साल 2003... उम्र 15 वर्ष... जून की एक शाम... मैं अखबार में अपना रोल नंबर ढूँढ़ रहा था... आज रिजल्ट स्पेशल अखबार में दसवीं का रिजल्ट आया था... उसी एक अखबार में अपना रिजल्ट देखने वालों की भारी भीड़ थी और मैं भी उस भीड़ का हिस्सा था... मैं पढ़ने में अच्छा था और फेल होने का कोई कारण नहीं था... लेकिन पिछले दो-तीन दिनों से लगने लगा था कि अगर फेल हो ही गया तो?...
तो दोबारा परीक्षा में बैठने का मौका नहीं मिलेगा... घर की आर्थिक हालत ऐसी नहीं थी कि मुझे दसवीं करने का एक और मौका दिया जाता... निश्चित रूप से कहीं मजदूरी में लगा दिया जाता और फिर वही हमेशा के लिए मेरी नियति बन जाने वाली थी... जैसे ही अखबार मेरे हाथ में आया, तो पिताजी पीछे खड़े थे... मेरा रोल नंबर मुझसे अच्छी तरह उन्हें पता था और उनकी नजरें बारीक-बारीक अक्षरों में लिखे पूरे जिले के लाखों रोल नंबरों में से उस एक रोल नंबर को मुझसे पहले देख लेने में सक्षम थीं... और उस समय मैं भगवान से मना रहा था... हे भगवान! भले ही थर्ड डिवीजन दे देना, लेकिन पास कर देना... फेल होने की दशा में मुझे किस दिशा में भागना था और घर से कितने समय के लिए गायब रहना था, यह भी मैं सोच चुका था...
और जैसे ही अपने रोल नंबर पर निगाह गई, हृदय-गति लगभग बंद पड़ गई... आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा और भागने का दम ही नहीं रहा...
रोल नंबर के आगे लिखा था... F
इसका क्या मतलब है?... एक ही मतलब है... फेल...
तभी अचानक शोर मच गया... नीरज की फर्स्ट डिवीजन आई है...
लेकिन यह फेल भी तो हो सकता है...
नहीं, क्योंकि जो फेल हो जाते हैं, उनके रोल नंबर अखबार में नहीं आते...
कसम से... मुझे फर्स्ट आने की उतनी खुशी नहीं हुई, जितनी पास हो जाने की हुई... पास हो गया, जिंदगी बच गई... अन्यथा चाहे जो होता, मैं फिर कभी स्कूल का मुँह नहीं देख पाता...
(इस घटना के कुछ साल बाद छोटा भाई धीरज उसी अखबार में अपना रिजल्ट देख रहा था... लेकिन उसका रोल नंबर अखबार में नहीं मिला... यानी वह दसवीं में फेल हो गया... फिर वही हुआ, जिसके बारे में मैं अपने समय में डर रहा था... उसे पास के कस्बे सरधना में मजदूरी करने भेज दिया गया... एक साल तक वह सुबह पहली बस से जाता और रात को आखिरी बस से काला-पीला हुआ लौटता... हालाँकि अगले साल जोरदार विरोध करने पर उसे दसवीं करने का मौका दोबारा मिला...)
...
तो जब दसवीं में फर्स्ट डिवीजन आ ही गई, तो ग्यारहवीं में एडमिशन होना ही था... और मैं ब्रजमोहन शर्मा गुरूजी का आजीवन आभारी रहूँगा कि उन्होंने पॉलिटेक्निक का फार्म भरने की सलाह दी...यह ‘पॉलिटेक्निक’ शब्द मैंने पहली बार सुना था और इसका सही उच्चारण कई महीनों बाद कर सका... कभी “पोल्टी-कुछ” कहता, तो कभी “पाल्टी-कुछ”... कोई पूछता तो बताता, वो “कुछ पोल्टी, पाल्टी” का फार्म भरा है...
साल 2004, जुलाई... इधर 800 रुपये वार्षिक जमा करके बारहवीं की फीस भरी और उधर पॉलिटेक्निक का रिजल्ट आ गया... मेरी बहुत अच्छी रैंक आई थी और अपने ही जिले के एकमात्र सरकारी कॉलेज में मनपसंद कोर्स मिल गया था... लेकिन एक समस्या बहुत बड़ी थी, जिसके कारण यह निश्चित हो गया था कि मैं पॉलिटेक्निक नहीं करूँगा... वो समस्या थी 8000 रुपये फीस... कुछ ही समय पहले 800 रुपये फीस भरी थी और इसने ही हमें उधारी में डुबो दिया था... उधर बैंक वाले भी लगातार डंडा किए हुए थे... असल में पिताजी ने कुछ साल पहले बैंक से लोन लिया था... लोन लेने की कोई वजह नहीं थी, लेकिन यह सोचकर लिया था कि चुनाव में नई पार्टी की सरकार बनेगी और किसानों के लोन माफ हो जाएँगे... अब लोन तो माफ हुआ नहीं, बल्कि तकादा करते-करते बात कुर्की तक पहुँच गई थी...
