10 जून 2015
सात बजे सोकर उठे। हम चाहते तो बडी आसानी से गर्म पानी उपलब्ध हो जाता लेकिन हमने नहीं चाहा। नहाने से बच गये। ताजा पानी बेहद ठण्डा था।
जहां हमने टैंट लगाया था, वहां बल्ब नहीं जल रहा था। रात पुजारीजी ने बहुत कोशिश कर ली लेकिन सफल नहीं हुए। अब हमने उसे देखा। पाया कि तार बहुत पुराना हो चुका था और एक जगह हमें लगा कि वहां से टूट गया है। वहां एक जोड था और उसे पन्नी से बांधा हुआ था। उसे ठीक करने की जिम्मेदारी मैंने ली। वहीं रखे एक ड्रम पर चढकर तार ठीक किया लेकिन फिर भी बल्ब नहीं जला। बल्ब खराब है- यह सोचकर उसे भी बदला, फिर भी नहीं जला। और गौर की तो पाया कि बल्ब का होल्डर अन्दर से टूटा है। उसे उसी समय बदलना उपयुक्त नहीं लगा और बिजली मरम्मत का काम जैसा था, वैसा ही छोड दिया।
आज सामान बांधने में एक परिवर्तन किया। अभी तक हम अपनी बाइक पर तीनों मैट्रेस और एक स्लीपिंग बैग बांधते आ रहे थे। एक टैंट हमारे बैग के अन्दर था जबकि कोठारी जी वाला टैंट उन्हीं के पास था। दो स्लीपिंग बैग कोठारी जी के साथ थे। हम पहले मुख्य बैग बांधते थे, उसके ऊपर मैट्रेस और छोटा बैग बांध देते थे। स्लीपिंग बैग और एक मैट्रेस साइड में साइलेंसर के दूसरी तरफ बांधते थे। यही सिस्टम कोठारी जी की बाइक पर भी था। उनके मुख्य बैग के ऊपर दो स्लीपिंग बैग बंधे होते थे। ऐसा होने से सामान का गुरुत्व केन्द्र ऊपर हो जाता है और सामान ज्यादा असन्तुलित हो जाता है। तय किया कि जितना सम्भव होगा, गुरुत्व केन्द्र नीचे रखेंगे। इसके लिये साइड में ज्यादा से ज्यादा सामान बांधना पडेगा, बैग के ऊपर कम से कम। साइड में ज्यादा गुंजाइश तो नहीं थी लेकिन फिर भी हमने अपनी बाइक पर दो स्लीपिंग बैग और एक मैट्रेस साइड में बांध दिये। कोठारी साहब की बाइक की साइड में एक टैंट, एक स्लीपिंग बैग और एक मैट्रेस बंध गये। अब ऊपर के लिये बहुत ही कम सामान बचा। यह तरकीब इतनी कामयाब रही कि अगले पन्द्रह दिनों तक इसी तरह सामान बांधा। सामान जैसा बांधते, शाम को वैसा ही मिलता। इंच भर भी नहीं हिलता।
साढे नौ बजे यहां से चल पडे। चार किलोमीटर आगे आईटीबीपी की चेकपोस्ट है जहां हर आने-जाने वाले की एण्ट्री की जाती है। जवान हमें यहां आया देखकर बेहद खुश थे और चाय का ऑफर दिया। हमने केवल पानी स्वीकार किया।
इसके बाद रास्ता कहीं-कहीं अच्छा है, कहीं कहीं खराब है लेकिन चढाई जारी रहती है। पारना से 19 किलोमीटर आगे सिंथन मैदान नामक जगह आती है। इसकी ऊंचाई 2940 मीटर है जबकि पारना 1960 मीटर पर था। अर्थात 19 किलोमीटर में 1000 मीटर का इजाफा हुआ। फिर मौसम भी खराब होने लगा और तेज हवा चलने लगी। जैसे ही सिंथन मैदान पहुंचे, बारिश शुरू हो गई।
यहां सेना का ठिकाना है और खाने-पीने की दुकानें भी। श्रीनगर-किश्तवाड के बीच चलने वाली गाडियां यहीं रुककर जलपान ग्रहण करती हैं। कल अगर पता होता कि यहां ऐसा इंतजाम है तो हम पारना न रुकते। यहीं आते और खूब खाते पीते। खैर, कल की कमी अब पूरी की। जमकर खाया।
