27 सितम्बर 2015
सवा ग्यारह बजे पंचगंगा से चल दिये। यहीं से मण्डल का रास्ता अलग हो जाता है। पहले नेवला पास (30.494732°, 79.325688°) तक की थोडी सी चढाई है। यह पास बिल्कुल सामने दिखाई दे रहा था। हमें आधा घण्टा लगा यहां तक पहुंचने में। पंचगंगा 3660 मीटर की ऊंचाई पर है और नेवला पास 3780 मीटर पर। कल हमने पितरधार पार किया था। इसी धार के कुछ आगे नेवला पास है। यानी पितरधार और नेवला पास एक ही रिज पर स्थित हैं। यह एक पतली सी रिज है। पंचगंगा की तरफ ढाल कम है जबकि दूसरी तरफ भयानक ढाल है। रोंगटे खडे हो जाते हैं। बादल आने लगे थे इसलिये अनुसुईया की तरफ कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। धीरे-धीरे सभी बंगाली भी यहीं आ गये।
बडा ही तेज ढलान है, कई बार तो डर भी लगता है। हालांकि पगडण्डी अच्छी बनी है लेकिन आसपास अगर नजर दौडाएं तो पाताललोक नजर आता है। फिर अगर बादल आ जायें तो ऐसा लगता है जैसे हम शून्य में टंगे हुए हैं। वास्तव में बडा ही रोमांचक अनुभव था।
एक बजे हम धनपत बुग्याल (30.492861°, 79.316844°) पहुंचे। यह 3300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां ऊंची-ऊंची घास थी और कोई दुकान नहीं थी। थोडी देर विश्राम किया, फिर आगे चल दिये। इससे थोडा ही आगे हमसू बुग्याल (30.49182°, 79.31177°) है। यहां दो-तीन टूटे हुए घर थे। कभी दुकानें रही होंगीं। हमसू 3120 मीटर पर है।
हमसू बुग्याल के बाद जंगल शुरू हो जाता है। और जंगल भी इतना घना कि पूछो मत। ढलान तो अभी भी बरकरार था। यहां मुझे डर लगने लगा। पगडण्डी घास में दबने लगी थी और चौडाई भी बेहद कम थी। इसका अर्थ है कि इधर से आवाजाही कम है। हम रात पंचगंगा में रुके थे तो पता था कि आज ऊपर से इस रास्ते नीचे कोई नहीं आया। दोपहर बाद हो चुकी है और हम आज यहां आने वाले पहले इंसान हैं। नीचे से ऊपर भी कोई नहीं गया। हालांकि हमारे कुछ पीछे बंगाली अवश्य थे। ऐसे में रास्ते पर जंगली जानवर आ जाया करते हैं। आवाजाही रहे तो जानवर दूर ही रहते हैं। आवाजाही न हो तो वे रास्ते पर भी आ जाते हैं। और जानवर भी कौन है- हिमालयन काला भालू।
तय किया कि बंगालियों को आने दो। उनके साथ ही आगे बढेंगे। कुछ देर रुके, बंगाली आये। तेज चलने वाले आगे थे, धीरे चलने वाले पीछे। इन तेज चलने वाले बंगालियों को हमने आगे चलने दिया, खुद उनके पीछे हो लिये। भालू हो या न हो, लेकिन डर तो होता ही है। दो-चार लोग आगे जा रहे हों, तो यह डर समाप्त हो गया।
जंगल इतना घना था कि नीचे धूप भी नहीं पहुंच पाती थी। इसलिये पत्थरों और पगडण्डी पर काई जम गई थी। हल्की बूंदाबांदी हुई तो यह काई खूब फिसलन भरी हो गई। चलने की रफ्तार में कमी आई। ऊपर नेवला पास की तरफ खूब बादल थे, वहां बारिश हो भी रही होगी, उसका थोडा सा अंश यहां भी गिर गया।
