2011 चला गया। यह एक ऐसा साल था जिसमें अपनी घुमक्कडी खूब परवान चढी। जहां एक तरफ ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के बर्फीले पहाडों में जाना हुआ, वहीं समुद्र तट भी पहली बार इसी साल में देखा गया। भारत का सबसे बडा शहर कोलकाता देखा तो नैरो गेज पर चलनी वाली गाडियों में भी सफर किया गया। आज पेश है पूरे सालभर की घुमक्कडी पर एक नजर:
1. कुमाऊं यात्रा: 20 से 24 फरवरी तक अतुल के साथ यह यात्रा की गई। जनवरी की ठण्ड में रजाई से बाहर निकलने का मन बिल्कुल नहीं करता, लेकिन जैसे ही फरवरी में रजाई का मोह कम होने लगता है तो सर्दियों भर जमकर सोया घुमक्कडी कीडा भी जागने लगता है। इस यात्रा में अतुल के रूप में एक सदाबहार घुमक्कड भी मिला। इस यात्रा में कुमाऊं के एक गांव भागादेवली के साथ रानीखेत, कौसानी और बैजनाथ की यात्रा की गई। बाद में अतुल पिण्डारी ग्लेशियर की यात्रा पर भी साथ गया था।
2. सतपुडा नैरो गेज: यह यात्रा 6 मार्च से 9 मार्च तक की गई। इसमें जबलपुर- छिंदवाडा- बालाघाट के बीच बिछी नैरो गेज की रेल लाइनों पर सफर किया गया। यह यात्रा अकेले की गई, कोई पार्टनर नहीं। तीन रातें ट्रेनों में ही गुजारी गईं, जिनमें एक रात नैरो गेज पर सफर करते हुए नैनपुर से बालाघाट तक भी यादगार रही।
3. केदारनाथ, त्रियुगीनारायण, तुंगनाथ यात्रा: 19 अप्रैल से 23 अप्रैल तक गढवाल के इन तीर्थों की यात्रा की गई। साथी थे सिद्धान्त चौधरी- राष्ट्रीय लेवल के मैराथन धावक। यह यात्रा यादगार इसलिये रही कि हम ऑफ सीजन में केदारनाथ गये थे यानी कपाट खुलने से एक महीने पहले। हालांकि ऑफ सीजन में केदारनाथ जाने के लिये रुद्रप्रयाग जिला मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी पडती है, हम ऐसे ही जा पहुंचे। हमें पुलिस वालों ने रोका भी था, लेकिन हम नहीं माने। वहां जाकर बरफ का जो अम्बार देखा, वाकई हैरत अंगेज था। केदारनाथ करीब दस फीट बरफ में दबा हुआ था। जिन्दगी का एक बेहतरीन क्षण। और हां, इसी यात्रा में पहली बार बर्फबारी भी देखने को मिली।
तुंगनाथ के रास्ते में |
4. धौलपुर नैरो गेज: 10 मई को यह यात्रा सम्पन्न हुई और साल की सबसे बेकार यात्रा का खिताब इसे दिया जा सकता है। यकीन ना हो तो कभी जाकर देख आना। भीड का जो नजारा यहां मिलता है, वाकई आश्चर्यजनक है।
5. करेरी यात्रा: 23 मई से 27 मई तक आज तक के घुमक्कडी इतिहास की सबसे जानलेवा यात्रा सम्पन्न हुई। बडे दिनों से इंतजार था इस यात्रा का और साथी के रूप में एकदम योग्य गप्पू जी मिल गये। पहले तो मैक्लोडगंज से करेरी गांव तक पहुंचना ही महान उथल पुथल का काम था, फिर ऊपर से झील तक जाते समय ओलों ने दिल दहला दिया। अभी भी सारा मंजर ज्यों का त्यों याद है। धौलाधार हिमालय की एक काफी लम्बी श्रंखला है और यह कांगडा जिले में स्थित है, बल्कि यह कहना चाहिये कि कांगडा और चम्बा जिलों की सीमा बनाती है। इसे उत्तर भारत का चेरापूंजी भी कहते हैं। बारिश होना आम बात है।