कश्मीरी रुमाली रोटी मैंने पहले भी खाई है और मुझे यह अच्छी लगती है। यहां ताजी रोटियां बनाई जा रही थीं। पहले तो हमने खुवान, कुल्चे और चाय पी। लेकिन जब पेट नहीं भरा तो मैंने और निशा ने तय किया कि एक रोटी खाते हैं। ये रोटियां काफी बडी होती हैं और हमें लग रहा था कि एक रोटी हम दोनों के लिये पर्याप्त होगी। राजमा-रोटी ले लिये। राजमा भी बेहद स्वादिष्ट बना था और रोटी की तो पूछो ही मत। ऐसा जायका बना कि हम तीन कटोरी राजमा खा गये और पांच रोटियां। इसके बाद भी मन कर रहा था कि और खायें लेकिन पेट में जगह नहीं बची थी।
सिंथन टॉप अब दिखने लगा था। मैदान से इसकी दूरी 20 किलोमीटर है। लेकिन जैसे जैसे आगे बढते हैं, रास्ता खराब होता जाता है। मौसम तो खराब था ही। शुरू में बारिश के साथ बजरी गिरी, फिर रुक-रुक कर बारिश होती रही। बजरी गिरने का अर्थ ही है कि तूफानी हवा चल रही थी।
एक मोड पर फोटो खींचने रुके तो बाइक में से सर्र-सर्र की आवाज सुनाई पडी। खोजबीन की तो पिछले पहिये में पंचर मिला। ट्यूबलेस टायर था, इसलिये कुछ दूर और चल सकती है- शायद टॉप तक भी। यहां कीचड में बैठकर पंचर लगाने से बेहतर है कि उस तरफ पहुंचकर लगाया जाये। बताते हैं कि उधर सडक अच्छी है।
जैसे जैसे ऊपर चढते जा रहे थे, बर्फ भी बढती जा रही थी। बर्फ से कच्चे रास्ते में कीचड हो गया था। हमें पूरी तरह इस कीचड में चलना पडा। कई बार तो निशा को नीचे भी उतरना पडा।
छह-सात किलोमीटर के बाद देखा कि टायर में हवा काफी कम रह गई है। सोचा कि कुछ हवा भर लेते हैं, ऊपर तक पहुंचने का काम हो जायेगा। लेकिन जब हवा भरने लगे तो यह साथ के साथ निकलती गई। अर्थात पंचर लगाना ही पडेगा। इसके बाद ज्यादा देर और ज्यादा मेहनत तो नहीं लगी लेकिन 3600 मीटर की ऊंचाई, खराब मौसम व तूफानी हवा ने बडी मुश्किल पैदा की।
पंचर लगाकर चले तो फिर मूसलाधार बारिश होने लगी। कीचड भी बढने लगा। हवा इतनी तेज थी कि मैं एक गड्ढे से बचने की कोशिश करता और हवा हमें उसी गड्ढे में धकेल देती। सन्तुलन बनाना बडा मुश्किल हो रहा था। कई बार बाइक बन्द हो जाती और कई बार ‘हाफ क्लच’ में चलानी पडती।
आखिरकार ढाई बजे सिंथन टॉप पर पहुंच गये। बाइक एक तरफ खडी की और एक चट्टान की ओट में बैठ गये। हाथों की उंगलियां ठण्ड के कारण सुन्न होने लगी थीं। यहां हवा की रफ्तार चरम पर थी। दृश्यता पांच मीटर ही थी। कुछ कार वाले भी अपनी कारों के अन्दर सिकुडे बैठे थे। दृश्यता बढेगी, तब वे चलेंगे।
कोठारी साहब सिंथन मैदान के बाद से ही हमसे आगे थे। हम खूब रुकते- आखिर नवविवाहित जोडा था, हनीमून जैसा भी कुछ होता है। बर्फ मिली तो फोटो खींचते, बर्फ पर नाम लिखते। फिर पंचर की वजह से और विलम्ब हो गया। सिंथन टॉप तक कोठारी साहब नहीं मिले। लेकिन इतना निश्चित था कि वे जहां भी होंगे, हमसे बेहतर ही होंगे।
