जब हम बादामी से हम्पी जा रहे थे, तो मन में एक सवाल बार-बार आ रहा था। क्या हमें हम्पी पसंद आएगा? क्योंकि मैंने हम्पी की बहुत ज्यादा प्रशंसा सुनी थी। कभी भी आलोचना नहीं सुनी। जहाँ भी पढ़ी, हम्पी की प्रशंसा... जिससे भी सुनी, हम्पी की प्रशंसा। Top 100 Places to see before you die की लिस्ट हो या Top 10 Places to see before you die की लिस्ट हो... हम्पी जरूर होता।
तो एक सवाल बार-बार मन में आता - कहीं हम्पी ओवररेटिड तो नहीं?
इस सवाल का जवाब हम्पी पहुँचते ही मिल गया। हम यहाँ दो दिनों के लिए आए थे और पाँच दिनों तक रुके। छठें दिन जब प्रस्थान कर रहे थे, तो आठ-दस दिन और रुकने की इच्छा थी।
वाकई हम्पी इस लायक है कि आप यहाँ कम से कम एक सप्ताह रुककर जाओ।
जिस समय उत्तर में मुगल साम्राज्य का दौर था, यहाँ विजयनगर साम्राज्य था। इस साम्राज्य के सबसे प्रतापी राजा थे कृष्णदेवराय। और आपको शायद पता हो कि तेनालीराम भी इन्हीं के एक दरबारी थे। तो इस दौर में हम्पी का जमकर विकास हुआ। इनके साम्राज्य की सीमा पश्चिम में अरब सागर तक थी और विदेशों से समुद्र के रास्ते खूब व्यापार और आवागमन होता था। विदेशी भी खूब आते थे और इनकी भी निशानियाँ हम्पी के खंडहरों में देखने को मिल जाती हैं।
फिर ऐसा क्या हुआ कि इतना प्रतापी साम्राज्य आज खंडहरों में बदल गया? इसका एक ही उत्तर है - आक्रमण। उत्तर से मराठों और मुगलों के भी आक्रमण हुए और दक्षिण से चोलों के भी। आखिरकार विजयनगर साम्राज्य एकदम समाप्त हो गया और सबकुछ दूसरों के हाथों में चला गया। मुगल चूँकि मुसलमान थे, इसलिए उन्होंने यहाँ के मंदिरों और मूर्तियों को तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
आज हम्पी के खंडहर बहुत बड़े क्षेत्र में फैले हैं और पूरा क्षेत्र पुरातत्व विभाग के अधीन है। हम्पी गाँव और इसके आसपास के 18-20 आबाद गाँव भी पुरातत्व के ही अधीन हैं। इन गाँवों में कुछ भी निर्माण कार्य नहीं हो सकता। कोई बिना अनुमति के अपने घर में एक ईंट भी इधर से उधर नहीं कर सकता। अधिकतम दो मंजिला घर ही बना सकते हैं। खेती बिल्कुल नहीं हो सकती। पीने का पानी बाहर से आता है। हाँ, सभी गाँवों में अच्छी सड़क है और बिजली भी है। ग्रामीणों ने अपने घरों में होम-स्टे शुरू कर रखे हैं, जिनका प्रति कमरा किराया 500-1000 रुपये है। हम भी ऐसे ही एक होम-स्टे में 700 रुपये में रुके थे।
दक्षिण भारतीय शैली के मंदिरों की सबसे खास बात होती है इनका विशाल गोपुरम। गोपुरम यानी प्रवेश द्वार। मंदिर भले ही छोटा-सा होता हो, लेकिन गोपुरम भव्य और विशाल होते हैं। चूँकि हम्पी के सबसे खास मंदिर विरुपाक्ष मंदिर का निर्माण राजा लोगों ने करवाया था, तो इसका गोपुरम भी राजसी वैभव के अनुकूल है। दूर से ही गोपुरम दिखता है और इससे नजरें हटाना मुश्किल होता है।
विरुपाक्ष मंदिर के आसपास और भी छोटे-छोटे मंदिर हैं। गणेश जी के मंदिर हैं और नरसिंह के मंदिर भी हैं।
हम्पी से कमलापुर की ओर चलें तो राजमहल के अवशेष मिलेंगे। इन अवशेषों को देखने के लिए भी पूरा एक दिन चाहिए। शुरूआत भूमिगत शिव मंदिर से की जा सकती है। अच्छा हाँ, हम्पी में नहरों का जाल बिछा था। तुंगभद्रा नदी से पानी आता था और नहरों के माध्यम से इधर-उधर जाता था। इससे सिंचाई भी होती थी और देवालयों में भी काम आता था और राजमहल में भी। भूमिगत शिव मंदिर का शिवलिंग हमेशा इस पानी में डूबा रहता है।
इसी के पास हजारराम मंदिर है। आपको यह मंदिर अवश्य देखना चाहिए। क्यों देखना चाहिए? बताता हूँ।
फिल्म बनाने के लिए आजकल तो डिजिटल कैमरे उपलब्ध हैं, लेकिन पहले रील हुआ करती थी। रील पर फिल्म अंकित हो जाती थी और उसी की प्रोसेसिंग करके फिल्म बनाई जाती थी। लेकिन फिल्म का आविष्कार 20वीं शताब्दी में हुआ। पंद्रहवीं शताब्दी में यानी विजयनगर साम्राज्य में अगर आपको फिल्म देखनी हो तो हजारराम मंदिर आना चाहिए। आप दाँतों तले उंगली न दबा लो तो कहना। पत्थरों को छैनी और हथौड़ों से काट-काटकर पूरी रामायण उकेरी गई है यहाँ। आप आगे बढ़ते जाओगे और आपके सामने पूरी फिल्म चलती जाएगी।
