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9 जून 2012 की दोपहर बाद ढाई बजे हम तीनों तपोवन पहुंच गये। इसकी समुद्र तल से ऊंचाई 4350 मीटर है। हमारे बिल्कुल सामने है शिवलिंग पर्वत शिखर जिसकी ऊंचाई 6000 मीटर से ज्यादा है। इसके अलावा तपोवन में जो एक और शानदार चीज है वो है अमरगंगा, जो इसकी सुन्दरता में चार चांद लगाती है।
9 जून 2012 की दोपहर बाद ढाई बजे हम तीनों तपोवन पहुंच गये। इसकी समुद्र तल से ऊंचाई 4350 मीटर है। हमारे बिल्कुल सामने है शिवलिंग पर्वत शिखर जिसकी ऊंचाई 6000 मीटर से ज्यादा है। इसके अलावा तपोवन में जो एक और शानदार चीज है वो है अमरगंगा, जो इसकी सुन्दरता में चार चांद लगाती है।
तपोवन जाने से पहले मैंने इसके बारे में केवल इतना ही सुना था कि यह गौमुख से छह किलोमीटर आगे है। यही बात मुझे रोमांचित करती थी। अपने हिमालय अनुभवों के आधार पर मुझे पता था कि वहां इतनी ऊंचाई पर कोई वन नहीं होगा, बल्कि कोई छोटा मोटा मैदान होगा जिसे अक्सर उच्च हिमालयी क्षेत्रों में वन या बाग कह देते हैं। श्रीखण्ड महादेव के पास भी एक ऐसी ही जगह है पार्वती बाग जहां एक बडे से समतल सुरक्षित मैदान के अलावा कुछ नहीं है। और 4000 मीटर की ऊंचाई पर छोटी मोटी घास ही उग सकती है, कोई बडा पेड नहीं।
लेकिन चौधरी साहब को पता था कि तपोवन का इससे भी ज्यादा महत्व है। वह एक ऐसी जगह है जहां योगी महात्मा मिल सकते हैं। सुना मैंने भी था कि हिमालय की गुफाओं में योगी महात्मा तपस्या करते रहते हैं लेकिन कभी ऐसे महात्माओं के दर्शन नहीं हुए तो उतना विश्वास नहीं था। इसके अलावा चौधरी साहब को ऐसे कुछ महात्माओं के बारे में पता भी था कि वहां कुछ ऐसे लोग रहते हैं। उन्होंने एक बंगाली माई के बारे में बताया, मौनी बाबा के बारे में बताया। मौनी बाबा के बारे में नीचे ही पता चल गया था कि वे अभी भी तपोवन में ही रहते हैं। हालांकि चौधरी साहब इस बात से बहुत रोमांचित थे कि वे बाबा के दर्शन करेंगे, लेकिन मुझे इसमें खास दिलचस्पी नहीं थी। हालांकि मैं भी अध्यात्म को मानता हूं।
तपोवन पहुंचकर मैं परम सुकून का अनुभव कर रहा था, परम शान्ति का। यह शान्ति मानसिक नहीं थी, बल्कि शारीरिक थी। गौमुख से तपोवन तक की यात्रा बेहद खतरनाक और थकाऊ थी। जब हम ऊपर पहुंच गये और देखा कि अब कितना भी चलो, ना तो कहीं खतरनाक रास्ता है, ना ही चढाई है। जितना भी चलना है, बस सीधे ही चलना है- अमरगंगा के साथ साथ। अमरगंगा हालांकि छोटी सी नदी है, लेकिन उस दिन मैं इसे पैदल पार नहीं कर सकता था, ना ही दौडकर या छलांग लगाकर।
