कई बार हम जो चाहते हैं, वैसा नहीं होता। इस बार हमारे साथ भी वैसा ही हुआ। हम असल में दक्षिण भारत की यात्रा नहीं करना चाहते थे, बल्कि पूर्वोत्तर में पूरी सर्दियाँ बिता देना चाहते थे। लेकिन दूसरी तरफ हम दक्षिण से भी बंधे हुए थे। सितंबर 2018 में जब हम कोंकण यात्रा पर थे, तो अपनी मोटरसाइकिल गोवा में ही छोड़कर दिल्ली लौट आए थे। अब चाहे हमारी आगामी यात्रा पूर्वोत्तर की हो या कहीं की भी हो, हमें गोवा जरूर जाना पड़ता - अपनी मोटरसाइकिल लेने।
दक्षिण तो मानसून में भी घूमा जा सकता है, लेकिन पूर्वोत्तर घूमने का सर्वोत्तम समय होता है सर्दियाँ। सिक्किम और अरुणाचल के ऊँचे क्षेत्रों को छोड़ दें, तो पूरा पूर्वोत्तर सर्दियों में ही घूमना सर्वोत्तम होता है। पिछले साल से ही हमारी योजना इस फरवरी में अरुणाचल में विजयनगर जाने की थी और हम इसके लिए तैयार भी थे। एक साल की छुट्टियाँ भी इसीलिए ली गई थीं, ताकि पूर्वोत्तर को अधिक से अधिक समय दे सकें और भारत के इस गुमनाम क्षेत्र को हर मौसम में हर कोण से देख सकें और आपको दिखा भी सकें।
लेकिन हम बंधे हुए थे गोवा से। भले ही विजयनगर जाने में मोटरसाइकिल का बहुत ज्यादा काम न हो, लेकिन बाकी पूर्वोत्तर देखने के लिए अपनी मोटरसाइकिल होना ही सबसे अच्छा विकल्प होता है। अपनी मोटरसाइकिल के बिना हम जो भी समय काट रहे थे, वो बस ‘काट’ ही रहे थे। हमें तलब लगी थी कि हम जल्द से जल्द गोवा जाकर अपनी मोटरसाइकिल लेंगे और इसी से यात्राएँ करेंगे। गोवा से सीधे पूर्वोत्तर जाएँगे - ऐसा हमने सोच रखा था।
फिर कुछ कारणों से विलंब होता चला गया और जनवरी भी पूरी गुजर गई। हम अपनी योजना से दो महीने लेट हो गए। मार्च-अप्रैल में पूर्वोत्तर में बारिश शुरू हो जाएगी और हम इस बारिश से बचना भी चाहते थे। पूर्वोत्तर की यात्रा का सर्वोत्तम समय चूँकि निकल चुका था और हमें गोवा जाना भी जरूरी था, तो अब मन में आया दक्षिण घूमना। मैं वैसे तो कन्याकुमारी तक गया हूँ, लेकिन वह केवल ट्रेन यात्रा थी। कुल मिलाकर हम दोनों में से कोई भी अभी तक दक्षिण नहीं गया था। अब जब मोटरसाइकिल लेने दक्षिण जाना ही है, तो क्यों न पूरा दक्षिण देख लिया जाए। हालाँकि यह दक्षिण की यात्रा का भी सर्वोत्तम समय नहीं है। मार्च-अप्रैल में उत्तर भारत में ही लू चलने लगती है, तो दक्षिण की भी कल्पना की जा सकती है। फिर भी हमने योजना पक्की कर ली पूरा दक्षिण घूमने की।
अब हमारे पास समय की कोई कमी तो रहेगी नहीं, इसलिए हम अपनी यात्राओं में कुछ नए प्रयोग करेंगे। एवरेस्ट, लद्दाख और पूर्वोत्तर जैसे दुर्गम स्थानों पर किताबें लिखने के बाद अगर हम दक्षिण यात्रा पर भी किताब लिखेंगे तो इसमें दुर्गमता जैसी कोई बात नहीं रहेगी। यह बात मुझे दक्षिण यात्रा पर किताब लिखने के लिए थोड़ा हतोत्साहित भी कर रही है। लेकिन कुछ मित्रों का आग्रह है कि मैं किताब लिखूँ।
