बहुत दिनों से सुन रखा था कि कालसी में अशोक का शिलालेख है। वही सम्राट अशोक जिसने कलिंग (उडीसा) को फतेह करने के बाद लडना छोड दिया था और बौद्ध धर्म की सेवा में लग गया था। उस समय बौद्ध धर्म भारत का राजकीय धर्म था। तो जी अशोक महाराज ने अपने धर्म, शिक्षाओं, नियम-कायदों का प्रचार किया। पूरे भारत में कई जगह शिलालेख बनवाये गये। कालसी भी लपेटे में आ गया।
और हम पर श्रीखण्ड बाबा का आशीर्वाद था कि हम रामपुर से रोहडू, आराकोट, त्यूनी, चकराता होते हुए कालसी पहुंचे और शिलालेख देखा। यह योजना हमारे परम घुमक्कड मित्र श्री सन्दीप पंवार जी के खडूस दिमाग की उपज थी नहीं तो कौन होता है जो इस उल्टे और अनजान रास्ते से यहां तक पहुंचता। रामपुर बुशहर से, रोहडू से कालसी पहुंचकर हम तो किसी को यह कहने लायक भी नहीं बचे कि भाई, कालसी का रास्ता देहरादून, पौण्टा साहिब से जाता है। अगला यह सुनते ही तपाक से पूछेगा कि क्यों, तुम गये थे क्या इस रास्ते से।
खैर, सन्दीप जी ने ही इस शिलालेख के बारे में कुछ खोजबीन करी है। सीधी सी बात है कि मैं इस झंझट से बच गया। वाकई ऐतिहासिक बातों का पता लगाना बडे झंझट का काम है। तो जी, अब होगा ये कि मैं उनकी खोजबीन के ही कुछ अंशों को प्रस्तुत कर रहा हूं-
“भारत का राजकीय प्रतीक/ चिन्ह सम्राट अशोक की सारनाथ की लाट/स्तंभ से लिया गया चिन्ह है। इस चिन्ह में चारों दिशाओं में मुँह किये हुए चार शेर है जो एक गोल आधार पर टिके हुए है। ये गोल आधार खिले हुए उल्टे लटके कमल के जैसा है। एक ही पत्थर को काट कर बनाए गए इस सिंह स्तंभ के ऊपर 'धर्मचक्र' रखा हुआ है। चक्र केंद्र में दिखाई देता है, सांड सीधे हाथ, और घोड़ा उल्टे हाथ पर। चिन्ह के नीचे सत्यमेव जयते देवनागरी लिपि में लिखा हुआ है। सत्य,मेव जयते शब्द मुंडकोपनिषद से लिया गया हैं, जिसका अर्थ है केवल सत्य की जीत होती है। राष्ट्र चिन्ह 26 जनवरी 1950 में संविधान अपनाते समय ही भारत सरकार द्धारा अपनाया गया था। कालसी भारत के महान सम्राट अशोक के पत्थर पर बने हुए शिलालेख के कारण प्रसिद्ध है। पुराने समय में पत्थरों जैसी कठोर सतह पर कुछ लिखने की परम्परा थी। प्राचीन काल से ही राजा महाराजा अपने आदेश इसी प्रकार लिखवाते थे। जिससे लोग इन्हे पढे व इन पर अमल करे। सम्राट अशोक का राजकाल ईसापूर्व 273-232 के समय का रहा है। इनका राज अफ़गानिस्तान से लेकर पूर्वी भारत तक व दक्षिण भारत में सिर्फ़ तमिलनाडु व केरल को छोड कर पूरे भारत पर था।“
अशोक का यह शिलालेख देखने के बाद कालसी में कुछ नहीं बचता देखने को। हां, यमुना प्राकृतिक सुन्दरता में चार चांद जरूर लगा देती है। यही वो जगह है जहां यमुना पहाड छोडकर मैदान में आती है। हालांकि ये अलग बात है कि यमुना का पहाड छोडते समय उतना सत्कार नहीं हुआ, जितना गंगा का हुआ है।