चार बीघे जमीन थी और पाँच-छह गाय-भैंसें थीं... गाय-भैंसें पालना हमारी माँ का शौक था... पिताजी को डंगरों से कोई लगाव नहीं था... इसलिए वे अक्सर पूरी फसल बेच दिया करते थे... लेकिन माँ कभी घसियारिन बनकर, कभी दूसरे खेतों में मजदूरी करके, तो कभी सूखा भूसा खिलाकर ढोर पालती रहीं... कई बार वे किसी अन्य की फसल खरीद लेती थीं, तो कभी अपने ही खेत में अपनी फसल उन लोगों से खरीदती थीं, जिन्हें पिताजी बेच दिया करते थे... माँ दूध बेचती थीं, लेकिन यह सारा पैसा हमारे और माँ के हाथों से होता हुआ आखिर में पिताजी के पास ही जाता था... इसी पैसे में से वे उस फसल की कीमत चुकाया करती थीं... और इस वजह से माँ और पिताजी में हमेशा तनाव रहा करता था... हम दोनों भाइयों का झुकाव माँ की तरफ था... और पिताजी इस सारे पैसे का क्या करते थे, यह आज भी एक रहस्य है...
तो 8000 रुपये फीस भरना हमारे लिए असंभव कार्य था... पिताजी का कहना था, इंटर कर और फिर बी.ए. कर... फिर तब की तब देखेंगे... लेकिन माँ ने कहीं सुन लिया था कि पॉलिटेक्निक करने के तुरंत बाद नौकरी लग जाया करती है...
अच्छा हाँ, हमारी माताजी निपट अनपढ़ थीं... उन्हें अपना नाम लिखना नहीं आता था, लेकिन पेंसिल से कागज पर आड़ी-तिरछी लाइनें बनाकर खिलखिलाते हुए वे दावा करती थीं कि यही मेरा नाम है... हम भी उन्हें उत्साहित करते थे कि हाँ, यही आपका नाम है...
तो उन्होंने कहीं सुन लिया था कि इस पढ़ाई के बाद नौकरी लग जाएगी... यानी तीन साल बाद नौकरी लग जाएगी, यह गारंटी है... गाँव में बी.ए. करके कई युवा बेरोजगार घूम रहे थे... यानी बी.ए. करने के बाद भी नौकरी की गारंटी नहीं है... तो माताजी जी-जान से चाहती थीं कि मैं पॉलिटेक्निक करूँ और पिताजी का आदेश था इंटर करने का...
फीस भरने की आखिरी तारीख से एक दिन पहले माँ की पहल पर एक पंचायत हुई... तय हुआ कि पॉलिटेक्निक में मेरी इतनी अच्छी रैंक आना गाँव के लिए, मोहल्ले के लिए और घर-परिवार के लिए बहुत बड़ी बात है... इसलिए इस मौके को छोड़ना ठीक नहीं... ताऊजी पर सारे खर्चे की जिम्मेदारी डाली गई... यह तय था कि तीन साल बाद नौकरी मिल ही जाएगी और तब नीरज सारे पैसे चुका देगा... और ताऊजी ने उसी दिन दस हजार रुपये पिताजी को दे दिए...
...
साल 2008... सितंबर का महीना... एक साल पहले मैं पॉलिटेक्निक की पढ़ाई पूरी कर चुका था और मैकेनिकल का डिप्लोमाधारी इंजीनियर बन चुका था... कल मैंने एक दोस्त से मिन्नतें करके एक साइबर कैफे में बैठकर अपनी ई-मेल आईडी बनवाई थी और आज मैं हरिद्वार में एक कंपनी के अधिकारियों को यह समझाने की कोशिश कर रहा था कि मुझे कंप्यूटर में ऑटो-कैड चलाना आता है...
नवंबर 2008... 8 तारीख...
पिछले कई दिनों से मैं यह जानने की कोशिश कर रहा था कि फ्री वेबसाइट कैसे बनाई जाए... दो महीनों से इंटरनेट वाले कंप्यूटर के सामने बैठकर आठ-आठ घंटे की नौकरी करने के बाद जब इंटरनेट पर हर प्रकार से बोर हो गया, तो यूँ ही गूगल पर सर्च किया... हाऊ टू मेक फ्री वेबसाइट...