राजमहल के भी खंडहर ही बचे हैं। लेकिन यहाँ आप विदेशी लोगों की मौजूदगी भी देख सकते हैं। यूरोपीयन और अरब लोग यहाँ दीवारों पर अंकित हैं - अपनी वेशभूषा और ऊँटों आदि के साथ। मतलब साफ है कि राजमहल में इन लोगों का इतना तो प्रभाव था कि राजकीय शिल्पी लोग इनकी मूर्तियाँ बनाते थे। साथ ही कुछ शिलालेख भी हैं। ये सब उस दौर की कहानी कहने को और कहानी बनाने को पर्याप्त हैं। एक-एक मूर्ति से पता नहीं कितनी बातें निकलकर सामने आती हैं। ये उस समय के जीते-जागते दस्तावेज हैं हमारे सामने। उस समय वे लोग क्या सोचते थे, क्या पहनते थे, क्या खाते-पीते थे, मनोरंजन कैसे करते थे और संभोग तक का वर्णन आपको इन ‘दस्तावेजों’ में मिल जाएगा।
आप हम्पी में घूमते रहिए... घूमते रहिए... यहाँ इतना कुछ है कि आप थक जाओगे, लेकिन ये जगहें समाप्त नहीं हो पाएँगी। आप जाइए विरुपाक्ष मंदिर के सामने वाली सड़क पर। इसके दोनों तरफ आपको खंभे और इन पर टिकी छत मिलेगी। यह बहुत बड़ा बाजार हुआ करता था - सोने-चांदी का बाजार। सामने मातंग पर्वत है, जो अब अंग्रेजी में लिखने के कारण ‘मटंगा’ या ‘माटुंगा’ पर्वत होने लगा है। यहाँ आपको पैदल ही जाना पड़ेगा। और जब जा ही रहे हैं तो यहाँ से या तो सूर्योदय देखिए या सूर्यास्त।
और आगे बढ़ेंगे तो तमाम खंडहर देखते-देखते आप विट्ठल मंदिर पहुँच जाएँगे। शाम छह बजे मंदिर बंद हो जाता है, इसलिए आपको इससे पहले ही जाना पड़ेगा। यहीं पर वो प्रसिद्ध रथ है, जो आज हम्पी की पहचान बन चुका है। पत्थरों का बना यह रथ क्या है और इसका औचित्य क्या है, इस बात को तो पुरातत्वशास्त्री ही बता पाएंगे। इसके मुख्य मंदिर के पिलर्स में कुछ ऐसे हैं जिन्हें बजाने पर संगीतीय धुन निकलती है। लेकिन आजकल इस मंडप में कुछ काम चल रहा है, इसलिए यात्रियों के लिए इसमें जाना मना था। हम उन धुनों को नहीं बजा पाए।
और जब आप हम्पी आ ही गए हैं और आपके हाथ में दो-तीन दिन भी हैं, तो लगे हाथों तुंगभद्रा के उस पार भी घूम आइए। हम्पी में इस नदी पर कोई पुल नहीं है, लेकिन 15-20 किलोमीटर आगे एक पुल है। नदी के उस पार रामायणकालीन किष्किंधा नगरी है। आपने बाली और सुग्रीव का नाम सुना होगा। वे किष्किंधा के ही राजा थे। भारत के कुछ और भागों की तरह यहाँ भी अंजना पर्वत है, जहाँ हनुमानजी का जन्म हुआ था।
फिलहाल हम बहुत ज्यादा तो नहीं लिख रहे, लेकिन कुछ बातें हैं, जो हमें अच्छी लगीं और आपको भी अच्छी लगेंगी। इन्हें हम चित्रों के माध्यम से जानेंगे।
तुंगभद्रा नदी |
विरुपाक्ष मंदिर |
विरुपाक्ष मंदिर का गोपुरम |
बाजार के खंडहर |
विट्ठल मंदिर में संगीतीय स्तंभ... लेकिन आजकल यहाँ जाना मना था... |
विट्ठल मंदिर स्थित प्रस्तर रथ को पचास के नए नोट पर दिखाया गया है |
हम्पी में जो आकर्षण सूर्यास्त का है, वो शायद ही कहीं और हो... |
राम-रावण युद्ध और दस सिर वाले रावण की मृत्यु |
राजमहल की दीवारों पर विदेशियों की नक्काशी भी हैं... ये विदेशी हैं, यह उनके पहनावे और दाढ़ी से पता चल रहा है |
गाते, बजाते और नाचते ये लोग अरब व्यापारी हैं... इस बात की पुष्टि इनकी दाढ़ी और ऊँट कर रहे हैं... |
रानी का स्नानागार |
देखने में यह उग्र नरसिंह लग रहा है, लेकिन इस विशाल मूर्ति के कुछ और भी आयाम हैं, जिनसे पता चलता है कि यह उग्र नहीं है... मूर्तिकला में रुचि रखने वालों के लिए बेहद रोचक मूर्ति... |
यह पता नहीं कौन है... शिवलिंग पर पैर लगा रखा है... |
हम्पी आकर इनकी सवारी करना तो बनता है... |
हम्पी गाँव |
वीडियो
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बहुत अच्छा नीरज भाई।
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