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23 अगस्त 2011 की रात को करीब नौ बजे मैं पुरी रेलवे स्टेशन पहुंच गया। मुझे जितनी घुमक्कडी करनी थी, कर ली। अब नम्बर था रेल एडवेंचर का। इसके लिये पुरी से बिलासपुर तक 620 किलोमीटर का मार्ग चुना गया जिसपर डेढ दिन में यह सफर करना था। रात्रि विश्राम झारसुगुडा में करना सुनिश्चित हुआ।
23 अगस्त 2011 की रात को करीब नौ बजे मैं पुरी रेलवे स्टेशन पहुंच गया। मुझे जितनी घुमक्कडी करनी थी, कर ली। अब नम्बर था रेल एडवेंचर का। इसके लिये पुरी से बिलासपुर तक 620 किलोमीटर का मार्ग चुना गया जिसपर डेढ दिन में यह सफर करना था। रात्रि विश्राम झारसुगुडा में करना सुनिश्चित हुआ।
पुरी स्टेशन के सामने ही शयन सुविधा है, बडा सा हॉल है, कोई कुर्सी बेंच नहीं हैं, ऊपर पंखे चलते रहते हैं। यह सुविधा मुझ जैसों के बहुत काम की है, रात सवा तीन बजे तक इसी का जमकर फायदा उठाया गया। साढे तीन बजे पुरी से राउरकेला पैसेंजर (58132) चलती है। चूंकि इस समय अंधेरा होता है इसलिये मैंने खोरधा रोड-पुरी लाइन पर आज सुबह ही 58407 से यात्रा की थी और अपने काम की जानकारी (नाम, ऊंचाई, फोटो) ले ली थी।
पांच बजे ट्रेन के खोरधा रोड स्टेशन पहुंचने पर आंख खुल गई। यहां से दो स्टेशन छोडकर तीसरा स्टेशन भुवनेश्वर है जोकि ओडिशा की राजधानी है। बस इसी छोटे से खण्ड में इस पूरी यात्रा की सबसे ज्यादा भीड चढी थी, नहीं तो झारसुगुडा तक ट्रेन लगभग खाली ही गई। चूंकि भारत के इस पूर्वी हिस्से में दिल्ली के मुकाबले सूर्योदय जल्दी हो जाता है, फिर भी मैंने भुवनेश्वर के बाद फोटो खींचने शुरू किये।
भुवनेश्वर के बाद वाणीविहार, मंचेश्वर, पटिया के बाद आता है बारंग जंक्शन। बारंग से एक लाइन ढेंकानाल होते हुए तालचेर चली जाती है। अपन सीधे चलते गये- गोपालपुर बालिकुंदा, काठजोडी और कटक। यह इलाका महानदी का डेल्टा क्षेत्र है। इसलिये एक तो गोपालपुर के पास और फिर कटक के बाद महानदी की विशाल धाराओं को पार करना होता है। कटक का नाम मैंने सातवीं कक्षा में पढा था कि यहां नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म हुआ था। कटक से एक लाइन पारादीप चली जाती है।
कटक से चलकर केन्द्रापडा रोड, मंगुलि चौदवार के बाद है निर्गुण्डि जंक्शन। यहां से हम इस मुख्य लाइन को छोड देते हैं और ओडिशा के आन्तरिक हिस्सों में प्रवेश कर जाते हैं। यह मुख्य लाइन सीधे खडगपुर चली जाती है और अब हम बायें मुडकर तालचेर की तरफ हो लेते हैं।
सालगांव, चौरबाटिया, बड पदा गांव, गुरुडिझाटिया, मच्छापुर और राज आठगड जंक्शन। यहां भुवनेश्वर से आने वाली लाइन भी मिल जाती है। मैंने अभी थोडी देर पहले बताया था ना कि बारंग जंक्शन से एक लाइन तालचेर जाती है, वही लाइन यहां आकर इसमें मिल जाती है और सम्मिलित होकर दोनों तालचेर जाती हैं।
