इस साल रेल एडवेंचर के क्रम में मैंने अपना मकसद बनाया था कि नैरो गेज और मीटर गेज ट्रेनों में घूमना है। सतपुडा नैरो गेज, धौलपुर नैरो गेज के बाद ऐशबाग-बरेली मीटर गेज और लोहारू-सीकर मीटर गेज पर सफर कर लिया। हालांकि अभी भी काफी सारी ‘छोटी’ लाइनें बची हुई हैं। लेकिन फिर भी बडी चीजें बडी होती हैं। इस बार चक्कर लग गया इलाहाबाद से कानपुर होते हुए फर्रूखाबाद तक पैसेंजर ट्रेन से। इस ट्रेन से इस रूट पर जाना काफी टाइम से मेरी हिटलिस्ट में था।
जरा एक बार नजर घुमा लेते हैं जहां मैंने पैसेंजर ट्रेन से सफर कर रखा है। अच्छा-खासा नेटवर्क बना रखा है। जहां भी जाता हूं तो नक्शे में इसे अपडेट भी कर देता हूं। इसी नेटवर्क को मैं ‘जाट का रेल नेटवर्क’ कहता हूं। मेरी कोशिश रहती है कि जहां भी जाता हूं तो वो लाइन पहले से बने नेटवर्क से जुड जाये। इसमें एक अपवाद भी है- पठानकोट-जम्मू तवी क्योंकि पठानकोट अभी तक ‘जाट के रेल नेटवर्क’ से नहीं जुड पाया है। हालांकि जालंधर और अमृतसर दोनों अपने नापे हुए हैं लेकिन इन दोनों जगहों से पठानकोट वाली लाइन पर अभी तक जाना नहीं हुआ।
जाट का रेल नेटवर्क काली लाइनों से दिखाया गया है।
कानपुर और लखनऊ भी इस नक्शे में हैं, आगे गोरखपुर और छपरा तक। लेकिन दिल्ली-हावडा मुख्य लाइन पर कानपुर से आगे जाना नहीं हो पा रहा था। इसका कारण था कि इस लाइन पर कानपुर से इलाहाबाद तक मात्र एक ही पैसेंजर गाडी चलती है वो भी दोपहर बाद दो बीस पर। इतना तो ठीक है लेकिन यह इलाहाबाद पहुंचती है रात आठ बजे। इतना भी ठीक है लेकिन अगर गाडी एक घण्टे भी लेट हो जाती है (और होती भी है) तो रात के अन्धेरे में ‘एडवेंचर’ करने का मजा नहीं है। ना कुछ देखने के, ना फोटू खींचने के।
इसका समाधान यह निकाला कि इलाहाबाद से वापस आया जाये। वापसी में यही गाडी (इलाहाबाद-कानपुर-फर्रूखाबाद पैसेंजर- 51824) इलाहाबाद से सुबह सात बजे चलती है, दोपहर बारह बजे कानपुर और शाम पांच बजे फर्रूखाबाद। फर्रूखाबाद पहुंचने में दो घण्टे तक भी लेट होती है तो भी निभ जायेगा। अब बात आई सुबह सात बजे से पहले-पहले इलाहाबाद पहुंचने की। दिल्ली से वैसे तो काफी सारी गाडियां हैं, लेकिन फिर भी दो घण्टे का मार्जिन लेकर चलना था। जो गाडी सुबह पांच बजे से पहले इलाहाबाद पहुंचती है, उसी को चुनना था। इनमें मगध एक्सप्रेस (12402) 05:10 पर इलाहाबाद पहुंचती है तो इसे ही चुना गया और रिजर्वेशन करा लिया गया। वापसी का रिजर्वेशन फर्रूखाबाद से दिल्ली आने वाली एकमात्र गाडी कालिन्दी एक्सप्रेस (14723) से करा लिया गया। मगध में कन्फर्म था जबकि कालिन्दी में वेटिंग जो बाद में कन्फर्म हो भी गई थी।
