पिछली पोस्ट हमने इन शब्दों के साथ समाप्त की थी कि भीमाशंकर मंदिर और यहाँ की व्यवस्थाओं ने हमें बिल्कुल भी प्रभावित नहीं किया। यह एक ज्योतिर्लिंग है और पूरे देश से श्रद्धालुओं का यहाँ आना लगा रहता है। वैसे तो यह भीड़भाड़ वाली जगह है, लेकिन आज भीड़ नहीं थी। ठीक इसी स्थान से भीमा नदी निकलती है, जो महाराष्ट्र के साथ-साथ कर्नाटक की भी एक मुख्य नदी है और जो आंध्र प्रदेश की सीमा के पास रायचूर में कृष्णा नदी में मिल जाती है। नदियों के उद्गम देखना हमेशा ही अच्छा अनुभव रहता है। यहाँ वडापाव खाते हुए भीमा को निकलते देखना वाकई अच्छा अनुभव था।
और रही बात भगवान शिव के दर्शनों की, तो खाली मंदिर में यूँ ही चहलकदमी करते-करते दर्शन हो गए। हाँ, बाहर निकाले जूतों की चिंता अवश्य सताती रही। एक नजर भगवान शिव पर, तो दूसरी नजर जूतों पर थी।
वडापाव समाप्त भी नहीं हुआ कि बहुत सारे श्रद्धालु आ गए। इनमें उम्रदराज महिलाएँ ज्यादा थीं और हम दोनों इस बात पर बहस कर रहे थे कि ये राजस्थान की हैं या मध्य प्रदेश की। सभी महिलाओं ने सहज भाव से भीमा उद्गम कुंड में स्नान किया और एक-दूसरी को एक-दूसरी की धोतियों से परदा देते हुए कपड़े भी बदल लिए। कुछ ने हमारी मोटरसाइकिल का परदा बना लिया और जब तक वे मोटरसाइकिल के पीछे से कपड़े बदलकर न निकल गईं, तब तक हमें प्रतीक्षा करनी पड़ी और एक-एक बड़ा कप चाय और एक-एक वडापाव और लेने पड़े।
“यार, आप लोग इतने नन्हें-नन्हें कप क्यों रखते हो चाय के लिए?”
“क्योंकि लोगों को चाय तो चाहिए, लेकिन एक घूँट से ज्यादा नहीं चाहिए।”
“तो हमारे लिए गिलास भरकर बनाना और मीठा तेज रखना।”
“अरे वाह सर... बड़े दिनों बाद कोई चायक्कड़ मिला है। आपको असली चाय पिलाऊँगा और शिशु-कपों के ही पैसे लूँगा।”
अब हमें पुणे की तरफ निकलना था और मोटरसाइकिल का हैंडल दीप्ति के हाथों में था और मैं उसे “ओये, धीरे चला... ओये, धीरे चला... ओये, धीरे चला” ही कहता रहा और वह सिंगल, टूटी, पहाड़ी सड़क पर ढलान पर अस्सी पार करने की कोशिश कर रही थी। आखिरकार भीमा नदी पर बने एक अत्यधिक खूबसूरत बाँध के किनारे थोड़े-से फोटो व थोड़ी-सी वीड़ियो बनाने के बाद मैंने कहा - “देख, तुझे अभी तेज चलती मोटरसाइकिल से गिरने का तजुर्बा नहीं है। और यह एक ऐसा तजुर्बा है, जो हमें लेना भी नहीं चाहिए। अगर मर गए, तब तो कोई बात नहीं... लेकिन अगर बच गए, तो जिंदगी में कभी मोटरसाइकिल चलाने लायक नहीं रहेंगे।”
इसके बाद उसने ठीक चलाई। पुणे-नासिक हाइवे पर राजगुरूनगर में बाइक मुझे मिली।
अब ट्रैफिक बहुत ज्यादा था। दोपहरी भी हो चुकी थी और हम वास्तव में इस ट्रैफिक से परेशान हो गए। पुणे के कुछ दर्शनीय स्थल देखने का इरादा था और थोड़ी चटोरपंती करने का भी मन था, लेकिन सीधे ही चलते रहे और बाहर ही बाहर पुणे पार कर गए।
अब हम पश्चिमी घाट से नीचे उतरकर कोंकण में प्रवेश कर रहे थे। इसे तामिनी घाट भी कहते हैं। यहीं पर मुलशी बांध है। यह बहुत बड़ा बांध है और बिजली भी बनाई जाती है। पश्चिमी घाट के सभी बांध अत्यधिक खूबसूरत हैं और सब के सब ‘फोटोजेनिक’ हैं। लेकिन हमारा दुर्भाग्य... हमारे पास इसका एक भी फोटो नहीं है। कल भीमाशंकर में कैमरे चार्ज नहीं हो पाए और आज थोड़ी देर चलते ही खत्म हो गए। मोबाइलों की भी तकरीबन यही कहानी है। हमें मुलशी बांध और तामिनी घाट अपनी आँखों से देखना पड़ा, जिसे हम आपको नहीं दिखा सकते।
लेकिन मानसून में अलग ही छटा होती है इन बांधों की। दूर तक फैला पानी और हरियाली।
शाम होते-होते पहुँच गए माणगाँव। यह मुंबई-गोवा मार्ग पर स्थित एक अच्छा कस्बा है और कोंकण रेलवे का एक स्टेशन भी है। वाहनों की भारी भीड़ थी। इधर भी लाइन और उधर भी लाइन। सड़क के बीच में ट्रैफिक पुलिस ने रस्सी बांधकर ‘डिवाइडर’ बना रखा था। जगह केवल इतनी ही थी कि बाइकों के अलावा कोई भी किसी को ओवरटेक नहीं कर सकता था।
अब हम कोंकण और घाट शब्दों का प्रयोग करते रहेंगे। उत्तर भारत में घाट का अर्थ होता है किसी नदी का किनारा या तालाब आदि का किनारा, जहाँ बैठकर स्नान किया जा सके। लेकिन यहाँ घाट का वो अर्थ नहीं है। यहाँ घाट का अर्थ पहाड़ है। पहाड़ी रास्ता - घुमावदार। सड़क के जितने भाग में पहाड़ी रास्ता होता है, उतने भाग को घाट कहते हैं। एक बार मुंबई के कुछ मित्र केदारनाथ जा रहे थे, तो उनकी जिज्ञासा थी - रास्ते में घाट कितने किलोमीटर है? यानी पहाड़ी रास्ता कितने किलोमीटर है?
