इन्दौर से जब महेश्वर जाते हैं तो रास्ते में मानपुर पडता है। यहां से एक रास्ता शीतला माता के लिये जाता है। यात्रा पर जाने से कुछ ही दिन पहले मैंने विपिन गौड की फेसबुक पर एक झरने का फोटो देखा था। लिखा था शीतला माता जलप्रपात, मानपुर। फोटो मुझे बहुत अच्छा लगा। खोजबीन की तो पता चल गया कि यह इन्दौर के पास है। कुछ ही दिन बाद हम भी उधर ही जाने वाले थे, तो यह जलप्रपात भी हमारी लिस्ट में शामिल हो गया।
मानपुर से शीतला माता का तीन किलोमीटर का रास्ता ज्यादातर अच्छा है। यह एक ग्रामीण सडक है जो बिल्कुल पतली सी है। सडक आखिर में समाप्त हो जाती है। एक दुकान है और कुछ सीढियां नीचे उतरती दिखती हैं। लंगूर आपका स्वागत करते हैं। हमारा तो स्वागत दो भैरवों ने किया- दो कुत्तों ने। बाइक रोकी नहीं और पूंछ हिलाते हुए ऐसे पास आ खडे हुए जैसे कितनी पुरानी दोस्ती हो। यह एक प्रसाद की दुकान थी और इसी के बराबर में पार्किंग वाला भी बैठा रहता है- दस रुपये शुल्क बाइक के। हेलमेट यहीं रख दिये और नीचे जाने लगे।
मानपुर से शीतला माता का तीन किलोमीटर का रास्ता ज्यादातर अच्छा है। यह एक ग्रामीण सडक है जो बिल्कुल पतली सी है। सडक आखिर में समाप्त हो जाती है। एक दुकान है और कुछ सीढियां नीचे उतरती दिखती हैं। लंगूर आपका स्वागत करते हैं। हमारा तो स्वागत दो भैरवों ने किया- दो कुत्तों ने। बाइक रोकी नहीं और पूंछ हिलाते हुए ऐसे पास आ खडे हुए जैसे कितनी पुरानी दोस्ती हो। यह एक प्रसाद की दुकान थी और इसी के बराबर में पार्किंग वाला भी बैठा रहता है- दस रुपये शुल्क बाइक के। हेलमेट यहीं रख दिये और नीचे जाने लगे।
यह वो सीमा है जहां मालवा का पठार समाप्त होने लगता है। उल्टा कहें तो मालवा का पठार शुरू होता है। पठार से निकलने वाली नदियां भी नीचे गिरती हैं और इस इलाके में कई बडे बडे प्रपात बन गये हैं। शीतला माता प्रपात भी ऐसा ही है। इस नदी का नाम ध्यान नहीं। इसके दोनों तरफ बिल्कुल सीधी खडी चट्टानें हैं। आपको नीचे जाने पर गहराई में जाने का एहसास होता है। एक गुफा भी है जहां शीतला माता का छोटा सा मन्दिर है।
नीचे जहां सीढियां समाप्त हुईं, वहीं दो पुलिसवाले बैठे थे। हमें कहीं प्रपात नहीं दिखा। उनसे पूछा कि प्रपात किधर है तो बताया कि प्रपात तो सामने हैं, पेडों के कारण यहां से नहीं दिख रहा लेकिन उधर किसी को जाने की अनुमति नहीं है। क्यों? क्योंकि इसी रविवार को वहां चार लडकों की मृत्यु हो गई तो प्रशासन ने किसी के भी उधर जाने पर रोक लगा रखी है।