सफर की शुरूआत ही भयावह रही। 8 अगस्त की सुबह को नाइट ड्यूटी से फ्री होकर कमरे पर जाकर सो गया। आंख खुली शाम सात बजे। भूल-भाल गया था कि कहीं जाना भी है। उनींदा सा ही खाना बनाने की तैयारी करने लगा। जैसे जैसे आंख खुलती गई, चेतना लौटती गई, ‘कुछ’ याद आने लगा। यह भी याद आया कि 8.10 पर तो मगध एक्सप्रेस रवाना होती है। बस, फिर तो मैं ही जानता हूं कैसे पकडी थी वो मैंने।
सुबह पांच बजे अलार्म बजा, आंख खुली, गाडी किसी बडे स्टेशन के प्लेटफार्म पर खडी थी। सोचा कि टाइम पर इलाहाबाद पहुंच गये। चल बेटा, उतर ले। अरे, यह तो कानपुर है। ओ तेरे की, इसने तो मरवा दिये। कब यहां से चलेगी, कब इलाहाबाद पहुंचेगी। हो हा ली अपनी यात्रा। योजना बनाई जाने लगी कि कोई बात नहीं, इलाहाबाद में घूम लेंगे। संगम आदि जगहें देख लेंगे। फिर सो गया बिना अलार्म भरे।
सात बजे फिर आंख खुली। गाडी कहीं रुकी हुई थी। देखा कि कोई शहर है। पता चला कि इलाहाबाद है। आउटर पर खडी है। ताज्जुब हुआ कि यार, दो घण्टे में कानपुर से इलाहाबाद वो भी लेट चल रही गाडी से। उम्मीद यही थी कि अभी पैसेंजर गाडी इलाहाबाद से नहीं निकली होगी। निकलेगी तो इसी रास्ते से जायेगी। कम स्पीड होगी तो मगध एक्सप्रेस से उतरकर पैसेंजर में जा चढूंगा। लेकिन देखते-देखते पैसेंजर बराबर से निकल गई, ज्यादा स्पीड थी, नहीं चढा।
इलाहाबाद पहुंचे। सबसे पहले यह पता किया कि अब कानपुर की तरफ कौन सी गाडी आ रही है। पता चला कि तूफान एक्सप्रेस और सिक्किम महानन्दा आ रही हैं। दोनों ही लेट थी इसलिये अब साढे सात बजे आ रही हैं। पहले महानन्दा आई, अपन चढ लिये इसी में। अब शुरू हुआ ट्रेन का पीछा करना। इलाहाबाद से निकलकर सूबेदारगंज, बम्हरौली और मनौरी। मनौरी जाकर रुक गई। हालांकि इसका ठहराव मनौरी में नहीं है, लेकिन टीटियों की फौज ने धावा सा बोल दिया। स्लीपर डिब्बों में चढी फालतू सवारियों को उतारकर जनरल में भेज दिया गया। जब सब सवारियां इधर से उधर हो गईं तो गाडी को रवाना किया गया। मेरी निगाह अपनी पैसेंजर गाडी को ही ढूंढ रही थी।
निकल चुकी ट्रेन का पीछा करने का नतीजा यह हुआ कि पैसेंजर ट्रेन मुझे कटोघन में खडी दिख गई। लेकिन अपनी महानन्दा अगर जरा भी धीमी हो जाती तो अपन उतर जाते। महानन्दा रुकी सीधे फतेहपुर जाकर। जाट महाराज को उतरना था ही और उतर भी गये। मेरे पास वैसे तो एक्सप्रेस का कानपुर तक का टिकट था लेकिन फिर सोचा कि कानपुर में टिकट लाने का मौका नहीं मिलेगा, इसलिये यहां से भी टिकट ले लिया गया पैसेंजर से फर्रूखाबाद तक का।