उस दिन भी दोपहर तक मौसम एकदम सामान्य था। जब ओले पडने शुरू हुए तो मैं किंकर्तव्यविमूढ हो गया कि ऐसे में चलते रहना चाहिये या रुक जाना चाहिये। शुरू में चलते रहने में कोई बुराई नहीं दिखी। चलते रहे और जब शुरू हुई बिजली गिरनी तो एक एक कदम आगे बढाना मुश्किल होने लगा। बिजली कडकते ही लगता कि अब जरूर कोई ना कोई बडा पेड या चट्टान टुकडे टुकडे हुई है और वो मलबा हम पर भी गिर सकता है। आखिरकार एक टूटे पेड के तने के नीचे बैठकर ओलों से बचा गया। फिर आग ढूंढने के लिये किस तरह तूफानी गति से बहती वो नदी पार की, यह आज भी एक हैरत है। जान बचाने के लिये इंसान किस तरह जान जोखिम में डालता है- यह सब इस यात्रा में देखा।
करेरी झील |
6. ऐशबाग-बरेली मीटर गेज यात्रा: 20 से 22 जून तक यह यात्रा की गई। मकसद था अवध और रुहेलखण्ड के बीच चलने वाली मीटर गेज की ट्रेन में सफर करना- लखनऊ के पास ऐशबाग से सीतापुर, मैलानी, पीलीभीत होते हुए बरेली पहुंचना।
7. श्रीखण्ड महादेव यात्रा: 16 से 24 जुलाई तक यह यात्रा की गई- सन्दीप पंवार के साथ बाइक पर। हिमालय में शिव के सात कैलाश माने जाते हैं, श्रीखण्ड भी उनमें से एक है। यह भी एक मुश्किल यात्रा है लेकिन करेरी के मुकाबले इसमें जान का जोखिम नहीं पडा। इसमें हमें 5200 मीटर की ऊंचाई नापनी पडती है। जैसे ही 4000 मीटर का लेवल पार किया, मुझे हाइ एल्टीट्यूड सिकनेस महसूस होने लगी। किसी किसी को 2000 मीटर की ऊंचाई पर बसे शिमला मसूरी में भी हवा की कमी महसूस होने लगती है, मुझे यह कमी 4000 मीटर पर पहुंचकर हुई। इसके बाद भी 1200 मीटर और चढना था और वही चढाई शारीरिक क्षमता से ज्यादा मानसिक क्षमता पर निर्भर थी।
श्रीखण्ड यात्रा से वापस आने के बाद मुझमें एक तरह का खौफ बैठ गया था- दुर्गम में ट्रैकिंग का खौफ। लेकिन बाद में धीरे धीरे इसी यात्रा की यादों ने इस खौफ से बाहर भी निकाला। अब तो सोचता हूं कि मैंने श्रीखण्ड की यात्रा कर रखी है, मैं कहीं भी जा सकता हूं।
इसके अलावा श्रीखण्ड यात्रा के दौरान ही पिंजौर गार्डन, जलोडी पास, सेरोलसर झील, रघुपुर किला, चकराता, कालसी में अशोक का शिलालेख और पांवटा साहिब के भी दर्शन किये।
8. लोहारू-सीकर मीटर गेज: 1 अगस्त को यह यात्रा हुई। राजस्थान के शेखावाटी इलाके में अभी भी दो तीन लाइनें मीटर गेज की बची हुई हैं- जयपुर-सीकर-चुरू और लोहारू-सीकर। एक वीकएण्ड ट्रिप थी यह।
9. इलाहाबाद-कानपुर-फर्रूखाबाद: 8 और 9 अगस्त को यह यात्रा की गई। मकसद इलाहाबाद में घूमने का नहीं था, बल्कि इलाहाबाद से फर्रूखाबाद तक करीब साढे तीन सौ किलोमीटर में पैसेंजर ट्रेन में सफर करना था।
10. हावडा, पुरी यात्रा: 21 से 26 अगस्त। यह यात्रा अकेले की गई और पूरी तरह अहिन्दी भाषी भारत में। एक दिन कोलकाता में बिताकर अगले दिन पुरी और कोणार्क। इसके अलावा पुरी से बिलासपुर तक साढे छह सौ किलोमीटर तक पैसेंजर ट्रेन से यात्रा भी मनोरंजक रही।
