Skip to main content

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?




अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती।
ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर।
पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब इनकी मूल प्रति के साथ फोटोकॉपी भी। इसके अलावा बाइक आपके ही नाम पर होनी चाहिये।
ट्रेन के प्रस्थान समय से पर्याप्त समय पहले आप अपने प्रस्थान स्टेशन के पार्सल कार्यालय पहुँचिये। बाइक को पैक कराईये। आपका चेहरा देखते ही पार्सल कार्यालय के बाहर जमा दलाल आपको पहचान लेंगे। आप उनसे अपनी बाइक को पैक करा सकते हैं। नई दिल्ली पर इस काम के 150-200 रुपये लगते हैं। मोलभाव करने पर शायद कुछ कम हो जायें। टंकी में अगर थोड़ा-बहुत पेट्रोल भी होगा, उसे ये लोग अपने-आप निकाल देंगे। आप पेट्रोल और पैकिंग की तरफ़ से निश्चिंत रहिये। लेकिन दलाल आपको इतने तर्क देंगे कि आप विचलित हो जायेंगे और इनके चक्कर में भी आ जायेंगे। लेकिन आप सीधे पार्सल कार्यालय से एक फॉर्म लेकर इसे भरिये। अपने पहचान-पत्र व आर.सी. की फोटोकॉपी लगाकर कार्यालय में जमा कर दीजिये। आपसे पी.एन.आर. पूछा जायेगा, निर्धारित राशि ली जायेगी और आपको रसीद थमा दी जायेगी। इसका मतलब आपकी बाइक बुक हो गयी।
लेकिन बाइक बुक होने का अर्थ यह नहीं है कि जिस ट्रेन में आप यात्रा करने वाले हैं, बाइक भी उसी ट्रेन में भेजी जायेगी। प्रत्येक ट्रेन में लगेज के अमूमन दो डिब्बे होते हैं - एक सबसे आगे और दूसरा सबसे पीछे। एक डिब्बे में अधिकतम दो बाइकें ही लादी जा सकती हैं। यानी एक ट्रेन में अधिकतम चार बाइकें। यहाँ मुझे थोड़ा संदेह है। या तो एक डिब्बे में दो बाइकें जा सकती हैं या पूरी ट्रेन में दो बाइकें। चाहे कुछ भी हो, इसका अर्थ यह है कि अगर पहले ही पर्याप्त बाइकें इस ट्रेन के लिये बुक हो चुकी हैं, तो आपकी बाइक को इस ट्रेन से नहीं भेजा जायेगा। मुझे बताया गया कि कई बार तो बुकिंग इतनी ज्यादा हो जाती हैं कि नई दिल्ली पर एक-एक महीने बाद बाइकों को ट्रेन में चढ़ाने का नंबर आता है।
अब आते हैं दूसरे तरीके पर - बाइक को पार्सल में बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास टिकट होना आवश्यक नहीं है। सीधे पार्सल कार्यालय जाइये। बाइक की पैकिंग कराईये। फॉर्म भरिये, आर.सी. और अपने पहचान-पत्र की फोटोकॉपी लगाईये। निर्धारित शुल्क अदा कीजिये और बाइक बुक हो गयी। प्रोसीजर तो दोनों का लगभग एक-सा ही है। लेकिन आप आगे पढ़ेंगे तो लगेज व पार्सल में अंतर पता चल जायेगा।
आगे बढ़ने से पहले एक बात और बता दूँ। कोई ट्रेन दिल्ली से हावड़ा जा रही है। इसमें दिल्ली से हावड़ा के लिये दो बाइक लोड़ कर दी गयीं। यानी अब इस ट्रेन में और ज्यादा बाइकें नहीं चढ़ायी जा सकतीं। आप अगर कानपुर से अपनी बाइक की बुकिंग करेंगे तो पता नहीं हावड़ा पहुँचने में कितना समय लग जायेगा। इलाहाबाद से बुक करेंगे, तब भी पता नहीं। क्योंकि लगेज वाला डिब्बा पीछे से ही पूरा भरा आ रहा है। नंबर दो बात - यदि आपने हावड़ा जा रही ट्रेन में अपनी बाइक पटना तक ही बुक की, तो शायद इसे पटना में न उतारा जाये। धनबाद तक बुक की है तो शायद धनबाद में न उतारा जाये। क्योंकि ट्रेन का ठहराव 5 मिनट का है, और इतने समय में लगेज वाले डिब्बे का केवल दरवाजा ही खुलता है। तो काफी संभावना है कि आपकी बाइक आगे कहीं उतारी जायेगी और दूसरी किसी ट्रेन से या लोकल ट्रेन से वापस धनबाद लायी जायेगी। इसलिये बेहतर है कि बाइकों की बुकिंग हमेशा एंड-टू-एंड ही करें। भले ही आपको अपनी योजना में कुछ फेरबदल ही क्यों न करना पड़े। आपको बाइक पटना ले जानी है तो हावड़ा जाने वाली या गुवाहाटी जाने वाली किसी भी ट्रेन में बुकिंग न करें, केवल पटना तक जाने वाली ट्रेन में ही बुकिंग करें।




