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23 अगस्त 2011 को सुबह नौ बजे मैं पुरी स्टेशन पर पहुंचा। पुरी देखने से ज्यादा दिलचस्पी मुझे कोणार्क का सूर्य मन्दिर देखने में थी इसलिये तुरन्त रिक्शा करके बस अड्डे पहुंचा। यहां से कोणार्क के लिये छोटी छोटी बसें हर आधे घण्टे में चलती हैं। करीब 30-35 किलोमीटर की दूरी है। इसी यात्रा में मैंने पहली बार समुद्र देखा।
सूर्य मन्दिर मुख्य रोड से हटकर करीब एक किलोमीटर दूर है। पैदल रास्ता है, दोनों तरफ दुकानें हैं जिनमें मुख्यतः हाथ से बनी वस्तुएं बेची जाती हैं। मन्दिर प्रांगण में घुसने से पहले टिकट लेना पडता है जो शायद दस रुपये का था। पहली बार सामने से मन्दिर देखा तो कसम से मैं तो एक मिनट तक मन्त्रमुग्ध सा खडा रहा।
कोणार्क का सूर्य मंदिर (जिसे अंग्रेज़ी में ब्लैक पगोडा भी कहा गया है), भारत के उड़ीसा (अब ओडिशा) राज्य के पुरी जिले के कोणार्क नामक शहर में स्थित है। इसे लाल बलुआ पत्थर एवं काले ग्रेनाइट पत्थर से 1236– 1264 ई.पू. में गंग वंश के राजा नृसिंहदेव द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर, भारत के सबसे प्रसिद्ध स्थलों में से एक है। इसे युनेस्को द्वारा सन 1984 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है। कलिंग शैली में निर्मित यह मंदिर सूर्य देव (अर्क) के रथ के रूप में निर्मित है। इस को पत्थर पर उत्कृष्ट नक्काशी करके बहुत ही सुंदर बनाया गया है। संपूर्ण मंदिर स्थल को एक बारह जोड़ी चक्रों वाले, सात घोड़ों से खींचे जाते सूर्य देव के रथ के रूप में बनाया है। अब इनमें से एक ही घोडा बचा है। इस रथ के पहिये, जो कोणार्क की पहचान बन गये हैं, बहुत से चित्रों में दिखाई देते हैं। मन्दिर के आधार को सुन्दरता प्रदान करते ये बारह चक्र साल के बारह महीनों को प्रतिबिम्बित करते हैं, जबकि प्रत्येक चक्र आठ अरों से मिलकर बना है जो कि दिन के आठ पहरों को दर्शाते हैं। मंदिर अपनी कामुक मुद्राओं वाली शिल्पाकृतियों के लिये भी प्रसिद्ध है। आज इसका काफी भाग ध्वस्त हो चुका है। इसका कारण वास्तु दोष एवं मुस्लिम आक्रमण रहे हैं। यहां सूर्य को बिरंचि-नारायण कहते थे।
मुख्य मन्दिर तीन मण्डपों में बना है। इनमें से दो मण्डप ढह चुके हैं। तीसरे मण्डप में जहां मूर्ति थी, अंग्रेजों ने भारतीय स्वतन्त्रता से पूर्व ही रेत व पत्थर भरवा कर सभी द्वारों को स्थायी रूप से बन्द करवा दिया था ताकि यह मन्दिर और क्षतिग्रस्त ना हो पाये।
यह मन्दिर अपनी कामुक मुद्राओं वाली शिल्पाकृतियों के लिये भी प्रसिद्ध है। इस प्रकार की आकृतियां मुख्यतः द्वारमण्डप के द्वितीय स्तर पर मिलती हैं। इन आकृतियों का विषय स्पष्ट किन्तु अत्यन्त कोमलता एवं लय में संजोकर दिखाया गया है।
(यह लेख विकीपीडिया से लिया गया है।)
कोणार्क बाजार
सामने से सूर्य मन्दिर
प्रवेश सीढियां
घोडे रथनुमा मन्दिर को खींच रहे हैं।
