Skip to main content

बेलूर और हालेबीडू: मूर्तिकला के महातीर्थ - 2

Travel Guide to Halebeedu Karnataka
होयसलेश्वर मंदिर, हालेबीडू

24 फरवरी 2019
बेलूर से 15-16 किलोमीटर दूर हालेबीडू भी अपने मंदिरों और मूर्तिकला के लिए विख्यात है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसका निर्माण सन 1221 में करवाया गया था। मंदिर के बारे में और अपने यात्रा-वृत्तांत के बारे में हम कभी बाद में डिसकस करेंगे, फिलहाल फोटो के माध्यम से यहाँ की यात्रा कीजिए।








All Travel Information About Halebeedu Karnataka
मंदिर के द्वारपाल





Hoyasaleshwara Temple Halebeedu Karnataka

Temple in Halebeedu Karnataka
नवग्रह मंडप की छत पर नवग्रह

Ancient Temple in South India
मंदिर के द्वारपाल... दाँत बाहर निकले हैं... आभूषण और वस्त्र-विन्यास देखने लायक हैं...

South India Temple Tour

South India Temples
द्वारपाल को नजदीक से देखिए...




National MOnuments in South India

Hotels in South India
कीर्तिमुख

Hotels in Karnataka

Hotels in Halebeedu

Bangalore to Halebeedu Journey
एक मिथकीय जीव - यली

Bangalore to Halebeedu Bus
युद्ध का दृश्य

Bangalore to Halebeedu Train
संभवतः यह अर्जुन है... दोनों पैरों के बीच में एक बर्तन रखा है... बर्तन में रखे तेल में देखकर ऊपर टँगी मछली पर निशाना लगाया जा रहा है...

Mysore to Halebeedu Road
‘गजासुर-चर्मधारी’ की इस मूर्ति को गौर से देखिए... भगवान शिव ने राक्षस गजासुर की इच्छानुसार उसकी खाल अपने ऊपर ओढ़ ली है... गजासुर का एक पैर सूँड के पास है... दूसरा पैर नीचे बाएँ कोने में और दो पैर ऊपर के कोनों में हैं... शिवजी, नंदी आदि के चारों ओर एक आवरण है, जो गजासुर की खाल है...

Best Hotel in Halebeedu
‘गजासुर-चर्मधारी’ के ऊपर वाले फोटो को फिर से गौर से देखिए... शिवजी ने अपने बाएँ हाथ से गजासुर की खाल को किस तरह पकड़ रखा है... अंगूठे को खाल के अंदर फँसा रखा है... शिल्पी की कल्पनाशीलता को नमन है...

Lord Krishna Statue in Halebeedu Karnataka
भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठा रखा है और उसके नीचे गायें, ग्वाले शरण लिए हुए हैं...





Halebeedu and Belur Travel Guide


Halebeedu Temple Timing


VIDEO










आगे पढ़ें: बेलूर से कलश बाइक यात्रा और कर्नाटक की सबसे ऊँची चोटी


1. दक्षिण भारत यात्रा के बारे में
2. गोवा से बादामी की बाइक यात्रा
3. दक्षिण भारत यात्रा: बादामी भ्रमण
4. दक्षिण भारत यात्रा: पट्टडकल - विश्व विरासत स्थल
5. क्या आपने हम्पी देखा है?
6. दारोजी भालू सेंचुरी में काले भालू के दर्शन
7. गंडीकोटा: भारत का ग्रांड कैन्योन
8. लेपाक्षी मंदिर
9. बंगलौर से बेलूर और श्रवणबेलगोला
10. बेलूर और हालेबीडू: मूर्तिकला के महातीर्थ - 1
11. बेलूर और हालेबीडू: मूर्तिकला के महातीर्थ - 2
12. बेलूर से कलश बाइक यात्रा और कर्नाटक की सबसे ऊँची चोटी मुल्लायनगिरी
13. कुद्रेमुख, श्रंगेरी और अगुंबे
14. सैंट मैरी आइलैंड की रहस्यमयी चट्टानें
15. कूर्ग में एक दिन
16. मैसूर पैलेस: जो न जाए, पछताए
17. प्राचीन मंदिरों के शहर: तालाकाडु और सोमनाथपुरा
18. दक्षिण के जंगलों में बाइक यात्रा
19. तमिलनाडु से दिल्ली वाया छत्तीसगढ़



Comments

Popular posts from this blog

डायरी के पन्ने- 30 (विवाह स्पेशल)