पौने दस बजे फतेहपुर से अपनी पैसेंजर भी मिल गई। बस, अब क्या था, बैठे रहो और फोटो खींचते रहो। इसी तरह कानपुर पहुंच गये। अब इस गाडी को भारत का व्यस्ततम रूट छोडकर एक गुमनाम से रूट पर दौडना था- फर्रूखाबाद रूट पर। कुछ साल पहले यह लाइन मीटर गेज थी जो आगे कासगंज तक थी। कासगंज से एक लाइन मथुरा चली जाती है, एक जाती है बरेली। दोनों ही मीटर गेज। मथुरा-कासगंज लाइन अब बडी लाइन में बदली जा चुकी है। बरेली वाली पर अभी मीटर गेज की गाडियां चल रही हैं। जिस गाडी में मैं अब बैठा था, यह कभी इलाहाबाद-कानपुर के बीच चलती थी। आगे फर्रूखाबाद लाइन बडी हो जाने पर इसे फर्रूखाबाद तक बढा दिया गया।
अपनी पैसेंजर जब कानपुर आई थी तो आधा घण्टा लेट थी, जब यहां से चली तो दो घण्टे लेट हो चुकी थी। चलते समय यह बिल्कुल खाली थी। अगले स्टेशनों अनवरगंज, रावतपुर, कल्यानपुर और मन्धाना से जो भीड चढी, अपने हिलते तक की जगह नहीं बची। यह भीड खत्म हुई बिल्हौर जाकर। आगे तो फिर वही खाली गाडी बन गई। कन्नौज पहुंचे और दो घण्टे लेट शाम सात बजे फर्रूखाबाद। यह एक जंक्शन है जहां से सीधे कासगंज चले जायेंगे और एक लाइन शिकोहाबाद जाकर मुख्य कानपुर-दिल्ली लाइन में जा मिलती है। अपनी कालिन्दी एक्सप्रेस इसी शिकोहाबाद रूट से निकलकर दिल्ली जाती है।
टीटियों की फौज तैयार खडी है ट्रेन पर धावा बोलने के लिये
मलवां- यहीं पर कुछ महीने पहले कालका मेल दुर्घटनाग्रस्त हुई थी। उसका मलबा अब भी पडा है।
यहां पर कानपुर का वायुसेना स्टेशन है। मैं एक बार चकेरी गया था वायुसेना में भर्ती होने के लिये लेकिन नसीब में मेट्रो लिखा था, फिर कैसे वायुसेना में चले जाते।
कन्नौज- भारत की प्राचीन राजधानी। अब अपना गौरव खो चुका है।
कन्नौज में दो स्टेशन हैं- एक कन्नौज और दूसरा कन्नौज सिटी। कन्नौज नाम वाला स्टेशन मुख्य है।
जलालपुर पनवारा। यहां प्लेटफार्म के बीचोंबीच ही फाटक है। मैंने ऐसे कई स्टेशन देखे हैं जहां प्लेटफार्म के बीचोंबीच लेवल क्रासिंग है लेकिन फाटक यही पर देखा। नई दिल्ली भी ऐसा ही है लेकिन उसके प्लेटफार्म के ऊपर से फ्लाईओवर बन चुका है।
क्रम सं. | स्टेशन | ऊंचाई | जिला |
---|---|---|---|
1 | इलाहाबाद जंक्शन | 316.894 | इलाहाबाद |
2 | सूबेदारगंज | 310.322 | इलाहाबाद |
3 | बम्हरौली | कौशाम्बी | |
4 | मनौरी | 327.962 | कौशाम्बी |
5 | सैयद सरावां | 326.474 | कौशाम्बी |
6 | मनोहरगंज | कौशाम्बी | |
7 | भरवारी | कौशाम्बी | |
8 | बिदनपुर | कौशाम्बी | |
9 | शुजातपुर | कौशाम्बी | |
10 | सिराथू | कौशाम्बी | |
11 | अथसराय | ||
12 | कनवार | ||
13 | कटोघन | ||
14 | खागा | फतेहपुर | |
15 | सतनारायणी | फतेहपुर | |