मुझे भी अपनी बाइक ले जाने से पहले इतनी ही जानकारी थी। आप इंटरनेट पर सर्च करेंगे तो यही जानकारी मिलेगी। मेरा दिल्ली से गुवाहाटी का हवाई टिकट बुक है - 7 नवंबर 2017 का। आज थी 1 नवंबर 2017। यानी मैं गुवाहाटी तक ट्रेन से नहीं जाऊंगा। तो योजना बनायी कि बाइक को नई दिल्ली से डिब्रूगढ़ तक भेजते हैं। डिब्रूगढ़ तक केवल तीन ही ट्रेनें हैं - राजधानी, ब्रह्मपुत्र मेल और अवध असम। अवध असम पीछे से आती है, इसलिये इससे बाइक भेजना मैंने सोचा तक नहीं। बची राजधानी और ब्रह्मपुत्र मेल। ब्रह्मपुत्र मेल के मुकाबले राजधानी में बाइक भेजना 25 प्रतिशत महंगा पड़ता है, लेकिन मैंने राजधानी से ही फाइनल किया। ब्रह्मपुत्र मेल बहुत ज्यादा स्टेशनों पर रुकती है। बहुत ज्यादा सामान चढ़ाया भी जायेगा और बहुत ज्यादा सामान उतारा भी जायेगा। इससे बाइक को नुकसान पहुँच सकता है। दूसरी बात, भूलवश बाइक को बीच में किसी स्टेशन पर उतारा भी जा सकता है। बाद में भूल-सुधार करके अगले दिन या चार दिन बाद भेज देंगे। इसके विपरीत राजधानी कम स्टेशनों पर रुकती है। महंगा सामान ही इससे ट्रांसफर किया जाता है, तो बाइक भली प्रकार डिब्रूगढ़ पहुँच जायेगी।
हमें हमेशा हर परिस्थिति के लिये तैयार रहना चाहिये। दूसरों को दोष देने से बेहतर है परिस्थिति को स्वीकार करना।
...
एक घनिष्ठ मित्र के माध्यम से नई दिल्ली पार्सल कार्यालय में जान-पहचान हो गयी। पार्सल कार्यालय जाते ही बाइक पैक हो गयी। इसी में हमने टंकी पर चिपकाया जाने वाला टैंक बैग और हवा भरने वाला पंप भी पैक कर दिया। साथ ही पंचर किट व ज़रूरी टूल भी। हेलमेट भी पैक करने का मन था, लेकिन मना कर दिया गया।
लेकिन सभी काम हमारे चाहने भर से नहीं हुआ करते। हमारे सामने भी एक समस्या आ गयी। बात ये है कि दिल्ली एन.सी.आर. में पार्सल की बुकिंग रेलवे नहीं करता, केवल लगेज की ही बुकिंग करता है। पार्सल और लगेज क्या होता है, वो आपको बता ही चुका हूँ। हमें अपनी बाइक पार्सल में ही बुक करनी थी। यहाँ से देशभर के लिये बहुत ज्यादा सामान बुक होता है, तो रेलवे ने पार्सल बुकिंग को लीज़ पर दे रखा है। इसके लिये रेलवे टेंडर निकालता है। जो ठेकेदार सबसे ज्यादा बोली लगाता है, उसे ही ठेका मिलता है। कई बार तो केवल एक डिब्बे का ठेका डेढ़ लाख रुपये तक लग जाता है।
मैंने पूछा - “डेढ़ लाख रुपये वार्षिक या मासिक?”
उत्तर मिला - “दैनिक।”
मेरी आँखें फटी रह गयीं। डेढ़ लाख रुपये एक डिब्बे का एक दिन का ठेका! अमूमन दो डिब्बे होते हैं - एक डिब्बा ठेकेदार को दे दिया जाता है और दूसरे डिब्बे में रेलवे स्वयं लगेज बुकिंग करता है। ज़ाहिर है कि ठेकेदार के रेट रेलवे के रेट से ज्यादा ही होंगे। यानी लगेज बुकिंग के मुकाबले पार्सल बुकिंग महंगी पड़ती है। यह नियम दिल्ली एन.सी.आर. में है, देश के दूसरे हिस्सों में कहीं है, कहीं नहीं है।