सूर्य भगवान
सुरक्षा की दृष्टि से अंग्रेजों द्वारा द्वारों को पूरी तरह स्थायी रूप से बन्द कर दिया गया।
और अब कामुक मूर्तियां
जी-भरकर सूर्य मन्दिर को देखकर अब नम्बर था समुद्र देखने का। यहां से समुद्र की दूरी तीन किलोमीटर है जोकि पुरी जाने वाली सडक पर ही तय की जाती है। थोडी देर तक तो बस की प्रतीक्षा की लेकिन निराश होने पर पैदल ही हो लिया। एक किलोमीटर ही गया था कि पीछे से एक स्कूटर वाले ने रोका और बैठने को कहा। मैं कोणार्क जाते समय रास्ते को देख चुका था, इसलिये निश्चिन्त था। और उस भले मानुस स्कूटर वाले ने दो किलोमीटर बाद समुद्र के किनारे छोड दिया। मैंने थैंक्यू कहा, उसने गर्दन हिलाई, इसके अलावा हममें कोई बात नहीं हुई। उडीसा का एक यादगार अनुभव।
यह है वो यादगार फोटू जो मेरी जिन्दगी का पहला समुद्री फोटू बना। अब ना जाने कितने समुद्री फोटू खिंचेंगे।
मुझे समुद्र की कोई जानकारी नहीं है। पहली बार समुद्र देखा है। बताया जाता है कि यहां का समुद्र तट बडे जोश में रहता है, ऊंची ऊंची लहरें आती हैं।
अगला भाग: पुरी यात्रा- जगन्नाथ मन्दिर और समुद्र तट
हावडा पुरी यात्रा
1. कलकत्ता यात्रा- दिल्ली से हावडा
2. कोलकाता यात्रा- कालीघाट मन्दिर, मेट्रो और ट्राम
3. हावडा-खडगपुर रेल यात्रा
4. कोणार्क का सूर्य मन्दिर
5. पुरी यात्रा- जगन्नाथ मन्दिर और समुद्र तट
6. पुरी से बिलासपुर पैसेंजर ट्रेन यात्रा
मुबारक हो पहली बार समुन्द्र के दर्शन करने पर, सूर्य मन्दिर शानदार लगा, अब लगे हाथ इस नमकीन पानी में भी एक डुबकी लगा ही देते तो कुछ घिस नहीं जाता उल्टा कुछ चिपक ही जाता ना।
ReplyDeleteखजुराहो के बाद कोणार्क में भी जब मैंने कामुकता वाले शिल्प चित्रण देखे तो आश्चर्य हुआ था -यह एक काल विशेष की कला प्रियता लगती है
ReplyDeleteबहुत बढ़िया चौधरी !
ReplyDeleteआनंद आ गया ...बरसों से इस मंदिर के वास्तविक स्वरुप का कुछ भी ज्ञान नहीं था , तुम्हारे कैमरे के विभिन्न कोणों से खींचे गए फोटो देख कर वहां के वास्तविक रूप का अंदाजा हो सका !
लोकल मार्केट कोणार्क बाज़ार बहुत अच्छी लगा , मगर यहाँ कंजूसी कर गए ! इन दुकानों का क्लोजअप और दर्शनीय रहता !
आभार इस खूबसूरत यात्रा के लिए जो तुम्हारी आँखों से हमने भी कर ली !
गजब की वैज्ञानिकता है इन मंदिरों में। लहरें आपका मन मोह लेंगी।
ReplyDeleteसूर्य मन्दिर शानदार लगा| खूबसूरत यात्रा के लिए धन्यवाद|
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति |
ReplyDeleteहमारी बधाई स्वीकारें ||
हमेशा की तरह शानदार विवरण. वैसे कोणार्क का समुद्र तट जिसे चंद्रभागा भी कहा जाता है, औरों की तुलना में काफी गहरा है, इस वजह से येहां नहाने की मनाही है..
ReplyDeleteकोणार्क की निर्माण की एक और खासियत है की सूर्योदय के समय सूरज की रोशनी सीधे मंदिर के गर्भ गृह पैर पड़ती है, और वह भी मंदिर के प्रवेश रास्ते के तरफ से बारह महीने....