अब तक मैं ई-मेल आईडी बनाना सीख चुका था, प्रिंटआउट निकालना सीख चुका था और ओरकुट व फेसबुक पर आईडी भी बना चुका था; हालाँकि इन आईडी का क्या करना है, यह समझ नहीं आया था... कुल मिलाकर उस समय की समझ के अनुसार इंटरनेट पर जो-जो भी हो सकता था, मैं कर चुका था... आज पहली बार खुराफात मन में आई... हाऊ टू मेक फ्री वेबसाइट...
...
आज इस फ्री वेबसाइट यानी ब्लॉग को दस साल पूरे हो गए... आज हमारा यह ब्लॉग दस साल का हो गया...
...
बचपन में गरीबी की वजह से संबंधियों और रिश्तेदारों का व्यवहार देखकर इन सबसे विरक्ति हो चुकी थी... पिताजी का व्यवहार देखकर उनसे भी विरक्ति हो चुकी थी... एक दिन पिताजी ने सारे खेत बेच दिए और सारे ढोर बेच दिए... माँ बेचारी जमीन और अपनी गायों को कब तक बचा पातीं!... उसी दिन माताजी मानों मर गई थीं, हालाँकि देह त्याग उन्होंने दिसंबर 2012 में किया... इसके बाद मेरी गाँव से भी विरक्ति हो गई...
माताजी के देह त्याग के समय ब्लॉग चार साल का था... इसी ने मुझे बाँधे रखा, अन्यथा विरक्ति की भावना इतनी ज्यादा भर चुकी थी कि सन्यासी बनने की इच्छा होने लगी थी... उसी दौरान तपोवन जाना हुआ... उस यात्रा ने तो मुझे वास्तव में हिलाकर रख दिया... पहले हिमालय कभी इतना सुंदर नहीं लगा था और इस यात्रा में हिमालय का आकर्षण महसूस हुआ... वहीं पर प्रेम फकीरा से मिलना हुआ, जो लगभग मेरी ही उम्र के थे और कुछ ही समय पहले एयरोनोटिकल इंजीनियर थे... आज वे सन्यासी थे और उनके चेहरे का तेज देखने लायक था... अब मेरे भी आगे-पीछे कोई नहीं था और दुनिया के उन बंधनों में बँधे रहने की कोई वजह नहीं थी, जिन बंधनों को मैं नकार चुका था... न ही नौकरी करने की कोई वजह थी और न ही पैसे कमाने की...
लेकिन इस ब्लॉग ने मुझे बाँधे रखा... इसने मुझे बिल्कुल ही एक नई दुनिया दी... इस दुनिया में कोई भी मुझे हीन नहीं समझता... यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है... इस दुनिया के सभी लोग मेरे लिए एकदम नए और अजनबी हैं... पुरानी दुनिया के केवल वे ही लोग मेरी इस नई दुनिया में हैं, जो ब्लॉग पढ़ते हैं... पुरानी दुनिया में सब पैसे देखकर बात करते थे... पुरानी दुनिया में खटखटाने पर भी दरवाजा नहीं खुलता था, इस नई दुनिया में सबके दरवाजे मेरे लिए पूरे सम्मान के साथ खुले हैं... मेरी इस नई दुनिया में बहुत गरीब लोग भी हैं और करोड़पति-अरबपति भी... लेकिन कोई भी पैसे नहीं देखता... सब ब्लॉग देखते हैं...
दोस्तों, आज मेरा यह ब्लॉग दस साल का हो गया है...
इसी ने मुझे लद्दाख की सर्दियों में एक खुली गुफा में सुलाया, इसी ने मुझे साइकिल से लद्दाख की यात्रा कराई, इसी ने मुझे दुनिया की सबसे ऊँची चोटी के बेसकैंप तक पहुँचाया, इसी ने मुझे कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से कछार तक घुमाया... भविष्य में कहाँ ले जाएगा, मुझे नहीं पता; इसी को पता है...
और इसी ने मुझे दीप्ति जैसी पत्नी दी...
ब्लॉग के 10 वर्ष पूर्ण होने की हार्दिक शुभकामनाएं... देश विदेश खूब घुमो...और बहुत लिखो.. शुभकामनाएं सहित
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद...
DeleteBhai
ReplyDeleteAaj to rula hi diya.
Zindagi me bahut tarraki karo. Bahut khush raho. Bhagwan jodi banaye rakhe
धन्यवाद मनीष जी...
Deleteबंधू साधुवाद, ख़ुशी इस बात से हो रही है कि मैं ब्लॉग को 2008 के पहले पोस्ट से ही पढ़ रहा हूँ।कभी कभी तार अनायास ही मिल जाते हैं।बाक़ी जीवन है तो उतार चढ़ाव खट्टा मीठा लगा रहेगा।सबसे अच्छी बात ये रही कि जो हुआ सब अच्छा हुआ।
ReplyDeleteसर, आप तो मुझसे भी पुराने ब्लॉगर हैं... और आपका आशीर्वाद हमेशा साथ रहा है...