“तो जी, हम आपकी बाइक की बुकिंग नहीं कर सकते। एक बार ठेकेदार से बात करके उसके रेट पता कर लेते हैं।”
कुछ ही देर में ठेकेदार के रेट आ गये - नई दिल्ली से डिब्रूगढ़ तक राजधानी एक्सप्रेस में - दस हज़ार रुपये।
हमारे रेलवे वाले मित्र ने ठेकेदार से पूछा - “यार, तुम स्टाफ की बाइक को भी इसी रेट पर ही भेजोगे? कुछ तो डिस्काउंट दो यार।”
ठेकदार ने बताया - “साब, डेढ़ लाख रुपये की लीज़ है और हमारे पास माल की लाइन लगी पड़ी है। दस हज़ार से पंद्रह हज़ार तो कर सकता हूँ, लेकिन कम नहीं कर सकता।”
सन्नाटा।
अब क्या करें? क्या कहा आपने? कोई रास्ता ही नहीं है?
जनाब, दो रास्ते थे मेरे सामने उस समय। आप इस समय उस इंसान को पढ़ रहे हैं, जिसने अपनी ज़िंदगी समाधान-प्रधान बना रखी है, समस्या-प्रधान नहीं।
मोबाइल में फटाफट अंगूठा घुमाया। कुछ टाइप किया और एंटर मार दिया। संपर्क क्रांति, 200+ वेटिंग, 755 रुपये। सामने ही एक चार्ट था जिसमें विभिन्न स्थानों पर सामान भेजने की स्टैंडर्ड रेट-लिस्ट लगी थी। गुवाहाटी के रेट थे 2700 रुपये। 2700 में 755 जोड़ दिये - 3455 रुपये। 3500 मान लेते हैं।
“पार्किंग शुल्क कितना है?”
“10 रुपये घंटा।”
“यानी एक दिन के 240 रुपये और चार दिनों के 960 रुपये। 1000 मान लेते हैं। मैं अभी काउंटर से जाकर आज की संपर्क क्रांति का वेटिंग टिकट बनवाकर लाता हूँ। परसों यानी 3 तारीख़ को बाइक गुवाहाटी पहुँच जायेगी। हम 7 को पहुँचेंगे। गुवाहाटी में चार दिनों के 1000 रुपये पार्किंग शुल्क दे देंगे। कुल मिलाकर 4500 रुपये में बाइक गुवाहाटी पहुँच जायेगी।”
सन्नाटा।
दूसरा रास्ता था - बाइक नहीं ले जानी। तब क्या करते, वो बाद में सोचते।
“लेकिन आपको तो डिब्रूगढ़ भेजनी थी।”
“अब डिब्रूगढ़ तो भेजना संभव नहीं है। गुवाहाटी से ही काम चला लेंगे।”
“हाँ, यह भी ठीक है। लेकिन एक मिनट रुको। तब तो मैं संपर्क क्रांति के ठेकेदार से बात करके देखता हूँ।”
और बात बन गयी। ठेकेदार ने कहा - “साब, हम आपसे भी पैसे लेंगे क्या? जो मन करे, दे देना।”
2500 रुपये दे दिये।
“लेकिन संपर्क क्रांति तो 5 तारीख को भी है। बाइक को 5 वाली ट्रेन में ही चढ़ा देंगे, 7 को पहुँच जायेगी। क्यों 1000 रुपये पार्किंग शुल्क देना?”
“भूल तो नहीं जाओगे? ट्रेन में कहीं पहले से ही दो बाइक लद गयीं तो?”
“अरे नहीं, ऐसा नहीं होगा।”
और 5 तारीख़ की रसीद मिल गयी। 5 को बाइक पूर्वोत्तर संपर्क क्रांति में लाद दी जायेगी। यह 7 को गुवाहाटी पहुँचेगी। उसी दिन हम भी पहुँच जायेंगे और हाथोंहाथ बाइक छुड़ा लेंगे।
...