जलप्रपातों पर यह एक बडी समस्या है कि कोई न कोई मरता रहता है। यह एक बडी भयानक स्थिति है। इसके बारे में सोचा जाना चाहिये। क्यों होता है ऐसा? क्योंकि लोगबाग उत्साहित हो जाते हैं और प्रपात पर ‘एडवेंचर’ की कोशिश करते हैं। पानी चूंकि ऊंचाई से गिरता है, इसलिये आसपास की चट्टानों और पत्थरों पर भी फिसलन हो जाती है। आप जितना प्रपात के नजदीक जाओगे, नमी और फिसलन उतनी ही ज्यादा मिलेगी। बस, फिसल जाते हैं। प्रपातों का एक ऊपरी भाग होता है और एक निचला। यहां पर्यटक निचले भाग पर जाते हैं, लेकिन जहां ऊपरी भाग पर जाना होता है, वहां स्थिति और भी विकट होती है। एक बार फिसले तो कई सौ फीट तक गिरना पडता है। पातालपानी इसी तरह का प्रपात है।
आपके बच्चे बडे होकर किसी पातालपानी से नीचे न गिरें या शीतला माता पर न गिरें, इसके लिये जरूरी है कि बच्चों को पांच-दस साल की उम्र में गिरने दें। मतलब ये कि उन्हें किसी उथली नदी पर ले जायें और खेलने-कूदने दें। निगाह अवश्य रखें। इस खेल-कूद के दौरान अगर वे गिरते हैं तो गिरने दें। भीगते हैं तो भीगने दें। छोटी-मोटी चोट भी लगे तो लगने दें। इससे बच्चा गिरने की सम्भावनाओं और इसकी हानियों के बारे में सीखेगा। अब चूंकि हम बच्चों को ऐसा नहीं करने देते तो बडे होकर जब वे किसी ऐसी जगह पर जाते हैं, तब वे करते हैं। तब वे छोटे छोटे पत्थरों पर नहीं कूदेंगे, तब वे बडी बडी चट्टानों पर चढेंगे। बिल्कुल बन्दर बन जायेंगे। जो उछल-कूद उन्हें बचपन में करनी चाहिये थी, वे अब करेंगे।
मैं इन चीजों का अनुभवी हूं। हम प्रपात तक तो नहीं जा सके लेकिन इसी नदी के उस तरफ एक पतली सी जलधारा ऊपर से गिर रही थी। अच्छी लग रही थी। निशा ने कहा कि वो नदी के पार जायेगी और मैं उसके उस जलधारा के पास खडी हुई के फोटो खींचूंगा। यहां बडे बडे पत्थर अवश्य थे लेकिन नदी लगभग समतल में बह रही थी। पानी का बहाव भी उतना ज्यादा नहीं था। सामने वाला वो जलप्रपात भी उतना बडा नहीं था कि उसके पास जाने में कोई खतरा हो। मैंने एक बार निशा को समझाया कि उस पार मत जा। जाने और आने में दो बार नदी पार करनी पडेगी। गिर जायेगी तो कपडे भीग जायेंगे। लेकिन निशा जिद करने लगी। खतरा कुछ नहीं था, मैंने जाने दिया।
यकीन मानिये, निशा ने खूब जोर लगा लिये, लेकिन पार नहीं जा सकी। वो पांच मीटर पानी में चल चुकी थी, लेकिन आखिर के दो मीटर उससे पार नहीं हुए। भीगी सो अलग। आखिरकार उसे लौटना पडा। इस छोटी सी बात से वो बहुत कुछ सीखी होगी, भविष्य में यही उसके काम आयेगा, अब वो शायद ही कभी ऐसी जिद करे। निशा को नदी पार करता देख तीन लडकों का एक ग्रुप आया और वे भी नदी पार करने लगे। वे भी ठीक उसी स्थान पर जाकर फंसे, जहां से निशा लौटी थी। एक लडका उस पार जाने में कामयाब रहा, बाकी दो को वापस लौटना पडा। उन्हें भी पानी की ताकत का अन्दाजा हुआ होगा। अब वे भी बडे जलप्रपात के सामने जाने पर कम से कम एक बार तो सोचेंगे जरूर।
प्रपात तक तो हम नहीं जा सके, यहीं नदी किनारे कुछ फोटो खींचे और फिर महेश्वर चले गये। महेश्वर का वृत्तान्त आप पढ चुके हैं। महेश्वर से वापसी में हम रुके जानापाव कुटी। यहां से चार किलोमीटर हटकर जानापाव पहाडी है। ऊपर तक अच्छी सडक बनी है। रास्ता घने जंगल से होकर जाता है।