यहां से चलकर जोरन्दा रोड, शामाचरणपुर, ढेंकानाल (ढेंकानाल जिला मुख्यालय भी है), दाण्डीमाल, सदाशिबपुर, महादिआ, हिन्दोल रोड, नया भागीरथीपुर, मेरामण्डली, बुढापंक, तालचेर थर्मल और आखिर में तालचेर। इस पूरे रास्ते में ओडिशा की संस्कृति के दर्शन होते हैं। बांस की बनी वो बडी सी टोपी पहले लोग-बाग खेतों में काम करते दिखते हैं, तो नदी, पोखरों में नहाते-धोते भी दिखते हैं।
तालचेर में थर्मल पावर हाउस है। यहां कोयले से लदी मालगाडियां खडी रहती हैं। तालचेर से आगे रेलवे लाइन नहीं है। यहां से इंजन की बदली होती है और गाडी वापस चल देती है। थर्मल स्टेशन के बाद सम्बलपुर के लिये लाइन अलग होती है। एक्सप्रेस गाडियों के लिये बाइपास लाइन की सुविधा भी है ताकि उन्हें तालचेर जाकर इंजन बदलने में टाइम नष्ट ना करना पडे।
यहां से आगे तालचेर रोड के बाद आता है अनुगुल। अनुगुल जिला मुख्यालय है और यही तक बिजलीचालित ट्रेन आ सकती है। इससे आगे जाने के लिये डीजल इंजन लगाना पडता है। अपनी गाडी में पुरी से ही डीजन इंजन चला आ रहा था। अनुगुल से आगे केरेजांग, जरपडा, बइण्डा, हण्डपा, सरगिपालि, बामूर, रेढाखोल, चारमाल, जुजुमुरा, हातीबारी, मानेश्वर, सम्बलपुर सिटी, सम्बलपुर रोड और सम्बलपुर जंक्शन। असल में जंक्शन स्टेशन तो सम्बलपुर रोड ही है जहां पर झारसुगुडा से आने वाली लाइन भी मिल जाती है। यह भुवनेश्वर वाली और झारसुगुडा वाली दोनों लाइनें मिलकर सम्बलपुर के बाद टीटलागढ चली जाती हैं जो रायपुर-विशाखापटनम लाइन पर स्थित है।
सम्बलपुर में फिर इंजन की बदली होती है। गाडी वापस चल देती है। सम्बलपुर रोड के बाद सीधे हाथ को तालचेर वाली लाइन चली जाती है, जहां से मैं अभी-अभी आया था। साशन, रेंगाली, लपंगा, बृन्दामाल और झारसुगुडा जंक्शन। शाम को ठीक पांच बजकर पचास मिनट पर गाडी यहां पहुंची- एक मिनट भी लेट नहीं। मुझे आज की रात यही पर बितानी थी। झारसुगुडा स्टेशन हावडा-नागपुर-मुम्बई मुख्य लाइन पर स्थित है। यह पूरी लाइन विद्युतीकृत है।
सुबह सात बजे झारसुगुडा-गोंदिया पैसेंजर (58117) चलती है जो साढे बारह बजे 206 किलोमीटर की दूरी तय करके बिलासपुर पहुंचा देती है। झारसुगुडा से आगे ईब (IB) नामक स्टेशन है जो भारत का सबसे छोटे नाम वाला स्टेशन है। ईब पर पांच लाइनें हैं जिनमें से चारों बाहरी लाईनों पर मालगाडियां खडी थीं, और यह पैसेंजर गाडी बिल्कुल बीच वाली लाइन पर रोकी गई। ना ही यहां कोई फुट ओवर ब्रिज है, ना ही बीच वाली पर प्लेटफार्म। मेरा बस चलता तो मैं स्टेशन मास्टर की ऐसी तैसी करता। सवारियां दो-दो मालगाडियों के नीचे से निकलकर इस पैसेंजर में चढने के लिये आईं हैं, यह तो उनके जीवन से खिलवाड है। और इससे भी बडी बात मुझे यह अखरी कि ईब स्टेशन पर जाकर भी इसका फोटू नहीं खींच पाया।
ईब से आगे ब्रजराजनगर, बेलपहाड, हिमगिर, दाघोरा आते हैं। दाघोरा इस लाइन पर ओडिशा का आखिरी स्टेशन है। इसके बाद जामगा स्टेशन आता है जो छत्तीसगढ में पडता है। मेरी लिस्ट में छत्तीसगढ 16वां राज्य जुड गया। जामगा के बाद कोतरलिया और रायगढ। रायगढ जिला मुख्यालय भी है।
