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भारत में बैजनाथ और बैद्यनाथ बहुत हैं। इनमें से हिमाचल प्रदेश वाला बैजनाथ काफी प्रसिद्ध है। दिल्ली से सीधे बसें भी चलती हैं। और तो और, पठानकोट से नैरो गेज वाली कांगडा रेल भी बैजनाथ होते हुए ही जोगिन्दर नगर तक जाती है। लेकिन उस बैजनाथ के अलावा एक बैजनाथ उत्तराखण्ड के कुमाऊं में भी है। यह बागेश्वर जिले में गरुड के पास है।
भारत में बैजनाथ और बैद्यनाथ बहुत हैं। इनमें से हिमाचल प्रदेश वाला बैजनाथ काफी प्रसिद्ध है। दिल्ली से सीधे बसें भी चलती हैं। और तो और, पठानकोट से नैरो गेज वाली कांगडा रेल भी बैजनाथ होते हुए ही जोगिन्दर नगर तक जाती है। लेकिन उस बैजनाथ के अलावा एक बैजनाथ उत्तराखण्ड के कुमाऊं में भी है। यह बागेश्वर जिले में गरुड के पास है।
कौसानी से हिमालय की ओर देखने पर बीच में एक काफी बडी घाटी दिखाई देती है। पूरी घाटी में गांव और कस्बे बसे हुए हैं। इस घाटी को कत्यूरी घाटी कहते हैं। इस कत्यूरी घाटी की राजधानी किसी जमाने में बैजनाथ थी। तब इसे कार्तिकेयपुर कहते थे।
बैजनाथ में गोमती और गरुड गंगा बहती हैं। संगम के किनारे ही सन 1150 का बना हुआ मन्दिर समूह है जिसे कत्यूरी राजाओं ने बनवाया था। यहां पत्थर के बने हुए कई मन्दिर हैं जिनमें मुख्य मन्दिर भगवान शिव का है।
बराबर में गोमती और गरुड गंगा का संगम एक छोटी सी झील का रूप ले चुका है। इसमें सुनहरी महाशीर मछलियों की भरमार है। यहां मछली पकडना प्रतिबन्धित है। यहां मछलियों को चना खिलाया जाता है। मछलियों को आटे की गोलियां डालना तो मैंने कई जगह देखा है लेकिन भुने हुए चने के दाने खिलाना केवल यहीं पर देखा है।
बैजनाथ में गोमती और गरुड गंगा बहती हैं। संगम के किनारे ही सन 1150 का बना हुआ मन्दिर समूह है जिसे कत्यूरी राजाओं ने बनवाया था। यहां पत्थर के बने हुए कई मन्दिर हैं जिनमें मुख्य मन्दिर भगवान शिव का है।
बराबर में गोमती और गरुड गंगा का संगम एक छोटी सी झील का रूप ले चुका है। इसमें सुनहरी महाशीर मछलियों की भरमार है। यहां मछली पकडना प्रतिबन्धित है। यहां मछलियों को चना खिलाया जाता है। मछलियों को आटे की गोलियां डालना तो मैंने कई जगह देखा है लेकिन भुने हुए चने के दाने खिलाना केवल यहीं पर देखा है।
पिछली बार विकास अग्रवाल ने पूछा था-
नीरज भाई फोटो तो काफी अच्छे हैं, सुना है कौसानी को फूलो की घाटी भी कहा जाता है, सोच रहे हैं इस बार गर्मियों में वहां जाने की...मगर ये बताओ कि हल्द्वानी से कितना पड़ता हैं कौसानी, और रोड कैसी है, क्योकि अपनी गाडी से ही जाऊँगा...अल्मोड़ा या कौसानी में से एक चुनना हो तो किसे चुनेंगेविकास जी, मैंने पहली बार सुना है कि कौसानी को फूलों की घाटी भी कहते हैं। रही बात गर्मियों में उधर जाने की तो मैं कौसानी को वरीयता दूंगा। अल्मोडा गर्मियों में तप जाता है और हिमालयी शहर होने के बावजूद भी काफी गर्मी होती है। कौसानी अपेक्षाकृत ऊंचाई पर बसा है इसलिये गर्मियों में जाने के लिये ज्यादा उपयुक्त है। फिर चूंकि अल्मोडा रास्ते में पडेगा तो कुछ समय वहां भी बिताया जा सकता है।
