16 जुलाई का दिन कुछ खास था। हमेशा की तरह नाइट ड्यूटी की और संदीप के साथ निकल लिया श्रीखण्ड अभियान पर। श्रीखण्ड महादेव हिमाचल प्रदेश में शिमला से करीब दो सौ किलोमीटर आगे 5200 मीटर से भी ज्यादा ऊंचाई पर है। 5200 मीटर कोई हंसी मजाक नहीं है, शिमला खुद करीब 2200 मीटर पर है। उधर शिमला से सौ किलोमीटर आगे रामपुर जोकि सतलुज किनारे बसा है 1000 मीटर पर भी नहीं है। श्रीखण्ड का रास्ता रामपुर बुशैहर से ही जाता है। रामपुर से निरमण्ड, बागीपुल और आखिर में जांव। जांव से पैदल यात्रा शुरू होती है, जांव 1900 मीटर की ऊंचाई पर बसा है। अब अंदाजा लगाया जा सकता है कि जांव से करीब 35 किलोमीटर दूर श्रीखण्ड महादेव तक कैसी चढाई रही होगी।
लोगबाग अमरनाथ जाते हैं तो सालों तक अपनी बहादुरी की मिसाल देते रहते हैं कि अमरनाथ जा चुका हूं। क्योंकि कैलाश मानसरोवर के बाद इसी यात्रा को सबसे कठिन माना जाता है। लेकिन जब मैं श्रीखण्ड गया तो पता चला कि अमरनाथ यात्रा की कठिनाईयां इसके आगे कुछ भी नहीं हैं। अमरनाथ यात्रा में सबसे कठिन चढाई पिस्सूटॉप की मानी जाती है अगर सीधे शॉट कट से चढा जाये, खच्चरों के लिये बढिया ठीक-ठाक चौडा रास्ता बना है। इस पर चलें तो ज्यादा मुश्किलें नहीं आतीं। उधर श्रीखण्ड की पूरी चढाई ही ‘पिस्सूटॉप का बाप’ कही जा सकती है- 35 किलोमीटर की चढाई। और रास्ता भी ऐसा कि खच्चर-घोडे चल ही नहीं सकते।
हां तो यात्रा वृत्तान्त धीरे-धीरे लम्बा खींचा जायेगा। हम थे चार जने। मेरे और सन्दीप के अलावा नितिन और विपिन। नितिन भी हमारी तरह जाट था जबकि विपिन था पण्डित जी महाराज। पहले ही तय था कि यात्रा बाइक से होगी। सन्दीप और नितिन ‘ड्राइवर’ थे जबकि मैं और विपिन उनके पीछे बैठने वाली सवारी। मुझे बाइक चलानी नहीं आती और बाइक पर लम्बा सफर करने का मेरा पहला मौका था। इस मौके को भुनाने के बाद मैंने तय कर लिया है और सभी को फ्री सलाह भी दे रहा हूं कि बाइक चलानी आती हो तो ठीक है नहीं तो कभी भी पीछे बैठकर इतना लम्बा सफर ना करें। मैं तो कभी नहीं करूंगा। अब तक भी पिछवाडे पर गूमड से निकले हुए हैं। बाइक का सबसे भयानक टाइम वो था जब पानीपत के फ्लाईओवर पर सौ की स्पीड से उडे जा रहे थे।
मैंने चूंकि नाइट ड्यूटी की थी इसलिये चलने से पहले कुछ खाया भी नहीं था, पानीपत पार करते-करते भूख लगने लगी। भूख सुनते ही सन्दीप का फरमान आया कि अम्बाला के बाद ही कुछ खायेंगे। वो तो अच्छा था कि मेरे पास हमेशा कुछ ना कुछ खाने को रहता है, उस दिन बिस्कुट का पैकेट था, बाइक पर चलते चलते ही खत्म कर दिया। इसलिये ले देकर अम्बाला पार हो गया। सडक बढिया बना रखी है, इसलिये यहां कहीं भी रुकने