1 मार्च 2019
जैसे ही प्रतीक ने सैंट मैरी आइलैंड का नाम लिया, तुरंत गूगल किया और मेरे सामने थे आइलैंड के बहुत सारे फोटो। जितना पढ़ सकता था, पढ़ा और फाइनली तय किया कि यहाँ जरूर जाएँगे।
हम उडुपि में थे और हमें दक्षिण की ओर जाना था। लेकिन प्रतीक ने हमें उडुपि के उत्तर में 50 किलोमीटर दूर मरवंते बीच जाने का भी लालच दे दिया। गर्मी बहुत ज्यादा होने लगी थी और हम दक्षिण की इस यात्रा को विराम दे देना चाहते थे। उडुपि से मरवंते जाकर फिर से उडुपि लौटना पड़ता। हम जाना भी चाहते थे और नहीं भी जाना चाहते थे।
लेकिन सैंट मैरी आइलैंड के बारे में कोई कन्फ्यूजन नहीं था।
होटल से सीधी सड़क जाती थी, नाक की सीध में। पहले उडुपि शहर और उसके बाद मालपे। मालपे पार करने के बाद हमारे सामने समुद्र था और यहीं पर एक पार्किंगनुमा जगह पर कुछ गाड़ियाँ खड़ी थीं, जिनमें दो बसें भी थीं। इन बसों से अभी-अभी स्कूली छात्र उतरे थे, जो सैंट मैरी आइलैंड जाएँगे। 300 रुपये प्रति व्यक्ति टिकट था आने-जाने का। मैंने 1000 रुपये देकर दो टिकट लिए और बाकी 400 रुपये लेना भूल गया, लेकिन जल्द ही कन्नड, हिंदी और इंगलिश में आवाजें लगाकर मुझे 400 रुपये दे दिए गए।
फेरी चल पड़ी साढ़े चार किलोमीटर की समुद्री यात्रा पर। इसमें डी.जे. लगा था और सभी के पास नाचने का बहाना भी था। सभी स्कूली छात्र नाचने लगे। इनके साथ कुछ अन्य यात्री भी लग लिए। हमारे अलावा कुछ बुजुर्ग यात्री और कुछ मुसलमान यात्री इन्हें नाचते देखते रहे।
समुद्र में चट्टानों के छोटे-छोटे टुकड़े बाहर निकले हुए थे। अगर यहाँ समुद्र न होता, तो ये ऊँचे पहाड़ों की चोटियाँ होतीं। इन्हीं टुकड़ों में कुछ अत्यंत छोटे हैं, तो कुछ सैंट मैरी आइलैंड जितने बड़े।
इसके बारे में आपको बता दूँ कि करोड़ों साल पहले भारत और अफ्रीका जुड़े हुए थे। फिर धीरे-धीरे अलग होना शुरू हुए। आज जहाँ मेडागास्कर है, भारत वहीं से अफ्रीका से अलग हुआ था। अलग होने की इस प्रक्रिया में भी करोड़ों साल लगे थे। इस दौरान भारत यानी गोंडवानालैंड में अनगिनत ज्वालामुखी विस्फोट हुए। बहुत सारा लावा निकला और गोंडवानालैंड में फैल गया। फिर जब वो लावा सूखा, तो उसने भारतीय प्रायद्वीप का निर्माण किया। पश्चिमी घाट के पहाड़ भी उसी से बने हैं।
अब हुआ ये कि यहाँ उस लावे की बड़ी विचित्र फोरमेशन बन गई। जैसे तालाब सूखने पर पहले कीचड़ बनता है और फिर कीचड़ के भी सूख जाने पर मिट्टी में दरारें आ जाती हैं और हेक्सागोनल शेप बन जाती है, उसी तरह लावा सूखने पर यहाँ भी चट्टानों की हेक्सागोनल शेप बन गई। यहाँ ऊँचे-ऊँचे हेक्सागोनल कॉलम बन गए, जो हैं तो एक-दूसरे से अलग, लेकिन साथ चिपके हुए हैं।
यह स्थान भारत के नेशनल जियोलॉजिकल मोन्यूमेंट्स में से एक है। जियोलॉजिकल मोन्यूमेंट्स वे होते हैं, जो जियोलोजी की दृष्टि से विशेष होते हैं।
साढ़े चार किलोमीटर की समुद्री यात्रा के दौरान ही हमें इस आइलैंड का काफी सारा हिस्सा दिख जाता है। साथ ही हमें यह भी पता चल गया कि इसके दक्षिणी सिरे पर ऐसी चट्टानें भरी पड़ी हैं और हमें सीधे वहीं जाना चाहिए।
यह वास्तव में एक रोमांचकारी जगह है। षट्कोणीय काट वाली चट्टानों के ऊँचे-ऊँचे पिलर्स एक-दूसरे से चिपककर खड़े हैं। आप सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि ऐसी कौन-सी ताकत है, कौन-सी थ्योरी है जिसके कारण ये चट्टानें ऐसी हो गईं।
मुझे हिमाचल में श्रीखंड महादेव के पास स्थित भीमशिला की चट्टानें याद आ गईं। वहाँ समुद्र तल से 5200 मीटर ऊपर विशालकाय चट्टानों में एक निश्चित पैटर्न पर छेद बने हुए हैं।
जो भी हो, इसका विस्तार से जवाब तो भूवैज्ञानिक ही दे सकते हैं। हम तो यहाँ यात्रा करने जा सकते हैं और इनके बारे में दुनिया को बता सकते हैं। और वही हम कर रहे हैं।
और जब आप उडुपि आ ही गए हैं, तो मरवंते भले ही न जाएँ, लेकिन बेंगरे बीच जरूर जाइए। यहाँ सुवर्णा, सीता और पडुकेरे नदियाँ संगम बनाकर समुद्र में मिलती हैं। तो इन नदियों के संगम और समुद्र के बीच में छह-सात किलोमीटर लंबी और 100-200 मीटर चौड़ी संकरी पट्टी है। इस पट्टी पर आखिर तक सड़क बनी है। एक तरफ नदियों का संगम और दूसरी तरफ अरब सागर - यहाँ होना ही अलौकिक अनुभव होता है।
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