाँ नीरज भाई।
Deleteआप का वैवाहिक जीवन हमेशा सुख शान्ति पूर्वक रहे ये भगवान् से कामना है।
विवाह विशेषांक पोस्ट बहुत ही शानदार बन पडी है सुन्दर फ़ोटो।और प्रेम विवाह करने वालो को 1 नयी राह दिखाई है।
1 बार फिर से अनेको शुभकामनाएं।
badhai ho badhaai! bhaiya aur bhabhi ko
ReplyDeleteआपको भी...
DeleteCongratulations!
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteho gaya kaam, vivahit jaatraam.
ReplyDeleteab training shuru karwa do neeraj
baisakhi ke baad bas pahad aur tum dono ;)
बैसाखी तो दूर है भाई... होली के बाद की ही योजना है।
Deleteनीरज भाई दूल्हे के भेष में एकदम हीरो लग रहे हो ;)
ReplyDeleteआप दोनों की जोड़ी बहुत प्यारी लग रही है ,भगवन करे आप लोग सदा प्रसन्न रहें
प्यार करने वालो के लिए जो सलाह दी आपने , पढ़ के दिल बाग़ बाग़ गार्डन गार्डन हो गया :D
हमारे समाज में प्रेम विवाह करना एक जंग है ,जिसे जीतने के लिए आपका ये रामबाण अचूक तरीका है
बहुत बहुत बधाइयाँ !
धन्यवाद पाण्डेय जी...
Delete"Congratulations to you both and
ReplyDeletemay you carry the joy of this happy day
close to your heart as you journey
the road of life together."
-manish
धन्यवाद मनीष जी...
Delete"May you always feel as close as you do this day.
ReplyDeleteMay your lives be graced with good health.
May you always find happiness in you home
and may it be refuge from the strome of life.
May you love grow ever stronger as your lives together,
and may your future be even more wonderfull than
your dreamed possible."
-Manish Pal
आपने मेरे सपनो की शादी की है। हम जैसे लोग जो सोचते है उसको आपने हक़ीक़त कर दिखाया। प्रेम से परे कोई जीवन नही। दिल से बधाई।
ReplyDeleteमोनू सिंह सिसौली ,मुज़फ्फरनगर।
धन्यवाद मोनू जी...
Deleteविवाह की बहुत बहुत शुभकामनाएं. सॉरी भाई आ नहीं सका.ईस के लिय माफ़ी चाहूँगा .
ReplyDeleteकोई बात नहीं अशोक भाई, अब आ जाना।
Deletebahut bahut badhai ho... shadi ki
ReplyDeleteneeraj ji ...
chalo kahi se to shuruaat hui ..
धन्यवाद पूजा जी...
Deleteबहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाऐं।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्ञानी जी...
DeleteHeartfelt congratulations on your marriage. May your bonding last forever, and should it ever change, may it change to a firmer and better one.
ReplyDeleteधन्यवाद राठौड साहब...
Deleteनीरज जी....
ReplyDeleteआपको विवाह की हार्दिक शुभकामनाएं .सहित .....
आपकी यह विवाह विशेषांक पोस्ट बहुत शानदार लगा....
धन्यवाद गुप्ता जी...
Deleteबहुत बहुत बधाई नीरज भाई । ईश्वर आप को सुख समर्द्दि दे ।
ReplyDeleteधन्यवाद अमित जी...
DeleteNeeraj bhai bahut bahut shubhkamnayen.aapki ye khoobsurat jodi hamesha bani rahe.mithai to hamari bhi banti hai mere bhai hum bhi aapke subhchintak hain,khair koi nahin aap hamesha khush raho .ishwar se yahi prarthna karte hain.koi dukh aapko chu bhi naa paye.uperwale ki kirpa aap par bani rahe.bahut bahut badhai.
ReplyDeleteधन्यवाद रूपेश जी...
Deleteबहुत बहुत बधाई नीरज भाई
ReplyDeleteधन्यवाद विनय जी...