हम डेढ़ घंटे तक यहाँ बैठे रहे। इस दौरान बहुत-से यात्री आये, जिन्हें बाइक भेजनी थी। एक एक्स-सर्विसमैन थे। वे बंगलुरू से आये थे और पठानकोट जाना था। अपने बेटे की बाइक भी उनके साथ थी। बंगलुरू से पठानकोट की एक भी सीधी ट्रेन नहीं है, तो उस बाइक की बुकिंग नहीं हो सकी। बंगलुरू से नई दिल्ली तक की बुकिंग हो गयी और अब नई दिल्ली से पठानकोट के लिये उन्हें दोबारा बुकिंग करानी थी। लेकिन उनके पास ट्रेन का टिकट नहीं था। रही होगी कोई बात। ज़ाहिर है कि उन्हें भी बाइक की बुकिंग पार्सल में करानी पड़ेगी। और आप जान ही गये हैं कि नई दिल्ली से किसी भी ट्रेन में पार्सल बुकिंग नहीं होती।
“लेकिन मेरे बेटे ने बंगलुरू से नई दिल्ली तक इसे पार्सल में ही भेजा है। वहाँ तो यह आराम से हो गयी। और बेटे ने ही बताया था कि नई दिल्ली से भी इसी तरह हो जायेगी।”
“आपके बेटे ने ठीक किया था और आपको भी ठीक ही बताया है। लेकिन दिल्ली एन.सी.आर. में रेलवे पार्सल बुकिंग नहीं करता। आपको एजेंट के माध्यम से ही करना पड़ेगा।”
“यार, आप भी अज़ीब बात करते हो। एक ही विभाग है और अलग-अलग स्थानों के लिये अलग-अलग नियम।”
“सर, हम मज़बूर हैं। नहीं कर सकते।”
अब मैं बीच में बोल पड़ा - “सर, आप पठानकोट का सबसे सस्ता टिकट बुक कर लो। उसे यहाँ लाकर दिखा देना, आपका काम हो जायेगा।”
“हाँ जी, तब आपका काम हो जायेगा।”
उन्होंने बंगलुरू अपने बेटे से बात की, फिर क्लर्क से बात की, फिर बेटे से बात की और आख़िरकार वेटिंग टिकट लेने बुकिंग विंडो की तरफ चले गये।
...
एक आदमी ने आज ही नयी बाइक खरीदी थी और उसे लखनऊ भेजना था।
“आर.सी. दिखाओ।”
“सर, आज ही ली है। इसकी आर.सी. अभी नहीं बनी।”
“टेंपरेरी आर.सी. बन जाती है। अगर एजेंसी ने नहीं बनायी तो आपको बनवानी चाहिये थी। हम बिना आर.सी. के नहीं भेज सकते।”
“सर, देख लो। कुछ ले-दे कर काम बन जाये तो।”
“अरे, भगाओ इस आदमी को यहाँ से। नहीं होगा तेरा काम।”