बोतलें खाली हो गई थीं। एक जगह पानी मिला तो रुककर पानी पीया और बोतल भी भर ली। तभी बंगालियों का एक पोर्टर आ गया। वहीं बैठकर सुस्ताने लगा। उसके ऊपर काफी सामान लदा था। उसने मुझे अपनी जेब से निकालकर बिस्कुट का एक पैकेट दिया। मैंने तुरन्त ले लिया। बोला कि और भी बिस्कुट दूं क्या। मैंने मना कर दिया। कहने लगा कि सब सामान बंगालियों का है, ट्रैक समाप्त होने वाला है। काफी सारे बिस्कुट के पैकेट बचे हैं। इन्हें ये वापस तो नहीं ले जायेंगे, इसलिये हमें-तुम्हें ही समाप्त करने हैं। खैर, उसके अति आग्रह पर एक पैकेट और ले लिया। बाद में उसने ये सब पैकेट कण्डिया बुग्याल में दे दिये।
चार बजे कण्डिया बुग्याल (30.486525°, 79.298429°) पहुंचे। इसकी ऊंचाई 2310 मीटर है। यह जंगल से घिरा हुआ एक बुग्याल है। एक दुकान भी है। दुकानदार की गायें भी यहीं घास चर रही थीं। जैसे ही हम कण्डिया पहुंचे, तेज बारिश होने लगी। सामने नदी के उस तरफ अनुसुईया गांव दिख रहा था। हम वैसे तो अनुसुईया ही रुकना चाहते थे लेकिन मौसम को देखते हुए यहीं रुकना तय कर लिया। दुकान वाले से बात की, तब तक बंगाली अपने 18 लोगों के यहीं रुकने की बात कर चुके थे। फिर भी दुकान वाला हमें भी ठहराने को राजी हो गया।
जब तक चाय पी, बारिश रुक गई थी और अब और बारिश होने की सम्भावना नहीं थी। सवा चार बजे थे। अभी भी दो घण्टे उजाला और रहेगा, उसके बाद अन्धेरा हो जायेगा। जैसे ही मुझे पता चला कि यहां 18 लोग और रुकेंगे तो मेरा यहां से मन उचटने लगा। छोटी सी जगह थी, इतने लोग सोयेंगे तो बिल्कुल भी खुलकर नहीं सो सकेंगे। मैंने आसपास का जायजा लिया। काफी नीचे एक नदी बह रही थी। नदी के उस तरफ कुछ ऊपर अनुसुईया दिख रहा था। पूरा रास्ता जंगल का है और हम अकेले रहेंगे। अब बंगाली हमसे आगे या हमारे साथ नहीं जायेंगे। नदी इतनी नीचे थी कि यहां से नहीं दिख रही थी। पता नहीं कितनी नीचे है, कितनी दूर पुल है। बारिश के कारण रास्ता भी फिसलन भरा हो गया था।
नीचे उतरने की बजाय ऊपर चढने में ज्यादा समय लगेगा। लेकिन सकारात्मक पक्ष ये था कि अनुसुईया कण्डिया बुग्याल के मुकाबले कुछ नीचे है। यानी हमें नीचे ज्यादा उतरना पडेगा और नदी पार करके ऊपर कम चढना पडेगा। मैंने निशा और करण से कहा कि अगर हम एक घण्टे में पुल तक पहुंच गये तो उसके अगले एक घण्टे में अनुसुईया पहुंच जायेंगे। केवल दो घण्टे ही हमारे पास थे और हम किसी भी सूरत में अन्धेरे में जंगल में नहीं चलना चाहते थे। दुकान वाले से कह दिया कि हम अनुसुईया जा रहे हैं। उसने और बाकी स्थानीयों ने समझाया कि अब निकलना ठीक नहीं है। अनुसुईया पहुंचने में दस भी बज सकते हैं और बारह भी। लेकिन मैं इरादा कर चुका था।
ठीक चार बजकर बीस मिनट पर चल दिये। आज शायद ही कोई इस रास्ते से गुजरा होगा, इसलिये भालू के अचानक मिलने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। मैंने हिदायत दी कि तीनों साथ ही रहेंगे, जोर जोर से बात करते, हंसते-बोलते चलेंगे और डण्डे को पत्थरों पर जोर-जोर से मारते हुए चलेंगे।