हवा बडी तेज चल रही थी। ऊपर चढते ही एक बडा सा मैदान है। नन्दू ने वहीं पर सामान पटक दिया और बोला कि यहीं पर टैंट लगायेंगे। नदी के दूसरी तरफ कुछ टैंट और भी लगे थे। वे टैंट कुछ बडी बडी चट्टानों के पास थे, इसलिये वहां उतनी तेज हवा नहीं लग रही थी। हमारे सामने एक टीला था, जहां बडे बडे पत्थर बिखरे पडे थे। टीले के ऊपर एक झौपडी दिख रही थी। मैंने नन्दू से कहा कि हम इस जगह पर टैंट नहीं लगायेंगे। बोला कि और कहीं जगह ही नहीं है। हालांकि मुझे टैंट लगाने का कोई अनुभव नहीं है, नन्दू इस मामले में अनुभवी था। लेकिन कम पढा लिखा होने के कारण नन्दू का अनुभव व्यावहारिक कम, रट्टामार ज्यादा था। वो कभी दो चार बार बडे ट्रेकिंग ग्रुप के या किसी पर्वतारोही ग्रुप के साथ यहां आया होगा और उन्होंने यहीं पर टैंट लगाया होगा, तो नन्दू ने समझ लिया कि यही जगह टैंट लगाने के लिये सर्वोत्तम है। जबकि मेरा विचार है कि टैंट लगाने के लिये सबसे पहली जरूरी बात होनी चाहिये सुरक्षा। ऐसी जगह पर टैंट लगा हो कि ऊपर पहाड से कोई पत्थर अगर गिरे तो हमारे आसपास ना गिरे। बारिश आये तो हमारे आसपास पानी ना भरे। इसके अलावा तेज हवाओं से बचाव का भी प्राकृतिक इंतजाम होना चाहिये। यहां हालांकि पहली दो शर्तें तो लागू होती थीं लेकिन तीसरी यानी तेज हवाओं वाली लागू नहीं हो रही थी। हम बिल्कुल खुले में थे और खूब हवा चल रही थी और लग भी रही थी।
मैंने कहा कि हम या तो टैंट उधर दूसरे टैंटों के पास लगायेंगे या फिर वहां टीले के उस पार झौंपडी के आसपास। टीले के उस पार क्या है, हमें नहीं पता था। मुझसे पहले चौधरी साहब ही टीले की तरफ बढ चले। मैं भी गया और दूसरी तरफ जाकर देखा कि कई झौंपडियां हैं। उन्हीं के पास एक नीची सी जगह पर हमने टैंट लगाने का निश्चय किया। वहां तेज हवाओं से भी रोक का इंतजाम था। नन्दू को बुला लिया गया।
जब हम टैंट लगा रहे थे तो उस समय हल्की हल्की बारिश भी पड रही थी, मौसम बेहद ठण्डा हो गया था। टैंट लगते ही मैं अन्दर घुस गया और स्लीपिंग बैग में पड गया। नन्दू टैंट में ही बैठा रहा जबकि चौधरी साहब एक झौंपडी में चले गये। उसमें कुछ साधु लोग थे, वे उनसे बातें करने लगे।
करीब आधे घण्टे बाद मैं भी उठा और उन साधुओं के पास चला गया। मेरे लिये वे किसी साधारण साधु से कम नहीं थे क्योंकि इस इलाके में बहुत साधु घूमने आते हैं। गौमुख तक तो साधुओं की लाइन लगी रहती है। लेकिन जब बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो मैं हैरान हो गया। एक थे प्रेम फकीरा जो अच्छी अंग्रेजी जानते थे और शानदार व्यक्तित्व के मालिक थे। उनका फेसबुक एकाउंट भी है। वे गुजरात में राजपीपला के एक ओशो आश्रम में रहते हैं और भारत भ्रमण करते रहते हैं। गजब का व्यक्तित्व है उनका! मैं वाकई हैरान हो गया कि ऐसे भी साधु होते हैं। हंसमुख और मस्त मलंग।
बातों बातों में पता चला कि बंगाली माई 9 सालों तक यहां रही थीं। यानी उन्होंने 9 सालों तक सर्दियां यहीं बिताईं। आखिरकार एक दिन इतनी बरफ पडी कि उनकी कुटिया दब गई और हवा के आने-जाने की जगह नहीं बची। यहां से 24 किलोमीटर पैदल दूरी पर स्थित गंगोत्री तक बन्द हो जाता है। यहां तपोवन में आदमियों की हलचल मई से अक्टूबर तक ही होती है, उसमें भी मई जून में सर्वाधिक। सर्वाधिक का मतलब है कि दिनभर में दो चार लोग आ गये। ऐसे में बंगाली माई को सांस लेने की दिक्कत आने लगी और आखिरकार मई में जब लोगबाग यहां आये तो उन्होंने उन्हें बेहोश पाया। उन्हें तुरन्त गंगोत्री ले जाया गया और आज वे भैरोंघाटी में रहती हैं।
