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त्रयंबकेश्वर यात्रा

Triambakeshwar Travel Guide in Hindi

15 सितंबर 2018
हम त्रयंबकेश्वर नहीं जाना चाहते थे, लेकिन कुछ कारणों से जाना पड़ा। हम दोनों ही बहुत बड़े धार्मिक इंसान नहीं हैं। तो हमारे त्रयंबकेश्वर जाने का सबसे बड़ा कारण था सामाजिक। त्रयंबकेश्वर भारत के 14-15 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। और आप जानते ही हैं कि आजकल ज्योतिर्लिंग ‘कवर’ किए जाते हैं। गिनती बढ़ाई जाती है। तो हम भी त्रयंबकेश्वर ‘कवर’ करने चल दिए, ताकि हमारे खाते में भी एक ज्योतिर्लिंग की गिनती बढ़ जाए।
दूसरा कारण बड़ा ही अजीबोगरीब था। असल में हम बिना किसी तैयारी के ही इस यात्रा पर निकल पड़े थे। और मेरे दिमाग में त्रयंबकेश्वर और भीमाशंकर मिक्स हो गए थे। भीमाशंकर नाम दिमाग से उतर गया था और लगने लगा था कि त्रयंबकेश्वर का ट्रैक काफी मुश्किल ट्रैक है। गूगल मैप पर देखा तो पाया कि त्रयंबकेश्वर के आसपास कुछ दुर्गम पहाड़ियाँ भी हैं, गोदावरी भी यहीं कहीं से निकलती है, तो शायद वो मुश्किल ट्रैक यहीं कहीं होगा। शायद गोदावरी उद्‍गम तक जाने का ट्रैक सबसे मुश्किल होगा।
तो एक यह भी कारण था त्रयंबकेश्वर जाने का।

सारा सामान वकील साहब के यहीं छोड़ दिया और मोटरसाइकिल से हम दोनों नासिक शहर में प्रविष्ट हो गए। पीछे बैठी दीप्ति मोबाइल में गूगल मैप में देखकर रास्ता बताती रही। बहुत दूर चलने के बाद जब उसने कहा कि अब गूगल मैप में रास्ता समझ में नहीं आ रहा, तो मैं समझ गया कि हम त्रयंबकेश्वर पहुँच गए। मोटरसाइकिल खड़ी की और सामने ही मंदिर का प्रवेश द्वार था।






“पहले वडापाव खाएँगे।” मैंने कहा।
“नहीं, पहले दर्शन करेंगे।”
कहीं लिखा हुआ था कि कैमरा मोबाइल अंदर ले जाना मना है, तो ये सब बाहर ही छोड़ने पड़े। सामान रखने की अच्छी व्यवस्था थी।
दो प्रवेशद्वार थे - एक फ्री वालों के लिए और दूसरा पैसे वालों के लिए। दीप्ति का आदेश था कि हम फ्री वाले द्वार से चलेंगे। और साबजी, आप भरोसा नहीं करेंगे... अंदर फ्री वालों की बहुत लंबी लाइन थी। बहुत लंबी मतलब वाकई बहुत लंबी। और उधर पैसेवाले बड़े आराम से सीधे मंदिर में प्रवेश कर रहे थे। हमें इस व्यवस्था से कोई ऐतराज नहीं था। पैसेवालों से भी कोई ज्यादा पैसे नहीं लिए जा रहे थे। फ्री की लाइन में खड़ा प्रत्येक व्यक्ति इतने पैसे बड़े आराम से दे सकता था। हम भी बड़े आराम से पैसे दे सकते थे और हमें वाकई कोई फर्क नहीं पड़ता। हम फ्री वाली बहुत लंबी लाइन में खड़े थे - यह हमारा चुनाव था। इसलिए जो लोग पैसे देकर सीधे मंदिर में जा रहे थे, उनके प्रति किसी भी प्रकार की दुर्भावना मन में नहीं थी।
तो दो घंटे तक खड़े रहे, सरकते रहे, खड़े रहे, सरकते रहे। और आखिर में जब मंदिर में प्रवेश किया, फ्री वाली और पैसों वाली लाइन मिक्स हो गई और भगवान शिव के दर्शन होने में सेकंडों की ही देरी थी, तो पैसे देकर आई एक महिला बिफर उठी - “हम पैसे देकर इसलिए आए थे कि लाइन में न लगना पड़े। लेकिन यहाँ तो लाइन लगी है। ये लोग बहुत बड़े धोखेबाज हैं। पैसे भी ले लिए और अब लाइन में ला खड़ा कर दिया।”

“अब तो वडापाव खा लें?” मंदिर से बाहर निकलकर मैंने फिर पूछा।
और अनुमति मिल गई।
दीप्ति को वडापाव पसंद नहीं था। शायद इसलिए पसंद नहीं था, क्योंकि उसने इसे कभी नहीं खाया था। यह देखने में भी कोई राजसी डिश नहीं है और नाम भी इसका गरीब-सा ही है। अगर ‘राजकचौड़ी’ या ‘बालूशाही’ या ‘शाही पनीर’ टाइप का नाम होता, तो अलग बात थी। आलू की टिक्की और थुलथुल-सा पाव। पाव का पेट फाड़कर उसमें टिक्की रखकर दे दिया - यह भी कोई प्रभावशाली तरीका नहीं था।
मुझे तो वडापाव बहुत पसंद है। मैं तो महाराष्ट्र में लंच, डिनर, ब्रेकफास्ट सब इसी से कर लेता हूँ।
और दीप्ति ने जब इसे गर्मागरम खाया, चटनी के साथ... तो यह उसकी भी फेवरेट डिश बन गई। फिर तो हमने अगले दस दिनों तक खूब वडापाव खाया। रोज वडापाव...