को मन नहीं किया और देखते ही देखते जीरकपुर पहुंच गये। जीरकपुर में एक चौराहा है। सीधा रास्ता चण्डीगढ चला जाता है, बायें जाता है पटियाला और दाहिने जाता है पंचकुला, पिंजौर होते हुए कालका। जो रास्ता पटियाला जाता है उसपर पांच-चार किलोमीटर चलने के बाद एक सडक आती है जो मनाली जाते समय चण्डीगढ बाइपास का काम करती है। यह दाहिने वाली सडक यानी कालका वाली सडक शिमला जाते हुए चण्डीगढ बाइपास का काम करती है।
पिछले साल जब अमरनाथ गया था तो मनदीप साथ था। उसके पास ऐसी यात्राओं में बर्फ पर चलने के लिये कील ठुके लठ थे, मैंने चार लठ मंगा लिये थे। लठों को देखते ही नितिन ने कहा कि ये किसलिये हैं। मैंने बताया कि आगे पैदल चलने के बहुत काम आयेंगे। बोला कि अरे, हम बिना लठ के चला करते हैं। अभी ऐसे रास्ते ही नहीं बने कि हमें लठों की जरुरत पडे। मैंने सोचा कि बेटा, अभी तेल की ताकत से चल रहा है, जब अपनी ताकत लगानी पडेगी तब पता चलेगी इन लठों की अहमियत। और हुआ भी बिल्कुल ऐसा ही। अगला जांव से छह किलोमीटर चलकर बैठ गया और बोला कि आगे जाना बसकी बात नहीं है। उसने यात्रा पूरी नहीं की। तब मैंने उससे कहा कि भाई, तुम बाइक के हीरो बन सकते हो लेकिन पैरों के हीरो नहीं।
जीरकपुर से निकलते ही सन्दीप अपनी बात से पलट गया। बोला कि अब शिमला पहुंचकर ही कुछ खायेंगे। सुनते ही मैंने अपना फैसला सुनाया कि भूखे पेट किसी भी हालत में कालका पार नहीं करना है। जैसे ही पिंजौर में सडक किनारे कुछ फल वाले दिखे तो तुरन्त बाइक रुकवाई गई। किसी ने कहा है कि ‘जीने के लिये खाओ ना कि खाने के लिये जीओ’। मेरा उसूल उल्टा है- खाने के लिये जीना। कभी कोई आदमी पहली बार खाने के लिये टोकता है तो अपने से ‘ना’ नहीं होती। जब तक पूरा खाना ही खत्म ना हो जाये तब तक हटता भी नहीं हूं। नतीजा यह होता है कि मुझे जरा सा भी जानने वाले लोग दोबारा कभी नहीं टोकते। ऑफिस में तो यह हाल है कि मेरे साथ वाले लोग तेल के स्टोर में पीपों के पीछे अंधेरे में बैठकर खाना खाते देखे गये हैं। उन्हें डर होता कि अगर नीरज आ गया तो...।
असल में पिंजौर में चायवालों को देखकर बाइक रुकवाई गई थी। उम्मीद थी कि उनके पास पकौडे मिलेंगे, लेकिन बाद में पता चला कि पकौडे बनने में अभी एक घण्टा बाकी है। इसलिये एक दर्जन केले लिये गये। चारों के हिस्से में तीन-तीन केले आये। कुछ होता है भला तीन केलों से? यहां से चलने ही वाले थे कि पता चला कि हम पिंजौर गार्डन के बिल्कुल बराबर में खडे केले खा रहे हैं। इसलिये पिंजौर गार्डन भी घूम लिया गया। जब तक गार्डन में घूमे, पकौडे बन चुके थे। एक एक पकौडे खाकर कालका की तरफ चल दिये। पिंजौर गार्डन की कथा बाद में लिखूंगा।