...
एक आदमी और आया।
“टिकट है?”
“हाँ जी।”
“आर.सी. दिखाओ।”
“ये लो जी।”
“आई.डी. दिखाओ।”
“ये लो जी।”
“ये तो अलग-अलग नाम हैं। ये तुम्हारे क्या लगते हैं?”
“दोस्त हैं जी। उसकी बाइक को मैं ले जा रहा हूँ।”
“नहीं जा सकती। आप केवल अपनी ही बाइक ले जा सकते हो या ब्लड रिलेशन की। दोस्त की बाइक नहीं ले जा सकते।”
“दोस्त ने यह शपथ-पत्र भी दिया है।”
“दिखाओ।”
एक एप्लीकेशन निकालकर आगे कर दी। जिसमें उसके दोस्त ने कुछ लिखा था। मैंने ज्यादा ताक-झाँक नहीं की।
“हाँ, ठीक है। लोगबाग चोरी की बाइक न ले जा पायें, इसलिये ऐसा नियम है। अब आपने शपथ-पत्र दे दिया है तो अब आपका काम हो जायेगा। लाओ, टिकट लाओ।”
“ये लो जी।”
“लेकिन यह तो चार तारीख़ का है। चौबीस घंटे पहले ही बुकिंग होती है। आप तीन को आना या फिर चार को आना, ट्रेन चलने से कम से कम दो घंटे पहले।”
“आज ही कर दो सर। नहीं तो परसों फिर चक्कर लगाना पड़ेगा।”
“उधर देखो। कहीं जगह दिख रही है क्या? यह सब आज ही बुक हुआ सामान है। अगर हम कई दिन पहले ही बुकिंग करने लगेंगे तो हमारे पास इतनी जगह नहीं है कि इतना सामान रख सकें। आप तीन या चार को ही आना।”
...
और भी बुकिंग वाले आये, सबका वर्णन करना ठीक नहीं। जो ज्ञान आज मिला, वो आपके साथ बाँट दिया। अभी तक हमने डिब्रूगढ़ से बाइक यात्रा आरंभ करने की योजना बनायी थी, अब गुवाहाटी से यात्रा आरंभ होगी। योजना दोबारा बनानी पड़ेगी। अब अपने पथ में माज़ुली और काज़ीरंगा भी जोड़े जा सकते हैं। वापसी में जैसा भी मौका होगा, वैसी ही बुकिंग कर देंगे। डिब्रूगढ़ से भी बुकिंग कर देंगे, या फिर गुवाहाटी से भी। रेलवे पार्सल में बुक कर देगा तो ठीक, अन्यथा 755 रुपये का वेटिंग टिकट लेकर लगेज में रखवा देंगे। यह दिल्ली कभी भी आये, हमें कोई चिंता नहीं।
...
इस मामले में आपकी कोई जिज्ञासा हो, अवश्य पूछिये। मुझे पता होगा, ज़रूर बताऊंगा।