कहते हैं कि यह नाम जमदग्नि के नाम पर पडा। यहां ऋषि जमदग्नि रहा करते थे और परशुराम का जन्म भी यहीं हुआ था। ऊपर पहाडी पर एक छोटा सा तालाब है। यह पहाडी लगभग 850 मीटर ऊंची है अर्थात मालवा के पठार की औसत ऊंचाई से काफी ज्यादा। इस स्थान की महत्ता इस बात से भी है कि यहां से कई नदियां निकलती हैं। चम्बल यहां से निकलती है, तो क्षिप्रा की एक सहायक नदी भी यहीं से निकलती है और चोरल नदी का उदगम भी यही कुण्ड है। मानसून का महीना हो और आप जानापाव पहाडी पर खडे हों तो चारों तरफ जहां भी निगाह जाती है, आपको केवल घनी हरियाली और उनके बीच में कहीं-कहीं जलाशय दिखेंगे। शानदार नजारा था। हम लगभग एक घण्टे तक यहां रहे। पूजा पाठ तो कुछ करना नहीं था। भुट्टे खाते रहे और चारों तरफ के नजारों का आनन्द लेते रहे।
चम्बल यहीं से निकलती है, यह सोचकर मैं रोमांचित था। कुछ दिन बाद जब हम घाटाबिल्लौद गये तो वहां जाते समय चम्बल पार करनी होती है। उस समय चम्बल में खूब पानी था। खूब चौडी भी थी। यकीन नहीं होता कि यही चम्बल केवल पचास किलोमीटर दूर से ही निकली है। इस पचास किलोमीटर में ही इसमें कई नदियां आकर मिल जाती हैं और पठार के काफी बडे हिस्से का पानी भी इसे मिल जाता है।
पौने छह बजे जानापाव से वापस चल दिये। अभी भी उजाला था जो करीब डेढ घण्टे तक रहने वाला था। मन में आया कि पातालपानी भी देख आते हैं। इस बार महू बाईपास से न जाकर महू शहर में चले गये। महू असल में एक सैनिक छावनी है। महू (MHOW) का अर्थ होता है मिलिट्री हेडक्वार्टर ऑफ वार। महू कोई नाम नहीं है, केवल ‘मिलिट्री हेडक्वार्टर ऑफ वार’ का संक्षिप्त रूप है।
तो कुछ तो गूगल मैप और कुछ पूछताछ करते-करते हम सात बजे पातालपानी पहुंचे। अन्धेरा नहीं हुआ था, लेकिन सूरज छिपने लगा था और तेजी से शीघ्र ही अन्धेरा हो जायेगा। कुछ समय पहले यहां एक भयानक त्रासदी हुई थी। लोगबाग प्रपात के ऊपर नदी की धारा में खेलकूद रहे थे। उस समय पानी बहुत कम था। अचानक पीछे से बहुत सारा पानी आया और उसमें पांच लोग बह गये। यहां बहने का अर्थ है सैंकडों फीट नीचे गिरना। वे जिन्दा नहीं बचे होंगे। अब प्रशासन ने यहां कुछ सुरक्षा प्रबन्ध किये हैं। रेलिंग लगा रखी है और किसी के पानी में जाने की मनाही भी है। हम थोडा और आगे जाकर प्रपात के सामने गये जहां से रेलवे लाइन गुजरती है। यहां से प्रपात अच्छा दिखता है। कम रोशनी होने के कारण ट्राइपॉड की कमी खल रही थी। उधर अभी किसी ट्रेन के आने-जाने का समय नहीं हुआ था। महू से खण्डवा और आगे अकोला तक मीटर गेज की ट्रेनें चलती हैं।
फिर तो अन्धेरा हो गया और हम वापस आ गये।
शीतला माता जलप्रपात के पास |
एक पतला सा प्रपात |