आज रात हमें पौण्टा साहिब गुरुद्वारे में रुकना था। और पौण्टा साहिब यहां से कुछ ज्यादा दूर है भी नहीं। बस, कालसी से निकलकर विकासनगर, हरबर्टपुर, यहां से दाहिने मुडकर सीधे नाक की सीध में भागे जाना था। और जहां भी कहीं टूटी-फूटी सडक आती, वही गुरुद्वारे परिसर में जा घुसना था। टूटी-फूटी सडक मतलब हिमाचल प्रदेश। हालांकि हिमाचल प्रेमियों को मेरे इन शब्दों से घोर निराशा जरूर होगी क्योंकि ज्यादातर लोगों ने हिमाचल में वही शिमला रोड, मनाली रोड या फिर हद से हद कांगडा रोड देख रखी होंगी। मैं दूसरों को बात क्यों बना रहा हूं, अभी तक मैं भी इन्हीं सडकों पर घूमा करता था। पिछले दो दिनों से हम हिमाचल की सीमावर्ती (उत्तराखण्ड की सीमा के पास) सडकों को खंगाल रहे थे, इसलिये उसी ‘खंगाल’ का यह नतीजा है कि मैं सडक पर एक गड्ढा आते ही कहता कि लगता है हम हिमाचल में हैं। इस मामले में उत्तराखण्ड हिमाचल से काफी आगे है।
जब हम हरबर्टपुर से पौण्टा साहिब की तरफ बढते हैं तो हमारे दाहिनी ओर डाकपत्थर होता है, उससे परे यमुना नदी। कालसी में यमुना पार करने के बाद अब यमुना हमारे दाहिनी तरफ आ गई थी। इसी यमुना को फिर से दुबारा पार करके हमें हिमाचल में पहुंचना था। सीधी सी बात है कि जब हम यमुना को दोबारा पार करेंगे तो यमुना का पानी हमारे दाहिने से बायें तरफ की ओर बहेगा। लेकिन जब थोडी देर बाद एक बैराज आया और उसका पानी विपरीत दिशा में बहता दिखा यानी बायें से दाहिनी तरफ बहता दिखा तो अपने दिमाग की भुजिया बननी शुरू हो गई। यह बैराज काफी बडा है और यमुना का धोखा भी देता है। मैं भी इसी धोखे में आ गया। मैंने इसे यमुना ही समझा और दिमाग पर खूब जोर लगा-लगाकर सोचता रहा कि इसका पानी उल्टी दिशा में क्यों बह रहा है।
मैंने यह बात सन्दीप भाई से भी कही। बोले कि कहीं यमुना से कोई नहर निकली होगी। यह वही नहर है। मैंने कहा कि भाई, नहर और नदी में फरक होता है और चौमासे में यह फरक स्पष्ट दीखता भी है। दूसरी बात, पुल पार करने से पहले यमुना हमारे दाहिनी तरफ थी। अगर उसमें से कोई नहर निकलेगी तो भी दाहिनी तरफ से ही निकलेगी। नहर को जब पार करेंगे तो उसका बहाव दाहिने से बायें तरफ होगा लेकिन यहां तो मामला उल्टा है।
थोडी देर बाद देखा कि अभी भी यमुना दाहिनी तरफ ही है। तो क्या हमने जो थोडी देर पहले नदी पार की थी, वो यमुना नहीं थी। फिर कौन सी नदी थी? अरे तेरे की! यह तो आसन बैराज था जो आसन नदी पर बना है। यह नदी तो दिमाग से उतर ही गई थी। आसन नदी देहरादून के पास से शिवालिक की पहाडियों से निकलती है। हकीकत में यह एक बरसाती नदी है जो आजकल पूरे उफान पर थी। जब हमने इसी आसन नदी का पुल पार किया था तो यह बायें से बहती हुई हमारे दाहिनी तरफ यमुना में विलीन हो रही थी। अब सब मामला समझ में आ गया।
