Skip to main content

बंगलौर से बेलूर और श्रवणबेलगोला


Shravanabelagola Travel Guide

23 फरवरी 2019
चार दिन बंगलौर में रुकने के बाद आज हम निकल ही पड़े। असल में हमने इस यात्रा के लिए तय कर रखा है कि यूट्यूब और ब्लॉग साथ-साथ अपडेट करते चलेंगे। तो गोवा से चलने के बाद बादामी और हम्पी आदि की वीडियो हम तैयार नहीं कर सके थे। इसलिए इन चार दिनों में हमने केवल यही काम किया। इस दौरान मनीष खमेसरा और जयश्री खमेसरा जी से भी मिल आए। ये दोनों एक नंबर के घुमक्कड़ हैं और पुरातत्व आदि के बारे में उत्तम जानकारी के भंडार हैं। इनसे मिलकर हमें भी दक्षिण के मंदिरों, उनकी संरचना आदि के बारे में काफी जानकारी प्राप्त हुई। अब दक्षिण के मंदिरों को देखने का एक अलग नजरिया विकसित हुआ।
जहाँ हम रुके हुए थे, वहाँ से मनीष जी का घर 15 किलोमीटर दूर था और इस दूरी को दो बार तय करने में हमें अंदाजा हो गया कि बंगलौर का ट्रैफिक बहुत खराब है।

तो आज बंगलौर से निकल पड़े। शहर से निकलते ही ट्रैफिक अचानक गायब हो गया और हमारे सामने थी खाली सड़क। हम शहर के खराब ट्रैफिक को भूल गए।


तो श्रवणबेलगोला पहुँचे। यह एक जैन तीर्थ है। विस्तार से कभी बाद में बताएँगे। आज फोटो ही देखिए:


Bangalore to Shravanabelagola Bus





Hotels in Shravanabelagola

Places to see in Shravanabelagola

Shravanabelagola Temple Distance


Shravanabelagola Temple Timing

Shravanabelagola History









Best Hotel in Shravanabelagola



Best Time for Shravanabelagola

Train to Shravanabelagola

Bangalore to Shravanabelagola Train

Mysore to Shravanabelagola Train


Scenery in Shravanabelagola


VIDEO












आगे पढ़िए: बेलूर और हालेबीडू: मूर्तिकला के महातीर्थ - 1


1. दक्षिण भारत यात्रा के बारे में
2. गोवा से बादामी की बाइक यात्रा
3. दक्षिण भारत यात्रा: बादामी भ्रमण
4. दक्षिण भारत यात्रा: पट्टडकल - विश्व विरासत स्थल
5. क्या आपने हम्पी देखा है?
6. दारोजी भालू सेंचुरी में काले भालू के दर्शन
7. गंडीकोटा: भारत का ग्रांड कैन्योन
8. लेपाक्षी मंदिर
9. बंगलौर से बेलूर और श्रवणबेलगोला
10. बेलूर और हालेबीडू: मूर्तिकला के महातीर्थ - 1
11. बेलूर और हालेबीडू: मूर्तिकला के महातीर्थ - 2
12. बेलूर से कलश बाइक यात्रा और कर्नाटक की सबसे ऊँची चोटी मुल्लायनगिरी
13. कुद्रेमुख, श्रंगेरी और अगुंबे
14. सैंट मैरी आइलैंड की रहस्यमयी चट्टानें
15. कूर्ग में एक दिन
16. मैसूर पैलेस: जो न जाए, पछताए
17. प्राचीन मंदिरों के शहर: तालाकाडु और सोमनाथपुरा
18. दक्षिण के जंगलों में बाइक यात्रा
19. तमिलनाडु से दिल्ली वाया छत्तीसगढ़



Comments

Popular posts from this blog

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

शीतला माता जलप्रपात, जानापाव पहाडी और पातालपानी

शीतला माता जलप्रपात (विपिन गौड की फेसबुक से अनुमति सहित)    इन्दौर से जब महेश्वर जाते हैं तो रास्ते में मानपुर पडता है। यहां से एक रास्ता शीतला माता के लिये जाता है। यात्रा पर जाने से कुछ ही दिन पहले मैंने विपिन गौड की फेसबुक पर एक झरने का फोटो देखा था। लिखा था शीतला माता जलप्रपात, मानपुर। फोटो मुझे बहुत अच्छा लगा। खोजबीन की तो पता चल गया कि यह इन्दौर के पास है। कुछ ही दिन बाद हम भी उधर ही जाने वाले थे, तो यह जलप्रपात भी हमारी लिस्ट में शामिल हो गया।    मानपुर से शीतला माता का तीन किलोमीटर का रास्ता ज्यादातर अच्छा है। यह एक ग्रामीण सडक है जो बिल्कुल पतली सी है। सडक आखिर में समाप्त हो जाती है। एक दुकान है और कुछ सीढियां नीचे उतरती दिखती हैं। लंगूर आपका स्वागत करते हैं। हमारा तो स्वागत दो भैरवों ने किया- दो कुत्तों ने। बाइक रोकी नहीं और पूंछ हिलाते हुए ऐसे पास आ खडे हुए जैसे कितनी पुरानी दोस्ती हो। यह एक प्रसाद की दुकान थी और इसी के बराबर में पार्किंग वाला भी बैठा रहता है- दस रुपये शुल्क बाइक के। हेलमेट यहीं रख दिये और नीचे जाने लगे।

नचिकेता ताल

18 फरवरी 2016 आज इस यात्रा का हमारा आख़िरी दिन था और रात होने तक हमें कम से कम हरिद्वार या ऋषिकेश पहुँच जाना था। आज के लिये हमारे सामने दो विकल्प थे - सेम मुखेम और नचिकेता ताल।  यदि हम सेम मुखेम जाते हैं तो उसी रास्ते वापस लौटना पड़ेगा, लेकिन यदि नचिकेता ताल जाते हैं तो इस रास्ते से वापस नहीं लौटना है। मुझे ‘सरकुलर’ यात्राएँ पसंद हैं अर्थात जाना किसी और रास्ते से और वापस लौटना किसी और रास्ते से। दूसरी बात, सेम मुखेम एक चोटी पर स्थित एक मंदिर है, जबकि नचिकेता ताल एक झील है। मुझे झीलें देखना ज्यादा पसंद है। सबकुछ नचिकेता ताल के पक्ष में था, इसलिये सेम मुखेम जाना स्थगित करके नचिकेता ताल की ओर चल दिये। लंबगांव से उत्तरकाशी मार्ग पर चलना होता है। थोड़ा आगे चलकर इसी से बाएँ मुड़कर सेम मुखेम के लिये रास्ता चला जाता है। हम सीधे चलते रहे। जिस स्थान से रास्ता अलग होता है, वहाँ से सेम मुखेम 24 किलोमीटर दूर है।  उत्तराखंड के रास्तों की तो जितनी तारीफ़ की जाए, कम है। ज्यादातर तो बहुत अच्छे बने हैं और ट्रैफिक है नहीं। जहाँ आप 2000 मीटर के आसपास पहुँचे, चीड़ का जंगल आरंभ हो जाता है। चीड़ के जंगल मे...