हल्द्वानी से कौसानी लगभग 110 किलोमीटर होना चाहिये क्योंकि अल्मोडा लगभग 60-70 किलोमीटर है। अपनी गाडी से पांच घण्टे मानकर चलो। सडक बढिया है। हां, एक सलाह और दूंगा। अगर अपनी गाडी से जा रहे हैं तो भीमताल-भवाली होते हुए जाना। ज्योलीकोट-भवाली से जाने में ज्यादा ट्रैफिक का सामना करना पडेगा और फालतू का जाम भी मिल सकता है। क्योंकि ज्योलीकोट नैनीताल वाले रास्ते में पडता है और छुट्टियों में नैनीताल जाने वालों की बेतहाशा भीड होती है।
अंत में, यात्रा की शुभकामनाएं। वापस आकर यात्रा के बारे में बताना मत भूलना।
नीरज भाई फोटो तो काफी अच्छे हैं, सुना है कौसानी को फूलो की घाटी भी कहा जाता है, सोच रहे हैं इस बार गर्मियों में वहां जाने की...मगर ये बताओ कि हल्द्वानी से कितना पड़ता हैं कौसानी, और रोड कैसी है, क्योकि अपनी गाडी से ही जाऊँगा...अल्मोड़ा या कौसानी में से एक चुनना हो तो किसे चुनेंगेविकास जी, मैंने पहली बार सुना है कि कौसानी को फूलों की घाटी भी कहते हैं। रही बात गर्मियों में उधर जाने की तो मैं कौसानी को वरीयता दूंगा। अल्मोडा गर्मियों में तप जाता है और हिमालयी शहर होने के बावजूद भी काफी गर्मी होती है। कौसानी अपेक्षाकृत ऊंचाई पर बसा है इसलिये गर्मियों में जाने के लिये ज्यादा उपयुक्त है। फिर चूंकि अल्मोडा रास्ते में पडेगा तो कुछ समय वहां भी बिताया जा सकता है।
हल्द्वानी से कौसानी लगभग 110 किलोमीटर होना चाहिये क्योंकि अल्मोडा लगभग 60-70 किलोमीटर है। अपनी गाडी से पांच घण्टे मानकर चलो। सडक बढिया है। हां, एक सलाह और दूंगा। अगर अपनी गाडी से जा रहे हैं तो भीमताल-भवाली होते हुए जाना। ज्योलीकोट-भवाली से जाने में ज्यादा ट्रैफिक का सामना करना पडेगा और फालतू का जाम भी मिल सकता है। क्योंकि ज्योलीकोट नैनीताल वाले रास्ते में पडता है और छुट्टियों में नैनीताल जाने वालों की बेतहाशा भीड होती है।
अंत में, यात्रा की शुभकामनाएं। वापस आकर यात्रा के बारे में बताना मत भूलना।
अगला भाग: रानीखेत के पास भी है बिनसर महादेव
इस बैजनाथ के अलावा एक बैजनाथ हिमाचल प्रदेश में भी है जिसका विस्तृत वृत्तान्त यहां क्लिक करके पढा जा सकता है।
कुमाऊं यात्रा
1. एक यात्रा अतुल के साथ
2. यात्रा कुमाऊं के एक गांव की
3. एक कुमाऊंनी गांव- भागाद्यूनी
4. कौसानी
5. एक बैजनाथ उत्तराखण्ड में भी है
6. रानीखेत के पास भी है बिनसर महादेव
7. अल्मोडा यात्रा की कुछ और यादें
मस्त रस्वीरें...२९ दिन का बिना नहाये रियाज बचा, बस्स!!!
ReplyDeleteये तो मैने भी देखा हुया है। बहुत सुन्दर। होली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteबिना नहाये रहने के लिये शरीर को बहुत मनाना पड़ता है।
ReplyDeleteneeraj ji, aap aaj ke yug ke Rahul Sankritayan ho... Gwaldam ke paas hi ek sthan hai jaha par barf mein dabe hue kuch shareer mile hai jinki lambai 9 feet hai wahi paas mein phoolo ki ghati bhi hai. Aur kausani ke paas ek jagah Chaukodi bhi hai jo ek sunder picnic spot hai, almora ke paas Binsar aur Jageswar bhi dekhne layak jagah hai.