सावन का महीना हो, हिमालय पर घूमने जा रहे हों वो भी आठ दिनों के लिये और बारिश ना हो, बिल्कुल असम्भव बात है। नितिन के पास बरसाती नहीं थी। कालका में उसकी कमी भी पूरी हो गई, नई बरसाती ले ली गई। हल्की-हल्की फुहार पडने लगी तो चारों ने अपनी-अपनी बरसाती पहन ली। जैसे ही नितिन बाइक पर बैठा तो उसकी फट गई। साथ ही विपिन की भी फट गई। और फटी भी पैरों के बिल्कुल बीच से। बस तभी से सबकी जुबान पर ‘फट गई’ बस गया और वापसी तक भी पीछा नहीं छोडा। और जिनकी फटी थी, वे भी इतने मस्त थे कि नारकण्डा जाकर होटल वाले से सुई मांगी तो यही कहकर मांगी कि भईया, हमारी फट गई है, सुई धागा दे दो। अब ऐसे में कोई कितना भी मुंह फुलाये बैठा हो, चेहरे पर मुस्कान तो आ ही जायेगी।
शिमला पहुंचे। तीन केले कभी के हजम हो चुके थे। कुफरी से जरा सा पहले चाऊमीन खाई गई। यहां भी एक पंगा हो गया और हुआ मेरे साथ। सीधी सी बात है कि मेरे साथ पंगा हुआ हो तो कुछ ना कुछ भयानक ही हुआ होगा। जैसे ही चाऊमीन परोसी गई, साथ में चार कटोरी और भी दी गई। इनमें हरी चटनी, सिरका, लाल मिर्च का सॉस और चौथी में था टमाटर का सॉस। इनमें से पहली दो कटोरी तो मैंने पहचान ली लेकिन तीसरी को पहचानने में गडबड हो गई। सोचा कि इन दो कटोरियों में टमाटर का सॉस है। भूख से बिलबिला रहा ही था, चार-पांच चम्मच भर-भरकर लाल मिर्च का सॉस डाल लिया। और जैसे ही खाना शुरू किया ऊपर से नीचे तक शरीर में झंकार बजने लगी, आंखों से अश्रुधारा बहने लगी, कानों में भी बीन सी बजने लगी, नाक के लिये रुमाल निकाल लिया। हां, बाकी तीनों को पता था कि मैंने लाल मिर्च डाल ली है, इसलिये मेरी हालत पर मजे ले रहे थे। सन्दीप ने कहा कि भाई, अभी तो कुछ नहीं हो रहा है, जब सुबह को टट्टी करने जायेगा तब पता चलेगा कि मिर्चें खाई थी।
शिमला से चले तो ठियोग से निकलते ही बारिश पडने लगी। ठियोग से एक रास्ता रोहडू के लिये भी जाता है। करीब 2500 मीटर की ऊंचाई फिर ऊपर से बारिश। इतनी ऊंचाई की गर्मियां ही रजाई में सोने के लिये काफी होती है, फिर हम बाइक सवारों का उस बारिश में जो हाल हुआ होगा, कोई भुक्तभोगी ही जान सकता है। वो तो सडक बहुत अच्छी थी कि कहीं एक भी गड्ढा तक नहीं था। कभी अगर उधर जाना हो तो सडक की तारीफ जरूर करना। आराम से चालीस की स्पीड से चलते रहे। छह बजे तक नारकण्डा पहुंच गये। यहां तक मूसलाधार बारिश हो रही थी। हमारा इरादा आज नारकण्डा से करीब तीस किलोमीटर आगे सैंज में रुकने का था लेकिन जैसे ही आराम करने के लिये बाइक से उतरे और फिर जो ठण्ड लगनी शुरू हुई, तभी फैसला हो गया कि यहां से आगे नहीं जायेंगे। नारकण्डा में जाते ही मैंने सबसे पहले जो काम किया वो था एक किलो जलेबी लेना। उस लाल मिर्च के सॉस और उसके ‘नतीजे’ से बचने के लिये इतनी जलेबी ली गई। और खाई भी सबसे ज्यादा मैंने ही।