Deleteब्लॉग के दस वर्ष पूरे होने पर अनेक अनेक शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद पांडेय जी...
Deleteकभी कभी जिंदगी अपना रास्ता खुद खोज लेती है, वो रास्ता जिस पर चलना हमारी नियति थी लेकिन शायद हम सोच समझकर वो रास्ता कभी न चुनते.
ReplyDeleteसही कहा सर...
Deleteबहुत शुभकामनाएं नीरज भाई और मुझे खुशी है कि इन 10 वर्षों में से पिछले 9 वर्षों का साथी में भी हूं| आपकी लेखनी का प्रशंसक|
ReplyDeleteअश्वनी चौहान
सर, यूँ ही आशीष बनाए रखिए...
Deleteआज तो भावुक कर दिया आपने
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद वर्मा जी...
DeleteMब्लोग़ के दस साल पूरे होने पर बधाई और शुभकामनाएँ। आज तो पूरा दिल खोल के रख दिया।
ReplyDeleteईश्वर आपकी मेहनत का अवश्य पुरस्कार देगा। ......
यही कामना के साथ।
सर, यूँ ही आशीष बनाए रखिए...
Deleteब्लॉग के 10 वर्ष पूर्ण होने की हार्दिक शुभकामनाएं..
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद...
Deleteनिःशब्द
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद...
Deleteबहुत दुख हुआ सारी बाते पड़ कर, लेकिन आपने कभी हार नही मानी, ओर आपके ताऊ जी भी अच्छे इंसान है जिन्होंने समय पर समझा ओर मदद की, आज पता चला सभी साथी आपका ब्लॉग क्यो पसन्द करते हैI एक बात ओर अच्छी लगी कि इस ब्लॉग की दुनिया मे कोई पैसा नही दिखाता
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद वकील साहब...
DeleteBhut Bhut badhai ho Neeraj ji ,Aapko prabhu khub tarakki de
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद...
Deleteआप ऐसे ही बढ़ते रहे और लिखते रहे।
ReplyDeleteऔर आप भी ऐसे ही उत्साहवर्धन करते रहिए...
Deleteब्लॉग कब ख़त्म हो गया पता ही नहीं चला। वाकई यह काफी भावुक कर देने वाला ब्लॉग है। ✌👏
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद...
DeleteCongratulations Neeraj bhai village me jyada tar ye hi situation Hoti h par har koi apke Jaisi himmat wala nhi hota
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद...
Deleteबहुत सुंदर। ब्लॉग के 10 वर्ष पूर्ण होने पर बधाई शुभकामनाएं।
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद...
DeleteMaster piece
ReplyDeleteThank you Amit bhai..
Deleteनीरज जी ज़िन्दगी में खूब तरकि करो, यूं ही घूमते रहो लिखते रहो और हमे भी दुनिया की सैर कराते रहो
ReplyDeleteऔर आप भी यूँ ही आशीर्वाद बनाए रखिए...
DeleteAll the best Neeraj ji
ReplyDeleteThanks sir...
Deleteनीरज भाई आपके जीवन के एक नए पहलू का पता लगा, हालाँकि कच्चा पक्का, मसालेदार काफी कुछ पहुँचता रहा जिसपर कभी ध्यान नहीं दिया । अच्छा लगा पढ़कर, एक दशक पूरा होने पर 💖 से बधाइयाँ और भविष्य के लिए शुभकामनाएं 💖 से
ReplyDeleteऔर आपको भी धन्यवाद 💖 से...
Deleteआपने ब्लॉग लेखन में एक नया मुकाम हासिल किया है, आप यूं ही आगे बढ़ते रहें यही कामना है. ब्लॉग लेखन के 10 वर्ष पूरे होने पर बधाई.
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद भाई...
Deleteब्लॉग के 10 वर्ष पूरे करने पर शुभकामनाएं. दिल को छूती आपकी जिन्दगी की जद्दोजहद और जिंदगी से लड़ने की पूरी कहानी मार्मिक है. आपने हिम्मत नहीं हारी और एक मुकाम हासिल किया यह बड़ी बात है.
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अंशुमन जी...
Deleteकरीब पांच साल पुरानी बात है मैं रात की शिफ्ट मे खाली होने पर इंटरनेट पर समय काटने के लिए ऐसे ही कुछ भी पढ रहा था,तो उसपर नीरज के नाम से एक फाईल खुल गई उसे खोलकर देखा तो अलीबाबा का खजाना खुल गया।मेरा पसंदीदा घुममकडी से Related सामग्री भरी पडी थीं।फिर तो जब भी समय मिला सार बलाग पढ डालें।फिर एक दिन फोन पर बातचीत हुई और सिलसिला चल पडा। जीवन की संघर्ष गाथा मार्मिक है। कहते हैं गरीबी से बडा कोई अभिशाप नही है।अपनी मेहनत ईमानदारी संघर्ष से तुमने इसे पार किया । और सबसे बडी बात ये है कि सदा उस पुराने जीवन को आपनी यादों मे रखते हो ।अपने ताऊजी का वह उपकार जीवन भर याद रखना और कभी उनके किसी काम आ सको तो अपने भाग्य शाली समझना। कर्तवय और फरज दोनो ही समझना। यही कामना है और फलो फूलो यही आशीर्वाद है।
ReplyDeleteआपका आशीर्वाद मिल गया... जीवन सफल हो गया...