दूर से दिखता शीतला माता जलप्रपात। वहां किसी के भी जाने की अनुमति नहीं थी। |
थोडा और जूम करते हैं। |
जानापाव पहाडी पर जाने का मार्ग |
जानापाव पहाडी पर बना छोटा सा तालाब जिसके बारे में कहा जाता है कि चम्बल और कई अन्य नदियों का उदगम है। |
जानापाव पहाडी से दिखता दूर-दूर का नजारा। |
ऊपर जाने के लिये अच्छी सडक बनी है। |
पातालपानी जलप्रपात। ट्राइपॉड होता तो फोटो और भी अच्छा आता। |
अगला भाग: इन्दौर से पचमढी बाइक यात्रा और रोड स्टेटस
1. भिण्ड-ग्वालियर-गुना पैसेंजर ट्रेन यात्रा
2. महेश्वर यात्रा
3. शीतला माता जलप्रपात, जानापाव पहाडी और पातालपानी
4. इन्दौर से पचमढी बाइक यात्रा और रोड स्टेटस
5. भोजपुर, मध्य प्रदेश
6. पचमढी: पाण्डव गुफा, रजत प्रपात और अप्सरा विहार
7. पचमढी: राजेन्द्रगिरी, धूपगढ और महादेव
8. पचमढी: चौरागढ यात्रा
9. पचमढ़ी से पातालकोट
10. पातालकोट भ्रमण और राजाखोह की खोज
11. पातालकोट से इंदौर वाया बैतूल
वाह!! आपने कई जगह जो विवरण दिया है; जैसे महू का अर्थ हो या छोटे बच्चों के खेलने- कूंदने का महत्त्व बताया, बहुत सुन्दर! नीरजजी, मैने उस नॅरो गेज से यात्रा की है| वाकई मजा आता है| धन्यवाद.
ReplyDeleteधन्यवाद निरंजन जी...
Deleteवैसे वो नैरो गेज नहीं है, बल्कि मीटर गेज है।
Neeraj bhai good news he jo aap badi badi bate karne lage . Sundar yatra vivran he . Mano ki ham aapke sath chalte he .nice photos . Bhalse sir ke ghar gaye ya nahi janne ki aaturta he .
ReplyDeleteधन्यवाद उमेश जी...
Deleteभालसे जी के घर गये या नहीं, यह यात्रा वृत्तान्त का हिस्सा है। अगर गये होंगे तो वृत्तान्त में आयेगा, अन्यथा नहीं। stay tuned...
pataal paani waterfal ki photo mast aayi hai
ReplyDeleteधन्यवाद ज़ीशान जी...
Deleteमहू असल में एक सैनिक छावनी है। महू (MHOW) का अर्थ होता है मिलिट्री हेडक्वार्टर ऑफ वार। महू कोई नाम नहीं है, केवल ‘मिलिट्री हेडक्वार्टर ऑफ वार’ का संक्षिप्त रूप है।
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महू का अर्थ मुझे ही मालुम नही था .... यह महू वही है न///??? .. जहाँ भारतरत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का जन्म हुआ था
हां जी, यह वही महू है। डॉ. अम्बेडकर का जन्म यहीं पर हुआ था।
Deleteपातालपानी जल प्रताप का चित्र किसी भी प्रतिस्पर्धा में उच्च स्थान प्राप्त कर सकता है..शानदार, मजेदार ,जिंदाबाद
ReplyDeleteशीतला माता जाने का कई बार सोचा पर जा न सकी और टिनचा फॉल (बोलचाल भाषा )चोरल और पातालपानी सब बरसादि मेढ़क है यानी ये फॉल बरसाद में ही फलते फूलते है। जानापाव भी बारिश के मौसम में ही अच्छा लगता है । गर्मियों में तो हाल बेहाल है।
ReplyDeletegood
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