किताब को रोचक बनाए रखना बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य है। दक्षिण के जितने भी पर्यटक स्थल हैं, सभी आम यात्रियों की पहुँच के भीतर हैं, इसलिए गोवा, मैसूर, मुन्नार, ऊटी, कन्याकुमारी आदि के वर्णन करने से किताब रोचक तो कतई नहीं बनेगी। या इनसे हटकर हम्पी, बदामी, बांदीपुर, पेरियार, धनुषकोडी आदि स्थानों से भी रोचकता नहीं आएगी। दुर्गम स्थानों का वर्णन करने का प्लस पॉइंट यही होता है कि रोचकता बरकरार रहती है। आप चूँकि उन स्थानों तक नहीं गए होते हैं, तो आपको भी एक स्वाभाविक उम्मीद रहती है कि हम कैसे चले गए और अगर आप जाओगे, तो क्या होगा। लेकिन दक्षिण में ऐसा नहीं है।
यहाँ हमें कुछ नया करना होगा। कोई ऐसा प्रयोग, जो हमने पहले कभी नहीं किया। चूँकि मौसम हमारे अनुकूल नहीं रहेगा, इसलिए हम जल्द ही परेशान हो जाएँगे और दो-तीन महीने बिताने की योजना बदलकर पंद्रह-बीस दिनों में ही वापस भाग जाएँ - ऐसा भी हो सकता है। इसलिए हमारे लिए यह अत्यधिक जरूरी हो जाता है कि हम कोई नया प्रयोग करें, ताकि हमें भी आनंद मिले और बाद में आपको भी।
एक तो हम हमेशा की तरह प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों से दूरी बनाए रखेंगे, लेकिन चूँकि हमने इधर कुछ भी नहीं देखा है तो एक बार इन स्थानों को टच करना तो बनता ही है। फिर गर्मी परेशान करेगी, इसलिए तटीय व पठारी क्षेत्रों से भी दूरी बनानी पड़ेगी। ऐसे में केवल पश्चिमी घाट की पहाड़ियाँ ही बचती हैं। ये पहाड़ियाँ असल में वर्षावन हैं और इनमें घने जंगल भी हैं। जीवों की कुछ दुर्लभ प्रजातियाँ इनमें निवास करती हैं। इसलिए हम अपना मुख्य ध्यान इन्हीं क्षेत्रों में लगाए रखेंगे। इनमें ऊटी, मुन्नार और कोडैकनाल जैसे स्थान भी आ जाते हैं और कुछ नेशनल पार्क भी।
दूसरा काम करेंगे - यूट्यूब पर सक्रियता। हालाँकि मेरा यूट्यूब चैनल इस ब्लॉग से भी पुराना है, लेकिन असली सक्रिय पिछले दो महीनों से ही हुआ हूँ। इन दो महीनों में मैंने कुछ वीडियो एडिटिंग की हैं और तमाम तरह के मोबाइल एप व सॉफ्टवेयर का भी प्रयोग किया है। जिसमें जैसा तुक्का लगता है, उसी को इस्तेमाल कर लेता हूँ। फिर भी अभी भी इस विधा में बहुत कुछ करना है।
यूट्यूब के लिए भी ट्रैवल वीडियो बनाने के दो तरीके मुझे सूझ रहे हैं- एक तो अपनी दैनिक डायरी और दूसरा डिस्कवरी जैसी वीडियो। डेली डायरी में रोज कम से कम दो-तीन घंटे वीडियो एडिटिंग को देने होंगे, जबकि डिस्कवरी जैसी किसी विशेष वीडियो में उस क्षेत्र की संपूर्ण जानकारी अनिवार्य है, साथ ही उच्चतम गुणवत्ता भी। और रोचकता दोनों में।
फिलहाल इस यात्रा का रोज ब्लॉग लिखना संभव नहीं होगा और रोज यूट्यूब वीडियो भी संभव नहीं होंगी, लेकिन हम लगातार कुछ न कुछ अपडेट करते रहेंगे। तो आपके लिए जरूरी हो जाता है कि ब्लॉग पर भी निगाहें-करम रखिए और फेसबुक पर भी और यूट्यूब पर भी।
...