Deleteतो यह थी पूरी कहानी या संस्मरण। वैसे तो मुझे इतनी डिटेल जानकारी नहीं थी। लेकिन इतना तो जरुर जानता था। जीवन में आप ने बहुत संघर्ष किया है। यह आप के लेखनी से पता लग जाता था। तभी मैंने अपने अनेक कमेन्ट में भी आप के त्याग, संघर्ष, कठिनाई, गरीबी और आप के अपने पर विश्वास के बारे में अनेकों बार लिखा है। क्योंकि आप की कहानी बहुत कुछ मेरे से मिलती जुलती रही है। और यह भी अच्छी तरह जानता हूँ की जो व्यक्ति दर दर संघर्ष और त्याग किया हो। वह किसी का अंध भक्त भी नहीं होता है। एक दम प्रैक्टिकल और वास्तविक धरातल पर जीने वाला व्यक्ति होता है। आप का ब्लॉग 10 साल का हुआ। इस असवर पर बहुत बहुत हार्दिक शुभ कामनाएँ। आप पर आप के शुभ चिंतकों का शुभ कामनाएं बना रहे। यही अभिलाषा है। आप का- विमलेश चन्द्र।
ReplyDeleteऔर इसी ब्लॉग से विमलेश चंद्रा जी भी मिले...
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद सर...
विमलेश की राजधानी एक्सप्रेस में आपका एक आर्टिकल पड़ा था उसके बाद ही आपसे जुड़ पाए और नीरज जाट हां जी नीरज जाट के नाम से लिखता है मेरा छोटा भाई नीरज जाट
Deleteराजेश जी मेरी कौन सी राजधानी एक्सप्रेस?
Delete12432
Deleteईमानदार लेख...दिल को छू गया।
ReplyDeleteAll the best, Neeraj ji.
Thanks sir...
Deleteबहुत ही शानदार लेखन दिल को छू लेने वाला पढ़ कर एक कहावत याद आरही है जो सुनी तो बहुत बार है पर सच होते आज दिखी है....हिम्मत ए मर्दा मदद ए खुदा.... लिखते रहिये घूमते रहिये सदा खुश रहिये और हम जैसे लोगो के लिए एक आदर्श बने रहिये
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आशू भाई...
Deleteवाकईं आपने अपने जीवन में बहुत ही कड़ा संघर्ष किया है। लेकिन कर्म करने वालों की गाड़ी कभी पीछे नहीं जाती। झटके भले ही खाए वो भी इसलिए की कहीं कर्मदाता अपने जीवन पथ से भटक ना जाए। लेकिन मंजिल अवश्य मिलती है जी मेरा जीवन भी कोई कम संघर्षरत नही रहा। लेकिन श्याम प्रभु दया रही और अडिगता से आगे बढते रहे। ब्लॉग के दस साल पूरे होने पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद मित्तल साहब...
Deleteबहुत बहुत बधाई भाई, आप इस ब्लॉग को जरा और डिटेल्स में लिखिए।
ReplyDeleteठीक है मिश्रा जी...
Deleteनमन भाई जी आपकी जीवनी को
ReplyDeleteओर हार्दिक बधाइयाँ
धन्यवाद पालीवाल जी...
Deleteआपका ब्लॉग 100 वर्ष पूर्ण करे,आपको ढेरो शुभकामनाएं
ReplyDeleteसबकी तरह हम भी जानना चाहते है कि दीप्ति जी आपको कैसे मिली ब्लॉग से?
कृपया बताने का कष्ट करें if u dont mind...
https://www.neerajmusafir.com/2015/03/diary-30.html
Deleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद... मैंने भी आपका कमेंट पहली बार देखा है...
ReplyDeleteNeeraj ji majja aagya padh kar. All the very best for future endeavors. My bestest wishes are with you. May you achieve what you deserve in your life.
ReplyDeleteVery much thanks sir...