हम नेवला पास के बाद से लगातार नीचे उतर रहे थे और 3780 मीटर की ऊंचाई से 2310 मीटर तक आ गये थे। बहुत तेज ढलान है। करण के पैरों में दर्द होने लगा था और वो बहुत धीरे धीरे चल रहा था। मैं उसकी मुश्किल समझ रहा था, फिर भी उससे कहा- तेरे पैरों में दर्द है, ठीक है। लेकिन अभी थोडी सी और मेहनत कर ले। अगर अन्धेरा हो गया तो बुरी फजीहत हो जायेगी। इसके बाद वो भी तेज चला।
इसका ये नतीजा हुआ कि हम ठीक पांच बजे अमृतगंगा के पुल (30.487757°, 79.291665°, 1986 मीटर) पर थे। दो तने डालकर और उनके ऊपर कुछ पत्थर रखकर पुल बनाया गया है। पास ही अमृतगंगा एक झरने के रूप में काफी ऊंचाई से गिर रही थी। हम यहां पांच मिनट रुके और आगे चल दिये। अब चढाई थी। कई घण्टों तक नीचे उतरने के बाद चढाई चढना अच्छा लग रहा था।
एक रास्ता अत्रि मुनि आश्रम की ओर जाता मिला। मुख्य पगडण्डी से कुछ हटकर यह एक गुफा है जहां एक आश्रम बना है। हम यहां जाना चाहते थे लेकिन समय नहीं था, इसलिये नहीं गये। तय हुआ कि कल जायेंगे।
अनुसुईया मन्दिर में बज रहे भजन की आवाज आने लगी तो बडी राहत मिली। थोडा और आगे चले तो हम अनुसुईया पहुंच गये थे। अभी साढे पांच बजे थे। हमने यहां आने का साढे छह बजे तक का लक्ष्य बनाया था, उससे एक घण्टे पहले ही पहुंच गये। सीधे मन्दिर में पहुंचे। बताया कि सात बजे आरती होगी। मन्दिर के पास एक रेस्ट हाउस है, वो उस दिन फुल था। एक रेस्ट हाउस और थोडी दूरी पर था, वो बिल्कुल खाली था। यह जानकारी हमें मन्दिर में बैठे-बैठे ही मिल गई। जब वो रेस्ट हाउस खाली है तो आराम से जायेंगे वहां। अब अन्धेरे में कौन यहां आयेगा?
साढे छह बजे के आसपास जब उस रेस्ट हाउस में पहुंचे तो वही बंगाली मिले जो हमारे साथ रुद्रनाथ से वापस लौटे थे। उन्होंने बताया कि हमारी देखा-देखी वे भी हमारे पीछे-पीछे चल दिये थे। हमारे लिये गडबड ये हुई कि तब तक इन 18 लोगों ने दो कमरों के उस रेस्ट हाउस के चप्पे-चप्पे पर कब्जा कर लिया था। इन दो रेस्ट हाउसों के अलावा यहां मन्दिर की धर्मशाला भी है लेकिन इसकी जानकारी हमें बाद में हुई। जब उस दूसरे रेस्ट हाउस में भी जगह नहीं मिली तो हमने स्वयं को इसके मालिक के हवाले कर दिया। बूढा आदमी था। बोला कि सामान यहीं रख दो, आरती देखकर आओ, तब तक मैं खाना बना दूंगा। उसके बाद आपको आपके कमरे में भेज दूंगा। कमरा वहां सामने सौ मीटर दूर है लेकिन उसमें पलंग नहीं हैं। गद्दे और रजाईयां मिल जायेंगी। हमें और क्या चाहिये था? हम पिछली दो रातों से बिना पलंग के ही सो रहे हैं, आज भी सो लेंगे।