उनके अलावा एक बाबा और हैं जो यहां पांच शीतकाल बिता चुके हैं। शीतकाल बिताने का यहां बहुत बडा अर्थ लगाया जाता है। बिल्कुल अकेले जब तापमान कम से कम छह महीनों के लिये शून्य से नीचे चला जाता है। वे बाबा आज भी यहीं रहते हैं। एक छोटी सी कुटिया बना रखी है। थोडी देर में वे हमारे पास आये तो उन्हें देखकर मैं आश्चर्यचकित रह गया। लगभग मेरी ही उम्र के और चेहरे पर जबरदस्त उत्साह और मुस्कान। वे मौनी बाबा हैं, मतलब कि बोलते नहीं है लेकिन इशारों से अपना हर काम चला लेते हैं। हमने उनके पैर छुए। चौधरी साहब ने परिचय दिया कि वे एक पत्रकार हैं और मैं इंजीनियर हूं। बडी इच्छा थी हमारी आपके दर्शनों की। बाबा ने इस बात को बडे हल्के-फुल्के अंदाज में लिया और इशारों में हंसते हुए कहा कि इंजीनियर का यहां आना तो ठीक है लेकिन पत्रकारों का आना बडा खतरनाक है। तुम वापस जाकर बाबा के बारे में नमक-मिर्च लगाकर लिखोगे। खैर, उन्होंने यह बात कोई कटाक्ष या व्यंग्य भाव से नहीं कही थी, बस माहौल को हल्का फुल्का बनाने के उद्देश्य से हंसी में कही।
शाम हुई। पता चला कि हमारा खाना मौनी बाबा के यहां ही होगा। खाने से पहले सबका जमावडा बाबा की कुटिया में लग गया। एक गोरी चमडी वाला विदेशी भी था, जो तपोवन के आध्यात्मिक आकर्षण में पूरी तरह लिप्त था। लोगों ने बताया कि वो पिछले कई सालों से आता है और एक-दो महीने यहीं रुकता है। वो किसी से बात नहीं करता, बस ज्यादातर समय ध्यान में बैठा रहता है। बाबा द्वारा दी गई हर खाने की चीज खा लेता है।
हम सब मिलाकर कम से कम आठ नौ जने थे जिनमें से तीन स्थानीय आदमी, दो हम घुमक्कड और बाकी साधु थे। बातचीत होने लगी। और बातचीत का मुद्दा बडा हैरान कर देने वाला था। जिन मुद्दों पर हम दिल्ली में हमेशा बात करते हैं- राजनीति के बारे में, सामाजिक व्यवस्था, हिन्दू मुसलमानों के बारे में, आरक्षण के बारे में, पढाई लिखाई के बारे में; हर मुद्दे पर मौनी बाबा ने खूब विचार रखे। ज्यादातर बात इशारों से और बची खुची बातों को कहने के लिये कापी पेन का इस्तेमाल किया गया। बाबा पिछले सात साल से तपस्या कर रहे हैं, पांच सालों से यहां तपोवन में है, मेरी ही उम्र के हैं यानी पच्चीस साल के और वे इन मामलों में अपने तर्कों से हमें मात दे रहे थे, पत्रकार साहब को भी मात दे रहे थे।
उन्होंने कहा कि हमारे पुराने धर्मग्रंथों में जो भी कुछ लिखा है, वो आज भी सत्य है, भले ही आदमी चांद पर और मंगल पर पहुंच गया हो। वर्ण व्यवस्था आज भी लागू है और जो कहता है कि वर्ण व्यवस्था खत्म होती जा रही है, उससे बडा अन्धा कोई नहीं है। आज भी जबरदस्त वर्ण व्यवस्था है, वही व्यवस्था है जो हमारे पूर्वज बनाकर चले गये। आज शहरों में भले ही यह पता ना चलता हो कि कोई आदमी किस जाति का है लेकिन पैसे की वजह से बडा अन्तर है लोगों के बीच में। कोई अमीर तो कोई गरीब तो कोई मध्यमवर्गीय। आज भी लागू है वही प्राचीन व्यवस्था। किसी भी जगह मजदूर और मालिक साथ साथ बैठकर खाना नहीं खा सकते, हाथ तक नहीं मिला सकते। मजदूर जो काम करेगा, मालिक उस काम को कभी नहीं करेगा।
