हमारी केदारनाथ की यात्रा शुरू होती है गुप्तकाशी से। 19 अप्रैल की सुबह दिल्ली से चलकर मैं और सिद्धान्त शाम छह बजे तक गुप्तकाशी पहुंच गये थे। कुछ दिन पहले सिद्धान्त की मेल आई थी। पूछ रहे थे कि मेरे पास उत्तराखण्ड में घूमने के लिये पूरा एक महीना है, कैसे-कैसे घूमूं? मैंने उन्हें सबकुछ समझा दिया था। लेकिन जब मैंने खुद केदारनाथ जाने की योजना बनाई तो बन्दा भी तैयार हो गया।
मैंने रात को ड्यूटी की थी इसलिये हरिद्वार और आगे रुद्रप्रयाग तक सोते हुए गया। श्रीनगर तक तो मैं कई बार सफर कर चुका हूं, इसलिये अब इस रास्ते पर जाते हुए ऋषिकेश कूदते ही भयंकर बोरियत शुरू होने लगती है। पहाडी रास्ता है, सोने की कोशिश भी करता हूं तो कभी इधर लुढक जाता हूं कभी उधर। हरिद्वार में बस अड्डे से दो किलोमीटर पहले ऋषिकुल चौराहा है। दोनों वही उतर गए। यही वो जगह है जहां से एक सडक दिल्ली के लिये जाती है और दूसरी ऊपर पहाड के लिये। हमने सडक पार भी नहीं की थी कि गोपेश्वर की बस आ गई। चढ लिये। पीछे वाली सीटें ही खाली थीं।
सुबह सवेरे दिल्ली से चले थे, ना कुछ खाया था ना पीया था। शुक्र था कि देवप्रयाग से दस किलोमीटर पहले कुछ खाने-खिलाने के लिये बस रोक दी गई। चाय के साथ आलू के दो परांठे उदर में सरका दिये गये। उधर सिद्धान्त ठहरा राष्ट्रीय स्तर का मैराथन धावक। खाने-पीने पर जबरदस्त कंट्रोल है। कुछ नहीं खाया। अपने साथ लाये भुने चने, किशमिश और बादाम ही खाता रहा। ऊपर से पानी पीकर दिखाता रहा कि छक गया।
श्रीनगर पहुंचे। हालांकि यह बस आगे रुद्रप्रयाग होते हुए कर्णप्रयाग और गोपेश्वर तक जा रही थी, लेकिन फिर भी टिकट हमने श्रीनगर तक का ही लिया था। कारण था श्रीनगर में बस का ज्यादा लम्बा ठहराव। तुरन्त उतरे और इससे आगे खडी बस में जा चढे। घण्टे सवा घण्टे में रुद्रप्रयाग पहुंच गये। यहां से केदारनाथ और बद्रीनाथ के लिये रास्ते अलग-अलग हो जाते हैं। बद्रीनाथ के लिये अलकनंदा और केदारनाथ के लिये मंदाकिनी घाटी में जाना होता है। यहां भी बस से उतरते ही गुप्तकाशी जाने वाली जीप मिल गई। साढे छह बजे तक गुप्तकाशी पहुंच गये। रास्ते में अगस्त्यमुनि पार करते ही बर्फ दिखने लगती है।
हमारा इरादा आज ही गौरीकुण्ड के लिये निकलने का था लेकिन गुप्तकाशी से दिन ढलने के बाद कोई गाडी ही नहीं मिली। सिद्धान्त बोला कि 35 किलोमीटर ही तो है, पैदल चलते हैं, पांच छह घण्टे में पहुंच जायेंगे। मैंने सबकुछ जानते हुए और ना चाहते हुए भी हां में हां मिला दी। भला हो मौसम का कि बूंदाबांदी होने लगी और सिद्धान्त के पास बरसाती नहीं थी और एक साधु का जिसने बताया कि यहां कभी भी रात को सफर मत करना। जंगली जानवर घूमते मिलते हैं। सिद्धान्त तब जाकर कुछ तसल्लीबख्श हुआ।