नारकण्डा में एक सरकारी गेस्ट हाउस या रेस्ट हाउस है मुख्य चौक के पास में ही। एक कमरा चार सौ रुपके का था। हम चारों एक ही कमरे में रुक सकते थे लेकिन चौकीदार ने मना कर दिया कि दो से ज्यादा एक कमरे में नहीं रुकेंगे। काफी कोशिश करके उसी रेस्ट-गेस्ट हाउस में छह सौ रुपके के दो कमरे लिये गये।
जीरकपुर-पिंजौर रोड |
कालका बाजार |
कालका- शिमला रेल लाइन |
चण्डाल चौकडी- बायें से सन्दीप, नीरज, नितिन और विपिन |
भारतीय आविष्कार- जुगाड |
शिमला |
नारकण्डा में जलेबी भक्षण |
अगला भाग: श्रीखण्ड यात्रा- नारकण्डा से जांव तक
श्रीखण्ड महादेव यात्रा
1. श्रीखण्ड महादेव यात्रा
2. श्रीखण्ड यात्रा- नारकण्डा से जांव तक
3. श्रीखण्ड महादेव यात्रा- जांव से थाचडू
4. श्रीखण्ड महादेव यात्रा- थाचडू से भीमद्वार
5. श्रीखण्ड महादेव यात्रा- भीमद्वार से पार्वती बाग
6. श्रीखण्ड महादेव के दर्शन
7. श्रीखण्ड यात्रा- भीमद्वारी से रामपुर
8. श्रीखण्ड से वापसी एक अनोखे स्टाइल में
9. पिंजौर गार्डन
10. सेरोलसर झील और जलोडी जोत
11. जलोडी जोत के पास है रघुपुर किला
12. चकराता में टाइगर फाल
13. कालसी में अशोक का शिलालेख
14. गुरुद्वारा श्री पांवटा साहिब
15. श्रीखण्ड यात्रा- तैयारी और सावधानी
lage raho!
ReplyDeletebadhiyaa
ReplyDeleteदेवों के देव महादेव की कृपा बनी रहे ||
ReplyDeleteहमने यात्रा विवरण पढ़ा अच्छा लगा , दुबारा भी कभी जाओगे क्या?
ReplyDeleteजब भी खोपडी घूम जायेगी, फ़िर से जाऊँगा।
ReplyDeleteशुक्र है उनकी फ़टी सिल गयी, नहीं तो?
दिल्ली से अम्बाला जाते-आते समय सिर्फ़ पानीपत का फ़्लाईओवर ही ऐसी जगह है,
जहाँ आप अपनी गाडी की अधिकतम स्पीड को देख सकते हो।
लाजवाब यात्रा वॄतांत, जारी रखिये.
ReplyDeleteरामराम.
बड़ी रोचक लग रही है, आगे की प्रतीक्षा है।
ReplyDeleteसंदीप के कहे अनुसार मैं अपनी ID से कमेन्ट कर रहा हूँ!!पहचान रहे हो न जाट देवता !!
ReplyDeleteअपुन तो ऐसी यात्रा के लिए कई दिनों से तरस रहे हैं। देखते हैं कब मौका लगता है।
ReplyDeleteसुन्दर चित्रों के साथ बढ़िया यात्रा विवरण
ReplyDeleteचलिए, इस बार 'बाइक ट्रैकिंग' का भी लुत्फ़ ले ही लिया आपने. प्रभावी यात्रा विवरण.
ReplyDeleteबहुत अच्छा यात्रा वृतांत शुरू किया है भाई. ऐसे ही लगे रहो.
ReplyDeleteबहुत अच्छी शुरुआत....
ReplyDeleteलगता है पूरी यात्रा वृतांत मजेदार रहेगी.....
@ विधान चंद्र (आप तो लगता है गप्पू जी) हो....
yatra ati utsah wardhk.
