पिछले महीने कुछ ऐसा योग बना कि अपन को बिना छुट्टी लगाये ही चार दिन की छुट्टी मिल गई। इतनी छुट्टी और बरसात का महीना- घूमना तय था। हां, बरसात में अपना लक्ष्य गैर-हिमालयी इलाके होते हैं। दो साल पहले मध्य प्रदेश गया था जबकि पिछले साल उदयपुर। फिर दूसरी बात ये कि इन चार दिनों में कम से कम दो दिन रेल एडवेंचर में लगाने थे और बाकी दो दिन उसी ‘एडवेंचर’ वाले इलाके में कहीं घूमने में।
तुरन्त ही अपने आप तय भी कर लिया कि कोंकण इलाके में रेल आवारागर्दी करते हैं। कोंकण रेलवे यानी मुम्बई के पास रोहा से लेकर दूर मडगांव और उससे भी आगे मंगलौर तक। बाकी बचा-खुचा समय मुम्बई में बिताना तय हुआ।
सारा प्रोग्राम बना लिया कि कब यहां से निकलकर कल्याण, दीवा, रोहा, मडगांव और मंगलौर जाना है। इसी तरह वापसी का कार्यक्रम भी बन गया। दर्शन कौर धनोए जी से बात हो गई उनके घर पर अतिथि बनकर जाने की। अभी तक समुद्र नहीं देखा था, इसलिये यह भी तय कर लिया कि दर्शन जी के ऊपर मुझे समुद्र दिखाने की जिम्मेदारी होगी।
लेकिन जिसका ना कोई धर्म हो, ना धोरा हो, उसका ठिकाना भी क्या। सोचा कि यार, बरसात की वजह से ही मैं हिमालय को छोड रहा हूं, फिर क्यों कोंकण जाने की पडी है। कोंकण भारत में एकमात्र वो जगह है जहां रेलवे का टाइम टेबल भी मानसून में अलग होता है, बाकी समय में अलग। आजकल मानसून की समय सारणी के हिसाब से ट्रेनें चल रही हैं। नवम्बर से कोंकण रेलवे का मानसून सीजन खत्म होगा।
कोंकण कैंसिल। साथ ही मुम्बई भी कैंसिल। सॉरी दर्शन जी, फिर कभी। दिमाग में घमासान चल ही रहा था कि अपने एक पुराने मित्र नितिन सैनी जी महाराज ने समस्या का समाधान कर दिया। बोले कि जाट भाई, मैं 20 तारीख को कलकत्ता जा रहा हूं, चल तू भी। मेरा 20 का ब्योंत नहीं था। मैंने सुझाव दिया कि भाई, जब तू बीस को जा रहा है तो एक दिन और रुक जा, 21 को चल। उसने मना कर दिया। इधर मैंने भी उसके साथ जाने से मना कर दिया। लेकिन यह जरूर पता चल गया कि वे कुल मिलाकर छह जने कलकत्ता जा रहे हैं। 21 को यानी रविवार को उनकी कोई परीक्षा-वरीक्षा है। फिर 22 की दोपहर को वापसी की ट्रेन है। 22 की सुबह से दोपहर तक उनका कार्यक्रम कालीघाट मन्दिर देखने का था।
इधर मुझे मौका मिल गया। मैंने उनके जाने के एक दिन बाद का रिजर्वेशन कराया- नई दिल्ली- हावडा एक्सप्रेस (12324) से। शुरू में वेटिंग थी, जो बाद में कन्फर्म हो गई। मैंने उन्हें इस बारे में कुछ नहीं बताया। असल में मैं चाहता था कि अचानक उनके सामने पहुंचकर उन्हें घोर आश्चर्यचकित करूंगा। लेकिन मुझे 21 को यहां से चलकर 22 को वापस तो आना नहीं था इसलिये कलकत्ता से आगे पुरी तक धावा मारने की योजना बना ली गई। विशेष बात यह रही कि वापसी का रिजर्वेशन किसी उडीसा वाली गाडी से नहीं बल्कि छत्तीसगढ सम्पर्क क्रान्ति से बिलासपुर से निजामुद्दीन तक कराया गया। पुरी से बिलासपुर तक 620 किलोमीटर की यात्रा पैसेंजर गाडी से तय करने की भी योजना बनी।