ReplyDeleteतो दो ही दिन में अतुल भी सीख गया घुमक्कडी कैसे की जाती है। वाह!
ReplyDeleteऔर 29वें दिन गीले तौलिये से शरीर पौंछ लेना चाहिये 15दिन और निकल जायेंगें और खाज से भी पीछा छूट जायेगा :)
जै राम जी की
नीरज भाई, बहुत बहुत धन्यवाद आपके सुझाव के लिए, यात्रा वृतांत बिलकुल होगा वापस आने के बाद, आपको विवाह मूवी याद हो तो, उसमें एक गाना था..मुझे हक है..उसकी शूटिंग यहीं हुई थी..में भवाली से आगे एक मंदिर है...बाबा नीम करोली महाराज का...वहां तक जा चूका हूँ,,,अल्मोड़ा और रानीखेत दोनों जगह ही नहीं जा पाया अभ...यहाँ तक कि मेरा ऑफिस जिम कॉर्बेट की जड़ में है फिर भी आज तक वहां के लिए टाइम नहीं निकाल पाया...यहाँ रामनगर में एक दो जगह हैं पास में वहीँ का प्रोग्राम बन जाता है सन्डे में...गर्जिया मंदिर, कॉर्बेट फाल, सीतावनी..बस इन्ही सब जगहों में घूमना होता है ज्यादातर..
ReplyDeleteये बैजनाथ हमने भी देखा था भाई...फोटू हमेशा की तरह जोरदार...
ReplyDeleteहोली की ढेरों शुभकामनाएं.
नीरज
बहुत सुन्दर , आपको होली की हार्दिक शुभकामनाये !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर , होली की ढेरों शुभकामनाएं.
ReplyDeleteआपको और आपके सारे परिवार को इस अनूठे पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteबैजनाथ मंदिर में एक ऐसा गोल पत्थर भी है जो किसी से नहीं उठता, लेकिन उंगलियों से मिलकर उठाने पर उठ जाता है।
ReplyDeleteनीरज जी
ReplyDeleteबहुत रोचक वर्णन है ..पूरा इतिहास समेट लिया आपने अपनीं इस पोस्ट में ...आपको होली की हार्दिक शुभकामनायें
होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteमहीने भर बिना नहाये...सही है भाई :) :) हा हा
ReplyDeleteभजन करो भोजन करो गाओ ताल तरंग।
ReplyDeleteमन मेरो लागे रहे सब ब्लोगर के संग॥
होलिका (अपने अंतर के कलुष) के दहन और वसन्तोसव पर्व की शुभकामनाएँ!
बहुत ही मस्त चित्र, नही नहाने का गिनीज बुक रिकार्ड तोडने के बारे में भी विचार किया जाये.:)
ReplyDeleteहोली पर्व की घणी रामराम.
नई तरह का ब्लॉग,जानकारी से भरा ,राहुल सांकृत्यायन से प्रेरित !
ReplyDeleteहोली की शुभकामनायें !
छि नीरज ,इतने दिन बिना नहाए --क्या मेरी तरह 'कव्वास्नान' भी नही ?
ReplyDeleteअरे नीरज भाई कभी तो हंस लिया करो --:):):)
मेरे साथ होली की दावत --मेरे ब्लोक पर ...हैप्पी होली ..
नीरज भाई आपको भी परिवार सहित होली की बहुत-बहुत मुबारकबाद... हार्दिक शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteइस बार की पोस्ट और भी जानकारी भरी रही. होली की बधाई.
ReplyDeleteबहुत अछ्छा लगा! घूमते रहिये ऐसे ही
ReplyDeleteहोली का त्यौहार आपके सुखद जीवन और सुखी परिवार में और भी रंग विरंगी खुशयां बिखेरे यही कामना
ReplyDeleteअरे ! आप बैजनाथ से कोट के मंदिर में नहीं गए?
ReplyDeleteBethe bethe darshan kara diye, photos sandar hai
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