Comments

  1. यह एवरेस्ट पर्वत पर चढ़ने और पीक समय में रेलवे कन्फर्म टिकट लेने से भी कठिन काम है। सबके बस की बात नहीं।

    ReplyDelete
  2. Is par to short film ban sakti he ����

    ReplyDelete
  3. Bahut badiya jaankari di.

    Mein Apni cycle laya tha Kanpur to Delhi (ANVT) . Ticket thi to luggage me book ho gyi 30 Rs. Mein + packing ke 150 lage. Same Train me chadayi nhi unhone, ab next morning Anand Vihar aa gya to bole piche se aa jayegi Sham ko aana. Gurgaon chala gya jahan rehta tha. Next day aaya phir koi jawab nhi mila kahan h cycle. Phir 2 din Rishikesh Jake sidha Anand Vihar Pahuncha. Bole lao 500 rupaye time pe li kyun nhi.
    Phir wahan se Local me New Delhi - Gurgaon.

    System tough h, Bas Samadhan nikal lo apne kam ke liye wahi thik h.

    ReplyDelete
  4. बढ़िया जानकारी.......

    ReplyDelete
  5. Bahut badiya jaankari di NEERAJ JI

    ReplyDelete
  6. Bahut badiya sir ji purvotter ghumane ja rahe hai ab to bahut kuchh padhane ko mile ga aap ke madhyam se maja aa jayega happy juorny

    ReplyDelete
  7. Maine pri booking kar diya hai aap jo chahe likh dena sab manjur hoha

    ReplyDelete
  8. नीरज भाई इसका मतलब छोटे स्टेशन के लिए बाइक बुक नहीं की जा सकती?

    ReplyDelete
    Replies
    1. बुक की जा सकती है... लेकिन रेलवे वाले बाइक को पहले बड़े स्टेशन पर उतारेंगे और फिर लोकल ट्रेन से उसे छोटे स्टेशन पर भेजेंगे... इसमें ज्यादा समय लगता है...

      Delete
  9. मुझे तो बाइक भेजने की आवश्यक्ता नहीं है लेकिन मेरे एक मित्र को भेजनी है। उसके लिए यह आर्टिकल बहुत काम आएगा।

    ReplyDelete
  10. दो-तीन साल पहले बेटे की बाइक ट्रेन से बैंगलोर भेजा था, भोपाल से. कहीं ग़ायब हो गया था. वो तो उस वक्त प्रवीण पांडे जी बैंगलोर में थे, उनसे निवेदन किया तो उनकी कृपा से कुछ दिनों बाद ढूंढ-ढांढ कर दरियाफ़्त किया गया और फिर हासिल हुआ. जबकि कोई तीसेक साल पहले मैं अपनी स्वयं की गाड़ी बहुत बार ट्रेन से ले जाता था, कोई समस्या नहीं आती थी, और बेहद सस्ता पड़ता था. रेलवे में बहुत कचरा जमा हो गया है आजकल - समस्या की जड़ वही है - उपयोगकर्ता दिनों दिन बढ़ रहे, इनफ्रास्ट्रक्चर दो सौ साल पुरानी !

    ReplyDelete
  11. मुझे अपनी बाइक अमृतसर से फ़िरोज़ाबाद भेजनी है

    मेरे पास कन्फर्म टिकट भी है

    लगेज में भेजूं या पार्सल से?

    ReplyDelete
    Replies
    1. कन्फर्म टिकट है तो लगेज में ही भेजिए...
      लेकिन ज्यादा संभावना है कि बाइक फिरोजाबाद में 2 मिनट के स्टॉपेज में उतारी नहीं जाएगी... शायद कानपुर उतारकर किसी दूसरी ट्रेन से फिरोजाबाद लायी जाएगी...

      Delete
  12. नीरज भाई धन्यवाद बहोत काम आय आप का आर्टिकल

    ReplyDelete
  13. बहोत बहोत धन्यवाद आप का निरज भाई बहोत काम का आर्टिकल है ये

    ReplyDelete
  14. शुक्रिया नीरज

    ReplyDelete
  15. Muje but Bhopal se angul bejna tha ...

    ReplyDelete
  16. सर!मुझे अपनी 8 बोरी किताबें दिल्ली से इलाहाबाद भेजना है। किस तरह भेजना ठीक रहेगा और कहाँ से?

    ReplyDelete
  17. Sir mujhe Bathinda se Roorkee bike aur 4 boxer Kis Mein bhejna chahiye
    Kya dono ek Sath Baje Ja sakta hai ek ticket mein Kitna Paisa lag Jayega aur haan waiting ticket hai sir please bataiye

    ReplyDelete
    Replies
    1. भटिंडा से रुड़की ज्यादा दूर नहीं हैं... ट्रेन से भेजने में बहुत झंझट रहेगा। बेहतर यही है कि आप बाइक चलाकर ले जाइए।

      Delete
  18. Sir i have a confirmed railway ticket.. and want to parcel mu bike from kota to malda...
    no any direct train available from kota to malda...
    plz suggest me bike kaise bhijwau...