पन्द्रह मिनट तक हाथ बगल में दबाये बैठे रहे, तब उंगलियों में गर्मी आनी शुरू हुई। फटाफट यहां के दो-चार फोटो खींचे और आगे बढ चले।
सिंथन टॉप के बाद कश्मीर आरम्भ हो जाता है। जम्मू क्षेत्र पीछे छूट जाता है। साथ ही एक परिवर्तन और भी आता है। और वो परिवर्तन है शानदार सडक। जहां जम्मू क्षेत्र में सडक के नाम पर कीचड वाला कच्चा रास्ता था, वहीं यहां कश्मीर में ऐसी सडक कि ढूंढे से भी कोई गड्ढा नहीं मिलता। वाकई यह जम्मू के साथ अन्याय है। इससे जम्मू तो आहत होगा ही। ज्यादातर लोग कश्मीर की तरफ से सिंथन टॉप देखने आते हैं और उधर ही लौट जाते हैं।
अब तो नीचे ही उतरना था। जैसे जैसे नीचे उतरते गये, हवा भी शान्त होती गई और बादल भी छंटते गये। कश्मीर की सुन्दरता अब सामने आती जा रही थी। दाकसुम में कोठारी साहब मिले। उन्होंने बताया कि वे डेढ घण्टे पहले दाकसुम आ गये थे और हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे। हमें लग रहा था कि वे खराब रास्ते पर बहुत परेशान हुए होंगे, लेकिन उन्होंने खुशी से उछलते हुए कहा- नीरज, कीचड तो था लेकिन मजा आ गया वहां बाइक चलाने में। ऐसा मजा जयपुर से यहां तक कहीं नहीं आया। ठण्ड से बुरी हालत थी। यहां आकर इन लोगों ने मुझे डांगरी और कांगडी दी। बाद में निशा ने कहा- कोठारी साहब तो लौंडे हो गये हैं।
भूख लगी थी। हम एक दुकान में खाने के लिये रुक गये। कोठारी साहब को मोबाइल चार्ज करना था। दाकसुम में इस समय बिजली नहीं थी। बडा शहर अनन्तनाग यहां से 40 किलोमीटर दूर है। कोठारी साहब अनन्तनाग में मिलने की कहकर चले गये। जब तक हम खाना खायेंगे और अनन्तनाग पहुंचेंगे, तब तक उनका मोबाइल कुछ चार्ज हो जायेगा।
शाम के साढे पांच बज गये थे जब हम दाकसुम से चले। मौसम अभी भी ठीक नहीं हुआ था और बूंदाबांदी हो रही थी। कुछ देर तो रुके लेकिन आखिरकार चलना पडा। पिछले कई घण्टों से भीगते रहने के कारण मोबाइल भी भीग गया था और बन्द हो गया था। अब न कॉल कर सकता था और न ही गूगल मैप खोल सकता था। अनन्तनाग मैदान में स्थित है और कुछ डायवर्जन भी है। पूछते-पाछते अनन्तनाग पहुंचे। शहर में रास्ते की बडी खराब हालत थी, जगह-जगह पानी भरा था और ट्रैफिक भी खूब था। खराब सडक और ट्रैफिक में धीरे-धीरे चलते रहे। इसी बीच कोठारी साहब कहीं छूट गये।
खन्नाबल पहुंचे। इसके बाद श्रीनगर तक तो अपना जाना-पहचाना रास्ता है। खन्नाबल में जम्मू से आने वाला मुख्य राजमार्ग भी मिल जाता है। एक दुकान पर रुककर बाइक की हवा ठीक करवाई। सिंथन टॉप पर भले ही पंचर लगा लिया हो, हवा भर ली हो लेकिन उतनी हवा नहीं थी जितनी होनी चाहिये। हम हवा भरवा ही रहे थे कि कोठारी साहब श्रीनगर की तरफ तेजी से जाते दिखे। उनके इस तरह जाने का एक ही अर्थ था कि हम भले ही अनन्तनाग में उन्हें न देख पायें हों लेकिन उन्होंने हमें देख लिया था। लेकिन यहां खन्नाबल में वे हमें नहीं देख पाये और हमसे आगे निकल गये।