डेढ सौ रुपये में एक कमरा लिया गया। गढवाल में बिना सीजन के जाने का सबसे बडा फायदा यही है कि कमरे वगैरह बेहद सस्ते मिल जाते हैं। नहीं तो खुलने दो कपाट, वही डेढ सौ रुपये वाला कमरा कम से कम छह सौ रुपये का हो जायेगा।
गुप्तकाशी में कमरे से दिखती चौखम्भा चोटी
यह तीन बेड वाला कमरा है। बाथरूम अटैच है। नाम नहीं बताऊंगा, यह अपना उसूल नहीं है। बस अड्डे के पास ही है। हमें 150 रुपये में मिला था। कपाट खुलने के बाद कम से कम 600 का हो जायेगा।
गुप्तकाशी से दिखता ऊखीमठ शहर
गुप्तकाशी बस अड्डे का नजारा।
सिद्धान्त को बादलों और बर्फ में अंतर पता नहीं चला। जब तक पहले दिन गुप्तकाशी में रहा, बर्फ को देखकर कहता रहा कि बादल हैं। अगले दिन जब केदारनाथ गये तब असलियत पता चली।
अभी दिन भर के सफर के थके हुए हैं, खाना खाते हैं और सोते हैं। सुबह उठकर गौरीकुण्ड चलेंगे जहां से केदारनाथ की चौदह किलोमीटर की पैदल यात्रा शुरू होती है।
अगला भाग: केदारनाथ यात्रा- गुप्तकाशी से रामबाडा
केदारनाथ तुंगनाथ यात्रा
1. केदारनाथ यात्रा
2. केदारनाथ यात्रा- गुप्तकाशी से रामबाडा
3. केदारनाथ में दस फीट बर्फ
4. केदारनाथ में बर्फ और वापस गौरीकुण्ड
5. त्रियुगी नारायण मन्दिर- शिव पार्वती का विवाह मण्डप
6. तुंगनाथ यात्रा
7. चन्द्रशिला और तुंगनाथ में बर्फबारी
8. तुंगनाथ से वापसी भी कम मजेदार नहीं
9. केदारनाथ-तुंगनाथ का कुल खर्चा- 1600 रुपये
विवरण, चित्र और टिप (ऑफ सीज़न) सभी के लिये धन्यवाद!
ReplyDeleteरोचक संस्मरण और आपका अंदाज- ए- वयां ...घूमते रहिये .....!
ReplyDeleteक्या खूब.सजीव चित्रण...ऎसा लगा की सब कुछ आखो के सामने हो रहा हॆ..
ReplyDeleteसुपरफ़ास्ट यात्रा, सुपरफ़ास्ट पोस्ट,
ReplyDeleteयह तीन बेड वाला कमरा है। बाथरूम अटैच है। नाम नहीं बताऊंगा, यह अपना उसूल नहीं है...काहे भाई???
ReplyDeleteबकिया तो आनन्द आया और इन्तजार तो लगा ही हमेशा की तरह.
आखिर पहाडो की रंगीनियाँ देखने का मोका आ ही गया --अब जाकर गर्मी शांत हुई नीरज -- आपके साथ हम भी घुम लिए गुप्त काशी --बधाई हो -- आगे की किस्त जानने को बेकरार हूँ ---
ReplyDeleteghumte rahiye or hum sabhi ko bhi apni nazro se gumate rahiye...bhut sudar photos...best of luck 4 yur journy...
ReplyDeleteहम लोग भी गए हैं लेकिन ऐसी यात्रा नहीं की जैसी आप करते हैं...आप तो महान हैं...चित्र शानदार हैं...
ReplyDeleteनीरज
..."यह तीन बेड वाला कमरा है। बाथरूम अटैच है। नाम नहीं बताऊंगा, यह अपना उसूल नहीं है।"
ReplyDeleteमुसाफिर जी, यदि नाम बतादोगे तो शायद पर्यटक/पर्यटकों के काम आ जाये.