11. पिण्डारी ग्लेशियर यात्रा: 1 से 8 अक्टूबर तक की गई यात्रा। अतुल और हल्दीराम साथी रहे। पढने में तो ऐसा लगता है कि कितनी खतरनाक यात्रा रही होगी जबकि बेहद आसान यात्रा- कोई दुर्गमता नहीं, कोई मुश्किल नहीं। पता नहीं लोगबाग क्यों ट्रेकिंग से डरते हैं।
12. मसूरी-धनोल्टी यात्रा: 7 से 10 नवम्बर। यह एक पारिवारिक यात्रा थी- दोस्त की कार में उनके ही परिवार के साथ। शाकुम्भरी देवी, सहस्त्रधारा, केम्पटी फाल, मसूरी, धनोल्टी और सुरकण्डा देवी।
ऋषिकेश में गंगा |
13. पराशर झील यात्रा: 5 से 7 दिसम्बर। अपने साथ रूम पार्टनर अमित और ऑफिस पार्टनर भरत नागर के साथ यह यात्रा सम्पन्न हुई। इसमें पण्डोह से पराशर झील तक ट्रेकिंग, मनाली और सोलांग में बर्फबारी मुख्य आकर्षण थे।
ये थीं पिछले 12 महीनों में की गई 13 यात्राएं। लगभग 50 दिन घूमने में बिताये। 500 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से लगभग 25000 रुपये खर्च भी हुए।
अब देखते हैं रेल यात्राएं:
कुल मिलाकर 66 रेलयात्राएं हुईं और 12040 किलोमीटर का सफर तय किया गया। लेकिन अगस्त में पुरी यात्रा के बाद रेल से इक्का दुक्का यात्राएं ही हुईं, नहीं तो आंकडा 20000 को पार कर जाता। पिछले चार महीनों में मात्र 353 किलोमीटर दूरी ही तय की गई। उम्मीद है कि नये साल में रेल यात्राओं का ग्राफ काफी सुधरेगा।
2012 की घुमक्कडी का लेखा जोखा
2012 की घुमक्कडी का लेखा जोखा
बढ़िया सफ़र रहा इस वर्ष का
ReplyDelete.......नववर्ष मंगलमय हो
शुभकामनओं के साथ
संजय भास्कर
काश हम भी इतना घूम पाते, कर्नाटक की ओर कब रुख कर रहे हैं।
ReplyDeleteघूमते.......................... रहो ओ ओ ओ ओ ओ ओ .............
ReplyDeleteबहुत सुन्दर! नववर्ष की मंगल कामना
ReplyDeleteएक साथ पढ़ कर तो ओवरडोज जैसा ही लगा अब, जारी रहे यह सफर.
ReplyDeleteसुन्दर वन हैं बहुत घनेरे,
ReplyDeleteछाँव यहाँ की छलना है!!
अरे!पथिक विश्राम कहाँ,
अभी बहुत दूर तक चलना है!!
प्रथम चित्र में वो भाईसाहब काफी जाँच रहे है , मैं आपकी बात नहीं कर रहा :)
ReplyDeleteआपको नव-वर्ष की ढेरों शुभकामनाये ! इस वर्ष में आपकी घुमक्कड़ी नए आयामों पर पहुंचे !
जांच = जच पढ़े
ReplyDeleteयात्रा ही यात्रा चुन तो लें .हाँ कर्नाटक -तमिलनाडु -पुदुचेरी का रुख भी करें अपना आनंद है चेन्नई -पुदुचेरी सड़क यात्रा का समुन्दर के किनारे किनारे ....
ReplyDeleteबढिया है…………शानदार प्रस्तुति…………
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.
पिछले साल का अच्छा लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है आपने ....मन में कुछ संसय था ,जिसका समाधान भी हो गया .कभी मुंबई के तरफ आना हो तो जरुर बताइयेगा ..
ReplyDeleteनए साल में रेल यात्राओं का ग्राफ जरुर सुधारें, शुभकामनाएं...
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