भारत में कुछ चीजें ऐसी हैं जो तेजी से विलुप्त हो रही हैं। इनमें सबसे ऊपर हैं- मीटर गेज और नैरो गेज वाली गाडियां। यूनीगेज प्रोजेक्ट के तहत सभी मीटर और नैरो गेज वाली लाइनों को ब्रॉड गेज में बदला जा रहा है (सिवाय कालका-शिमला, पठानकोट-जोगिन्दर नगर, दार्जीलिंग रेलवे, ऊटी रेलवे और मथेरान रेलवे को छोडकर)। मैं पहले भी लिख चुका हूं कि मुझे किसी भी लाइन पर पैसेंजर गाडी में बैठकर हर स्टेशन पर रुकना, उनकी ऊंचाई लिखना और फोटो खींचना अच्छा लगता है। हर महीने किसी ना किसी नई लाइन पर निकल ही जाता हूं। इस साल का लक्ष्य है इन्हीं विलुप्त हो रही लाइनों पर घूमना। यानी बची हुई मीटर और नैरो गेज वाली लाइनों को कवर करना। अगर ये लाइनें एक बार बन्द हो गईं तो सदा के लिये बन्द हो जायेंगी। फिर परिवर्तन पूरा हो जाने पर इन पर बडी गाडियां दौडा करेंगी। उसके बाद हमारे पास यह तो कहने को रहेगा कि हमने ‘उस’ जमाने में छोटी गाडियों में सफर किया था।
इसी सिलसिले में इस साल की पहली यात्रा हुई सतपुडा रेलवे की। यह नैरो गेज है। जबलपुर से बालाघाट, नैनपुर से मण्डला फोर्ट और नैनपुर से नागपुर तक इनका नेटवर्क फैला हुआ है। हजरत निजामुद्दीन स्टेशन से दोपहर बाद साढे तीन बजे गोंडवाना एक्सप्रेस चलती है। तारीख थी 6 मार्च 2011। आनन-फानन में योजना बनी थी इसलिये सीट कन्फर्म भी नहीं हुई थी। यहां तक कि चार्टिंग के बाद भी नहीं। टीटी महाराज कुछ दयावान थे कि झांसी तक के लिये एक बर्थ पकडा दी। अपन छह-सात घण्टे तक आराम से सोते गये। दस बजे गाडी झांसी पहुंची। जिस सीट पर मैं पसरा पडा था, उसके मालिक एक सरदारजी थे। आते ही रौब सा दिखाया, उतरना पडा।
इसी सिलसिले में इस साल की पहली यात्रा हुई सतपुडा रेलवे की। यह नैरो गेज है। जबलपुर से बालाघाट, नैनपुर से मण्डला फोर्ट और नैनपुर से नागपुर तक इनका नेटवर्क फैला हुआ है। हजरत निजामुद्दीन स्टेशन से दोपहर बाद साढे तीन बजे गोंडवाना एक्सप्रेस चलती है। तारीख थी 6 मार्च 2011। आनन-फानन में योजना बनी थी इसलिये सीट कन्फर्म भी नहीं हुई थी। यहां तक कि चार्टिंग के बाद भी नहीं। टीटी महाराज कुछ दयावान थे कि झांसी तक के लिये एक बर्थ पकडा दी। अपन छह-सात घण्टे तक आराम से सोते गये। दस बजे गाडी झांसी पहुंची। जिस सीट पर मैं पसरा पडा था, उसके मालिक एक सरदारजी थे। आते ही रौब सा दिखाया, उतरना पडा।
भला हो गोंडवाना एक्सप्रेस का कि यह बिहार वाले रूट पर नहीं चलती तभी तो झांसी से जनरल डिब्बे में मस्त जगह मिली। सुबह साढे छह बजे तक आमला पहुंचे, आराम से पडे-पडे सोते हुए गये। हां, एक बार भोपाल में जरूर उतरा था कुछ पेट में डालने के लिये। जब से निजामुद्दीन से चला था, कुछ भी नहीं खाया था। आमला में यह गाडी आधे घण्टे देर से पहुंची थी। फिर भी यहां से सात बजे चलने वाली छिंदवाडा पैसेंजर मिल गई। हालांकि आज के जमाने में इण्टरनेट पर हर जानकारी उपलब्ध है, मैं अपनी दो दिनी यात्रा का सारा कार्यक्रम बनाकर चला था; कब कहां से कौन सी गाडी पकडनी है, कब कितने बजे कहां पहुंचना है। कुछ स्टेशनों के फोटू हैं, आमला से छिंदवाडा तक के। यह सेक्शन ब्रॉड गेज है। लगभग 125 किलोमीटर है, पैसेंजर गाडी से तीन घण्टे लगते हैं। दस बजे के आसपास गाडी छिंदवाडा पहुंचती है। छिंदवाडा ब्रॉड गेज का आखिरी स्टेशन है जबकि यहां से दो दिशाओं में नैरो गेज की लाइनें जाती हैं- एक नागपुर और दूसरी नैनपुर होते हुए जबलपुर। मुझे नैनपुर तक जाना था।
आमला जंक्शन |
लालावाडी |
जम्बाडा |
बाराछी रोड |
बोरधई |
बरेलीपार |
नवेगांव |
हिरदागढ |
जुन्नारदेव |
पालाचौरी |
परासिया |
खिरसाडोह |
छिंदवाडा जंक्शन |
अगला भाग: सतपुडा नैरो गेज- छिन्दवाडा से नैनपुर
सतपुडा नैरो गेज
1. यात्रा सतपुडा नैरो गेज की- दिल्ली से छिन्दवाडा
2. सतपुडा नैरो गेज- छिन्दवाडा से नैनपुर
3. सतपुडा नैरो गेज- बालाघाट से जबलपुर
अरे वाह!! आप तो हमारे शहर के आसपास घूम आये..नैनपुर/बालाघाट तो हमेशा का जाना है...आनन्द आया छिन्दवाड़ा...परासिया स्टेशन देख कुछ यादें ताजा कर...आभार.