अनुसुईया देवी की कहानी कुछ इस प्रकार है- ये अत्रि मुनि की पत्नी थीं, घोर परिव्रता नारी। इनके पतिव्रत के बारे में एक बार नारद ने लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती को बता दिया। वे तीनों इस बात पर नाराज हो गईं और अपने-अपने पतियों विष्णु, शिव और ब्रह्मा को भेजा। ये तीनों ब्राह्मण का रूप धारण करके अनुसुईया के पास गये और भोजन मांगा। साथ में शर्त रख दी कि अनुसुईया केवल नग्न होकर ही उन्हें भोजन परोसेगी। अनुसुईया ने अपने पतिव्रत बल से जान लिया कि ये ब्राह्मण नहीं हैं बल्कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं। तब अनुसुईया ने इन तीनों को नन्हें शिशुओं के परिवर्तित कर दिया और नग्न होकर उन्हें भोजन कराया।
तो जी, कुछ इसी तरह की कहानी है। यहां गांव में अनुसुईया मन्दिर है तो कुछ दूर जंगल में अत्रि मुनि आश्रम। मान्यता है कि यहां जो महिलाएं पूजा-पाठ करती हैं, उन्हें पुत्र-रत्न की प्राप्ति होती है। आरती से कुछ पहले मन्दिर में इसी तरह का पाठ चल रहा था। ये दोनों पति-पत्नी सपरिवार कर्णप्रयाग के पास से यहां आये थे।
खैर, हमें तो कोई पूजा-पाठ नहीं करना था। आरती में भाग लिया, प्रसाद लिया और ठण्ड से कांपते हुए रेस्ट हाउस में पहुंचे। बूढे का विचार था कि हम पहले खाना खा लें, फिर कमरे में जायें। लेकिन खाना बनने में अभी देर थी तो हम आराम करना चाहते थे।
बात दरअसल ये थी कि यह कमरा पिछले कई महीनों से खोला नहीं गया था। बल्कि यह बिल्कुल एकान्त में एक घर था जिसमें ऊपरी मंजिल पर आगे-पीछे दो कमरे बने थे। जब कमरा खुला तो इसमें से सीलनयुक्त हवा बाहर निकली। सारी खिडकियां खोली, तब जाकर बडी देर बाद इसकी हवा सामान्य हुई। कम्बलों का ढेर लगा था। दीवार पर एक बहुत बडी मकडी अन्धेरा ढूंढती इधर से उधर चक्कर लगा रही थी। हमने अपनी पसन्द के नरम-नरम कम्बल उठाये, बिछाये और पड गये।
खाना बना तो वहीं चूल्हे के पास जाकर खा भी आये। यहां बस हमीं थे। बूढा तो उसी घर में सोता है, जहां बंगाली थे। इधर हम बडे खुश थे। परसों पुंग बुग्याल में हम अकेले थे, कल पंचगंगा में भी हमीं थे और आज यहां भी हमीं हैं।
सुबह पता नहीं कहां से एक बिल्ली आ गई। यह चूहे ढूंढने में इतनी व्यस्त रही कि इसने हमारे ऊपर उछलकूद मचाकर हमें जगा दिया। फिर छत में जा घुसी। छत दो लेयर वाली थी। उसे अवश्य मिले होंगे चूहे।
पंचगंगा से नेवला पास का रास्ता |
नेवला पास पर |
नेवला पास से अनुसुईया के रास्ते में |
हमसू बुग्याल |
कहीं रास्ते से दिखता बहुत दूर अनुसुईया गाँव |
अमृतगंगा |
समय रहते अनुसुईया पहुँच गए |
अनुसुईया मंदिर |
रात यहीं रुके थे |
अनुसुईया मंदिर और पीछे दिखते रुद्रनाथ के आसपास के पहाड़ |
यह था हमारा `रेस्ट हाउस' |
अगला भाग: अनुसुईया से जोशीमठ
1. दिल्ली से गैरसैंण और गर्जिया देवी मन्दिर
2. गैरसैंण से गोपेश्वर और आदिबद्री
3. रुद्रनाथ यात्रा: गोपेश्वर से पुंग बुग्याल
4. रुद्रनाथ यात्रा- पुंग बुग्याल से पंचगंगा
5. रुद्रनाथ यात्रा- पंचगंगा-रुद्रनाथ-पंचगंगा
6. रुद्रनाथ यात्रा- पंचगंगा से अनुसुईया
7. अनुसुईया से जोशीमठ
8. बद्रीनाथ यात्रा
9. जोशीमठ-पौडी-कोटद्वार-दिल्ली
अत्यंत रोमांचक ! नीरज जी वो कौन लोग रहे होंगे जिन्होंने इन ढलानों और जंगलों में ये रास्ते बनाये ?
