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20 अप्रैल 2011 को दोपहर तक हम रामबाडा पार कर चुके थे। रामबाडा गौरीकुण्ड-केदारनाथ पैदल मार्ग के बिल्कुल बीचोंबीच पडता है। आगे के सफर को पढने से पहले यह जान लें कि आज से 17 दिन बाद यानी 7 मई को केदारनाथ के कपाट खुलेंगे। कपाट खुलने के बाद यहां श्रद्धालुओं का आना-जाना बढ जाता है। नहीं तो हम जैसे इक्का-दुक्का सिरफिरे ही आते हैं। हमारा कपाट खुलने से पहले यहां आने का मकसद कोई श्रद्धा-भक्ति नहीं है। दोनों बंदे कम भीडभाड और कम खर्च करने वाले हैं और इन कार्यों के लिये इससे बढिया मौसम कोई नहीं। और अगर हम कपाट खुलने के बाद आते तो कुदरत के उस चमत्कार से बच जाते जो हमने आज देखा। पूरी दुनिया में उंगलियों पर गिनने लायक लोग ही होंगे जिन्होंने केदारनाथ में यह नजारा देखा होगा। अगर आपमें से किसी ने ऐसा नजारा देखा हो तो बताना जरूर।
रामबाडा पार करते ही हमारे दाहिनी तरफ मंदाकिनी नदी के उस तरफ वाले पहाडों का रंग सफेद होने लगा था। यहां से ऑक्सीजन की कमी भी महसूस होने लगती है। सुबह गौरीकुण्ड में खाई गई एक प्लेट मैगी भी हजम हो चुकी थी। भूख बढने लगी थी। एक जगह बैठ गये। हल्की-हल्की बूंदाबांदी होने लगी थी। मौसम में चिलचिलाहट तो थी ही। एक बिस्कुट का पैकेट खा कर जरा सा पानी पीकर जैसे ही आगे बढा तो लगने लगा कि कोई पीछे से खींच रहा है। मेरा मतलब किसी भूत-प्रेत से नहीं है। असल में नौ-दस किलोमीटर पहले गौरीकुण्ड में ही मैं बैठा था, वहां से चलकर कहीं भी बैठा नहीं था। हालांकि जगह-जगह रुक जरूर जाता था लेकिन खडे-खडे। बैठने से जहां पैरों को आराम मिला वहीं उनकी गर्मी भी खत्म हो गई। फिर समुद्र तल से तीन हजार मीटर की ऊंचाई और ऑक्सीजन की कमी। पैरों को चलने के लिये पर्याप्त ऑक्सीजन चाहिये, यह काम खून का है। जितना ज्यादा प्रवाह खून का होगा, उतनी ही ज्यादा ऑक्सीजन पैरों को मिलेगी। दूसरी बात, चढते रहने से शरीर गर्म हो जाता है। शरीर को नॉर्मल तापमान पर लाने का काम पसीने का है। ज्यादा पसीना निकलते रहने से प्यास लगती है। पानी इतना ठण्डा है कि पीने से पहले दो बार सोचना पडता है। दो घूंट पी लिया, बहुत पी लिया।
हां, एक बात और रह गई। रामबाडे से दो किलोमीटर आगे जहां हम बैठ गये थे और बिस्कुट खाये थे, हमने गणना की कि गौरीकुण्ड से चले हुए हमें ढाई घण्टे हो गये हैं। सिद्धान्त ने मुंह बिचकाकर कहा कि ढाई घण्टे में बस नौ किलोमीटर ही चले हैं। मैंने कहा कि हां, बहुत कम चले हैं। हमें तो ढाई घण्टे में चालीस किलोमीटर चल देना चाहिये था। (सिद्धान्त मैराथन धावक है) ढाई घण्टे में नौ किलोमीटर चलने का मतलब है कि प्रति घण्टे साढे तीन किलोमीटर। यह स्पीड पहाड पर चलने के लिये बहुत ही ज्यादा है। मैं कभी भी इतनी स्पीड से पहाड पर नहीं चढा हूं। इससे पहले मेरी अधिकतम स्पीड ढाई किलोमीटर प्रति घण्टे की थी जब मैं देवरिया ताल गया था। तब दो किलोमीटर की दूरी पैंतालिस मिनट में तय की थी।