ReplyDeleteनीरज भाई ,एक आध फोटू नेरो लाईन का भी हो जाए --वेसे माथेरान और शिमला की नेरो गेज लाइन पर बेठने का सोभाग्य मुझे मिल चूका है --
ReplyDeleteपहले इंदौर से भी नेरो गेज की गाडिया चलती थी जो वाया फतियाबाद होकर रतलाम जाती थी --फतियाबाद के गुलाब जामुन बड़े फेमस थे --!
सही है :)
ReplyDeleteनीरज भाई ,डलहोजी -खजियार बहुत सुन्दर जगह है --आप पठानकोट या चक्की बेंक दोनों तरफ से जा सकते हो दिल्ली वालो को कोई परेशानी नही है --हा बाम्बे वाले सिर्फ जम्मूतवी मेल से ही चक्कीबेंक उतर कर जा सकते है --पठानकोट या चक्कीबेंक एक ही स्टेशन हे
ReplyDeleteपठानकोट से आप बस ,टेक्सी से दो घंटे में डल्होजी पहुंच सकते हो ,डल्होजी बस स्टाप पर ही खजियार की बस मिल जाएगी -खजियार रुकने की जरूरत नही है !डल्होजी में सस्ते होटल मिल जाएगे थोड़ी बार्ग्निग करनी पड़ेगी उसमे आप उस्ताद है ही ,
मालरोड पर ही टूरिज्म का आफिस है वहाँ से कई पैकेज टूर चलते है-कई बार शेयर टेक्सी भी मिल जाती है !
आसपास देखने वाली काफी जगह है जरुर जाना !एकदिन डल्होजी, एक दिन खजियार और फिर चम्बा ३-४ दिन का प्रोग्राम रखना -चाहो तो खजियार में अम्बा माता के मन्दिर भी रुक सकते हो पर सीजन में वहाँ बहुत गर्दी रहती है पर वो जगह बहुत खुबसूरत है --खजियार में ही आप नया बन रहा दर्रा देख सकते हो --सुना है वहाँ काफी बर्फ रहती है और खतरा भी नही के बराबर है --आपकी यात्रा मंगलमयेई हो --धन्यवाद !
दर्शन कौर जी,
ReplyDeleteइंदौर से रतलाम और खण्डवा वाली लाइनें नैरो गेज नहीं है। ये लाइनें मीटर गेज हैं। और हां, इन पर अभी भी गाडियां चलती हैं।
और नया बन रहा दर्रा? बात कुछ हजम नहीं हुई। जाकर देखूंगा कि मामला क्या है। कहीं यह स्थानीय लोगों की करतूत तो नहीं है। बरफ पडने जैसी एक प्राकृतिक घटना को नया बन रहा दर्रा बताया जा रहा है।
भाई जी यात्रा का आनद आ गया...हमेशा ही आता है सो अबकी भी आ गया...माथेरान वाली नैरो गेज आपके इंतज़ार में है...तीन चार दिन की छुट्टी हो तभी आना, दिल्ली से मुंबई और फिर वहांसे माथेरान दो दिन का कार्यक्रम है...रोचक जानकारी...जितनी रेलवे के बारे में आप को जानकारी है उतनी तो भारतीय रेल वालों को भी नहीं होगी...
ReplyDeleteनीरज
मजा आ गया यह देख कर।
ReplyDeleteअरे भाई बेचारी उन रेलगाडी का भी एक दो फोटो जरुर ले लिया करो, जो बन्द हो जायेगी।
दर्रा वाली बात इस प्रकार से है, कि पहले वहाँ से रास्ता ना होने के कारण आना-जाना नहीं था।
चलो अब दर्शन जी ने कहा है तो इसके भी फोटो ले कर ही आयेंगे।
नीरज भाई ,आप सही कह रहे है वो मीटर गेज गाडिया कहलाती है आज भी चलती है--
ReplyDeleteऔर हो सकता है की खजियार में नया पिकनिक स्पाट बन रहा हो जिसे स्थानीय लोग दर्रा कह रहे हो ? क्योकि यह बात मुझे मन्दिर के एक सेवक ने कही थी !अब आप खुद जाकर क्न्फ्म कर सकते हो की माजरा क्या है ?
आपके नालेज की दाद देती हु --धन्यवाद !
छिन्दवाड़ा...परासिया स्टेशन देख कुछ यादें ताजा कर.
ReplyDeleteभाई जी यात्रा का आनद आ गया
ReplyDeleteआप तो हमारे ननिहाल के आसपास घूम आये.
धरोहर होंगे ये यात्रायें ब्लॉग जगत के लिए भी. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteस्टेशनों की डाइरेक्टरी निकाल दीजिये आप।
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