तो इस यात्रा की शुरूआत होती है नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से चंडीगढ़-कोचुवेली केरल संपर्क क्रांति एक्सप्रेस पकड़ने से। कल ही हमने इसमें बिना तत्काल कोटे के कन्फर्म बर्थ बुक की थी। असल में नई दिल्ली से इस ट्रेन से रिमोट लोकेशन का कोटा लगता है। यानी सीट कन्फर्म होना मुश्किल। इसलिए हमने चंडीगढ़ से कोझिकोड तक का टिकट बुक किया और बोर्डिंग नई दिल्ली दिखाया। कोझिकोड तक इसलिए क्योंकि मडगाँव तक भी रिमोट लोकेशन का कोटा चलता है। कोझिकोड में जनरल कोटा लगता है, इसलिए नई दिल्ली से खूब सारी वेटिंग होने के बावजूद भी थर्ड एसी में कन्फर्म बर्थ मिल गई।
अगर ऊपर वाले पैरा में लिखी बातें आपके पल्ले नहीं पड़ीं, तो समझने की कोशिश भी मत कीजिए। दुनिया में हमारे और आपके करने लायक और भी बहुत सारे काम हैं, जो ट्रेन का कोटा समझने से ज्यादा जरूरी हैं।
और हाँ, थर्ड एसी इसलिए क्योंकि हम गर्म कपड़े नहीं ले जाना चाहते थे। दिल्ली में उस समय शीतलहर चल रही थी। यह शीतलहर वडोदरा तक तो लगेगी ही। उसके बाद जैसे-जैसे दक्षिण की ओर बढ़ते जाएँगे, कपड़ों की लेयर अपने-आप ही कम होती जाएगी।
नई दिल्ली स्टेशन में प्रवेश करती हमारी ट्रेन |
यह तो मेरा भी स्टाइल है... इस चक्कर में कई बार ट्रेन छूटी है... |
कोंकण रेलवे की खूबसूरती |
कोंकण रेलवे पर स्थित मेरा सबसे पसंदीदा स्टेशन - उक्शी |
उक्शी स्टेशन आधा सुरंग में है और आधा सुरंग के बाहर |
और ये पहुँच गए मडगाँव |
यह रही हमारी मोटरसाइकिल... बेचारी पाँच महीनों से एक ही जगह खड़ी-खड़ी सूखकर काँटा हो गई है... |
सर्विस कराने के बाद चल पड़े कोलवा बीच की ओर... रास्ते में स्थित कानसोलिम स्टेशन |
कोलवा बीच |
वीडियो
1. दक्षिण भारत यात्रा के बारे में
2. गोवा से बादामी की बाइक यात्रा
3. दक्षिण भारत यात्रा: बादामी भ्रमण
4. दक्षिण भारत यात्रा: पट्टडकल - विश्व विरासत स्थल
5. क्या आपने हम्पी देखा है?
6. दारोजी भालू सेंचुरी में काले भालू के दर्शन
7. गंडीकोटा: भारत का ग्रांड कैन्योन
8. लेपाक्षी मंदिर
9. बंगलौर से बेलूर और श्रवणबेलगोला
10. बेलूर और हालेबीडू: मूर्तिकला के महातीर्थ - 1
11. बेलूर और हालेबीडू: मूर्तिकला के महातीर्थ - 2
12. बेलूर से कलश बाइक यात्रा और कर्नाटक की सबसे ऊँची चोटी मुल्लायनगिरी
13. कुद्रेमुख, श्रंगेरी और अगुंबे
14. सैंट मैरी आइलैंड की रहस्यमयी चट्टानें
15. कूर्ग में एक दिन
16. मैसूर पैलेस: जो न जाए, पछताए
17. प्राचीन मंदिरों के शहर: तालाकाडु और सोमनाथपुरा
18. दक्षिण के जंगलों में बाइक यात्रा
19. तमिलनाडु से दिल्ली वाया छत्तीसगढ़
पता नहीं, जो मजा यहाँ आता है कहीं और क्यूँ नही आता। बहुत बढ़िया...
ReplyDeleteशानदार
ReplyDeleteJo mja blog padne me bo or khai nahi ata
ReplyDeleteApki yatra mangalmy ho
अपने घूमने का दायरा विशाखापत्तनम तक ले जाइए
ReplyDeleteजरूर... विशाखापत्तनम भी और छत्तीसगढ़ भी...
DeleteNEERAJ JI CAME TO DAMAN ALSO
ReplyDeleteबहुत खूब, आगे की यात्रा का इंतजार रहेगा
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा फोटोग्राफ और वीडियो की क्वालिटी भी जबरदस्त सुधर गई है।
ReplyDeleteनीरज जी वैसे तो मैं आपका पुराना फैन हूँ लेकिन जितनी सुंदर और सजीवता से वर्णन आप करते हैं और किसी भी ब्लॉग पर नहीं मिलता। इसलिए हमेशा आपके ब्लॉग पर कुछ नए रोमांचक जगहों की प्रतीक्षा करते हैं
ReplyDeleteUttam karya
ReplyDelete