ऑफ सीजन जाने का विचार पसंद आया.
ReplyDeleteकमरा देख कर तो लगता हे बहुत अच्छा होगा, ओर बहुत ही सस्ता, सभी चित्र मस्त लगे, अच्छा हे बाबा की बात मान ली, वर्ना उस इलाके मे बाघ, लकडबग्गे बहुत होते हे, उस रात उन की पार्टी हो जाती:) ओर इस होटल का नाम बता दो सब का भला होगा,
ReplyDeleteJiyo bhai, you are leading a real life.
ReplyDeletelage raho neeraj bhai, aapke bahane ham bhi kedarnath ghoom rahe hain
ReplyDelete....आनन्द आया शानदार चित्र
ReplyDeleteवाह नीरज भाई , बहुत अच्छा
ReplyDeleteप्रोफाइल इमेज बदल लिया है , पर्वतारोही लग रहे हो , जम रहे हो
... नीरजजी आप इतनी अच्छी और व्यवस्थित ढंग से जानकारी देते है कि बस!..मैने आप के लगभग सभी ब्लोग्स पढे है!...यात्रा-वृत्तांत बहुत ही सरल शब्दों मे और उपयुक्त होता है!...मेरे ब्लोग पर आपने बहुत अच्छा कॉमेंट दिया है...धन्यवाद!
ReplyDeleteपढ़कर घूमने का आनन्द आ गया।
ReplyDeleteनीरज तुम कितना घूमोगे? तुम्हारे शौक से तो ईर्ष्या होती है। लिख भी देते हो तो यादे हमेशा के लिए बनी रहती हैं। बड़ी अच्छी यात्रा है। बस करते रहो और लिखते रहो।
ReplyDeleteअपनी भी जाने की बहुत विकट इच्छा है....
ReplyDeleteएक दिन में ३५ किलोमीटर ! यह तो कुछ ज्यादा ही है । १६ किलोमीटर तो हमने भी ट्रेक किया है ।
ReplyDeleteइस क्षेत्र में रात में गाड़ियाँ भी नहीं चलती हैं ।
फ़िलहाल यात्रा का आनंद आ रहा है ।
pahali baar aapke blog main aai hoon.bhaut majaa aaya kedarnaath yatra vivran ka aur bahut achchi jaankaari bhi milin sachitra.main bhi ghumane ki shokin hoon.aapke blog se to mujhe bhi nai nai jagah ke baare main jaankaari milegi.thanks.
ReplyDeleteplease visit my blog and leave the comments also.aabhaar
Hi Neeraj
ReplyDeleteaap ki le hui tasvira muje bhut achi lagi. aap likhte bhi accha ho.
Mai Pahli Bar aap ke Blog Pad hai. aap nokri karte huye 1 year me etini yatra kase kar sakte ho. namukin lagata h.
jasa ki aap na likha h 2009 mai 110
yatra 1 yatra m kam sa kam 2 days lagte hai. 110*2=220 or 1 year m 365 days hote hai.
what is hath ka kamal
plz reply
Thanx
Nitin Gupta
9728546515
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nitinltfood@gmail.com
wonder ful yatra
ReplyDeletewonderful photos ji
ReplyDeletesajeev chitran lage raho neeraj bhai
ReplyDeleteवाह मित्र ....हमे भी अपनी केदारनाथ यात्रा याद आ गयी|
ReplyDeletehamain bhi apni kedarnath ki kadvi yatra 2013 yaad aa gayi
ReplyDeletewow... aapke blogs pad ke dil khush ho gyaaa mera bhi dil krta hai me pura uttrakhand ghumu.. tungnath jab me gyi thi vapsi k samay barish shuru ho gyi thi or motte motte ole gire..pr vo maza kya baat thi us din ki... badlo k bich jab me ghiri hue thi.. pr mera phone kharab hone ki vajha se me vo sari pictures or videos kho chuki pr aapka blog pad k vo din yd a gye .. i wish mein bahut jaldi phir se apne paaharo me ghum ke aaun..
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