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सुरकण्डा देवी गढवाल में बहुत प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। इसकी दूर-दूर तक मान्यता है। मसूरी-चम्बा के बीच में धनोल्टी है। यह चम्बा वो हिमाचल वाला चम्बा नहीं है बल्कि उत्तराखण्ड में भी एक चम्बा है। यह हिमाचल वाले की तरह जिला तो नहीं है लेकिन काफी बडा कस्बा है। चम्बा ऋषिकेश-टिहरी रोड पर पडता है।
सुरकण्डा देवी गढवाल में बहुत प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। इसकी दूर-दूर तक मान्यता है। मसूरी-चम्बा के बीच में धनोल्टी है। यह चम्बा वो हिमाचल वाला चम्बा नहीं है बल्कि उत्तराखण्ड में भी एक चम्बा है। यह हिमाचल वाले की तरह जिला तो नहीं है लेकिन काफी बडा कस्बा है। चम्बा ऋषिकेश-टिहरी रोड पर पडता है।
धनोल्टी से छह किलोमीटर दूर कद्दूखाल नाम की एक जगह है जहां से सुरकण्डा देवी के लिये रास्ता जाता है। दो किलोमीटर पैदल चलना पडता है। पक्का रास्ता बना है और खच्चर भी मिल जाते हैं। मेरे लिये इस जगह का आकर्षण दूसरी वजह से था। वो यह कि मुझे बताया जाता था कि यहां जाने के लिये हालांकि पैदल का रास्ता कम ही है लेकिन चढाई बडी भयानक है। जब सन्दीप भाई ने भी इस चढाई की भयानकता पर मोहर लगा दी तो लगने लगा कि वाकई कुछ तो है।
इस दो किलोमीटर के रास्ते को दो भागों में बांटा जा सकता है। पहला भाग ज्यादा तीव्र नहीं है जबकि दूसरा भाग बहुत तेज चढाई वाला है। अगर पक्के कंक्रीट वाले रास्ते से जायें तो कुछ खास फरक नहीं पडता। इसके अलावा मुझ जैसों के लिये कच्चा शॉर्ट कट भी है और यह शॉर्ट कट वाकई हैरतअंगेज है। फिर भी असली आनन्द शॉर्ट कट वाले रास्ते से जाने में ही है। कद्दूखाल जहां 2490 मीटर की ऊंचाई पर है वहीं सुरकण्डा देवी की ऊंचाई 2750 मीटर है यानी दो किलोमीटर पैदल चलकर 260 मीटर चढना कठिन चढाई में आता है।
इस दो किलोमीटर के रास्ते को दो भागों में बांटा जा सकता है। पहला भाग ज्यादा तीव्र नहीं है जबकि दूसरा भाग बहुत तेज चढाई वाला है। अगर पक्के कंक्रीट वाले रास्ते से जायें तो कुछ खास फरक नहीं पडता। इसके अलावा मुझ जैसों के लिये कच्चा शॉर्ट कट भी है और यह शॉर्ट कट वाकई हैरतअंगेज है। फिर भी असली आनन्द शॉर्ट कट वाले रास्ते से जाने में ही है। कद्दूखाल जहां 2490 मीटर की ऊंचाई पर है वहीं सुरकण्डा देवी की ऊंचाई 2750 मीटर है यानी दो किलोमीटर पैदल चलकर 260 मीटर चढना कठिन चढाई में आता है।
अब सुरकण्डा देवी का एक शानदार मन्दिर बन रहा है। हमारे अलावा एकाध श्रद्धालु और थे। धार्मिक दृष्टि से देखें तो बडे आराम से देवी के दर्शन किये, आरती में भाग लिया और प्रसाद खाया- हलुवे का प्रसाद था। पास में ही शिव और हनुमान के मन्दिर भी हैं।