दूसरी बात कि भले ही खून का वैज्ञानिक विश्लेषण कर लिया गया हो, वैज्ञानिक आधार पर खून के कई नमूने कर दिये गये हों लेकिन कुछ गुण जन्मजात ही होते हैं। जैसे कि राज करने का गुण। केवल राजपूत ही सर्वोत्तम राजा बन सकता है। दिक्कत तब आती है, जब राजपूतों को राजकार्य से अलग कर दिया जाता है और दूसरे लोग राजा बन बैठते हैं। आज पूरी दुनिया में यही हो रहा है। गैर-राजपूत खून राजा बन बैठा है और राज्य का सत्यानाश। ऊपर से इन गैर-राजपूतों ने ऐसा प्रपंच रचा कि राजपूत अब आसानी से राजा नहीं बन सकता। आरक्षित कर दी है राजा की गद्दी। जो असली हकदार है, उसे आरक्षण के जाल में ऐसा फंसा दिया गया है कि वो जी-तोड जोर लगा ले, गद्दी पर अयोग्य व्यक्ति ही बैठेगा। जो जितना ज्यादा अयोग्य, उसे उतना ही ज्यादा आरक्षण।
यहां बाबा के यहां से कोई भी भूखा नहीं लौटता। हर समय चाय और खाना तैयार रहता है। बाबा खाना खुद बनाते हैं। असल में स्थानीय लोगों की बाबा में बडी जबरदस्त श्रद्धा है। आखिर उन्होंने पांच शीतकाल यहां व्यतीत किये हैं। तो ये लोग यहां खाने की कोई कमी नहीं रहने देते। सब्जी, चावल, आटा, नमक-मिर्च सब लगातार नीचे से आते रहते हैं। हम आठ नौ लोगों के लिये उस शाम दाल, आलू-शिमला मिर्च की सब्जी, चावल और रोटी बनी। बाबा खाना बनाने के साथ खुद ही परोसते भी हैं। ऐसी जगह जहां से दस किलोमीटर पैदल दूरी पर और तपोवन के मुकाबले बेहद सुगम जगह पर खाने की एक थाली के सरकारी रेट 200 रुपये हैं, वो भी लिमिटेड खाने के। उसके मुकाबले में यहां जी-भरकर खाने का कोई पैसा नहीं लिया जाता, यह सब बाबा के प्रति इज्जत बढाने के लिये काफी है। हां, बर्तन धोने की बडी परेशानी है, क्योंकि बर्तन खुद धोने होते हैं और वो भी बर्फीले पानी से। हमने तो अपने हिस्से का यह काम नन्दू से कराया।
अब बात तपोवन की। तपोवन से नीचे लौटकर जब हम गौमुख के आसपास लोगों से बताते थे कि हम तपोवन से आये हैं, तो वे पूछते थे कि तपोवन में क्या है, तो हम उन्हें इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे सके। क्या बताते हम उन्हें? कि वहां एक शिवलिंग नामक विशाल पहाड है, या पतली सी अमरगंगा बहती है, या एक बडा सा मैदान है? नहीं, क्योंकि तपोवन से ज्यादा विशाल पहाड तो गौमुख से दिखते हैं, गौमुख में भागीरथी बहती है और यहां पहाडों पर मैदान कितने बडे होते होंगे, सबको पता है। हमारा यह जवाब कभी भी प्रभावशाली नहीं रहा। हम नहीं बता पाते थे कि तपोवन में क्या है।