सामने की पहाड़ी बड़ा आकर्षित कर रही थी। पता चला वहाँ गोदावरी उदगम है। सीधा पैदल रास्ता यहीं से है, मोटरसाइकिल का रास्ता कुछ घूमकर है। आखिर में मोटरसाइकिल खड़ी करके थोड़ा पैदल चलना पड़ता है। फिर मुझे नहीं पता कहाँ-कहाँ क्या-क्या था... पहाड़ के अंदर कुछ गुफाएँ थीं और बाहर बंदरों की फौज थी। लोग समूहों में आ-जा रहे थे। हम भी एक समूह के आने की प्रतीक्षा करने लगे। दीप्ति प्रतीक्षा किए बगैर अकेली चल दी और बंदरों से घिर गई। मैंने मना किया, वो नहीं मानी। जब एक सीमा के बाद आगे बढ़ने में डर लगने लगा, कैमरे छिनने का डर लगने लगा, बंदरों के आक्रमण का डर लगने लगा, तो वापस मुड़ना पड़ा।
“मैंने समझाया था ना? कि किसी ग्रुप की प्रतीक्षा कर लेते हैं?”
और दोनों का मूड़ खराब हो गया। मोटरसाइकिल स्टार्ट की और भरी बारिश में नासिक की ओर दौड़ लगा दी। पूरे भीग गए। नासिक में धूप खिली थी। सूख भी गए। वकील साहब के यहाँ पहुँचकर जब गौर से देखा तो पता चला कि पूरे नहीं सूखे हैं।

इगतपुरी में हम पश्चिमी घाट के पहाड़ों को पार करके नीचे उतरेंगे। हमारी दिशा पश्चिम में होगी और उधर ही सूर्यास्त भी हो रहा होगा। वहीं कहीं से सूर्यास्त देखेंगे - ऐसी इच्छा थी। लेकिन वकील साहब के यहाँ खाने-पीने में और बातों में इतने मशगूल हो गए कि सूर्यास्त नासिक में कर बैठे।
और जब इगतपुरी में घाट से नीचे उतर रहे थे, तो चारों ओर घुप्प अंधेरा था।

ठाणे में संगीता बालोदी जी रहती हैं - बरसूडी निवासी - बीनू कुकरेती की बहन। उनके यहाँ हमें रुकना था। उन्होंने अपनी जी.पी.एस. लोकेशन हमें भेज दी थी और हम उसी के अनुसार चार-लेन के हाइवे पर चलते जा रहे थे।
ठाणे को मुंबई का केंद्र माना जा सकता है। क्योंकि जिस स्थान पर वास्तविक मुंबई है, वहाँ तो मुंबई महानगर-उपनगर सब समाप्त हो जाते हैं। तो इधर कल्याण-ठाणे, उधर वसई-बोरीवली और उधर मुंबई सेंट्रल... इन सबके बीच में है ठाणे।
लेकिन हम हैरान इस बात पर थे कि सड़क पर ट्रैफिक नहीं था। कारें तो बिल्कुल भी नहीं थीं। ज्यादातर ट्रकों का ही ट्रैफिक था। वैसे तो मुझे तुलना पसंद नहीं है, लेकिन अगर हम दिल्ली के पचास किलोमीटर के दायरे में इस समय होते, तो चारों ओर की सभी सड़कें कारों से भरी होतीं और कारें दूसरी कारों से आगे निकलने को कभी डिवाइडर पर चढ़ रही होतीं, तो कभी फुटपाथ पर...

संगीता जी की लोकेशन लोकमान्य नगर की तंग गलियों में मिली। इस जगह तक पहुँचाने का काम पीछे बैठी दीप्ति का था। वह हर मोड पर बता देती। गणपति उत्सव की धूम थी। चहल-पहल थी। कई गलियों में भटके। कुछ मीटर के फासले से ठीक गली में जाते-जाते भटके भी।
और आखिरकार ठीक उनकी बताई लोकेशन पर जाकर रुक गए। दीप्ति ने फोन किया - “दीदी, हम पहुँच गए। अभी हम फलाँ बुक स्टोर के सामने हैं।”
“नहीं, नहीं। उन्हें उस साड़ी की दुकान का नाम बता। जल्दी समझ जाएँगी।” मैंने कहा।
और जैसे ही दीप्ति ने उस साड़ी वाली दुकान का नाम बताया, ठीक अठारह सेकंड में संगीता जी हमारे सामने थीं।

घर पर पाँच दिनों के लिए गणपति की स्थापना हुई थी। खाने-पीने का दौर चल रहा था। हमारे यहाँ गणपति उत्सव नहीं मनाते, इसलिए हमारे लिए सब नया था। लेकिन यहाँ तो माहौल ही अलग था। किसके घर में कितने दिनों के लिए गणपति की स्थापना हुई है, किसने आज क्या-क्या बनाया, कितने लोग भोजन पर इनवाइट किए, गणपति की मूर्ति कैसी है, उसकी हाइट कितनी है, आँखें कितनी बड़ी हैं, कलर कैसा है, सजावट कैसी है, सजावट किसने की, कितना खर्चा आया होगा... अंतहीन मुद्दे...