ReplyDeleteलगता हैं आगे का यात्रा वृतान्त बहुत ही जायदा रोचक होगा . धन्यवाद
ReplyDeleteसफ़र हैं सुहाना
http://safarhainsuhana.blogspot.com/2011/07/1.html
बड़ा रोचक लगा..कहते हैं कि चलने और चढ़ने की शक्ति भोले बाबा देते हैं...
ReplyDeletebeautiful pics
ReplyDeleteभाई साहब सच बात ये है हम संदीप जाट को ढूंढ रहे थे लेकिन पहुँच गये आपके पास .अपने अन्वेषण पर हम आह्लादित हैं मुदित हैं उल्लसित हैं .आप भी उसके जैसे ही ज़िंदा दिल जा -बाज़ निकले .मजा आगया भारतीय आविष्कार जुगाड़ देख कर आपका बिंदास अंदाज़ लेखन का .ओर नयनाभिराम दृश्य .बधाई नीरज भाई .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteमुझे आश्चर्य हे कि अब तक मैने इसे क्यों नहीं देखा?
ताऊ! गाड़ी आगे सरकेगी कि नहीं, टेसन पे खड़ी कर रखी है 3 दिन हो गए।
ReplyDeleteनीरज भाई बहुत ही अच्छी यात्रा अगली पोस्ट का इंतजार ....
ReplyDeleteमैने पहले ही कहा था नीरज की बाईक की प्रेक्टिस कर ले तुमने सुना ही नही ..अब भुगतो ...
ReplyDeleteउपर से सट्की मिरचो का क्या हुआ ???????
शिमला की याद ताजा हो गई ..? कालका के पास कही रोप-वे का मजा लिया था हमने ,,नाम याद नही हैं ../
आगे की किस्त का इन्तजार रहेगा ..
नमस्कार नीरज भाई
ReplyDeleteश्रीखंड महादेव की यात्रा करने पर आपको हमारी बधाई इसे स्वीकार कीजिये . मैं चोपता तुंगनाथ और चंद्रशिला हो आया. बहुत ही अद्भुत जगह थी अब अक्तूबर में केदारनाथ ,वासुकी ताल , चोरवरी ताल, मध्यमहेश्वर और शायद कचनी खाल ज़ा रहा हूँ मेरी यात्रा १० अक्तूबर से शुरू हो रही है कोई साथी आना चाहे तो सादर आमंत्रित है.
नमस्कार नीरज भाई
ReplyDeleteश्रीखंड महादेव की यात्रा करने पर आपको हमारी बधाई इसे स्वीकार कीजिये . मैं चोपता तुंगनाथ और चंद्रशिला हो आया. बहुत ही अद्भुत जगह थी अब अक्तूबर में केदारनाथ ,वासुकी ताल , चोरवरी ताल, मध्यमहेश्वर और शायद कचनी खाल ज़ा रहा हूँ मेरी यात्रा १० अक्तूबर से शुरू हो रही है कोई साथी आना चाहे तो सादर आमंत्रित है.
बरसात के दिनों में ऐसी यात्रा -- kamaal kiya hai .
ReplyDeletelekin maza aa raha hai .
अभी अभी संदीप जी के ब्लॉग से आ रहा हूँ और आपके ब्लॉग पे भी वही...खैर वो तो जाना हुआ था...और इस कड़ी का इंतज़ार भी था :) पढ़ रहा हूँ...तस्वीरें खूबसूरत हैं बहुत..
ReplyDeleteकथा हमेशा की तरह रोचक और चित्र हमेशा की तरह बेजोड़...धन्य हो जाट महाराज...
ReplyDeleteनीरज
बहुत सही...एक से एक तस्वीरें...
ReplyDeleteअति उत्तम! पढ़ कर ऐसा आनंद आया है भाई - लेखन शैली से राग दरबारी की बरबस याद आ गयी।
ReplyDeletejaat devta ab july main jaana hai na? pls call mujhe bhi jana hai
ReplyDelete9212767111
इस बार मैंने भी कर ली श्रीखंड कैलाश यात्रा और ब्लॉग भी लिख दिया
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