ReplyDeleteअरुण जी, रास्ते बनाए नहीं जाते बल्कि चलते चलते अपने आप बन जाते हैं. बाद में उनमे मॉडिफिकेशन होता रहता है.
DeleteSahi baat Neerajji.
Deleteadventurous !
ReplyDeleteThanks
Deleteबहुत जीवन्त निवेदन! मज़ा आ गया| नीरजजी, तुस्सी ग्रेट्ट ग्रेट्ट ग्रेट्ट हो! :)
ReplyDeleteधन्यवाद निरंजन जी...
Deleteअद्वीतीय यात्रा वृत्तांत ।
ReplyDeleteअनसुईया गांव और उसके आस पास सडक ,बिजली,स्कुल की व्यवस्था है ।
अनुसुईया तक सड़क नहीं है. पांच किलोमीटर दूर मण्डल में ही सड़क है. स्कूल शायद हो, लेकिन बिजली चौबीस घंटे उपलब्ध है.
Deleteरोमांचक लेख नीरज भाई ! वीडियो देखते हुए तो रोमांच और भी बढ़ जाता है, हर पल ऐसा लगता है जैसे सुनसान जंगल में अब कोई जीव सामने आ जाए !
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने प्रदीप भाई...
Deleteकरीबन 12 बजे आप लोग 3780 मीटर ऊंचाई पर थे और 4 बजे 2310 मीटर पर। इतनी तेज ढलान को उतरने में बहुत परेशानी होती है, और साथ ही भयानक जंगल में काई युक्त फिसलन भरी पगडंडी।
ReplyDeleteसलाम है आप लोगों के साथ बंगालियों के जज्बे को भी।
धन्यवाद सर जी...
Deleteजबरदस्त ट्रैकिंग... देख-पढ कर रोमांचित हो गये।
ReplyDeleteनेवला से कण्डिया बुग्याल कितना किमी हैं ?
ReplyDeleteसही दूरी तो नहीं पता लेकिन हमें नेवला से कंडिया तक आने में चार घंटे लगे थे. हम ठीकठाक स्पीड से चले थे. तो यह दूरी लगभग 15 किमी हुई.
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteएक बात समझ में नहीं आई आप बंगाली लोगो से पहले चले, रास्ते में कहीं भी उनलोगों ने आपको क्रॉस भी नहीं किया तो वे पहले कैसे पहुँच गए और घर भी बुक कर लिए?
ReplyDeleteजब जंगल में हमें डर लगने लगा तो हमने बंगालियों की प्रतीक्षा की थी. उनमे कुछ लोग तेज चलने वाले थे, कुछ धीरे. हमने तेज चलने वालों को आगे जाने दिया. बाद में कंडिया बुग्याल पर हम सब मिले. वहाँ हम बंगालियों को छोड़कर अनुसुईया के लिए चल दिए और सीधे मंदिर में पहुंचे. तब तक हमारी जानकारी के अनुसार बंगाली कंडिया में ही रुके थे लेकिन वास्तव में वे हमारे पीछे पीछे ही आ गए जिसका हमें पता नहीं चला. रेस्ट हाउस मंदिर से कुछ अलग हटकर था. हम मंदिर में बैठे रहे और पीछे से बंगालियों ने आकर रेस्ट हाउस बुक कर लिया.
Deleteनीरज जी आज का लेख पड कर मुझे अपनी खलिया बुग्याल की यात्रा याद आ गई.
ReplyDeleteबुग्याल में बदल आ जाये तो सच ऐसा लगता है के हम पाताल लोक पहुंच गए हो और शून्य में लटक गए हो. अकेले होने के कारण मेरी तो जान गले में आ गई थी.
बिल्कुल ठीक कहा आपने... ऐसे में डर भी लगने लगता है.
Deleteरोमांचक ..मजेदार...शानदार...