Deleteब्लॉग की और आपकी कहानी जानकर खुशी हुई ।आप संघर्षों की आग में तपे हुए कुंदन है । अब तक आपसे मुलाकात होते होते रह गयी ,लेकिन आप से बात करके अच्छा लगा। आप उत्तरोत्तर प्रगति करें ।
ReplyDeleteदरोगा बाबू आप से मिलने की एक तमन्ना है
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteब्लॉग को दस वर्ष पूर्ण करने पर हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति।
आपका आलेख पढा ऐसा महसूस हुआ कि ये संघर्ष हम ही कर रहे हैं ,हमने बचपन मे आर्थिक बुलंदी भी देखी और अवसान का अवसाद भी । पढाई में प्रथम आने का उल्लास और उसके बाद नया संघर्ष आपके जीवन का यू एस पी बन गया
ReplyDeleteआप जीवन मे सफल हैं आगे भी सफलता मिले ,हां अपने कथ्य को ब्लॉग से भावनात्मक रूप से जोड़ने का कमाल किया है ।
लगता है कि आने वाली आत्मकथा की प्रस्तावना है ये
साधुवाद !
भवदीय
कुं प्रवल प्रताप सिंह राणा
क्या बात है नीरज भाई ह्रदय की भावनाएं , मन का गुबार , आत्मा का संतोष और जीवन का नक्शा सब सामने रख दिया . इसमें आपके एक और गुण का सर्वाधिक महत्त्व है अनुशासन और नियमितता . बधाई .....
ReplyDeleteभाई जहां चढ़ाई है वहां ढलान भी होती यही नियम है हर दुःख के बाद सुख भी आता है बात सिर्फ ये है कि मनुष्य कितना सहनशील है,जो परिस्थितियों से घबरा गया उसके लिए तो कष्ट बड़ा है और जिसने हर स्थिति को मौके के रूप में स्वीकार किया वही सच्चा खिलाड़ी होता है।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई नीरज। पिछले 10 नही तो 9 वर्षो से तो पक्का ही ये ब्लॉग जैसे जीवन का एक हिस्सा सा बना हुआ है। बहुत से ब्लॉग पढ़ पढ़ कर छूटते चले गये पर यही एकमात्र ऐसा ब्लॉग है जिसकी पोस्ट का हमेशा बेसब्री से इंतजार रहता है।
ReplyDeleteमेरा मानना है कि जीवन के ये संघर्ष आपको बहुत मजबूत बनाते हैं। बस ऐसे ही ईमानदारी से लिखते रहो, ईश्वर आपको सफलता देंगे।
क्या कहूं..... अद्भुत
ReplyDeleteबस वो लास्ट लाइन डिटेल में सुनना चाहेंगे
आपकी संघर्ष करने की क्षमता और दृढनिश्चय को सलाम है।आपकी मॉ और ताऊ जी की फोटो इस ब्लॉग पर होते तो ब्लॉग को चार चाँद लग जाते।
ReplyDeleteनीरज जी मैने आपका ब्लॉग पहली बार साल 2012-13 में इंटरनेट पर देखा था खाली समय में रोज़ाना 2 से 3 घंटे तक आपका साइकिल साइकिल ब्लॉग नेट पर पढ़ा मैने अपने मामा के लड़के *मधुर गौड* से आपके ब्लॉग के बारे में जिक्र किया उसने बताया कि वो आपके साथ 1 बार ट्रैक पर घूम चुका है फिर उसके बाद आपसे मुलाकात अप्रत्यक्ष रूप से फ़ेसबुक लिंक के माध्यम से हुई.
ReplyDeleteआपकी चारों किताब आपसे बात करके पोस्ट के द्वारा मंगवाई उसमे से अभी तक केवल 2 किताब ही पढ़ पाया हूं मेरा पूर्वोत्तर और चलो लद्दाख इसके आलावा आपके ही ग्रुप में तरुण गोयल जी की किताब सबसे ऊंचा पहाड़ जिसको ट्रैकिंग का तीर्थ नाम से जाना है वो भी लगभग पढ़ चुका हूं
विश्वनाथ घोष जी की किताब चाय चाय भी ग्रुप में चर्चा का विषय बनी हुई थी जिसमे तरुण गोयल जी का कमेंट *लेखक ने दारू और लड़की पर ज्यादा ध्यान दे दिया है*
इस कमेंट ने भी किताब को पढ़ने की उत्कंठा को बढ़ा दिया और ये किताब केवल 4 घंटे में पढ़ डाली..��
Kal raat hi padh liya thha par comment nahi kar paya, it took me sometime to overcome the emotions.
ReplyDeleteBahut imaandari se likha hai, and jo aaj immandar rehta hai, uska kal apne dhyaan khud rakh leta hai.
Not sure, if you remember me, but I've been a regular for almost from the beginning :-) , and interacted with you through FB messenger few years back.
Hope to meet you some day.
