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मन्दिर से निकलकर फिर मसूरी की तरफ चल पडे। रास्ते में एक जगह सडक के बराबर में ही गाडियां खडी दिखीं। तभी निगाह पडी- मसूरी झील। गाडी हमने भी साइड में लगा दी। यह एक कृत्रिम झील है जहां पैडल बोट का मजा लिया जा सकता है। हमने भी लिया। लेना पडता है अगर परिवार में हैं तो। जो होता मैं अकेला तो इस झील की तरफ देखता भी नहीं। और हां, एक बात बडी हास्यास्पद लगती है जब कोई फोटोग्राफर जिद करता है कि गढवाली ड्रेस में फोटो खिंचवा लो। पता नहीं क्या-क्या पहनाकर ‘शिकार’ को ऊपर से नीचे तक लाद दिया जाता है और दो घडे देकर ‘पनघट’ के किनारे बैठा दिया जाता है। एक घडा हाथ में और दूसरा सिर पर। कसम खाकर कह रहा हूं कि मैं गढवाल में काफी घूमा हूं, और ज्यादातर घुमक्कडी देहात में ही की है, लेकिन कभी भी ऐसी ड्रेस नहीं देखी। यहां तक कि कुमाऊं और हिमाचल में भी नहीं। और हां, एक घडा सिर पर रखकर दूसरा हाथ में लेकर तो पहाड पर चल ही नहीं सकते। अगर घडे की जगह घास या लकडी का गट्ठर होता तो कुछ बात बनती।
इसके बाद कुछ तिराहों चौराहों को पार करके हम पहुंचते हैं लाइब्रेरी चौक। यह मसूरी का एक व्यस्त चौक है। यहां से चार दिशाओं में सडकें जाती हैं- एक तो वही देहरादून वाली, दूसरी माल रोड, तीसरी सीधी केम्पटी फाल होते हुए आगे विकासनगर-यमुनोत्री मार्ग में जा मिलती है और चौथी भी कहीं जाती है। अभी दोपहर का टाइम था तो अपना टारगेट बन गया केम्पटी फाल।
मसूरी एक पहाडी धार पर बसा है। बल्कि यह कहना चाहिये कि मसूरी-धनोल्टी-चम्बा पूरी बेल्ट पहाडी धार पर बसी है तो ज्यादा सही होगा। इस धार की ऊंचाई करीब 2000- 2500 मीटर है। इसके दोनों तरफ ढलान हैं- इधर भी और इसको पार करके उधर भी। तो जब मसूरी से केम्पटी फाल जाते हैं तो पूरा रास्ता ढलानयुक्त हो जाता है। हमारे ड्राइवर साहब अभी तक चढाई चढते आ रहे थे तो अपने आप को पहाडी रास्तों के परफेक्ट मानने लगे थे। अब जब ढलान आया तो ड्राइविंग अचानक से बदल गई तो महाराज कहने लगे कि यार, ऊपर चढने के मुकाबले नीचे उतरना ज्यादा मुश्किल है। हालांकि कुछ समय बाद वे इस विधा में भी पारंगत हो गये।
केम्पटी फाल- यानी मसूरी की सीमा। सीमा इसलिये कि पर्यटक इससे आगे नहीं जाते। मसूरी आने वाले लगभग सभी पर्यटक यहां जरूर जाते हैं और वापस मुड जाते हैं।। कभी कभी तो लगता है कि यहां मसूरी से भी ज्यादा भीड है। हालांकि झरने के पास से सडक पर पुल भी है लेकिन असली फाल जो है, वो सडक से कुछ नीचे उतरकर है। नीचे जाने के लिये पक्का रास्ता बना है जिसके दोनों तरफ दुकानें हैं। और एक चीज और है कि यहां भी रोपवे है। फाल की सडक से सीधी दूरी सौ मीटर भी नहीं है और रोपवे बनाना वाकई मजाक की बात है। लेकिन जब तक धनाढ्य पर्यटक आते रहेंगे तब तक सौ मीटर तो क्या दो मीटर के रोपवे भी बना दिये जायेंगे तो भी सफल होकर रहेंगे। ऐसे पर्यटक जो नहीं चाहते कि उनकी एकाध हड्डी, एकाध जोड जरा सा भी हिले। पर्यटन के नाम पर कहते हैं कि कुदरत की गोद में जा रहे हैं और अगर उन्हें यहां भी ऐयाशी की सुविधाएं ना मिले तो कुदरत को भाड में झोंकने से भी बाज नहीं आते।
सडक से फाल तक जाने में करीब चार सौ मीटर का रास्ता है, जिसे पैदल नापा जाता है। इसके दोनों तरफ दुकानें बनी हैं। कहीं कहीं भिखारी भी बैठे मिल जाते हैं। उन्हीं में से एक भिखारिन बुढिया ने यह कहकर पर्यटन का मजा खराब कर दिया कि ‘इतनी दूर से हजारों रुपये फूंककर पानी देखने आये हो, एक रुपया मुझे भी दे दो।’ उसकी यह बात मुझे अब तक ज्यों की त्यों याद है। वैसे तो इधर ऐसी बातों का कोई असर नहीं पडता, लेकिन पता नहीं क्यों केम्पटी फाल देखने का सारा मजा, सारा उत्साह खत्म हो गया। खैर, हमें उस बुढिया की बातों पर ध्यान नहीं देना है और अपनी घुमक्कडी बरकरार रखनी है। कुछ बुद्धिजीवी लोग बुढिया की बात को सौ प्रतिशत सही बता सकते हैं। अगर ऐसा है तो वे बुद्धिजीवी घुमक्कडी धर्म के धुर विरोधी हैं, अपने दुश्मन हैं।