ReplyDeleteधन्यवाद मुकेश जी...
DeleteYou beautifully captured that emotion of being scared and excited at the same time. I guess, that's definition of courage - doing something which we are scared of, and doing it again and again.
ReplyDeleteAnd videos in the end are 'eye-opener' for us. It is so easy to find mistakes or pass comments while sitting in the comfort of our home/office but it really really takes guts of STEEL to actually live the journey.
Hats off to you, Nisha and Karan.
Good luck for the next journey brother.
ये सही कहा आपने कि अपने घर में बैठकर टिप्पणी करना बहुत आसान होता है... हकीकत तभी पता चलती है, जब हम बाहर हों.
Deleteआपका बहुत धन्यवाद...
सबसे शानदार लगा आपका आज का ठिकाना...
ReplyDeleteहा हा हा...
Deletebahut badiya vivaran hai.. mein agle bhaag ki pratiksha kar raha hun... dekhna hai mandal se Ansuya ka rasta kaisa hai... meine bh ek mannat mangi thhi Anusuya Devi ki.. jo puri ho gayi ... so mujhe yahan jana hai jaldi hi
ReplyDeleteसर जी, मण्डल से अनुसुईया का पैदल रास्ता बहुत अच्छा बना है. पक्की कंक्रीट की पगडण्डी है. खच्चर खूब चलते हैं.
Deleteधन्यवाद... आपके उस रास्ते के चित्र देख कर ही आश्वस्त होऊंगा पूरा पूरा... अप्रैल या मई में विचार है जाने का
Deleteबेहद रोमांचित करने वाला यात्रा वृतांन्त था यह।, शाम को अनुसूईयां तक जाना ओर बंगाली घुमक्कडो को भी प्रेरित करना, वाकई कमाल व दिलेरी वाला निर्णय रहा।
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई...
Deleteबहुत ही रोमांचक वर्णन। तीसरे वीडियो में जंगल वैसा ही दिख रहा है, जैसे जुरासिक पार्क सीरीज़ की फिल्मों में दिखाया गया है। ऐसा लगता है मानो अभी अचानक कोई टी-रेक्स या वेसीलोरेप्टर (डायनासोर) सामने स्वागत की मुद्रा में खड़ा हो जाएगा।
ReplyDelete- शलभ सक्सेना (देहरादून)
अनुसूया मंदिर मेरा भी देखा हुआ है बचपन की ढुँढली यादें ताजा हो रही हैं पर हम कर्ण प्रयाग से गए थे।यहाँ पूजा करने से पुत्र नहीं अपितु संतान की प्राप्ति होती है माना जाता है।जिन लोगो के बच्चे ना हो वो इस आस मर अक्सर यहाँ जाते हैं।
ReplyDeleteI also did this trail:
ReplyDeletehttp://talkofwalk.blogspot.com/2013/05/chopta-to-mandal-walk-rudranath-trek.html
अत्यंत रोमांचक ........अमृतगंगा ka photo or videos mast he neeraj bhai.....
ReplyDeleteAapke blogs padh ke jo maja aata hai.. shayad hi aur kahin mila.. dhanyavad sweekar karen..
ReplyDeleteसचमुच खतरनाक,रोमांचक और बहुत ही सुंदर |नीरज भाई ,घोर परिव्रता नहीं पतिव्रता |धन्यवाद् |
ReplyDeleteमुझे तो देखकर डर लग रहा है इतना घना जंगल ओफ्फ्फ्फ़
ReplyDeleteबहुत सुंदर यात्रा वर्णन .... कोआर्डिनेट देने से रास्ता पहचानने में काफी आसानी हो गयी है .... कृपया एक संशोधन हो सके तो अवश्य करें .. धनपत और हमसु बुग्याल के coordinate सही नहीं आ रहे ... आप चेक कीजियेगा... बाकी सारे कोआर्डिनेट और पिछली पोस्ट के भी सटीक हैं ...
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद... धनपत और हमसू बुग्याल के को-ओर्ड़ीनेट गलत हो गए थे, अब ठीक कर दिए गए हैं.
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