Deleteनीरज भाई...आप दोनों की जोड़ी हमेशा सलामत रहे...........
ReplyDeleteधन्यवाद अजय जी...
Deleteलगे हाथ दो के चार हुये आप !... शु भ का म ना ए !!...
ReplyDelete*****************************************************************************************************************
घर संसार यह भी एक घुमक्कडी है !!!...
मराठी में कहते है ........ " लक्ष्मी नारायण चा जोडा " (लक्ष्मी नारायण की जोडी)
धन्यवाद भवारी साहब...
Deleteआपका वैवाहिक जीवन मंगलमय हो, आप सपरिवार हमेशा खुश रहे ,ईश्वर से यही प्रार्थना है.! जिस प्रकार आप का पर्यटन यात्रा काफी रोचक और जानकारी भरा होता है उसी तरह आप के शादी की पूरी घटना क्रम किसी सस्पेंस वाली पिक्चर से कम नहीं है,आप के जीवन पर यदि कोई फिल्म बनाना चाहे तो कई सिकुएंस वाली फिल्म बनानी पड़ेगी ,यह विवाह स्पेशल डायरी किसी बड़े बड़े हीरो के शादी को फ्लॉप करने के लिए काफी है,आपको विवाह की हार्दिक शुभकामनाओ सहित,
ReplyDeleteधन्यवाद विमलेश सर...
Deleteबडे देवताओं से ज्यादा ऊधम ये छोटे देवता मचाते हैं- क्षेत्रपाल देवता जिसे हमारे यहां भुमिया कहते हैं; कुछ मर चुके परिजन हैं, वे भी बहुत ज्यादा ऊधमी होते हैं।
ReplyDelete...............
shadi ki badhai :)
धन्यवाद आपका...
Deleteबहुत बहुत बधाई हो..
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी...
Deleteनीरज भाई शादी की शुभकामनायें।
ReplyDeleteनीरज, जिस सादगी एवम बिना दहेज़ के शादी की है वो समाज के लिये एक मिसाल है।आपने जो दावत अपने गाँव में दी थी वो बहुत हि स्वादिष्ट थी। रसगुल्ले तो बहुत हि मीठे थे। ईश्वर आपके दाम्पत्य जीवन ऐसी हि मिठास ता उम्र बनाये रखे।
योगेश व् शालिनी कनास्ल
सर जी, आप आये, बहुत अच्छा लगा। धन्यवाद आपका।
DeleteShadi ki bahut bahut shubhkamnaye Neeraj Ji...
ReplyDeleteधन्यवाद सुरेन्द्र भाई...
DeleteShadi ki bahut bahut shubhkamnaye Neeraj Ji...
ReplyDeleteNeeraj bhai shadi ki bahut bahut badhai..
ReplyDeleteधन्यवाद गुप्ता जी...
Deleteबहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाऐं।
ReplyDeleteधन्यवाद आपका...
DeleteAs I mentioned in my comment on the last post, that I was excitedly looking forward to his post and you’ve not disappointed us.
ReplyDeleteMany congratulations to you and everyone in your family.
Life is a series of challenges and adventures, and tackling them heads-on makes life worthwhile.
Congratulations to both of you on overcoming one of the main challenges life throws at us.
Sorry, I cannot stop myself from giving an unwanted piece of advice – always remember to NOT take any relationship for granted, especially marriage.
To put across the point in a traveler’s language – ‘Marriage is not a destination, it is a journey, and requires all kinds of adjustments and commitments on regular basis.’
May God bless you brother, and good luck.
आपका बहुत बहुत धन्यवाद सन्दीप भाई...
Deleteshadi ki bahut badhai neeraj bhai
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी...
Deleteneeraj bhai shadi ki hardik badhai .ye khoobsurat jodi hamesh khush rahe. Nisha ko jamene bhar ki khusi dena all di best
ReplyDeleteधन्यवाद माथुर साहब...