किरोडीमलनगर, भूपदेवपुर, राबर्टसन, खरसिया, झाराडीह, सक्ती, जेठा, बाराद्वार, सारागांव रोड और चांपा जंक्शन। चांपा से एक लाइन कोरबा होते हुए गेवरा रोड तक चली जाती है। गेवरा रोड के लिये बिलासपुर से नियमित पैसेंजर गाडियां हैं। चांपा से नैला, कापन, अकलतरा, कोतमी सोनार, जयराम नगर, गतौरा के बाद आता है बिलासपुर जंक्शन। यहां से सीधी लाइन रायपुर, नागपुर होते हुए मुम्बई चली जाती है और एक लाइन अनूपपुर होते हुए कटनी।
अपनी डेढ दिनों से चली आ रही पैसेंजर यात्रा यही पर खत्म हो जाती है। अब मेरा रिजर्वेशन छत्तीसगढ सम्पर्क क्रान्ति से निजामुद्दीन तक था। टाइम पर गाडी आ गई और अगले दिन टाइम पर मैं दिल्ली पहुंच गया।
चांपा जंक्शन
अकलतरा वरिष्ठ ब्लॉगर श्री राहुल सिंह जी का गांव भी है। वे सिंहावलोकन के नाम से अपना ब्लॉग लिखते हैं।
समाप्त।
हावडा पुरी यात्रा
1. कलकत्ता यात्रा- दिल्ली से हावडा
2. कोलकाता यात्रा- कालीघाट मन्दिर, मेट्रो और ट्राम
3. हावडा-खडगपुर रेल यात्रा
4. कोणार्क का सूर्य मन्दिर
5. पुरी यात्रा- जगन्नाथ मन्दिर और समुद्र तट
6. पुरी से बिलासपुर पैसेंजर ट्रेन यात्रा
भाई इन सब फ़ोटो में सबसे बढिया भैसों वाला फ़ोटो अच्छा लगा, बाकि तो तुम्हारे खजाने के लिये है ही उनके बारे में तो कुछ कहा ही नहीं जा सकता है,
ReplyDeleteअब एक बात तो बता दो कि अब कितनी छोटी लाइन बाकि है।
भाई इन सब फ़ोटो में सबसे बढिया भैसों वाला फ़ोटो अच्छा लगा, बाकि तो तुम्हारे खजाने के लिये है ही उनके बारे में तो कुछ कहा ही नहीं जा सकता है,
ReplyDeleteअब एक बात तो बता दो कि अब कितनी छोटी लाइन बाकि है।
बहुत सुन्दर यात्रा वर्णन, चित्र भी भुत सुन्दर हैं| धन्यवाद|
ReplyDeleteखोरदा रोड, तालचर, सम्बलपुर और बिलासपुर में काम कर चुके हैं हम।
ReplyDeleteरेल यात्रा का पूरा लुत्फ़ उठाया गया है और इस पोस्ट से आपके तगड़े सामान्य ज्ञान का भी पता चलता है।
ReplyDeleteपसिंजर गाड़ियों पर जंगल से लकड़ी चुरा कर ले जाने वालों का आतंक कितना था.
ReplyDeleteआप अकलतरा (मेरे गांव) से भी गुजरे, जान कर अच्छा लगा. ईब नदी का भी नाम है.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें ||
न थको न रुको बस यूँ ही चलते चलो...शुभकामनाएँ
ReplyDeleteअरे यहीं इसी रूट पर तो हमारा नया भूषण का स्टील प्लांट है...
ReplyDeleteये महिलाए लकडियो का गठर बाथरूम के आगे और दो डब्बों को जोड़ने वाले स्थान पर रख देती है और एक डब्बे से दुसरे डब्बे में जाने यहाँ तक की बाथरूम जाने के लिए भी जगह नहीं होती है |
ReplyDeleteWhat a beautiful post. The stations are so differently named, and life goes on alongside...
ReplyDeleteReal treat to the eyes.
Have a nice day.
My Yatra Diary...
mai raigarh ke paas Baramkela ka rahne wala hu
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