ध्यान दें: डायरी के पन्ने यात्रा-वृत्तान्त नहीं हैं। 1 फरवरी: इस बार पहले ही सोच रखा था कि डायरी के पन्ने दिनांक-वार लिखने हैं। इसका कारण था कि पिछले दिनों मैं अपनी पिछली डायरियां पढ रहा था। अच्छा लग रहा था जब मैं वे पुराने दिनांक-वार पन्ने पढने लगा। तो आज सुबह नाइट ड्यूटी करके आया। नींद ऐसी आ रही थी कि बिना कुछ खाये-पीये सो गया। मैं अक्सर नाइट ड्यूटी से आकर बिना कुछ खाये-पीये सो जाता हूं, ज्यादातर तो चाय पीकर सोता हूं।। खाली पेट मुझे बहुत अच्छी नींद आती है। शाम चार बजे उठा। पिताजी उस समय सो रहे थे, धीरज लैपटॉप में करंट अफेयर्स को अपनी कापी में नोट कर रहा था। तभी बढई आ गया। अलमारी में कुछ समस्या थी और कुछ खिडकियों की जाली गलकर टूटने लगी थी। मच्छर सीजन दस्तक दे रहा है, खिडकियों पर जाली ठीकठाक रहे तो अच्छा। बढई के आने पर खटपट सुनकर पिताजी भी उठ गये। सात बजे बढई वापस चला गया। थोडा सा काम और बचा है, उसे कल निपटायेगा। इसके बाद धीरज बाजार गया और बाकी सामान के साथ कुछ जलेबियां भी ले आया। मैंने धीरज से कहा कि दूध के साथ जलेबी खायेंगे। पिताजी से कहा तो उन्होंने मना कर दिया। यह मना करना मुझे ब...

डायरी के पन्ने-32

ध्यान दें: डायरी के पन्ने यात्रा-वृत्तान्त नहीं हैं। इस बार डायरी के पन्ने नहीं छपने वाले थे लेकिन महीने के अन्त में एक ऐसा घटनाक्रम घटा कि कुछ स्पष्टीकरण देने के लिये मुझे ये लिखने पड रहे हैं। पिछले साल जून में मैंने एक पोस्ट लिखी थी और फिर तीन महीने तक लिखना बन्द कर दिया। फिर अक्टूबर में लिखना शुरू किया। तब से लेकर मार्च तक पूरे छह महीने प्रति सप्ताह तीन पोस्ट के औसत से लिखता रहा। मेरी पोस्टें अमूमन लम्बी होती हैं, काफी ज्यादा पढने का मैटीरियल होता है और चित्र भी काफी होते हैं। एक पोस्ट को तैयार करने में औसतन चार घण्टे लगते हैं। सप्ताह में तीन पोस्ट... लगातार छह महीने तक। ढेर सारा ट्रैफिक, ढेर सारी वाहवाहियां। इस दौरान विवाह भी हुआ, वो भी दो बार। आप पढते हैं, आपको आनन्द आता है। लेकिन एक लेखक ही जानता है कि लम्बे समय तक नियमित ऐसा करने से क्या होता है। थकान होने लगती है। वाहवाहियां अच्छी नहीं लगतीं। रुक जाने को मन करता है, विश्राम करने को मन करता है। इस बारे में मैंने अपने फेसबुक पेज पर लिखा भी था कि विश्राम करने की इच्छा हो रही है। लगभग सभी मित्रों ने इस बात का समर्थन किया था।

लद्दाख बाइक यात्रा- 1 (तैयारी)

बुलेट निःसन्देह शानदार बाइक है। जहां दूसरी बाइक के पूरे जोर हो जाते हैं, वहां बुलेट भड-भड-भड-भड करती हुई निकल जाती है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि लद्दाख जाने के लिये या लम्बी दूरी की यात्राओं के लिये बुलेट ही उत्तम है। बुलेट न हो तो हम यात्राएं ही नहीं करेंगे। बाइक अच्छी हालत में होनी चाहिये। बुलेट की भी अच्छी हालत नहीं होगी तो वह आपको ऐसी जगह ले जाकर धोखा देगी, जहां आपके पास सिर पकडकर बैठने के अलावा कोई और चारा नहीं रहेगा। अच्छी हालत वाली कोई भी बाइक आपको रोहतांग भी पार करायेगी, जोजी-ला भी पार करायेगी और खारदुंग-ला, चांग-ला भी। वास्तव में यह मशीन ही है जिसके भरोसे आप लद्दाख जाते हो। तो कम से कम अपनी मशीन की, इसके पुर्जों की थोडी सी जानकारी तो होनी ही चाहिये। सबसे पहले बात करते हैं टायर की। टायर बाइक का वो हिस्सा है जिस पर सबसे ज्यादा दबाव पडता है और जो सबसे ज्यादा नाजुक भी होता है। इसका कोई विकल्प भी नहीं है और आपको इसे हर हाल में पूरी तरह फिट रखना पडेगा।