16 | रसूलाबाद | फतेहपुर | |
17 | फैजुल्लापुर | फतेहपुर | |
18 | रामवा | फतेहपुर | |
19 | फतेहपुर | 114.66 | फतेहपुर |
20 | कुरस्ती कलां | 114.67 | फतेहपुर |
21 | मलवां | 115.18 | फतेहपुर |
22 | कंसपुर गुगौली | 118.99 | फतेहपुर |
23 | बिन्दकी रोड | 115.221 | फतेहपुर |
24 | औंग | 119.857 | फतेहपुर |
25 | करबिगवां | 114.70 | कानपुर नगर |
26 | प्रेमपुर | 118.64 | कानपुर नगर |
27 | सरसौल | 120.09 | कानपुर नगर |
28 | रूमा | कानपुर नगर | |
29 | चकेरी | 123.04 | कानपुर नगर |
30 | चन्दारी | कानपुर नगर | |
31 | कानपुर सेण्ट्रल जं | 126.63 | कानपुर नगर |
क्रम सं. | स्टेशन | ऊंचाई | जिला |
---|---|---|---|
1 | कानपुर सेण्ट्रल जं | 126.63 | कानपुर नगर |
2 | कानपुर अनवरगंज | 126 | कानपुर नगर |
3 | रावतपुर | कानपुर नगर | |
4 | कल्यानपुर | 127.1 | कानपुर नगर |
5 | मन्धना जं | कानपुर नगर | |
6 | चौबेपुर | 129.05 | कानपुर नगर |
7 | बर्राजपुर | 129.45 | कानपुर देहात |
8 | उत्तरीपुरा | 133.01 | कानपुर देहात |
9 | धौरसलार | 132.05 | कानपुर देहात |
10 | बिल्हौर | 131.88 | कानपुर देहात |
11 | बकोठी खास | 131.9 | कानपुर देहात |
12 | अरौल मकनपुर | 135.94 | कानपुर देहात |
13 | गंगवापुर | 137.15 | |
14 | मानीमऊ | 138.2 | कन्नौज |
15 | कन्नौज | 138.68 | कन्नौज |
16 | कन्नौज सिटी | 139.2 | कन्नौज |
17 | जलालपुर पनवारा | 139.53 | कन्नौज |
18 | जसोदा | 140.21 | कन्नौज |
19 | खुदलापुर | 141.05 | कन्नौज |
20 | गुरसहायगंज | 142.65 | कन्नौज |
21 | मलिकपुर | 141.48 | कन्नौज |
22 | खुदागंज | 140.51 | फर्रूखाबाद |
23 | सिंघीरामपुर | 142.68 | फर्रूखाबाद |
24 | कमालगंज | 145.59 | फर्रूखाबाद |
25 | याकूतगंज | 146.59 | फर्रूखाबाद |
26 | फतेहगढ | फर्रूखाबाद | |
27 | फर्रूखाबाद जं | फर्रूखाबाद |
अब एक बात समझ नहीं आई। फर्रूखाबाद की ऊंचाई 150 मीटर होनी चाहिये, कन्नौज की लगभग 140 मीटर, कानपुर की लगभग 125 मीटर, फतेहपुर की 115 मीटर है। ये सभी नगर गंगा से ज्यादा दूर नहीं हैं। ऊंचाई लगातार घट रही है। लेकिन इलाहाबाद की ऊंचाई 317 मीटर दिखाई गई है जबकि गंगा किनारे बसे होने के कारण फतेहपुर से कम ही होनी चाहिये थी। इलाहाबाद के स्टेशन से संगम भी कोई ज्यादा दूर नहीं है। तो क्या स्टेशन गंगा-यमुना के बिल्कुल बीच में किसी पहाडी पर बना है? मुझे यकीन नहीं है।