तपोवन में है शान्ति- आध्यात्मिक शान्ति। हर चीज आपको एकाग्रता की तरफ ले जाती है। अमरगंगा बिना आवाज किये बहती है लेकिन अगर उसके किनारे भी बैठ जायें तो हमें संगीत सुनाई पडेगा। विराट शिवलिंग से निगाहें नहीं हटतीं। मैदान में बहुत सारी बडी बडी चट्टानें पडी हैं जो एकान्त साधना के लिये आदर्श स्थान उपलब्ध कराती हैं। जाओ, और ऐसी ही किसी चट्टान के पास बैठ जाओ और खो जाओ। भूल जाओ कि कुछ है। दुनिया तो दूर की चीज है, अपनी भी सुध नहीं रहती। हमें आज रात यहां रुककर सुबह यहां से निकल लेना था, लेकिन इन सब चीजों से प्रभावित होकर, आकर्षित होकर हमने एक सुर में फैसला कर लिया कि एक दिन और रुकेंगे। और हम यहां दो रात रुके। जबरदस्त आकर्षण पडता है तपोवन का मन के ऊपर।
ध्यान (मेडिटेशन) की ट्रेनिंग नहीं ली जा सकती, अपने अन्दर से ही आवाज निकलती है। और जब अपने अन्दर से आवाज निकलनी शुरू हो जाये, तो तपोवन उसमें उत्प्रेरक का काम करता है। हां, अगर आपका ओशो और उसके सिद्धान्तों में यकीन नहीं है, आप ओशो को मात्र ‘सम्भोग से समाधि की ओर’ वाला ही मानते हैं, तो मेरी सलाह है कि उसकी एक किताब जरूर पढिये- मैं मृत्यु सिखाता हूं। क्योंकि यह ध्यान के बारे में जानने के लिये सरल भाषा में है। आज के सभ्य समाज के लिये सम्भोग से समाधि एक अश्लील किताब हो सकती है, लेकिन मृत्यु सिखाने वाली किताब आत्महत्या सिखाने वाली किताब नहीं है। गजब, अल्टीमेट किताब है यह। अगर आप मृत्यु वाली किताब के दस बीस पन्ने पढकर तपोवन चले जायें, तो आप वहां जाकर हैरान रह जायेंगे। तभी लगेगा कि वाकई तपोवन एक चमत्कारिक जगह है। नहीं तो मात्र बर्फीला ग्लेशियर पार करके शिवलिंग और अमरगंगा से घिरा एक साधारण सा पिकनिक स्पॉट ही लगेगा।
कुछ लोग सोचते हैं कि वहां हमें पहुंचे हुए ऋषि मुनि मिलेंगे, जो फूंक मारते ही कुछ से कुछ कर देंगे, चमत्कार दिखायेंगे, तो वे यहां उनके दर्शनों की इच्छा लेकर ना जायें तो बेहतर। पहले आपको थोडी बहुत आध्यात्मिक समझ होनी चाहिये, तभी आप तपोवन का आनन्द ले पायेंगे।
तपोवन में अमरगंगा |
अमरगंगा |
टैंट लगाने का काम शुरू। एक रात के लिये लगाया गया यह टैंट अब दो रातों तक लगा रहेगा। |
यह तपोवन से दिखता है, नाम ध्यान नहीं है। |
गंगोत्री श्रंखला की तीनों चोटियां- गंगोत्री 1, गंगोत्री 2 और गंगोत्री 3 |
यह है हमारा खाने बनाने का तामझाम। हालांकि यहां बाबाजी के यहां खाने पीने की कोई दिक्कत नहीं हुई लेकिन फिर भी हमने चाय और मैगी बना ली थी। |
ये हैं प्रेम फकीरा। इनसे फेसबुक पर चैटिंग होती रहती है। इनसे बात करके लगता है कि हम अपने किसी खास से ही बात कर रहे हैं। |
गंगोत्री शिखरों का एक और फोटो। |
पहले दिन तो बस हमीं थे यहां, दूसरे दिन कुछ विदेशी लोग आ गये थे जो शाम तक वापस चले गये। |
सूर्योदय के समय सोना बरस रहा है पर्वतों पर |
सूर्योदय की स्वर्ण रश्मियां |
अब शुरू करते हैं शिवलिंग के फोटो। बोर मत हो जाना। यहां मात्र शिवलिंग का ही शासन चलता है।
साफ आसमान में |
सूर्योदय से बिल्कुल पहले |
सूर्य की किरणें शिवलिंग पर पडने लगी हैं। |
धीरे धीरे धूप नीचे आती जा रही है। |
शिवलिंग |
इन फोटुओं को लेने के लिये मुझे सुबह सवेरे ठण्ड में उठना पडा था। यह था शिवलिंग का आकर्षण, नहीं तो मैं कभी भी इतनी सवेरे नहीं उठता हूं। |
शान्त तपस्वी सा मालूम पडता है |
चश्मेश जाटराम और शिवलिंग। |
पत्रकार साहब और शिवलिंग |