खैर, गरुड चट्टी पहुंचे। यहां से केदारनाथ दो किलोमीटर दूर रह जाता है। चारों तरफ बर्फ से ढके पहाड ही दिख रहे थे। यहां तक कि नीचे गुप्तकाशी की तरफ देखने पर भी। मौसम खराब तो था ही, हवा में भी तेजी आ गई थी। बारिश भी बढ गई थी। आखिरकार रेनकोट निकाल लिया गया। सर्द हवाओं को देखकर लग रहा था कि आगे बढना सही नहीं है। फिर धुंध भी इतनी ज्यादा थी कि फोटो खींचना असम्भव था। तेज हवाओं से कैमरे को भी तो खतरा है।
गरुड चट्टी में एक आश्रम है, साधुओं का है। हमने सोचा कि आज इस आश्रम में ही रुक जाते हैं। कल सुबह जब मौसम साफ हो जायेगा तब ऊपर जायेंगे। आश्रम में पहुंचे। साधुओं ने सलाह दी कि इस समय जैसा भी मौसम है, चले जाओ। चाहो तो वापसी में रुक जाना। क्योंकि कल शाम को यहां जबरदस्त बर्फबारी हुई है। आज फिर भी मौसम बहुत ठीक है। क्या पता, कल और ज्यादा बिगड जाये। बात हमारी समझ में आ गई।
हिमालय पर मौसम पल-पल में बदलता रहता है। थोडी देर में ही बादल फिर से हट गये, हवा भी नॉर्मल हो गई। लेकिन धूप नहीं निकली थी। आगे रास्ता सीधा लेकिन चढाई वाला है। रास्ते में एक एक फुट तक बर्फ जमी पडी थी। साइड में बर्फ हटाकर चलने के लिये फुट भर का रास्ता बनाया गया था। जैसे जैसे आगे बढते गये, बर्फ की मोटाई भी बढती गई।
जब केदारनाथ एक किलोमीटर रह गया तो चढाई खत्म हो जाती है। यहां से आगे रास्ता भी नहीं बना था। मजदूर बर्फ हटाकर रास्ता बनाने का काम कर रहे थे। हालांकि बर्फ पर केदारनाथ जाने के लिये पैरों के निशान थे, इसलिये हम भी उनका अनुसरण करने लगे।
रामबाडा से दो किलोमीटर के बाद यह दृश्य आने लगता है।
मुझे पूरा अंदाजा था कि आगे बर्फ पर चलना पडेगा, तभी कहीं से ढूंढकर एक लठ ले लिया, एक सिद्धान्त को दे दिया।
बताते हैं कि यहां बडा ही शानदार झरना है। अब सबकुछ जमा पडा है।
जैसे ही मैंने कैमरा सिद्धान्त को दिया तो वो समझ गया कि बन्दा बर्फ पर चढने वाला है। उसने समझाया कि भाई बर्फ पर मत चढ। कहीं धंस गया तो। मैंने कहा कि वो काम ग्लेशियरों में होता है, जहां जरा सी बर्फ चटकते ही आदमी ‘पाताल लोक’ में चला जाता है। यह ग्लेशियर नहीं है।
गरुड चट्टी से आगे ऐसा रास्ता शुरू हो जाता है।
केदारनाथ से एक किलोमीटर पहले का फोटो है। सबकुछ सफेद हो गया है।
रास्ते से बर्फ हटाने का काम जारी है। मन्दिर तक अभी रास्ता नहीं बना है।
आगे जाने के लिये बर्फ पर बने पैरों के निशानों के सहारे ही जाना पडेगा। ये निशान स्थानीय निवासियों और मजदूरों के हैं, जो केदारनाथ मन्दिर के आसपास साफ-सफाई करने जाते हैं।
सिद्धान्त चौधरी। इसने पहले ही कह दिया था कि चेहरे का एक भी फोटो नहीं आना चाहिये।
यह खच्चर शाला है।
केदारनाथ तक बिजली पहुंची हुई है लेकिन बर्फबारी की वजह से कई खम्भे गिर गये हैं जिसकी वजह से सप्लाई बाधित है।