इसके बाद आया असली यमुना बैराज, जो हिमाचल और उत्तराखण्ड की सीमा पर है। बैराज को पार करते ही हम हिमाचल में घुस गये। यमुना के किनारे ही पौण्टा साहिब गुरुद्वारा है।
कालसी में यमुना नदी
इसी के भीतर विशाल पत्थर का बना हुआ शिलालेख स्थित है। इस ‘इमारत’ को 1912 में बनवाया गया था।
यह है कालसी में अशोक का शिलालेख
इस पर लिखा है-
“उत्तर भारत में एकमात्र कालसी में ही अशोक के चतुर्दश शिलालेख प्राप्त होते हैं। अतः इस स्थल का विशिष्ट महत्व है। प्रस्तर शिला पर उत्कीर्ण इन लेखों की भाषा प्राकृत एवं लिपि ब्राह्मी है। यह शिलालेख सम्राट अशोक के आन्तरिक प्रशासन के प्रति उनका दृष्टिकोण, प्रजा के साथ नैतिक, आध्यात्मिक एवं पितृतुल्य सम्बन्ध, अहिंसा के लिये प्रतिबद्धता एवं युद्ध के परित्याग को दर्शाते हैं। उक्त कार्य हेतु अशोक ने निषेधात्मक एवं प्रयोगात्मक नीतियों की घोषणा की। निषेधात्मक नीतियों के अन्तर्गत सांसारिक मनोविनोद, पशुबलि, अनावश्यक कार्यों में संलिप्त होना एवं स्वयं को महिमामण्डित करना तथा प्रयोगात्मक नीतियों में आत्म-संयम, मन की शुद्धता, कृतज्ञता, माता-पिता की सेवा, ब्राह्मणों एवं सन्यासियों को दान देना, मित्रों, सम्बन्धियों, परिचितों, सेवकों एवं दासों के प्रति समभाव तथा धार्मिक विषयों पर आपसी सामंजस्य का उदबोधन है।
उक्त नीतियों के कार्यान्वयन हेतु सम्राट अशोक ने शासकीय भोगशाला में जानवरों के अनावश्यक वध पर प्रतिबन्ध, पशु एवं मानवों की चिकित्सा की व्यवस्था, समस्त प्राणियों के हित के लिये औषधीय वृक्षों को लगाना, धर्म महामात्रों की नियुक्ति, भेरी घोष (युद्ध घोष) के स्थान पर धर्म घोष द्वारा विजय उल्लेखनीय है। अशोक ने न केवल अपने साम्राज्य अपितु पडोसी देश, चोल, पाण्ड्य, सात्तियपुत्र, केरलपुत्र एवं सुदूर दक्षिण में ताम्रपर्णि के अतिरिक्त पश्चिमी देशों के समकालीन यूनानी राजाओं जिनमें सीरिया के अन्तियक द्वितीय थियोस, इजिप्ट के टाल्मी द्वितीय फिलाडेल्फस, मेसीडोनिया के एण्टीगोनस गोनकिस, सीरीन के मगस तथा इपिरस के एलेक्जेण्डर के साम्राज्य में भी धर्म विजत हेतु इन उपदेशों का प्रचार-प्रसार किया।
अतः ये अभिलेख प्रमाणित करते हैं कि अशोक द्वारा प्रतिपादित उपदेश व्यवहार में भी प्रयोग हुए जिसके कारण अशोक की गणना विश्व के महानतम शासकों में की जाती है।
सरकार ने यहां की देखरेख के लिये इन्हें बैठा रखा है। नितिन ने पूछा कि अंकल जी, ये बताओ कि इतना बडा पत्थर यहां लाया कौन? बोले कि हम लाये थे। हमारा फोटू खींचो और अडोसियों-पडोसियों को दिखाना।
यह है यमुना नदी। कालसी से निकलते ही यमुना पार करनी पडती है।
हरबर्टपुर में एक चौराहा है। एक सडक देहरादून, एक सहारनपुर, एक पौण्टा साहिब और चौथी यह चकराता।
अगला भाग: गुरुद्वारा श्री पांवटा साहिब
श्रीखण्ड महादेव यात्रा
1. श्रीखण्ड महादेव यात्रा