तो उत्तर भारतीयों, घाट पढ़कर यह मत सोच लेना कि हमने मोटरसाइकिल तालाब में उतार दी या नदी में उतार दी या बांध में डुबा दी या समुद्र में तैरा दी।
इसी से पश्चिमी घाट नाम पड़ा। यह पश्चिमी समुद्र यानी अरब सागर से लगता हुआ है तो पश्चिमी घाट हुआ। एकदम पहाड़ हैं। समुद्र की तरफ से शुरू करेंगे तो 40-50 किलोमीटर तक औसत ऊँचाई 100 मीटर ही है। इसमें कहीं मैदान है और ज्यादातर छोटी-छोटी पहाड़ियाँ हैं। फिर भी इसे मैदान ही कहा जाता है - समुद्रतटीय मैदान। समूची कोंकण रेलवे लाइन इसी मैदान से होकर गुजरती है। इस समुद्रतटीय मैदान को ही कोंकण कहा जाता है। यह मुंबई से गोवा और आगे कर्नाटक तक फैला हुआ है। इस मैदान यानी कोंकण की लंबाई तो सैकड़ों किलोमीटर है, लेकिन चौड़ाई 40-50 किलोमीटर ही है। यानी यह बहुत संकरी लगभग मैदानी पट्टी है।
इस पट्टी से और आगे चलेंगे तो अचानक पहाड़ मिलेंगे। एकदम खड़े पहाड़। शुरूआती ऊँचाई 1000 मीटर। कहीं-कहीं 1500 मीटर और 2000 मीटर तक भी। ये पश्चिमी घाट के पर्वत हैं। कोंकण के मैदानी क्षेत्रों से पश्चिमी घाट के पहाड़ों में जाने के लिए जो भी पैदल रास्ते या सड़क मार्ग या रेलमार्ग बने हैं, उनके अलग-अलग ‘घाट’ नाम हैं। जैसे - मुंबई से भीमाशंकर जा रहे थे, तो मालशेज घाट से गए और आज पुणे से माणगाँव आ रहे थे तो तामिनी घाट से आए। इसी तरह के अन्य प्रसिद्ध घाट हैं - थल घाट, भोर घाट आदि। लगभग समूचा गोवा कोंकण में है, लेकिन दूधसागर जलप्रपात पश्चिमी घाट में है।
तो अब हमें लगता है कि आप कोंकण और घाट का अर्थ समझ गए होंगे।
और माणगाँव में वो सारी चटोरपंती कर ली, जो हम पुणे में नहीं कर पाए। एक शानदार रेस्टोरेंट में पनीर की सब्जी, रोटी, दाल आदि और एक शानदार होटल में 600 रुपये का कमरा।
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यहां चाय छोटे गिलास में ही पीते है जिसे कटिंग कहते है..अभी पिछले हफ्ते ही पहाड़ गंज में चाय पी एकदम मीठा तेज था सही कहा आपने आपके तरफ मीठा तेज चलता है
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteवाह साहब आप तो मेरे घर के एकदम करीब से गुजरे पहले मालूम होता तो आपकी आवभगत का अवसर मिलता ।
ReplyDeleteAre Bhai inhe ye mat kaho
DeleteJAHAN inki ichha hoti hai ye wahi jaate hai
EK baar Maine mere mobile number post kar inhe Jodhpur aate samay milane ko kaha that
Saheb Bina mile hi nikal liye
Ab Kya kar sakte hai
Bade blogger
Badi baaten
हा हा हा... ऐसी बात नहीं है... नौकरी के कारण समय की भारी कमी रहती है और अक्सर कार्यक्रम में बदलाव संभव नहीं हो पाता...
DeleteOk
DeleteLEKIN agali baar jab bhi jodhpur aao
Mujse jaroor miloge aur bhojan mere saath hi karoge
Ye Mera advance invitation hai
Mobile no. 94149-14104
Next time on JODHPUR visit please call me on my mobile no. 94149-14104
Deletewe will have lunch/dinner together
So don't forget
"मर गए, तब तो कोई बात नहीं... लेकिन अगर बच गए, तो जिंदगी में कभी मोटरसाइकिल चलाने लायक नहीं रहेंगे।”
ReplyDeleteये अजर अमर वाक्य हैं आपके। मेरे साथ ऐसा ही हो गया। मरा नही जिसकी वजह से अब बाइक चलाने लायक नही बचा। बड़ी टिश रहती है।