16 सितंबर 2018
आज भी हमें यहीं रुकना था, संगीता जी के यहाँ। तो तय हुआ कि एलीफेंटा गुफाएँ चलते हैं। लेकिन कुछ तो हम उठने में लेट हो गए, कुछ नहाने-धोने और खाने-पीने में लेट हो गए और आखिर में चारू दुबे का बुलावा आ गया। तो कुल मिलाकर हम एलीफेंटा नहीं जा सके। शाम छह बजे जब मरीन ड्राइव पहुँचे तो सूर्यास्त हुए कुछ सेकंड बीत चुके थे और हम प्रतीक गांधी को ढूँढ रहे थे। प्रतीक ने भी अपनी लाइव लोकेशन हमें दे दी थी और हमने भी अपनी लाइव लोकेशन उसे दे दी थी। उसे हमारी ओर बढ़ना था और हमें उसकी ओर। लेकिन उसकी लाइव लोकेशन समुद्र के अंदर आ रही थी और मरीन ड्राइव के आसपास समुद्र में कोई भी नाव या जहाज नहीं था। तो जब तक प्रतीक मिला, तब तक सूर्य देवता समुद्र की गहराइयों में समा चुके थे और उजाले का अंश भी नहीं बचा था।

रात नौ बजे प्रतीक को विदा करके मरीन ड्राइव पर मोटरसाइकिल यात्रा करने लगे। चलते-चलते हाजी अली के सामने पहुँचे। यहाँ इतनी दुर्गंध मिली कि बिना कोई फोटो खींचे आगे बढ़ गए। बांद्रा-वर्ली सी-लिंक पर चढ़ते ही हमें रोक दिया गया। इस सड़क पर मोटरसाइकिल चलाना एलाऊ नहीं है।
फिर दीप्ति को ठाणे का पता डालकर मोबाइल पकड़ा दिया और घंटे भर बाद हम फिर से संगीता जी के यहाँ थे और फिर से गणपति पूजा की पार्टी में भाग ले रहे थे।

Nasik to Triambakeshwar Road
नासिक से त्रयंबकेश्वर की ओर...

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Godawari Udgam in Triambakeshwar
गोदावरी उद्‍गम पहाड़ी से दिखता त्रयंबकेश्वर

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Rural Life in Maharashtra

Triambakeshwar Travel Plan

How to Reach Triambakeshwar




How to Reach Godawari Udgam Triambakeshwar



Best Veg Restaurant in Triambakeshwar

Ganesha Pandal in Mumbai
संगीता जी के घर पर

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चारू दुबे के यहाँ...

Marine Drive in Mumbai
मरीन ड्राइव

Marine Drive Timing Mumbai

Prateek Gandhi Mumbai
प्रतीक गांधी अपने पचास काम छोड़कर पचास किलोमीटर दूर हमसे मिलने आए...










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Comments

  1. जाट भाई के आँखों में असली चमक तो बड़ा पाव देखने के बाद ही दिखी 😜

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    1. अगर कोई काम में इतना बिजी होगी कहीं जा ना सके तो आपके ब्लॉग पढ़कर वह घर बैठे बैठे ही घूम सकता है बहुत बहुत धन्यवाद नीरज जी

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  2. ईगतपुरी को दूसरा चेरापूंजी भी कहा जाता हैं। मानसून में अगर घर का दरवाज़ा खुला छोड़ दो तो बादल भी घर में चले आते हैं और कपड़ों को गीला कर जाते हैं। फ़ुई और फ़ंगस अक्सर दिख जाती हैं कपड़ों में।
    धम्मागिरी विपासना भी हैं वहा।
    यहाँ से कसार स्टेशन तक सभी ट्रेन में दो engine लगते हैं। दिलसे फ़िल्म के चल छैयाँ छैयाँ की शूटिंग यही की थी।
    नासिक में विश्व प्रसिद्ध सुला वाइन भी हैं।और पाण्डु लेनी गुफा , किसमिस बहुत अच्छी हैं वहा कि।

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  3. सर जी इगतपुरी एक बेहद खूबसूरत जगह है,खासकर मानसून में,लेकिन छैयां छैंया गाने की शूटिंग यहाँ नहीं हुई थी।इस गाने की शूटिंग Nilgiri Mountain Railway उंटी में हुई है।

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  4. Bhai apki marrige kb hue
    Please bataiye

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  5. बहुत ही मजेदार अनुभव अभी पिछले हफ्ते ही हमने भी त्रयम्बकेश्वर की यात्रा की है

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