एकछत्र राज चलता है यहां इसका |
जाटराम |
शिवलिंग और अमरगंगा दोनों मिलकर यहां एक शानदार वातावरण बनाते हैं। |
विराट शिवलिंग |
बर्फीला शिवलिंग |
शिव के आगे शिव और शिव के पीछे शिव |
त्रिशूल और शिव का साथ कभी नहीं छूटेगा। |
तो जी, यह था तपोवन का आकर्षण कि हम यहां एक दिन के लिये आये और दो दिन रुके। हमारा यह विश्राम विस्तार करने में प्रेम फकीरा का बडा हाथ है। जब उन्हें पता चला कि हम कल सुबह यहां से निकल जायेंगे तो उन्होंने पूछा कि आप यहां आये ही क्यों थे। पहाड तो नीचे भी हैं। एक दिन और रुकिये और अमरगंगा तथा शिवलिंग के आंगन में खेलिये। तो हम मना नहीं कर सके।
अगला भाग: कीर्ति ग्लेशियर
गौमुख तपोवन यात्रा
1. गंगोत्री यात्रा- दिल्ली से उत्तरकाशी
2. उत्तरकाशी और नेहरू पर्वतारोहण संस्थान
3. उत्तरकाशी से गंगोत्री
4. गौमुख यात्रा- गंगोत्री से भोजबासा
5. भोजबासा से तपोवन की ओर
6. गौमुख से तपोवन- एक खतरनाक सफर
7. तपोवन, शिवलिंग पर्वत और बाबाजी
8. कीर्ति ग्लेशियर
9. तपोवन से गौमुख और वापसी
10. गौमुख तपोवन का नक्शा और जानकारी
शिवलिग शिखर बिलकुल ऐसा लगता है की जैसे भगवान शिव ध्यान मुद्रा में बैठे हो. बहुत ही शानदार और पवित्र चित्र. बिलकुल प्रोफेसनल फोटोग्राफर हो गए हो. ऐसे शानदार फोटो कभी नहीं देखे, वाकई देवलोक जैसा लगता हैं.
ReplyDeleteक्या आपको ऐसा नहीं लगता की एक साइड से भगवान शिव, दूसरी साइड से गणेश जी, और तीसरी में शेषनाग का रूप हो ये शिवलिग शिखर
ReplyDeleteनीरज जी, चित्र बोलते है सुना था पर आज देख भी लिया, शिवलिंग वाकई मे शिव के दर्शन करता है, एक चित्र मौनी बाबा का भी होता तो मजा आ जाता.
ReplyDeleteऐसा संभव नहीं है...बाबाजी का चित्र तो है लेकिन बाबाजी को वादा किया था कि उनका चित्र कहीं प्रदर्शित नहीं करेंगे। बेहद मुश्किल से फोटो खींचने की अनुमति दी थी। महान हस्ती हैं वह...उन्हें शत-शत नमन...
Deleteस्वर्णिम दृश्य, बस देखते रहने का मन करता रहा..
ReplyDeleteसलाम नीरज भाई ! बहुत सी पुरानी यादें ताजा कर दी आपने ! आपकी घुमक्कड़ी जिंदाबाद रहे!
ReplyDeleteनीरज भाई , अपना नो दो फटाफट , बृहस्पति वार से मै खाली हूँ , आप भी छुट्टी ले लेते तो कहीं घूम लिया जाता ..... क्या कहते हैं ??? बुध्ध्वार को यात्रा शुरू करनी है, फटा फट मामला साफ़ कीजिये ..
ReplyDeleteमुझे लगता है यह आज तक की आपकी सभी यात्राओं में सबसे सुन्दर यात्रा रही है।
ReplyDeleteवहां नेटवर्क रहता है यह जानकर खुशी हुई।
"संभोग से समाधि" में अश्लीलता केवल उन्हें ही दिखाई देगी, जो टाईटल से आगे नहीं पढ पाये हैं। वर्ना एक शब्द भी पूरी पुस्तक में अश्लील नहीं मिलेगा। यह पुस्तक आध्यात्मिक पुस्तकों में श्रेष्ठ है यह बात इसे पढने वाले ही जान सकते हैं।
प्रणाम
किसने कहा कि नेटवर्क रहता है? नहीं, यहां तो क्या दूर-दूर तक कोई नेटवर्क नहीं रहता। गंगोत्री छोडते ही नेटवर्क भी छूट जाता है।
Deleteतो अगर नेटवर्क नही है तो प्रेम फकीरा फेसबुक पर चैट कैसे करते हैं???
