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गोवा से बादामी की बाइक यात्रा

गोवा से बेलगाम की सड़क
चोरला घाट

फरवरी के दूसरे सप्ताह का पहला दिन था यानी आज आठ तारीख थी। हम गोवा में अपने एक मित्र के यहाँ थे। इनके पिताजी किसी जमाने में आर्मी में थे और रिटायरमेंट के बाद गोवा में ही बस गए तो इन्होंने गोवा में ही कारोबार बढ़ाया और आज दाबोलिम में अपने आलीशान घर में रहते हैं। दाबोलिम में ही चूँकि इंटरनेशनल एयरपोर्ट है, इसलिए कुछ कुछ मिनट बाद घर के ऊपर से हवाई जहाज गुजरते रहते हैं और उन पर लिखा नाम व नंबर आसानी से पढ़ा जा सकता है। और उससे भी कमाल की बात यह है कि ये यूपी में मुजफ्फरनगर के मूल निवासी हैं और गोवा में कई दशक रहने के बाद भी मुजफ्फरनगर की ठेठ खड़ी बोली का प्रभाव एक डिग्री भी कम नहीं हुआ है। ‘तझै’, ‘मझै’, ‘इंगै’, ‘उंगै’ आदि शब्दों से सराबोर होने के बाद एक पल को भी हमें नहीं लगा कि हम अपने गाँव से ढाई हजार किलोमीटर दूर हैं। हमें लग रहा था कि इनके भोजन में थोड़ा-बहुत कोंकणी प्रभाव देखने को मिलेगा, लेकिन हमारा अंदाजा गलत साबित हुआ। यहाँ इतनी दूर और इतने दशक बाद भी इनके भोजन में घी, दूध, दही और मट्‍ठे की ही प्रधानता थी।
वैसे तो गोवा मुझे कभी पसंद नहीं आया, क्योंकि मुझे लगता था कि यह लफंगों की मौजमस्ती और हनीमून-पसंद युवाओं के लिए पूरी दुनिया के कुछेक स्थानों में से एक है। मैं न लफंगे की श्रेणी में आता हूँ और न ही हनीमून-पसंद युवा की श्रेणी में, तो गोवा के बारे में मेरे मन में कुछ नकारात्मक धारणाएँ ही बनी हुई थीं। एक बार कई साल पहले जब अपने दो मित्रों के साथ गोवा आया था तो मेरा एकमात्र उद्देश्य दूधसागर जलप्रपात देखना ही था। जबकि उन दोनों को गोवा के समुद्रतट देखने थे, इसलिए मैं पूरे एक दिन होटल के कमरे में पड़ा रहा था और वे दोनों समुद्रतट देख रहे थे। शाम को वापस लौटकर जब उन्होंने गोवा की महंगाई की गाथा सुनानी शुरू की, तो प्रसन्न होने वालों में मैं अकेला था।






लेकिन इस बार ऐसा नहीं था। गोवा वास्तव में उतना खराब नहीं है, जितना मैंने सोच रखा था। असल में यह वो जगह है, जहाँ प्रत्येक भारतीय को जीवन में कम से कम एक बार जरूर आना चाहिए। यानी जब तक एक बार गोवा न घूम लें, तब तक मरना ही नहीं चाहिए। ऊपरवाले को भी अपनी ‘डाटाशीट’ में एक कॉलम इस बात का रखना चाहिए कि अगले ने अभी तक गोवा देखा है या नहीं। अगर नहीं देखा है, तो उमर कुछ दिन बढ़ा देनी चाहिए।
गोवा के दो हिस्से हैं - उत्तर गोवा और दक्षिण गोवा। पणजी उत्तर गोवा में है और मड़गाँव दक्षिण गोवा में। इसी तरह कुछ समुद्रतट उत्तर में हैं और कुछ दक्षिण में। हालाँकि उत्तर गोवा पर्यटकों में ज्यादा लोकप्रिय है, लेकिन इसका फायदा हम जैसे लोगों को मिलता है। दक्षिण गोवा के समुद्रतटों पर कम भीड़ रहती है, कम शोर रहता है और कम ‘शराबा’ भी। वो जो लफंगे और हनीमून-प्रेमी लोग होते हैं, उनकी पसंदीदा जगह उत्तर गोवा ही है, इसलिए मेरी दाल उधर नहीं गलती। दीप्ति भी ऐसी ही है। उसे भी इन्हीं कारणों से दक्षिण गोवा पसंद है।
गोवा शराब पीने के लिए भी जाना जाता है। हालाँकि मैं शराब नहीं पीता, लेकिन एक बात अच्छी तरह जानता हूँ - आप चाहे एक घूँट शराब पीएँ या एक बोतल; नशा चढ़ता ही है। “अगर शराब में नशा होता, तो झूमती बोतल” ये बातें गानों में ही अच्छी लगती हैं। मुझे भी यह गाना पसंद है।
एक दिन जब हम विश्व विरासत स्थल चर्च में घूम रहे थे तो कुछ ‘लफंगे’ श्रेणी के युवा खुल्लमखुल्ला बोतल पीते हुए चर्च में घूम रहे थे। और जब चर्च में ऐसा है तो समुद्रतटों पर कैसा होगा। शराब की जो नदियाँ वहाँ बह रही थीं, उससे यही प्रतीत हुआ कि ये लोग यहाँ केवल शराब पीने आए हैं। और गोवा सरकार का हाल ही में लिया गया यह निर्णय वाकई कालजयी है - “पब्लिक प्लेस में शराब पीना गैर-कानूनी है।”
दक्षिण गोवा में ऐसे लोग नहीं जाते, इसलिए उधर की पवित्रता थोड़ी बची हुई है। हम पोलेलम बीच भी गए और कोलवा बीच भी; हमें दोनों ही जगहों पर संस्कारी यात्री दिखाई दिए। उत्तर गोवा के कलंगूट और बागा बीच से तो भगवान बचाए।