Deleteनीरज भाई शादी की ढेरों बधाइयाँ..
ReplyDeleteथैंक्यू भैया जी...
Deleteनीरज भाई शादी की बधाई वैवाहिक जीवन मंगलमय हो
ReplyDeleteशुभकामनाओ के साथ
संजय भास्कर
धन्यवाद संजय भाई...
Deleteबहुत ही शानदार
ReplyDeletehttp://puraneebastee.blogspot.in/
@PuraneeBastee
वाह वाह...
Deleteबहुत बहुत शुभकामनाएँ नीरज भाई....
ReplyDeleteधन्यवाद शर्मा जी...
Deleteबहुत बहुत शुभकामनाएँ
ReplyDeleteधन्यवाद शेखावत साहब...
Deleteशादी की बहुत शुभकामनाएं नीरज जी...... आपने अत्यंत समझदारी से काम लेकर एक कठिन डगर पार की है आगेभी सब अच्छा ही होगा।
ReplyDeleteआपके यात्रा वर्णन की तरह डायरी लेखन भी बहुत अच्छा है । अत्यंत रोचक एवं प्रवाहपूर्ण ।
धन्यवाद स्वाति जी...
Deleteनीरज जी नमस्कार! हम तो आपकी डायरी ही पढ़ रहे थे? लेकिन जैसे जैसे डायरी अपने अन्तिम पड़ाव पर पहुँच रही थी तब पता चला कि आप कि शादी हो गयी। अब देखना है कि आप अकेले ही यात्रा पर जायेगे या साथ-साथ?
ReplyDeleteशादी कि बहुत बहुत शुभकामनाएं।।
अब अकेले तो नहीं जायेंगे। यह निश्चित है।
Deleteहार्दिक शुभकामनाएँ भाई...यायावरी चलती रहे...:)
ReplyDeleteधन्यवाद विपिन भाई...
Deleteबहुत बहुत बधाई हो नीरज-निशा -- मुझे निमंत्रण नहीं दिया इस बात का बहुत दुःख हुआ । साथ ही जब अतुल के द्वारा तुम्हारी शादी का पता चला तो मैंंने ख़ुशी से बधाई देने के लिए बहुत फोन किये पर तुमने रिसीव करना भी जरुरी नहीं समझा । खेर खुश रहो ।
ReplyDeleteदर्शन जी, मैंने किसी को भी निमन्त्रण नहीं दिया था। जो भी मित्र आये, उन्हें एक दिन पहले फेसबुक से ही पता चला, आपको नहीं चला होगा। इसमें दुख करने की कोई बात नहीं है। अतुल के द्वारा पता न चलता तो आज यह पोस्ट पढकर पता चल गया होता। इसमें छुपाने जैसी कोई बात नहीं है। रही बात फोन की तो प्रत्येक फोन मैं उठा रहा था, हो सकता है कि एकाध फोन व्यस्तता के कारण न उठा पाया होऊं। उसके लिये क्षमा चाहता हूं। आप दिल्ली आइये, नहीं तो किसी दिन हम मुम्बई आयेंगे।
Deleteनीरज जी, मेरी तरफ से आपको शादी बहुत-बहुत मुबारक हो।
ReplyDeleteधन्यवाद।
ईश्वर दुल्हा -दुल्हन को लंबे जीवन, प्रतिभा, संपति तथा दुनिया का नेतृत्व प्रदान करने की शक्ति दे। May the lord bless the bride and the groom with long life, vigour, brilliance, possessions and the leadership of the world .
ReplyDeleteshadi ki shubhkamnayen
ReplyDeleteविवाह की बहुत बहुत शुभकामनाएं !