Deleteवे तपोवन में नहीं रहते। उनका मुख्य ठिकाना गुजरात के राजपीपला में है। दिल्ली भी आते जाते रहते हैं। मैंने पोस्ट में यह सब लिखा है। मात्र संयोग ही था कि वे हमें तपोवन में मिले।
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति ... :-).
ReplyDeleteआज का आगरा
इस तीर्थयात्रा के लिए आपको कोटि कोटि आशीर्वाद
ReplyDeleteपड़ते पड़ते ही ध्यान लग गया , स्वर्ग के फोटो तो बाद में देखे . ओशो (रजनीश) को पड़ने से ज्यादा सुनने में बहुत आनंद आता था १९८२ - १९८५ में
चौधरी साब आपसे शयद ज्यादा खुबसूरत हैं , पोस्ट के अंत में जरूर दिखाना
नीरज भाई... आपका ये लेख सब लेखों को पीछे छोड़ सर्वोत्तम की श्रेणी में आ गया...एक ऐसा स्थान दिखाया आपने जहां के मै बरसो से सपने देख रहा हूं.
ReplyDeleteसोना बरसने वाला चित्र तो साल का सर्वोत्तम चित्र है
आपके एक और रूप से भी परिचित हुए...अध्यात्मिक रूप..
मैं भी गंगोत्री मे श्री दिनेशानंद से मिला था और प्रभावित हुआ... ऐसे ऋषिओं. के दम पर ही हिन्दूधर्म जीवित है
बहुत-2 धन्यवाद वा आशीर्वाद
सच कहा आपने ...
Deleteवाह नीरज ! धमाकेदार धमाल , क्या सीरीस है . उच्च्यतम स्थर की घुमक्कडी और बहुत अच्छे फोटो के साथ साथ बेहतेरीन वर्णन. सारे चित्र अच्छे है. शिवलिंग के चित्रों ने दिल जीत लिया है . सुबह जल्दी उठने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद और बधाई.
ReplyDeleteअब आगे आपकी रेल यात्रा का इन्तेज़ार. खास तौर पे विवेक एक्सप्रेस की यात्रा का मुझे बेसब्री से इन्तेज़ार है.
नीरज, तुम्हारी यह पोस्ट सर्वोत्तम है। साथ ही सोना बरसने वाले चित्र अद्भुत हैं। मै भी इस यात्रा में साथ ही चल रहा था। अगर कभी मौका मिला तो जरुर जाना चाहुंगा। अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत यात्रा रही।
ReplyDeleteललित भाई...
Deleteकार्यक्रम बनाइए, मैं जरूर साथ चलना चाहूँगा...
Bhagwan,pata nahi kyo dil karta hai ki har yatra per main aapke pass udkar chala aawun.lekin phir bhi is blog k madhyam se main aapke saath hi rahta hoon.pahle main aapko neeraj babu bolta tha per aaj se aap bhagwan kahlaoge.
ReplyDeleteहार्दिक आभार नीरज! तपोवन का वर्णन, सत्संगति और उस पर वहाँ के अलौकिक सूर्योदय का दर्शन, अद्वितीय पोस्ट!
ReplyDeleteजीओ नीरज जीओ! अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत !
ReplyDeleteआज तो अद्भुत शब्द भी छोटा पड़ गया नीरज .....शब्द जैसे बर्फ की तरह जम गए है ...तीन बार यह पोस्ट पढ़ी है ..यहाँ का सोंदर्य देखकर आँखें थकने का नाम ही नहीं ले रही है ...तुम्हारी क्या हालत होगी उस समय जब इतनी कठिन यात्रा के बाद तुम सीधे स्वर्ग में पहुँच गए होगे ....उफ़ ....क्या नजारा होगा ....कल्पना से परे ....! प्रेम फकीरा साहेब को सलाम ..जो अहमदाबाद से इतने दूर रहकर जीवन की सच्चाई से रूबरू हो रहे है ..उन्हें कोटि -कोटि सलाम ...सोना बरसाते पर्वतों के चित्र अविश्वर्निय है ...साथ ही इस बार की यात्रा में तो तुमने झंडे गाड़ ही दिए नीरज ...आज तुम पर फक्र हो रहा है ....19 वा फोटू तुम्हारा बहुत बढ़िया है ....