कुछ बाते मै भी जोड़ दू | ये जानकारी वहा के गाइड ने दी की मंदिर के निर्माण में पत्थरो को जोड़ने के लिए सीमेंट का नहीं बल्कि पत्थरो के बिच लोहे की प्लेट रखी गई थी और मंदिर के सबसे उपरी भाग पर एक बड़ा चुम्बक रख दिया गया था ( चुम्बक रखने के दौरान राजमिस्त्री के पुत्र की वहा से गिर कर मौत हो गई थी जिसके कारण मंदिर को अपवित्र घोषित कर दिया गया और उसमे कभी पूजा नहीं हुई ) जिससे मंदिर स्थिर था किन्तु जब अंग्रजो ने उसे जमीन के निचे से खोजा और इसे सबके सामने लाया तो इसके चुम्बक के कारण वहा से गुजर रहे जहाजो के यंत्र गड़बड़ हो जाते थे तो ब्रिटिस लोगो ने उस चुम्बक को हटा दिया जिसके कारण मंदिर के जोड़ हिल गए और वो गिराने लगा जिसे रोकने के लिए उसे ईट मिटटी से बंद का दिया | जब मंदिर बना था तब ये समुन्द्र के ठीक सामने था किन्तु अब समुन्द्र इससे तीन किलोमीटर दूर हो गया है जहा आप गए थे जिसे चन्द्र भागा कहते है | मंदिर के सामने तीन दरवाजे बने है जिससे हो कर सूर्य की पहली किरण गर्भगृह तक जाती है तीन दरवाजे इसलिए ताकि सूर्य अपनी दिशा बदलने के बाद भी सीधे मंदिर में जाये |
ReplyDeleteKonark ka Surya Mandir Bahut hi khubsurat hain.... main bhi ek baar yanha par jaa chuka hu....
ReplyDeleteDhyanavaad
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Tuesday, October 11, 2011
माउन्ट आबू : पर्वतीय स्थल के मुख्य आकर्षण (2)..............4
http://safarhainsuhana.blogspot.com/2011/10/24.html
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteहमेशा की तरह शानदार चित्र और वर्णन...पहाड़ों से सीधे समंदर की गोद में....घुमक्कड़ी जिंदाबाद...
ReplyDeleteनीरज
यार , पहाड़ों से मुक्ति मिली वरना पिछले दो तीन साल से पहाड़ दिखा कर पका दिया था .
ReplyDeleteवैसे बुरा मत मानना , मै इस ब्लॉग का नियमित पाठक हूँ , अतः कमेन्ट करने का हक तो बनता ही है .
यात्रा विवरण अच्छा है . मै २००१-०२ में ओडिसा गया था . पूरी , कटक , भुबनेश्वर आदि घुमा था . तस्वीरे देखकर यादे ताजा हो गयी .चिल्का झील भी गए थे क्या ?
दर्शनीय चित्र और दर्शनीय नजारे सूर्य मंदिर के और दरिया के।
ReplyDeleteकोणार्क पहली बार मैंने शाम की रौशनी में देखा था और चमत्कृत ही रह गया था. यह सूर्य मंदिर, सौर अध्ययन में भी प्रयुक्त होता था. अंशुमाला जी ने अतिरिक्त जानकारी देकर इस लेख को और भी परिपूर्ण कर दिया है. चंद्रभागा से सूर्योदय को निहारना और भी यादगार अनुभव है. इसका संबंध कृष्ण से भी जोड़ा गया है.
ReplyDeleteचलो बाम्बे का न सही कोई और तो समुन्द्र देखा तुमने ....
ReplyDeleteसूर्य मंदिर बहुत ही अच्छा हैं --कभी जाकर जरुर देखूंगी !
कामुक चित्रों का इतिहास यह हैं की ----- "जब भक्ति बहुत बड गई और इंसान आपस में भक्ति में लींन हो गया तो वहां का राजा चिंतित हो उठा --जनसँख्या कैसे बढेगी ? तब कुछ विद्वानों ने उसे ऐसे चित्रों के गठन की सलाह दी, इन चित्रों के जरिए आपस में प्रेम स्थापित हुआ ? खजुराहो के मंदिर की भी यही कहानी हैं !"
मैंने कई समुद्र तट देखे हैं लेकिन कोणार्क जितना सुन्दर तट नहीं देखा। आप कहीं भी बैठे हों, लहरे आपको भिगो ही देती हैं। कोणार्क देखने का अवसर जीवन में दो बार मिला, बहुत अच्छी जगह है।
ReplyDeleteमस्त है भाई!!मस्त :)
ReplyDeleteबहुत बढ़िया |
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