तो फरवरी की 10 तारीख वो तारीख थी, जब हमारी यह मोटरसाइकिल यात्रा शुरू हुई। हमारे मित्र ने जब पूछा कि आज कहाँ जाओगे, तो मैंने हुबली बता दिया। पता नहीं उन्हें बदामी की जानकारी है या नहीं। और उस समय तक मैंने नक्शा नहीं देखा था। मुझे लग रहा था कि गोवा से बदामी का रास्ता हुबली से ही होकर जाता होगा। उन्होंने कहा - “वैसे तो हुबली का सीधा रास्ता मोलेम से होकर जाता है, लेकिन वहाँ फोरलेन का काम चल रहा है, इसलिए उससे न जाओ तो अच्छा है। या तो चोरला घाट और बेलगाम होकर जाओ या फिर कारवार होकर।”
चलने से जस्ट पहले जब हमने रास्ता देखा तो यह चोरला घाट वाला ही मिला। गोवा से बदामी का रास्ता बेलगाम होकर ही जाता है।

चोरला घाट के जंगलों में किसी जमाने में अंतर्राष्ट्रीय सीमा हुआ करती थी। दिसंबर 1961 से पहले गोवा पुर्तगाल का भाग था और इन जंगलों में भारत व पुर्तगाल या भारत व गोवा की सीमा हुआ करती थी। यहीं कस्टम जाँच भी होती होगी। 1947 में भारत को तो आजादी मिल गई, लेकिन गोवा को आजादी नहीं मिली। भारत सरकार ने पुर्तगाल से गोवा को आजाद करने को कहा, जिसे पुर्तगाल ने नकार दिया। तो इस वजह से भारत व पुर्तगाल के बीच तनाव भी था। दिसंबर 1961 में तो बाकायदा युद्ध लड़ा गया। उन दिनों इस अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर हालात कितने तनावपूर्ण रहे होंगे, आप अंदाजा लगा सकते हैं।
हालाँकि आज सब सामान्य है और जब “कर्नाटक में आपका स्वागत है” लिखा बोर्ड मिला, तो हम समझ गए कि यहीं से वो सीमा गुजरती थी। आज यहाँ सीमा पर कोई इंसान नहीं दिखता। शायद कभी-कभार जंगल में घूमते बंदर-लंगूर दिख जाते होंगे।

तो इस तरह भरी दोपहरी में हमने कर्नाटक में पहिया रखा। मुझे कन्नड़ नहीं आती, इसलिए हर तरफ लिखी कन्नड़ हमें जलेबी जैसी दिखती। कन्नड़ लिपि की एक खास बात है - इसके लगभग सभी अक्षर दिल के आकार में हैं। उस ‘दिल’ में मामूली-सा फेरबदल करके ही पूरी वर्णमाला बन जाती है।

अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ = ಅ, ಆ, ಇ, ಈ, ಉ, ಊ, ಎ, ಐ, ಒ, ಔ