ReplyDeleteभाई आपको शादी की बहुत बहुत मुबारकबाद। अल्लाह आपको और आपकी पत्नी को दुनिया भर की खुशियाँ दे दे।
ReplyDeleteHi Niraaj Ji, Shaadi bahut bahut mubarak ho, aap ne shadi ko jis tarah bilkul sade andaz me kiya, aur hamare sath badi imandari se share kiya mai to is pe fida ho giya, jaise hum sub aap ke faimly member hon,
ReplyDeletethere is many ,lesson for others also, jaise love guru ke gun,,pita ji ke aader,o hanste rahe, bhai ka kheyal,ahi to hamari sanskriti hai,,
aap and Mrs. ki life me barkat ho, ab dono travell karoge to aur maja ayega,, waiting for other topice,, best of marriage life,, sweet couple,
Moti allah from Riyadh , Saudi Arabia
neeraj ji aur nisha ji ki jodi ekdum perfect lag rahi hai ...bahut bahut badhai.............ANAND INSHAN
ReplyDeletesubh-vivah ki bhut -bhut maglkamna/ niraj-nisha ki jodi kyamt tk kayam rhe/subh- asirvad
ReplyDeleteविवाह की बहुत बहुत शुभकामनाएं !
ReplyDeleteMany congratulations to you and Nisha. I have been avid reader of your blog and travelogues and through your vivid description of your journeys, i have been able to understand and see my country in better perspectives. Though,you may not know me, but through your great travelogues, i have known about you a little and i feel indebted for the job you have done in bringing entire travel experiences, people, beliefs and the entire journey of life in words.
ReplyDeleteI have always felt admiration for your writing style;crisp ,down-to-earth,witty,downright and most important,honest. You narrative of your own marriage to be revered. It is difficult to take own decisions on marriages in western U.P. and you have done a commendable job by bringing two family together in a very smart and wise way. My blessings to you and Nisha and I wish you both have lots of happiness, joy and plenty of ghumakkari.
Regards,
Mayank Khanduri
बहुत बहुत शुभकामनाऍ नीरज जी, आपका वैवाहिक जीवन हर पल खुशियों से भरा रहे,अब यात्राओं मे खतरे कम उठाऍ । हार्दिक मंगलकामनाऍ
ReplyDeleteआज मैंने मानो अब तक की सबसे प्यारी पोस्ट पढ़ी है .जाने कैसे इसे पढ़ने से वंचित रह गई . मैं कल ही जब टीवी पर 'चेन्नई एक्सप्रेस 'मैं अपनी छोटी पुत्रवधू से आपका ही जिक्र कर रही थी और यह भी कि शायद इनका विवाह नहीं हुआ है वरना कहीं न कहीं पत्नी का उल्लेख जरुर करते फिर एक विवाहित व्यक्ति पर्यटन के लिए इतना उन्मुक्त नहीं हो सकता ( आपके पिताजी भी यही सोचते थे न ) . आज यह पोस्ट पढ़कर मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे ही पुत्र का विवाह हुआ है सबसे बड़ी प्रसन्नता यह कि सौ.निशा आपकी इस रुचि में आपके साथ है . मेरी और से दोनों को ढेर सारी शुभकामनाएं . जीवन ऐसे ही साथ साथ चलते और हँसते -हँसते बढ़ता रहे .
ReplyDeleteरहा सवाल इस विवरण की तो यह किसी स्तरीय साहित्य से कम नहीं . यही कारण है कि आपके इतने सारे पाठक हैं . ईश्वर आपको हर तरह की कामयाबी और खुशियाँ दे .
विवाह की बहुत बहुत शुभकामनाएं ! और बधाई! वैवाहिक जीवन मंगलमय हो!
ReplyDeleteNeeraj ji shadi ki bahut bahut badhai .mein hindustan gayaa thaa lekinbahut beemar rahaa aur net bhi nahin tha is liye mulakat nahi ho payee .Dukh hai .Aap dono ka jeevan sukh poorvak beetey yahi kamna ke saat
ReplyDeleteविलंबित बधाईयाँ और शुभकामनाएं, फ़ोटु मै देख के तो लग रह्या है के ताऊ खुश है। :)
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