निशुल्क शौचालय
यह है केदारनाथ की बसावट। यहां सभी होटल और धर्मशालाएं हैं। सभी बन्द हैं। नीचे मंदाकिनी पर पुल भी है।
बिल्कुल सामने मन्दिर दिख रहा है। यहां ज्यादातर होटलों और दुकानों की पहली मंजिल बर्फ में दबी हुई है। यानी दस फुट तक बर्फ है यहां।
मन्दिर के आसपास भी बहुत ज्यादा बर्फ है। इसे हटाने का काम भी चल रहा है।
जय श्री केदारनाथ जी।
नीचे मुझे एक आदमी मिला। इस फोटो को देखकर पूछने लगा कि बताओ, यह फोटो आपने कहां खडे होकर खींचा है। मैंने कहा कि बर्फ पर। बोला कि नहीं। यहां मेरा होटल है। आप मेरे होटल की पहली मंजिल पर रखी पानी की टंकी पर खडे हैं।
जय हो। यह सिद्धान्त का एकमात्र ढंग का फोटो है। बडी खुशामद करके खींचा गया है। और हां, इस समय बर्फबारी भी हो रही है।
आप में से ज्यादातर लोग केदारनाथ जा चुके होंगे। बताना कि ऐसा नजारा कभी देखा है या नहीं। मैं पहली बार गया था।
अगला भाग: केदारनाथ में बर्फ और वापस गौरीकुण्ड
केदारनाथ तुंगनाथ यात्रा
1. केदारनाथ यात्रा
2. केदारनाथ यात्रा- गुप्तकाशी से रामबाडा
3. केदारनाथ में दस फीट बर्फ
4. केदारनाथ में बर्फ और वापस गौरीकुण्ड
5. त्रियुगी नारायण मन्दिर- शिव पार्वती का विवाह मण्डप
6. तुंगनाथ यात्रा
7. चन्द्रशिला और तुंगनाथ में बर्फबारी
8. तुंगनाथ से वापसी भी कम मजेदार नहीं
9. केदारनाथ-तुंगनाथ का कुल खर्चा- 1600 रुपये
जय श्री केदारनाथ जी। यह नज़ारा देखकर हम भी धन्य हुए।
ReplyDeleteJay Shri Kedarnathh Aur Jay Shri Neeraj Baba Ki......
ReplyDeleteHope Aisa Najaara hamein Bhi Mile.........
Kaaash..! mujhe us shaam ko fone karne ke liye Gaurikund wapus jana nahi hota...
ReplyDeleteGuruchatti rukte us raat aashram mai, sadhuo ke saath.
meri ek fone wali samasya ne pura maza kharab kar diya,mujhe nirasha hai ki hum Kedarnath par jayada time nahi de sake
भाई जी आपकी हिम्मत की जितनी प्रशंशा की जाए कम है...कमाल का जीवट है आपमें...इतनी बर्फ देख कर शरीर में झुरझरी सी होने लगी है...
ReplyDeleteनीरज
भाई जितनी प्रशंशा की जाए कम है
ReplyDeleteneeraj ji namsakar............Jai Baba Kedanath ji Ki....IS Post ko padkar main vakai main DHANYA Hua....
ReplyDeleteDhayanavad...
पिछली तीन पोस्टों से इंतजार कर रहा था, कि सिद्धांत की फोटो देंगे।
ReplyDeleteचलो एक तस्वीर तो दिखी।
ऐसा नजारा तो हमने फिल्मों में भी नहीं देखा।
प्रणाम
गजब !
ReplyDeleteअप्रतिम दृश्य।
ReplyDeleteबहुत सुंदर दृश्य .... पावन स्थल के दर्शनों का आभार ... शुभकामनायें आपको ....
ReplyDeleteयात्रा विवरण बहुत अच्छा, सभी चित्र भी सुंदर हे, लेकिन मै यह देख कर हेरान हुं कि यहां लोग् बर्फ़ साफ़ कयो नही करते, सडको पर बर्फ़ ही बर्फ़, मकान दबे पडे हे, इन लोगो का जीवन कैसे चलता होगा...?