    ReplyDelete
    Replies
    1. किन ट्रेनों में आपके टिकट कन्फर्म हैं? आप इन ट्रेनों में बाइक को लगेज के रूप में बुक कर सकते हैं। लेकिन उसमें एक समस्या है। कोटा से चलने वाली ज्यादातर ट्रेनें कहीं पीछे से आएंगी, इसलिए उनका लगेज डिब्बा पहले से ही भरा होगा... दूसरी ओर, मालदा जाने वाली ज्यादातर ट्रेनें आगे कहीं जाएंगी, इसलिए आपकी बाइक को प्रायोरिटी नहीं मिलेगी...
      इसलिए लगेज के रूप में बुक कराइए और बाइक को भूल जाइए... कभी न कभी पहुँच ही जाएगी...
      तो मेरी सलाह है कि अगर आपको बाइक पहुंचानी बेहद जरूरी है, तो कोटा-मालदा के लिए रोड ट्रांसपोर्ट ही बेहतर है...

      Delete
  19. Sir mujhe AK purana fridge bhejna hai uska bill to nahi hai mere paas to usko kaise bheju usko

    ReplyDelete
    Replies
    1. कहाँ से कहाँ भेजना है???
      रेलवे में सामान की बहुत खराब तरीके से हैंडलिंग करते हैं... बहुत ज्यादा उठापटक होती है... तो आपका फ्रिज निश्चित रूप से टूट ही जाएगा...
      फिर भी अगर आपने भेजने का निश्चय कर ही लिया है, तो इसकी मजबूत पैकिंग कराइए और पार्सल ऑफिस ले जाइए... पार्सल ऑफिस के बाहर पैकिंग करने वाले मिल जाएंगे... बिल की जरूरत नहीं पड़ेगी...

      Delete
  20. Sir bike mera bhai k naam se h mujhe chittranjan station se pathankot cantt vejna h to . Vej skta hu ki nhi

    ReplyDelete
    Replies
    1. आप इसे पार्सल में भेज सकते हैं...
      लगेज में भेजने के लिए ट्रेन का टिकट और बाइक की आर.सी. एक ही नाम के होने जरूरी हैं...

      Delete
  21. Sir scooty kitna rupeeya kg charge krta he scooty ke sath jana jaruri he pls si btaye

    ReplyDelete
  22. मुझें बाइक शुजालपुर मध्यप्रदेश हज़रत निज़ामुद्दीन या नई दिल्ली से ले जानी है क्योंकि यही से एन्ड टू एन्ड ट्रैन है ग़ाज़ियाबाद स्टेशन पास है लेकिन सन्देह है कि कोई ट्रैन नही है
    साथ ही समस्त घरेलू सामान और बड़े समान जैसे कि डबल बेड, फ़्रिज़, कूलर, अलमीरा,इन्वर्टर है ।
    आनंदविहार से कोई स्पष्ट सन्तोषजनक जवाब नही दिया गया है कि पैसा कितना लगेगा लगेज होगा या पार्सल आपको या किसी अन्य को जानकारी हो तो कृपया साझा करें लगभग 10 से 12 हज़ार रुपये खर्च बता रहे है यदि मैं ट्रक से भेजता हूँ तो 18000 खर्च आ रहा है साथ ही स्टेशन से लाने ले जाने का लगभग 6000 रुपया भी बच रहा है कृपया जिसे भी जानकारी हो सहयोग करें और नीरज जी आपका बहूत बहूत धन्यवाद इतने विस्तार में जानकारी देने के लिए । आभार ।

    ReplyDelete
  23. Neeraj bhai Kiya bike Apne name se hi hona chahiye yadi brothers ke name se hai to nahi le jasakte hai Kiya ya fhir Kiya kare

    ReplyDelete
    Replies
    1. सर, अगर बाइक आपके भाई के नाम से है, तो आपको कोई ऐसा डॉक्यूमेंट दिखाना पड़ेगा, जिससे सिद्ध होता हो कि वह आपका सगा भाई है... ब्लड रिलेशन...