सबकुछ तय तरीके से ही चल रहा था। 21 अगस्त को सुबह सुबह छह बजे नाइट ड्यूटी से सुलटा। पता चला कि अपने यहीं काम करने वाले दो बिहारी मैण्टेनर दिवाकर और रवि भी अपने-अपने घर जायेंगे। रवि का रिजर्वेशन आनन्द विहार से चलने वाली नॉर्थ ईस्ट एक्सप्रेस में था, उसे पटना जाना था जबकि दिवाकर की योजना थी कि मुगलसराय तक रवि के साथ जाऊंगा और आगे गया तक जाट महाराज के साथ। नॉर्थ ईस्ट का मुगलसराय पहुंचने का टाइम है शाम को सवा छह बजे जबकि मेरी वाली हावडा एक्सप्रेस का टाइम है शाम को साढे सात बजे।
एक बात और कि मेरी इस यात्रा की जानकारी मुझे और कहीं बहुत ऊपर बैठने वाली अदृश्य शक्ति को ही थी। दोनों बिहारी दोस्तों को भी इतना ही पता था कि बन्दा हावडा तक ही जायेगा। यहां तक कि घरवालों तक को मालूम नहीं था कि छोरा कहां जा रहा है। असल में घरवाले शुरू-शुरू में काफी मना करते थे कि ओये, इतना मत घूमा कर। लेकिन जब छोरा नहीं माना तो शर्त रख दी कि देख भई, घूम तो ले, पर बता कर जाया कर। अब छोरा बताकर जाने लगा। वापस आता तो घरवाले रोटी बाद में देते थे, पहले फोटू देखते थे। तो जी, हर चीज की हद होती है। लेकिन अपनी घुमक्कडी की हद नहीं थी। उनका यह फोटू देखने का उत्साह भी ठण्डा पडने लगा। अब ना तो फोटू देखते हैं, ना ही यह पूछते हैं कि जा कहां रहा है। हां, चलने से पहले बता देता हूं कि कहीं जाऊंगा। कहते हैं कि जा चला जा। लेकिन अभी भी कभी कभी कह देते हैं कि अकेले मत जाया कर जबकि हमने अपने गुरूजी राहुल बाबा का घुमक्कड शास्त्र पढा हुआ है। गुरूजी कहते हैं “जैसे सिंहों के लेहंडे नहीं होते, वैसे ही घुमक्कड भी जमात बांध के नहीं घूमा करते।”
खैर, चलते चलाते दिवाकर का फोन आया कि नीरज, तुम्हें गया में उतरना है। मैं तुम्हें गया दिखाऊंगा। फिर पटनावासी बोल पडा कि अगर तुम गया में उतर गये तो पटना दूर नहीं है। तुम्हें किडनैप करवा लूंगा और पटना दिखाऊंगा। ट्रेन गाजियाबाद से आगे भी नहीं निकली थी कि दिमाग में बिहार भ्रमण हिलौरे लेने लगा। सोचने लगा कि दिवाकर मुझे मुगलसराय में तो मिल ही जायेगा, अगर उसने एक बार भी गया में उतरने को कह दिया तो महाराज तुरन्त उतर जायेंगे।
इलाहाबाद तक तो अपना पूरा रूट पैसेंजर ट्रेनों से नापा हुआ है। फिर रात्रि जागरण भी किया था, आराम से सोता हुआ गया। इलाहाबाद से आगे निकलने से पहले ही अपना आसन दरवाजे पर लग गया। यमुना दिखी। हिमालयी जन्तु को अगर मैदानी नदी दिखा दो तो समुद्र कहेगा, तो जी हमने भी यमुना की तुलना समुद्र से कर डाली। यमुना पार करते ही एक लाइन सीधे हाथ की तरफ मानिकपुर चली जाती है जहां से फिर दो भागों में बंटकर झांसी और जबलपुर जाती है।
अब मेरी निगाह थी विंध्याचल की पहाडियों को देखने की। हालांकि इधर मेरा आना पहली बार हुआ था लेकिन फिर भी मैं जानता था कि रास्ते में कहीं ना कहीं पहाडियां जरूर दिखेंगी। और उन्होंने निराश नहीं किया। पहाडियां दिखीं और मजा आ गया। पहाडी दिखते ही अंधेरा छा गया, दिन छिप गया।
मुगलसराय पहुंचे। जाते ही दो समोसे लिये और दिवाकर को फोन लगा दिया। उसने कहा कि हम बाहर हैं। मैंने कहा कि जल्दी, दौडकर अन्दर आ। गाडी प्लेटफार्म नम्बर इतने पर खडी है। अपनी ट्रेन बिल्कुल राइट टाइम पर चल रही थी। जब निर्धारित समय पर यहां से छूटने लगी और दिवाकर नहीं दिखा तो सीधी सी बात है कि दोबारा फोन लगा दिया। अब उसने ज्यादा स्पष्ट बताया कि उसकी गाडी अभी मुगलसराय के आउटर पर खडी है यानी बाहर है।