जब मसूरी से केम्पटी फाल जाते हैं तो रास्ते में फाल से करीब एक किलोमीटर पहले केम्पटी नाम का गांव आता है। इसी के नाम पर झरने का नाम भी केम्पटी पड गया। इस गलतफहमी में मत रहना कि यहां केम्पटी नाम का कोई अंग्रेज आया था, उसने खोज की थी, उसके नाम पर यह नाम पडा। एक बात और है कि यहां पार्किंग नाम की कोई जगह नहीं है। सडक भी बडी तंग बनी हुई है। फिर बची-खुची जगह में दुकानें हैं, रेस्टोरेण्ट हैं। तो जी, चार पहिया नाजुक वाहन अपने रिस्क पर सडक के किनारे ही खडे करने पडते हैं।
फिर से मसूरी की तरफ चल दिये। लाइब्रेरी चौक से करीब एक किलोमीटर पहले ‘होमस्टे’ नाम का बोर्ड लगा दिखा। हालांकि मसूरी में जब होम ही नहीं हैं, तो होमस्टे कहां से। फिर भी इसका बजट अपनी उम्मीदों के मुताबिक ही था- 600 रुपये प्रति कमरा। दो कमरे लेने थे, मोलभाव करके 525 रुपये प्रति कमरे के हिसाब से मिल गये। नवम्बर का महीना ऑफ सीजन होता है, तो इस रेट को सुनकर यह मत सोच बैठना कि वहां हमेशा इसी रेट में मिलते होंगे। पीक सीजन में तो यह रेट 1000 को पार कर जाता होगा। और कमरे में कुछ अलग से नहीं होता- वही डबलबेड, वही कलर टीवी, वही गीजर, वही लेट्रीन-बाथरूम। इनमें से ना तो डबलबेड, ना टीवी, ना गीजर और ना लेट्रीन बाथरूम, मेरे किसी काम के नहीं थे।
अच्छा हां, इस होटल में जब मित्र साहब ने पूछा कि भाई, गाडी पार्किंग कहां है तो उसने बताया कि सामने सडक के किनारे खडी कर दो। मित्र साहब यह सुनते ही सन्नाटे में आ गये। बोले कि तू पागल हो रहा है? सडक के किनारे कैसे खडी कर दूं। बताया कि भाई साहब काफी जगह है, थोडी देर में देखना कि हमारी गाडी भी यही पार्क होगी। कोई दिक्कत नहीं है। मित्र साहब कहने लगे कि हमें यहां नहीं रुकना है। आगे चलते हैं, जिस होटल में पार्किंग मिलेगी, वहीं रुकेंगे। इस तरह गाडी को सडक किनारे पार्क नहीं करेंगे। हालांकि मैं जानता था कि यह भले ही मसूरी हो, लेकिन है तो गढवाल ही। और भईया, गढवालियों पर तो अपन यकीन कर ही लेते हैं। और मुझे पता भी था कि सडक किनारे हद से बहुत ज्यादा जगह खाली पडी है। रात को यहां ट्रैफिक चलता नहीं है, कोई टक्कर भी नहीं मार सकेगा। लेकिन फिर भी अगर मैंने मित्र जी को समझाने की कोशिश की तो वे मान तो लेंगे, लेकिन उन्हें पूरी रात नींद नहीं आयेगी। खैर, आखिरकार मित्र साहब मान गये और गाडी सुबह सही सलामत खडी मिली। पता नहीं नींद आई या नहीं आई। वैसे कुछ ही दूर ऑथोराइज्ड पार्किंग भी थी जिसका खर्चा सौ रुपये प्रति रात्रि था।
यहां से माल रोड एक किलोमीटर दूर थी तो हम पैदल ही चल पडे। घूमे-फिरे, कुछ खाया, कुछ पीया, कुछ खरीदा, कुछ नहीं खरीदा। और नौ बजे तक वापस होटल में सोने का आनन्द लेने लगे थे।
मसूरी झील
मसूरी-केम्पटी रोड
केम्पटी फाल
अगला भाग: धनोल्टी यात्रा
मसूरी धनोल्टी यात्रा
1. शाकुम्भरी देवी शक्तिपीठ
2. सहस्त्रधारा और शिव मन्दिर
3. मसूरी झील और केम्प्टी फाल
4. धनोल्टी यात्रा
5. सुरकण्डा देवी
नीरज जी,
ReplyDeleteसभी हिल स्टेशनों में फोटोग्राफर जो फोटोग्राफर जो ड्रैस पहनाकर फोटो खींचते हैं मुझे वो कश्मीरी लगती है. इसमें हास्यपद कुछ नहीं है अब लोगों को रोजी रोटी तो चलानी ही है.