Keep travelling and keep sharing
Take care
ब्लॉग के 10 वर्ष पूरे होने पर हार्दिक शुभकामनाए नीरज भाई।।।
ReplyDeleteबहुत ही भावुक लेख, बुरे दिन जयादा दिनों तक नहीं रहते, अच्छे दिन पलट कर आते हैं. नीरज जी आपके बारे में सबसे पहले हिन्दुस्तान अखबार में रवीश जी के लेख में पढ़ा था, उसके बाद आपको नेट पर सर्च किया था, ध्यान नहीं कितने साल हो गए हैं, उस दिन से मैं आपका मुरीद हो गया था, आपको देख कर ही ब्लॉग्गिंग, व घुमने की शुरुआत की. आपसे से ही inspire पता नहीं बहुत सारे लोग हुए हैं. धन्य हैं आप. और आपका संघर्ष....वन्देमातरम.....
ReplyDeleteसमय मे एक विशेषता होती है कि वो गुजर जाता हैं चाहे अच्छा हो या बुरा खैर मार्मिक लेखन के लिए आपको साधुवाद
ReplyDeleteFirst of all many congratulations on the 10th foundation day of your blog, secondly the write up was so interesting and engaging that I couldn't remove my eyes from it until I finished it. You are one of the pioneers of Hindi Travelogues.....Stay healthy, stay fit and keep roaming and writing.
ReplyDeleteआपने हिला के रख दिया.... नीरज भाई ...
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteअच्छा है...
कभी कभी गुज़रे हुवे कल में भी डुबकी लगा लेना चाहिए...
आप और हम सौभाग्यशाली है,आप को ब्लॉग के लाखों पाठकगण मिले,तो हमें 24 कैरेट खरा यात्रावृत्तांत लेखक,जहाँ सब एकदूजे को बांधे हुवे है।
यह कारवाँ है,यह बढ़ते ही जायेगा और बहुत आगे जाएगा।
असीम शुभकामनाएं।
Keep it up
ReplyDeleteनीरज जी अभी तक तो आज का ब्लॉग ही पढत था आज जिंदगी के संघर्ष भी पढा.... बहुत अच्छा.. जारी रखे...
ReplyDeleteबढ़िया
ReplyDeleteनीरज जी राम-राम। आपकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि आपके लेख सरल, सीेधे व सच्चे होते हैं इनमें कहीं कोई बनावटीपन नही होता। आपने इस लेख में अपने समय के हालात की छोटी से छोटी बात से हमें अवगत कराया है ऐसा कार्य कोई बड़े और नेक दिल वाला इंसान ही कर सकता है। मैं भी आपके प्रशंसको में से एक हूं और आपके लगभग सभी लेख पढ़ता हूं। आज के लेख से आपको और करीब से जानने को मोका मिला। आप इसी तरह से तरक्की करते रहें यही कामना है।
ReplyDeleteबहुत जबरदस्त
ReplyDeleteवाहः, बहुत बहुत शुभकामनाएं। बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteब्लाॅग के दशक पूरे करने की हार्दिक शुभकामनायें। यह आपके मेहनत और सतत प्रयास का सुफल ही है। सदा यूँ ही घुमक्कडी़ करते रहे और लिखत रहें ताकि आपकी नजरों से हजारो लोग उन नजारों को देख और महसूस कर सके। बधाई हो��
ReplyDeleteआपके ब्लॉग के एक दशक पूर्ण होने पे आपको बधाई।
ReplyDeleteआपके लेख को पढ़ते हुए सब कुछ अपने सामने घटित होता हुआ प्रतीत होता है और ये ही आपके लेखन की खासियत है।
आपकी भाषा के साथ अच्छी बात ये है की वो बहुत किलिष्ट नहीं है और साधारण शब्दों का प्रयोग करते हुए आम आदमी की ही जुबाँ बोलती नज़र आती है और मुझे शायद इसलिए भी पसंद है की पश्चिमी उत्तर प्रदेश का वो अक्खड़ लहजा मेरा अपना हैं।
बहुत बहुत शुभकामनाएं नीरज भाई, यात्रा लेखन का यह सिलसिला यूं ही चलता रहे आप स्वस्थ रहें और घूमते रहिये ।
ReplyDeleteशुभकामनाएं दोस्त। आपकी कहानी बेहद प्रेरणादायक है। कठिन परिस्थितियों से निकल कर जिस मुकाम तक आप पहुंचे हैं वो वाकई कठिन और बधाई के काबिल है। ऐसे ही जीवन में आगे बढ़ते रहो घूमते रहो लिखते रहो। स्वस्थ रहो मस्त रहो बिंदास रहो। ढेर सारी शुभकामनाएं
ReplyDeleteCongratulations for completing 10 years of your blog.very nice writing. I love your blog.