गूगल अर्थ में देखने पर पता चलता है इलाहाबाद स्टेशन की ऊंचाई 330 फीट है यानी 100 मीटर। लेकिन स्टेशन की ‘नेम प्लेट’ पर ‘मीटर’ लिखा है। मैं अपने पास संग्रहीत तथ्यों में हमेशा वही लिखता हूं जो ‘नेम प्लेट’ पर वास्तव में लिखा होता है। इलाहाबाद के साथ साथ सूबेदारगंज, मनौरी, सैयद सरावां में भी ऊंचाई 300 मीटर से ज्यादा है। चूंकि मैं फतेहपुर तक एक्सप्रेस से गया था इसलिये आगे फतेहपुर तक के स्टेशनों की ऊंचाई का मुझे पता नहीं चल पाया। हां, फतेहपुर में वास्तविक ऊंचाई लिखी है- 114.66 मीटर।
कुल मिलाकार बात यही है कि या तो इलाहाबाद की ऊंचाई 96.58 मीटर पढी जाये या फिर 316.894 फीट। इसे 316.894 मीटर लिखने की कोई तुक नहीं है। इतनी ऊंचाई तो हरिद्वार में भी नहीं है जहां गंगा पहाड से बाहर निकलती है। लेकिन मैं अपने डाटा में इसे वही लिखूंगा, जो वास्तव में लिखा हुआ है, चाहे गलत ही सही। जब वहां सुधर जायेगा और मुझे पता चल जायेगा, तो मैं भी अपने यहां सुधार लूंगा।
हमारे आसपास के घर की यात्रा करा दी।
ReplyDeleteBahut hi badiya jaankari or khubsurat yatra ke liye dhanyawad.
ReplyDeletegaon to jana hi hai agle hafte
ReplyDeletepar fatehpur station ki tasveer dikha kar jaldi jaane ki utsukta badh gai hai............aabhar neeraj bhai
नयी नयी जगहों से हमारी भी मुठभेड़ हो रही है, आपके सौजन्य से. कन्नौज किसी समय अपने इत्र के लिए भी प्रख्यात था. वहां के बाशिंदे अन्य शहरों में कांच के छोटे डिब्बे में इत्र की बोतले लिए भटका करते थे.
ReplyDeleteरेलवे को अपना शोधपत्र प्रकाशित करना होगा तो आपके ब्लॉग की मदद ली जायेगी... अब तो ऐसा जान पड़ता है..
ReplyDeleteशुभकामनायें.
Beautiful narration. Enjoyed traveling with you.
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteआप हमारी गलियों ....से गुजरे और हमें खबर नहीं ?
ई "फतेहपुर" हमारा जन्मस्थान भी और कर्मस्थान भी है| और दिल्ली - हावड़ा रूट का सबसे लंबा प्लेटफोर्म भी है|
....सोचा बताता चलूँ .....अगली बार रहगुजर हों.....तो याद करियेगा ....हुजूर !!!
जय राम जी की !
शुभकामनायें ||
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteआपका जूनून, जज्बा और समर्पण प्रशंसनीय हैं.
ReplyDeleteJaat ji aap mahaan ho...
ReplyDeleteNeeraj
घूमे हुए रुट पर आपके माध्यम से घूमना बढ़िया रहा.
ReplyDeleteनीरज बाबू अक्टूबर वाले यात्रा का व्रतांत बताओ कृपया इ
ReplyDeleteYAAR AAPNE HMARE CHOTE SE GAON YAKUT GANJ JO KI MERA JANMA STHAN BHI HAI USKI PHOTO NAHI LAGAYEE
ReplyDeletePHIR BHI AAP KA PRAYAS SARAHNIY HAI BAHUT ACHA LAGA
AJAY GUPTA
NEW DELHI..
Bhai bahut khub
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