कैम्पटी फाल पर रोपवे बना कर अच्छा ही किया है प्रशासन ने. आप तो अकेले छडे हो मस्ती-मस्ती में टहलते हुए चले जाओगे. लेकिन हम जैसे परिवार वाले दो-दो बच्चों को लेकर कैसे जायेंगे. हमारे लिये तो ये अच्छा ही है. और रोपवे से पर्यटक भी बढते हैं. यदि गन हिल के लिये रोपवे ना हो तो सोचो कि पैदल कितने लोग ऊपर जायेंगे.
केम्पटी फॉल मे नहाने में आनन्द आ गया था।
ReplyDeletehaha. ye parivarik trip tumhein na bhaaegi jaat bhaai
ReplyDeleteयार नीरज तू तो स्मार्ट लग रिया है !! धीरे धीरे लिखने में भी धार आ रही है !!
ReplyDeleteमै गया था तब कैम्पटी फ़ाल पर रोप वे नहीं था। अब लग गया। वैसे गप्पु की बात से सहमत हूँ " यार नीरज तू तो स्मार्ट लग रिया है !!"
ReplyDeleteअब झेलो मेरा सीरियस वाला कमेन्ट, " बुढिया ने यह कहकर पर्यटन का मजा खराब कर दिया कि ‘इतनी दूर से हजारों रुपये फूंककर पानी देखने आये हो, एक रुपया मुझे भी दे दो।’ कल को बुढिया जैसे लोग कुम्भ स्नान करने या अन्य तीर्थ करने वालों से ये भी कह सकते हैं कि,'' लाखों हजारों खर्च कर के नदी में नहाने आये हैं" या मूर्ति देखने आये हैं!!
ReplyDeleteबुढिया जैसे लोगो के लिए भी कहा जा सकता है ," ईश्वर ने तुझे इतना कीमती शरीर दिया है, सिर्फ एक दो रुपये मांगने के लिए ???
भैया!! लोग वैष्णो देवी सहित अन्य माताओं के दर्शन करने में हजारों रूपया फूंक देते हैं, तो हम जैसे लोग भी तो माता के भक्त ही हैं!! हमारी माँ प्रकृति है, पूरी धरती हमारे लिए मंदिर है, और उसमें की हर चीज हमारे लिए पूजा है!! क्यों किसी के कहने से मन ख़राब करते हो!! तो बोलो प्रकृति माता की जय !!
एक बात पर तुमने ध्यान नहीं दिया है हो सकता है कार में बैठे-बैठे बोर्ड भी ना देखे हो,
ReplyDeleteजहाँ मंसूरी देहरादून जिले में आता है वहीं कैम्पटी फ़ाल टिहरी गढवाल जिले में आता है।
मसूरी से पहले एक मोड से देहरादून की ओर बेहद प्यारा नजारा आता है, सडक के कई मोड एक साथ नजर आते है,
लगता है गाडी में नींद आ रही थी जो काफ़ी कुछ छोड दिया है,
वैसे मैं पहली बार 1991 में इन जगहों पर गया था, उसके बाद 8-9 बार जाना हो चुका है।
वाह!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
बहुत सुंदर लगा मसूरी भ्रमण ....सारे फोटू में मैं वो चेक की शर्ट ढूढती रही ....क्या बात हैं इस बार दिखाई नहीं दी ...क्या बर्तन वाली को दे दी नीरज ?वैसे इस बार बड़े स्मार्ट लग रहे हो...
ReplyDeleteबड़ी खूबसूरत जगह है ....
ReplyDeleteबार बार जाने का मन करता है !
शुभकामनायें चौधरी !
आज पहली जगह मिली...जहाँ हम भी जा चुके हैं..हा हा!!
ReplyDeleteलैट्रिन बाथरुम भी आपके काम का नहीं
ReplyDeleteऐसा भी हो सकता है!!!
प्रणाम
बहुत सुन्दर प्रविष्टि...वाह!
ReplyDelete@ज्यादातर घुमक्कडी देहात में ही की है, लेकिन कभी भी ऐसी ड्रेस नहीं देखी।
ReplyDeleteअब स्टुडिओ जीवन और वास्तविक जीवन तो फ़र्क ही होता है। केम्प्टी फ़ाल के चित्र बहुत सुन्दर लगे।
पिछले अगस्त में दूसरी बार केम्पटी फाल गया. पहली बार तो इरादा नहीं किया था, मगर इस बार और साथिओं को देख दिल नहीं ही माना और इस फौल की धार में कूद ही पड़ा. वाकई काफी अच्छा लगा.
ReplyDeleteबड़ी खूबसूरत जगह है
ReplyDeleteजाने का मन करता है !
Aprail, may me hotel ka rent kitna hota hoga sir?
ReplyDeleteमसूरी या अन्य किसी पर्यटन स्थल पर टूर ऑपरेटर के माध्यम से जाये या ऐसे ही निकल जाये
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