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी।
ReplyDeleteढेर सारी बधाई एवं शुभकामनाएँ ।तथा आने वाले समय में आप इसी तरह की रोमांचक और मजेदार यात्राओ से हमें आनन्दित करते रहेगे।धन्यवाद ।
ReplyDeleteCongratulations
ReplyDeleteBahut bahut badhaai
ReplyDeleteHo apko Neeraj bhai
Jaari rahe bhraman,lekhan
Na aaye ismein koi adchan
ब्लॉग के 10 वर्ष पूर्ण होने की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteक्या कहूँ नीरज भाई! आपके साथ ये सफ़र हम सब ने भी किया है..बहुत सी यादें ताज़ा है...बहुत शुभकामनाये आपको..खुश रहिये और ऐसे ही चलते जाइये
ReplyDeleteगजब भाई ! एकदम टच कर दिया, क्या सही लिखा है. भगवान आप पर अपनी कृपा बनाये रखें, आपका कल्याण और मार्गदर्शन करते रहें.
ReplyDeleteबहुत सुंदर सराहनीय हार्दिक शुभकामनाएं नीरज भाई!....
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं नीरज जी। आपने इतने संघर्ष सहे है तभी कुंदन सा निखर पाए है, इसी तरह घूमते रहिए और लिखते रहिए।
ReplyDeleteDear Neeraj, Many congratulations. I am reading your blog from day one and this is the only blog i still read (there were 100+ i used to read in 2009/10) and wait for new post. I wish you all the best for future. Keep blogging.
ReplyDeleteBadhai Jaat Ram, ghoomte raho aur saath me hame bhi ghumate raho !! Hardik shubhkamnayen
ReplyDeleteअत्यंत भावपूर्ण कहानी है नीरज आपकी| भाई धीरज के क्या हाल है?
ReplyDeleteवह भी ठीक है या नहीं ?
Hardik shubhkamnaen, ghumte raho aur hame bhi ghumate raho.
ReplyDeleteआप काफी अच्छा लिखते हैं , यह कहने की जरूरत नहीं है .
ReplyDeleteअभी तक आपके घुम्मकड़ी जीवन से परिचय हुआ था , आज कुछ और भी जानकारी हुई आपके बारे में .
आपके उज्जवल भविस्य की कामना करता हूँ .
अच्छे लेखन के लिए आपको धन्यवाद देता हूँ , आपकी वजह से ही काफी जगहों की जानकारी मिल पायी .
Badhai ho Neeraj Babu... Aapka blog to mera favorite travel blog hai..
ReplyDeleteइस बेहतरीन लेख के लिए नीरज जी आपका बहुत-बहुत धन्धयवाद....🙏 बिल्कुल मेरी ही कहानी है।
ReplyDeleteBahut bahut Mubarak bhai
ReplyDeleteमुझे तो मेरे पिताश्री दसवीं के बाद ही अपने साथ नौकरी करने कलकत्ते ला जा रहे थे। लेकिन सौभाग्यवश मेरी माँ पढी लिखी थी और उसने ऐसा नहीं होने दिया। और जब पालिटेक्निक में हो गया तो पिताश्री बिना ना नुकुर किये अपनी कंपनी से लोन ले कर फीस भर दिये क्योंकि कलकत्ता रह कर उनको डिप्लोमा का महत्व समझ में आ गया था।
ReplyDeleteVery very nice life story
ReplyDeleteI am fan your block
Me apke blog 2013 se pad rha hu
नीरज बहुत बहुत बधाई.... आपका ब्लॉग पढ़ती रहती हूँ। ब्लॉग की शुरुआत और जिंदगी के कठिन दौर की कहानी मन को छू गई। आप बहुत बढ़िया लिखते हैं। ऐसे ही लिखते रहिए और हम जैसे घुमक्कड़ीपसंद लोगों को नई-नई जगहों के बारे में बताते रहिए।
ReplyDeletebahut achche..2011 se apka blog padh raha hun. pahali bar aapne imotional kar diya. aap aage badhate rahen..bas yahi kamna hai aapke liye..
ReplyDeleteneeraj bhai, aapse ek sawal karna chahta hun agar apko bura na lage to..kuch samay pahale apki madam ka naam to nisha tha ab dipti kaise ho gaya ?
ReplyDeleteनीरज जी.......।
ReplyDeleteशानदार, मेरे पास तारीफ करने के लिए शब्द नहीं हैं।आप सदैव शिखर पर अग्रसर रहें।
शुभकामनाएं
आज पहला ब्लॉग पढ़ा है लाइफ का उम्दा महसूस हो रहा है , पता नही था आपका बैकग्राउंड ऐसा है ।
ReplyDeleteक्या कुछ दिल को खोलने या दबंग बनने पे भी लिखा है ?? अकेला बेटा हु मां बाप बांध के रखे हुए है हमेशा डराते रहते है । पता नही उन्हें अपनी फिक्र है या मेरी ।