यहां की जो सबसे बढिया बात लगी, वो हैं गढवाल हिमालय की चोटियां। जो नजारा कुमाऊं हिमालय का रानीखेत से दिखता है वहीं नजारा यहां से गढवाल हिमालय का दिखता है। नन्दा देवी से शुरू होकर किन्नौर तक की चोटियां यहां से दिखती हैं। पीछे मुडकर देखें तो ऋषिकेश और देहरादून भी दिखते हैं, गंगा भी दिखती है। हालांकि उस समय वातावरण में हल्की हल्की धुंध सी छाई थी इसलिये हमें ऋषिकेश और गंगा नहीं दिखी। लेकिन दक्षिण दिशा में यानी ऋषिकेश-देहरादून की दिशा में कोई ऊंची चोटी नहीं है, पहाड धीरे धीरे नीचे होते चले जाते हैं, तो मेरा यह अन्दाजा निराधार नहीं है।
कद्दूखाल से सुरकण्डा जाने वाला रास्ता |
कद्दूखाल में पार्किंग |
शॉर्ट कट |
एक मोबाइल टावर दिख रहा है, वह कद्दूखाल में है। |
कद्दूखाल |
सुरकण्डा देवी का निर्माणाधीन मन्दिर |
भैरव, हनुमान और शिव के मन्दिर |
सुरकण्डा से दिखती हिमालयी चोटियां |
समाप्त।
मसूरी धनोल्टी यात्रा
1. शाकुम्भरी देवी शक्तिपीठ
2. सहस्त्रधारा और शिव मन्दिर
3. मसूरी झील और केम्प्टी फाल
4. धनोल्टी यात्रा
5. सुरकण्डा देवी
आखिरी बार 2 नवम्बर को गया था, तब से तो कुछ नहीं बदला है, मार्ग भी तभी पक्का हो गया था, सडक पर रहने का ठिकाना भी बन चुका था। सबसे बडा अन्तर जो आया है वो है नया मन्दिर निर्माण, चलो भाई इसे पूरा हो जाने दो अब तभी देखा जायेगा। अगर कोई इस क्षेत्र में बर्फ़ की इच्छा पूरी करना चाहता है तो मंसूरी में बर्फ़ गिरे या ना गिरे यहाँ हर हालत में गिरती है। और बहुत दिनों तक टिकती भी है।
ReplyDeleteइस पवित्र यात्रा की वर्चुअल सैर कराने का शुक्रिया।
ReplyDelete------
आपका स्वागत है..
.....जूते की पुकार।
वाह. जो मुंह उठा कर विदेशों के गुण गाते घूमते हैं उन्होंने तो अपना ही मुल्क़ नहीं देखा.
ReplyDeleteवाह! सुन्दर चित्रों के साथ बहुत बढ़िया जानकारी
ReplyDeleteGyan Darpan
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रोमांचक और नयनाभिराम.
ReplyDeleteये खुला आसमाँ, आ गये हम कहाँ..
ReplyDeleteजीते रहो मेरे शेर ....
ReplyDeleteजीवन को जीना कोई तुमसे सीखे ...बहुतों को, तुम अपने जीवन में बिना बोले सिखाने में समर्थ रहोगे !
तुझे देख जलन होने लगी है चौधरी !
सस्नेह शुभकामनायें !
नीरज भाई मैं सुरकंडा देवी तीन बार जा चुका हूँ, तुम्हारे द्वारा यात्रा वृत्तान्त पढ़ कर यादे ताज़ा हो गयी हैं, वहा पर हर मुराद पूरी होती हैं, जय माता की
ReplyDeleteज्ञान वर्धक जानकारी, धन्यबाद
ReplyDeleteJAI HO MAHARAAJ...
ReplyDeleteफोटो देखकर लगता है कि हम लोगों की तरह आपने भी भ्रमण की यादों के लिये डीएसएलआर (DSLR) कैमरा ले लिया है।
ReplyDeleteओहो ! तो तुम आखिर में मंदिर चले ही गए ....तुम्हारा तिलक इसका गवाह हैं नीरज! वेसे जम रहे हो ?
ReplyDeleteभई वाह! गज़ब
ReplyDeleteबस
कस्म गोया तेरी खायी न गयी
सुन्दर चित्र हैं. MSc के दौरान फिल्ड वर्क में गया था वहां. कुछ बैचमेट्स ने तय किया नॉन स्टॉप चढ़ने का. सभी बीच में ही बैठते रहे, बस मैं ही अकेला बिना रुके चढ़ा.
ReplyDeletebhaai.. mujhe bhi traveling acha lagta hai.. abhi main auli hokar aaya tha..pls put your precious comment as I am new to this field..
ReplyDeletehttp://mynetarhat.blogspot.com/2012/01/blog-post.html