19 सितंबर 2018
हमें दिवेआगर बीच बहुत अच्छा लगा। चार किलोमीटर लंबा और काली रेत का यह बीच है। यहाँ ठहरने के लिए होमस्टे और होटल भी बहुत सारे हैं। यानी गुमनाम-सा होने के बावजूद भी यह उतना गुमनाम नहीं है। मुंबई से इसकी दूरी लगभग 150 किलोमीटर है और यहाँ होटलों की संख्या देखकर मुझे लगता है कि वीकेंड पर बहुत सारे यात्री आते होंगे। हम उत्तर भारतीयों ने तो गोवा के अलावा किसी अन्य स्थान का नाम ही नहीं सुना है, तो मेरी यह पोस्ट उत्तर भारतीयों के लिए है।
घूमना सीखिए...
चार किलोमीटर लंबे इस बीच पर आज अभी हमारे अलावा कोई भी नहीं था। साफ सुथरा, काली रेत का बीच और ढलान न के बराबर होने के कारण बड़ी दूर तक समुद्र का पानी उस तरह फैला था कि न तो उसमें पैर भीगते थे और न ही वह सूखा दिखता था। ऐसा लगता था जैसे काँच पर खड़े हों।
हर तरफ समुद्री जीवों के अवशेष थे और पक्षी उन्हें खाने के लिए मंडरा रहे थे। केवल पक्षी ही नहीं, केकड़े भी खूब दावत उड़ा रहे थे। इसी रेत में ये बिल बनाकर रहते हैं और किसी खतरे का आभास होते ही टेढ़ी चाल से दौड़ते हुए बिल में जा दुबकते हैं। इन्हें टेढ़े-टेढ़े दौड़ते देखना भी खासा मजेदार होता है। दीप्ति ने बताया कि केकड़े घोंघे को खाकर उसका खोल ओढ़ लेते हैं और खोल समेत ही समुद्र में विचरण करते हैं। इन्हें देखकर दूसरे घोंघे इन्हें अपना भाई समझ बैठते हैं और इस तरह केकड़े की दावत चलती रहती है। फिलहाल बीच पर बहुत सारी मछलियाँ मरी पड़ी थीं। गौरतलब है कि समुद्र कुछ भी अपने अंदर नहीं रखता है। जो मर जाता है, उसे समुद्र बाहर फेंक देता है। हर एक बीच पर आपको मरी हुई मछलियाँ, सीपियाँ आदि मिल जाएँगे।
यहाँ से जाने का मन तो नहीं था, लेकिन जाना तो था ही। यह कोंकण में हमारा देखा पहला बीच था। वाकई हमें बड़ी खुशी मिली। मेरे लिए अभी तक सभी समुद्री बीच एक जैसे होते थे। हम सोचते थे कि पता नहीं लोगों को क्या मजा आता है बीचों पर... और जब कोई कहता कि यह बीच ऐसा है और वह बीच वैसा है, तो हम मजाक उड़ाते थे कि भला बीच-बीच में भी कोई अंतर होता है? सभी बीच तो एक-से ही होते हैं।
आज कुछ-कुछ महसूस हुआ कि अंतर होता है। क्या अंतर होता है, यह तो अभी तक नहीं पता चला, लेकिन इतना एहसास जरूर होने लगा कि कुछ तो अंतर होता ही है।
या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि हमें कोंकण में घूमना है और कोंकण की यात्रा बीच के बिना अधूरी है। हमें अभी इस यात्रा में बहुत सारे बीच देखने हैं। कहीं एकरसता न हो जाए, तो मन ने मानना शुरू कर दिया कि इनमें अंतर होता है। अंतर होता है - तभी तो हरेक बीच देखना नया अनुभव होगा। अगर अंतर ही नहीं होगा, तो वो नया अनुभव नहीं मिल पाएगा। हर बार नया अनुभव मिले, इसलिए मन मानने लगा कि अंतर होता है।
खैर, जो भी हो, यह हमारे लिए अच्छा था।
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सोलहवाँ फोटो सबसे सुंदर बन पड़ा है,यही होती है फोटोग्राफी की कला।
ReplyDeleteजहां भी जाये वहां का 360° फोटो खींचकर अपलोड करा करे। बाकी सब बढिया है।
ReplyDeleteसचमुच् ये बीच कुछ अलग सा है । समतल भूमि के कारण किसी बड़ी नदी का तट सा लग रहा है ।
ReplyDeleteVery very nice pics .dead fish ki bad smell to hoti hogi.
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