2. श्रीखण्ड यात्रा- नारकण्डा से जांव तक
3. श्रीखण्ड महादेव यात्रा- जांव से थाचडू
4. श्रीखण्ड महादेव यात्रा- थाचडू से भीमद्वार
5. श्रीखण्ड महादेव यात्रा- भीमद्वार से पार्वती बाग
6. श्रीखण्ड महादेव के दर्शन
7. श्रीखण्ड यात्रा- भीमद्वारी से रामपुर
8. श्रीखण्ड से वापसी एक अनोखे स्टाइल में
9. पिंजौर गार्डन
10. सेरोलसर झील और जलोडी जोत
11. जलोडी जोत के पास है रघुपुर किला
12. चकराता में टाइगर फाल
13. कालसी में अशोक का शिलालेख
14. गुरुद्वारा श्री पांवटा साहिब
15. श्रीखण्ड यात्रा- तैयारी और सावधानी
सच में बहुत ही मजेदार व यादगार यात्रा रही है, रोमांच भी बहुत आया था।
ReplyDeleteवो सब कुछ था इस यात्रा में जो असली घुमक्कड को चाहिए।
देखरेख के लिए बैठे को अब हम सब देख रहे हैं, बाकी तो संदीप जी दिखा-बता चुके हैं.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया. ऐसी ऐतिहासिक और प्राकृतिक जगह हो तो क्या बात है !
ReplyDeleteसुन्दर नयनाभिराम जानकारी. यहाँ अशोक की लाट कुछ भिन्न है. चक्र में भी भिन्नता दिख रही है.
ReplyDeleteआज मेरे लिए धरोहरनुमा जानकारी लाए हो नीरज. थैंक्स. जाट देवता जी के ब्लॉग को यहाँ प्रकट कराने के लिए कौन सी तरकीब लगाई है !
ReplyDeleteयहाँ की जमुना में थोड़ा पानी देख कर अच्छा लगा।
ReplyDeleteनीरज भाई आपकी यह यात्रा बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्द्धक रही, बहुत-बहुत शुभकामना। शालिनी पाण्डेय जी जो एक हिन्दी ब्लॉगर भी हैं और जिनका ब्लॉग है 'हिन्दी भाषा और साहित्य', के द्वारा एक शोध प्रबन्ध लिखा जा रहा है जिसका विषय है ‘हिन्दी के यात्रा-वृत्तान्त: प्रकृति और प्रदेय’ इसमें एक टापिक है 'ब्लॉग पर स्थित यात्रा-वृत्त'। उसी के लिए आपके सारे यात्रा-वृत्तों का चयन किया गया है और ऐसे सभी यात्रा-वृत्तों का चयन किया जाना है जो हिन्दी में ब्लॉग पर हों। आपसे अपेक्षा की जाती है कि आप अपने विस्तृत परिचय के साथ अपने सभी यात्रा-वृत के URL मेरी मेल ID cm07589@gmail.com या शालिनी जी की मेल ID pandey.shalini9@gmail.com पर मेंल कर दें जिससे आपके परिचय और सन्दर्भ के साथ उन यात्रा-वृत्तों की समीक्षात्मक प्रस्तुति की जा सके। सन्दीप पवाँर जी से भी मेरी बात हो चुकी है और तमाम यात्रा-वृत्त लेखकों जैसे समीरलाल जी कनाडा से, शिखा वार्ष्णेय जी लन्दन से, आदि-आदि ने अपना डॉटा और URL भेज चुकी हैं। यह प्रोजक्ट UGC द्वारा प्रायोजित है अतः हिन्दी ब्लॉगिंग और यात्रा-वृत्तों को प्रोत्साहित करने की दिशा में एक सकारात्मक पहल होगी।
ReplyDelete-सादर
चन्द्र भूषण मिश्र 'ग़ाफ़िल'
फोन नं. 09532871044
Aap kabhi chakrata anol temple jaana waha gods playing stones hai (kanche).....
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