ReplyDeleteaisa hai ki bahut hi jyada badhiya hai
ReplyDeleteलाजवाब पोस्ट. चरण स्पर्श.
ReplyDeleteनीरज भाई....
ReplyDeleteसर्वोत्तम और अद्भुत....
इतने ही शब्द हैं मेरे पास तपोवन के लिए....
बहुत सुन्दर फ़ोटोज़. पहाड़ों पर सूरज की पहली पहली किरणें पड़ती हैं तो वे इतने कांतिमय तथा मनमोहक हो जाते हैं कभी देखा या सुना नहीं था. स्वर्णिम शिवलिंग पर्वत के चित्र सचमुच लाज़वाब थे.
ReplyDeleteबेहद शानदार पोस्ट। सभी चित्र लुभावने। ऐसा लग रहा है कि हम भी थैला उठाएं और निकल जाएं। पर इतना आसान भी नहीं होगा। सो आपके साथ ही यात्रा कर लेते हैं।
ReplyDeleteवर्ण व्यवस्था वाला भाग, कुछ अधूरा सा लगता है। उन्होंने बहुत सी बातें कहीं होंगी, कुछ आ गई तो कुछ छूट गई होंगी।
फिर भी इस अद्भुत यात्रा कराने के लिए हृदय से आभार...
samjhne ki baat hai in shabdon ke aage sab bemaani mahsoos ho raha hai...
ReplyDelete"उन्होंने पूछा कि आप यहां आये ही क्यों थे। पहाड तो नीचे भी हैं। एक दिन और रुकिये और अमरगंगा तथा शिवलिंग के आंगन में खेलिये। तो हम मना नहीं कर सके "
अलौकिक दृश्य और आपका वर्णन !!! क्या कहा जाए? अनोखा अद्वितीय!!!
ReplyDeleteभाई साहब चित्र देखकर यही कहने को जी चाह रहा है कि "बहुत खूबसूरत गजल लिख रहा हूँ तुझे देखकर आज कल लिख रहा हूँ." बेहतरीन पोस्ट........लगे रहो......
ReplyDeleteMain waha 4 saal pehle gaya tha...Tab mataji khana banati thi..jeevan ki sarvshrestha aloo-gobhi mein se ek ka swad tapovan mein hi naseeb hua tha.
ReplyDeleteजाट जी,आपके ब्लॉग पर देरी से आने के लिए पहले तो क्षमा चाहता हूँ. कुछ ऐसी व्यस्तताएं रहीं के मुझे ब्लॉग जगत से दूर रहना पड़ा...अब इस हर्जाने की भरपाई आपकी सभी पुरानी रचनाएँ पढ़ कर करूँगा....कमेन्ट भले सब पर न कर पाऊं लेकिन पढूंगा जरूर
ReplyDeleteतपोवन की यात्रा के अद्भुत चित्र हम तक पहुंचाने के लिए आपका कोटिश धन्यवाद...सूर्योदय के चित्र तो बोलती बंद कर देने के लिए काफी हैं....
नीरज
आपकी कम उम्र और आपकी इतनी यायावरी देख कर आश्चर्य होता है ...यह पढ़ कर भी बहुत आश्चर्य हुआ कि आपने पहली ट्रेन यात्रा ही सन २००५ में की थी । मैं आपके ब्लोग का बहुत पुराना पाठक हूँ और आपकी हर पोस्ट का बेसब्री से इंतजार करता हूँ ...बहुत बेबाक और शानदार वर्णन ...बस आप लिखते रहो ..घूमते रहो ...लगातार
ReplyDeletePrem Fakira sahab hamare Ahmedabad [Karnavati]se hai jankar hume atyadhik khushi hui
ReplyDeleteसभी चित्र सुंदर है | जय महाकाल जय भोलेनाथ |
ReplyDeleteसच कहूं नीरज भाई।। आपकी यात्रा दिल को छू गयी।।। तुम बड़े भाग्यशाली हो जो तुम्हें भगवान शिव के विराट शिवलिंग के दर्शन प्राप्त हुए।।
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