दिवाकर इस गाडी में नहीं आ सका। अब इतना पक्का हो गया कि गया में नहीं उतरना है। इधर हम ठहरे नींद के कोल्हू। दिनभर सोने में लगा दिया और अब मुगलसराय से निकलते ही फिर लुढक गये। एक बार दो बजे के करीब आंख खुली जब गाडी धनबाद में खडी थी। फिर जो सोये तो हावडा के आउटर तक सोते ही गये।
अगला भाग: कोलकाता यात्रा- कालीघाट मन्दिर, मेट्रो और ट्राम
हावडा पुरी यात्रा
1. कलकत्ता यात्रा- दिल्ली से हावडा
2. कोलकाता यात्रा- कालीघाट मन्दिर, मेट्रो और ट्राम
3. हावडा-खडगपुर रेल यात्रा
4. कोणार्क का सूर्य मन्दिर
5. पुरी यात्रा- जगन्नाथ मन्दिर और समुद्र तट
6. पुरी से बिलासपुर पैसेंजर ट्रेन यात्रा
पूजा में कलकत्ता, वाह.
ReplyDeleteमजेदार. अगली कड़ी का इंतज़ार.
ReplyDeleteट्रेन के हिंडोलों में सोने का सुख अनिवर्चनीय है।
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति ||
ReplyDeleteबधाई ||
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं
dcgpthravikar.blogspot.com
dineshkidillagi.blogspot.com
neemnimbouri.blogspot.com
बहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह!
ReplyDelete......बहुत ही खुबसूरत .......
ReplyDeleteनवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं |
खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDelete.. नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएं....
आपका जीवन मंगलमयी रहे ..यही माता से प्रार्थना हैं ..
जय माता दी !!!!!!
चर्चा-मंच पर हैं आप
ReplyDeleteपाठक-गण ही पञ्च हैं, शोभित चर्चा मंच |
आँख-मूँद के क्यूँ गए, कर भंगुर मन-कंच |
कर भंगुर मन-कंच, टिप्पणी करते जाओ |
प्रस्तोता का करम, नरम नुस्खा अपनाओ |
रविकर न्योता देत, द्वार पर सुनिए ठक-ठक |
चलिए रचनाकार, लेखकालोचक-पाठक ||
शुक्रवार
चर्चा - मंच : 653
http://charchamanch.blogspot.com/
तुम्हारा इन्तजार रहेगा नीरज ..अगली बार जब भी आओ ....अतुल के साथ तुम्हारी यात्रा मंगल मई रहे ----
ReplyDeleteइतने दिनों में पहली बार एक पोस्ट बिना फोटो के.....
ReplyDeleteक्या हुआ नीरज भाई.....
मजेदार. अगली कड़ी का इंतज़ार.
ReplyDeleteआप तो कमल के है
जब भी हो मोका निकालने से निकल जाते है
nice
नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएं....
ReplyDeleteसर्वप्रथम नवरात्रि पर्व पर माँ आदि शक्ति नव-दुर्गा से सबकी खुशहाली की प्रार्थना करते हुए इस पावन पर्व की बहुत बहुत बधाई व हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteपैरों मे होंगे चक्र बन गये बड़े घुमक्कड़ी।
इंतेजार है, कब आयेगी अगली कड़ी॥
यात्रा का सुंदर वर्णन…
“जैसे सिंहों के लेहंडे नहीं होते, वैसे ही घुमक्कड भी जमात बांध के नहीं घूमा करते।”
ReplyDeleteक्या बात कही है गुरुवार ने !!!
नींद के कोल्हू :) ये भी खूब रही.
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