      Delete
  24. बहुत विस्तार से आपने पूरी जानकारी दी इसके लिए बहुत धन्यवाद आपको, बाइक मेरे नाम से नही है तो क्या NOC ले लू वो चलेगा , या कोई और तरीका है मुझे जल्दी में बाइक दिल्ली से गोरखपुर भेजना हैं

    ReplyDelete
    Replies
    1. कई बार रेलवे वाले मान जाते हैं... कई बार नहीं मानते...

      Delete
  25. Bike Ahmedabad to bikaner lekar Jani hai bike first party ka name hai meina transfer ka Liya original rc di hai Mera pass abhi koi proof nahin dealer ka likha Hua paper hai sell ka

    ReplyDelete
  26. Sir Meina dealer sa bike purchase ki hai first owner ka naam se hai meina rc transfer ka Liya original rc di hai Mera pass abhi koi proof nahin lekin dealer ka likha hai Ahmedabad to bikaner train se

    ReplyDelete
  27. Sir,meri bike mere jis train se m safar kar raha hu booking walo ne bola ussi train se bhej dega sir kya mujhe morning 5 baje receive ho sakta h ya late ho sakta h??

    ReplyDelete
    Replies
    1. अगर पार्सल ऑफिस रात में भी खुला रहता है, तो सुबह 5 बजे रिसीव हो जाएगी... अन्यथा 10 बजे तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी...

      Delete
  28. Muze royal enfield bike gorakhpur se surat le jana hai me kese or kya karu?

    ReplyDelete
  29. सर मुझे अपनी गाड़ी जगदलपुर से मुरादाबाद लानी है क्या करना पड़ेगा

    ReplyDelete
  30. SIR BIKE DUSREKA NAAM PE HAI WHO MERA DOSTE HAI LOAN BHAKI HAI MYNE BIKE PURCHASE KIYA WHO BIKE BHEJ SAKTA HAI KAYA

    ReplyDelete
  31. मुझे दिल्ली से गोरखपुर बाइक पार्सल लेकर जाना है गाड़ी किसी रिश्तेदार के नाम पर है तो हम ले जा सकते हैं ऑनलाइन RAC सीट कंफर्म टिकट पर बाइक ले जा सकते हैं

    ReplyDelete
  32. Sir Mai Ranchi se apni skuti ko Delhi fridabad bhejna chahti hu train se parsal me bheju ya lgej me Kaise thik rhega tasty me gadi chori hone ki Dr he Kya
    Maine suna he ki train se byk book krne se chori bhi kbhi kbhi ho jati he

    ReplyDelete
  33. Mujhe Meri bike mh Lani h kaise

    ReplyDelete
  34. Neeraj ji mujhe scooty aur 2 boxes may be kitchen ke samaan Secunderabadbe se BUXAR bhejni hai.kaise book kru parcel ya luggage se.Agr me confirm ticket Bana leti hu to journey date se 5 din pahle luggage me book or skti hu.pls suggest.

    ReplyDelete
  35. Bhaiya maine kal new delhi railway station se ki hai banaras ke liye yhi last stopped bhi hai apne bike ki booking
    shivganga me reservation bhi tha kab tak aa jayegi

    ReplyDelete
  36. Muze Thane se nashik lani hei gadi to nashik se hee ticket book nhi kara sakte kya

    ReplyDelete
  37. LTT se gorakhpur me kitne paise lagege

    ReplyDelete
  38. Neeraj bhaiya bike le jaane ke liye book parcel room se karna padta h ya jaha hum ticket lete h waha se

    ReplyDelete
  39. Sir muje meri scooty kanker cg.se binnaguri wb.road transport se bejne ki soch raha hu to kitna kharch aayega sir....
    Ya fir train se sahi rahega ya by road transport se please sir batana........

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।