क, ख, ग, घ, ङ = ಕ, ಖ, ಗ, ಘ, ಙ

च, छ, ज, झ, ञ = ಚ, ಛ, ಜ, ಝ್ಹ, ಞ

ट, ठ, ड, ढ, ण = ಟ, ಠ, ಡ, ಢ, ಣ

त, थ, द, ध, न = ತ, ಥ, ದ, ಧ, ನ

प, फ, ब, भ, म = ಪ, ಫ, ಬ, ಭ, ಮ

य, र, ल, व = ಯ, ರ, ಲ, ವ

श, ष, स, ह = ಶ, ಷ, ಸ, ಹ

ये तो हुए अक्षर, लेकिन जब हम पूरा वाक्य देखेंगे, तो कुछ ऐसा दिखाई देगा:

ಕರ್ನಾಟಕ ಮೆಂ ಆಪಕಾ ಸ್ವಾಗತ ಹೈ (कर्नाटक में आपका स्वागत है)

यह देखने में बड़ा सुंदर लग रहा है, लेकिन अगर पूरा पैरा या पेज आपके सामने हो, तो क्या कहोगे?
हम तो ‘जलेबी’ कहते हैं।

लेकिन एक बात और भी है... अगर आपको कन्नड़ पढ़नी आ गई, तो शायद आप दुकान में रखी जलेबियों को भी पढ़ सकते हैं।

कर्नाटक और आसपास के इतिहास की भी थोड़ी चर्चा करने का मन है, लेकिन फिलहाल छोड़ देते हैं। लेकिन मोटा-मोटी यह जान लीजिए कि जब उत्तर भारत में गुप्तकाल था, मध्य भारत में परमार वंश (राजा भोज आदि) था, तब यहाँ चालुक्य थे। 5वीं से 9वीं शताब्दी तक चालुक्यों का शासन रहा, फिर 10-11 वीं शताब्दी तक राष्ट्रकूट रहे, उनके बाद फिर से चालुक्य आ गए। बाद में मुसलमान भी आए। गहराई में जाएँगे तो आपको यहाँ मराठे भी आते दिखेंगे और आज की कहानी ये है कि कर्नाटक के बेलगाम (वर्तमान नाम बेलागावि) जिले को लेकर कर्नाटक और महाराष्ट्र में झगड़ा है। मराठीभाषियों की अच्छी संख्या के कारण महाराष्ट्र इस जिले को अपने में शामिल करने की माँग करता आ रहा है। और यह बात काफी हद तक ठीक भी लगी। जब हम बेलगाम से होकर गुजर रहे थे, तो बहुत सारे घरों और दुकानों के बाहर देवनागरी लिखी थी। जो बात बाकी कर्नाटक में कन्नड़ में लिखी मिलती है, यहाँ देवनागरी में थी। पता नहीं यह मराठी थी या कोंकणी, लेकिन इससे पता चलता है कि यहाँ मराठी/कोंकणी भाषी लोग काफी हैं।

तो इस तरह धीरे-धीरे चलते और लोगों का अवलोकन करते हुए रात तक बदामी पहुँच गए, जहाँ एक लॉज में 700 रुपये में कमरा मिल गया।



Belgam to Badami Road

Belgam to Badami Road
बेलगाम पार करके...

Shopping in Belgam Karnataka

Eating in Karnataka

Best Road in Karnataka
कर्नाटक में सड़कें अच्छी ही हैं...

Road to Badami Karnataka
ये 300 किमी, वो 99 किमी और 17 किमी बाद भी कुछ है...





Road Condition in Karnataka

Road Safety in Karnataka

Travelling in Karnataka by Road

Agriculture in Karnataka

Ramdurg Fort Karnataka
रामदुर्ग के किले के अवशेष

Sunset in Karnataka

Hotels in Badami
और बदामी में यहाँ पर डिनर करेंगे

इस यात्रा की वीडियो










आगे पढ़िए: दक्षिण भारत यात्रा: बादामी भ्रमण


1. दक्षिण भारत यात्रा के बारे में
2. गोवा से बादामी की बाइक यात्रा
3. दक्षिण भारत यात्रा: बादामी भ्रमण
4. दक्षिण भारत यात्रा: पट्टडकल - विश्व विरासत स्थल
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10. बेलूर और हालेबीडू: मूर्तिकला के महातीर्थ - 1
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13. कुद्रेमुख, श्रंगेरी और अगुंबे
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16. मैसूर पैलेस: जो न जाए, पछताए
17. प्राचीन मंदिरों के शहर: तालाकाडु और सोमनाथपुरा
18. दक्षिण के जंगलों में बाइक यात्रा
19. तमिलनाडु से दिल्ली वाया छत्तीसगढ़



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