ReplyDeleteअविस्मरणीय दृश्य। बहुत जीवट वाले जीव हो यार, शुभकामनायें।
ReplyDeleteभाटिया जी,
ReplyDeleteलगता है कि आपने केवल फोटो ही देखें हैं और उनकी जर्मनी से तुलना करके यह टिप्पणी लिखी है।
केदारनाथ कोई गांव या शहर नहीं है। यहां कोई नहीं रहता। जो भी इमारतें दिख रही हैं वे सभी होटल और धर्मशालाएं हैं। जब दीपावली से अगले दिन भैया दूज को केदारनाथ के कपाट बन्द हो जाते हैं यानी मन्दिर ही पूजा के लिये बन्द हो जाता है और उसमें रखी भगवान की मूर्ति वहां से उठाकर नीचे ऊखीमठ ले जाई जाती है तो ऊपर केदारनाथ में कोई आदमजात नहीं जाती। पूरे जाडों भर मन्दिर और सभी होटल-धर्मशालाएं बन्द ही रहती हैं।
अब जबकि सात मई को मन्दिर दोबारा खुल रहा है तो रास्ते की मरम्मत चल रही है, होटल-धर्मशालाएं भी खुलने लगी हैं। कहीं बर्फ है तो वो भी हटाई जा रही है।
यहां जब सर्दियों में लोग रहते ही नहीं हैं तो जीवन चलने का मतलब ही नहीं है। सभी होटल-धर्मशालाओं के मालिक नीचे के गांवों-शहरों के निवासी होते हैं।
just awesome report
ReplyDeleteall pics are bamboozling
it appears as if taken in Switzerland
attaboy
बल्ले बल्ले
ReplyDeleteबरफ ही बरफ
जाट भाई ईर्ष्या हो रही है। साथ मैं क्यों न हुआ।
ReplyDeleteआप बहुत हिम्मत वाले हैं। और ये चित्र बहुत कीमती हैं। एक फोटो ब्लाग अलग से बनाइए। एक चित्र रोज लगाइए।
जय हो केदार बाबा की ..इतनी बर्फ देखकर आपकी शक्ल पर पुरे बारह बज रहे है नीरज !
ReplyDeleteआज मेरी सहेली रुममा इंदौर से अपनी पलटन के साथ केदार नाथ के लिए निकली है --७ तारिख को वहा पहुंचेगी --मुझसे भी जिद कर रही थी चलने की --पर मै तुम्हारी पोस्ट देख रही हूँ --इतनी बर्फ देख कर मेरी तो नानी ही मर चुकी है न बाबा ...मै नही जा सकती ?
मेने कहा की मै नीरज जाट थोड़ी हूँ जो चल दू --देखते है उसका क्या हाल होता है --तुम्हारा तो हाल बे-हाल हे भाई
तुम्हारी पोस्ट पढ कर ही यात्रा का आनन्द ले लेते हैं वर्ना मै तो जाने का सोच भी नही सकती। शुभकामनायें।
ReplyDeleteजय श्री केदारनाथ जी।
ReplyDeleteराम राम जी,नीरज जी!
सच में हमें भी धन्य किया आपने...
आभार!
कुंवर जी,
ये हुई जाटोंवाली बात एक बार में ही सारे फ़ोटो लगा दिये बर्फ़ के की कुछ बचा भी लिये है अगली पोस्ट के लिये।
ReplyDeleteबस धन्यवाद ही कह सकता हूँ नीरज जी.
ReplyDeleteनीरज जी!...बहुत ही वास्तविक चित्रण पेश किया है आपने!...बात का बतंगड..फिर इंतजार कर रहा है!
ReplyDeleteI had visited Badri-Kedar-Gangotri with my parents 10 years back. At that time, snow was visible alongside 14 kms path. Gaurikund used to have very deep level of water. I revisited 2 years back. There was no snow nearby.
ReplyDeleteBut the pics uploaded by Jaatbhai are stunning. Neeraj has extraordinary skills in travelling & writing thereof.
http://akelachana.blogspot.com/
ReplyDeleteneeraj ji
लीजिये नई पोस्ट .....कश्मीरी वाज़वान का मज़ा लीजिये .....
ajit
jai kedarnath
ReplyDeleteभैया वाह ! वाह वाह ! और सिर्फ वाह !शब्दों से परे !
ReplyDeleteshriram..........namaste ji
ReplyDeletevah bhai vah ham bhi kutumb kafila lekar shri kedarnathji gaye the aaj 10 sal pahile
may-jaun mahineme.usaki yad taji ho gai .
jio mere pryare ji bharake ....meri shub-kamanaye ...shri bholeji ka aashirwad hamesha
tumhare sath rahe .
jay shriram.....mukund kulkarni from Dhule (Maharashtra-18)
Gajjab, un bhaio ka aabhar jo ye barf hatane ka kam kar rahe hai, Jai Baba Kedarnath
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