अब हम उनके पीछे लग लिये। डर ये था कि जब तक इस राजमार्ग पर हैं, तब तक तो कोई बात नहीं, लेकिन एक बार श्रीनगर की भीड में पहुंच गये तो हम फिर नहीं मिलने वाले। मेरे पास उनका प्री-पेड नम्बर था जो यहां काम नहीं कर रहा था। हालांकि उनका एक दूसरा नम्बर पोस्ट-पेड हो चुका था लेकिन वो मेरे पास नहीं था।
अवन्तीपुरा से निकलकर जब अन्धेरा होने लगा तो मोबाइल चालू करने की एक कोशिश और की और यह चालू हो गया। तुरन्त कोठारी साहब से बात की और पाम्पोर से दो किलोमीटर पहले हम मिल गये। अब तक अन्धेरा हो चुका था। तय हुआ कि हम आगे रहेंगे और कोठारी साहब पीछे। जहां भी रुकना होगा, रुक लेंगे।
पाम्पोर के बाद ट्रैफिक भयंकर हो गया। हम रुके बाईपास पर और कोठारी साहब की प्रतीक्षा करने लगे। कुछ देर प्रतीक्षा की, फिर मोबाइल देखा तो वो पुनः बन्द हो गया था। इसके बाद यह कभी चालू नहीं हुआ। 15-20 मिनट प्रतीक्षा करने के बाद हम फिर चल पडे। सोचा कि कोठारी साहब ट्रैफिक और अन्धेरे में आगे निकल गये हैं। तभी एक स्थानीय बाइक वाला आया और कमरे की बात करने लगा। हमें कमरा नहीं चाहिये- यह कहकर मुश्किल से पीछा छुडाया। कुछ देर बाद एक बाइक वाला और आया। उससे हमने पूछा कि क्या कोई राजस्थान नम्बर की बाइक आगे गई है? उसने अनभिज्ञता दिखा दी। हमने कहा कि एक बाइक पीछे आयेगी तो उनके साथ डलगेट पर आ जाना। हम तुम्हारे ही होटल में रुकेंगे।
बादामी बाग से आगे निकलकर गलत रास्ता पकड लिया। गूगल मैप की कमी खल रही थी। डलगेट की बजाय टीआरसी पहुंच गये। यहां से डलगेट का रास्ता मुझे मालूम है। लेकिन पता नहीं कहां जाकर फिर से गलत रास्ता पकड लिया। रात के दस बज चुके थे। अब हमें जो भी पहला होटल मिला, उसी में 800 रुपये का कमरा लेकर रुक गये।
पारना गांव |
मन्दिर के नीचे हमारा ठिकाना |
बिजली ठीक करते हुए |
चलने की तैयारी |
सामने दिख रहा है सिंथन टॉप और वहां जाती सडक भी। |
स्वादिष्ट और मीठा खुवान |
रोटियां |
सिंथन मैदान |
बर्फ मिलनी शुरू हो गई |
नेशनल हाईवे 1B |
यहां पंचर ठीक किया था। |
पंचर ठीक करते हुए |
ट्यूबलेस का पंचर ऐसे ही ठीक होता है। जो पंचर है, उसे और बडा किया जाता है। |
फिर उसमें जबरदस्ती करके एक विशेष चिपचिपा टुकडा घुसा दिया जाता है। बस लग गया पंचर। |
और आखिर में हवा भरी जाती है। |
यही वो चिपचिपा टुकडा है। यह आधा टायर के अन्दर रहेगा और आधा बाहर। इससे पंचर वाला छेद पूरी तरह बन्द हो जाता है। |
यही है सिंथन टॉप- जम्मू और कश्मीर की सीमा। |
कश्मीर की तरफ शानदार सडक बनी है। |
दाकसुम में |
1. लद्दाख बाइक यात्रा-1 (तैयारी)
2. लद्दाख बाइक यात्रा-2 (दिल्ली से जम्मू)
3. लद्दाख बाइक यात्रा-3 (जम्मू से बटोट)
4. लद्दाख बाइक यात्रा-4 (बटोट-डोडा-किश्तवाड-पारना)
5. लद्दाख बाइक यात्रा-5 (पारना-सिंथन टॉप-श्रीनगर)
6. लद्दाख बाइक यात्रा-6 (श्रीनगर-सोनमर्ग-जोजीला-द्रास)
7. लद्दाख बाइक यात्रा-7 (द्रास-कारगिल-बटालिक)
8. लद्दाख बाइक यात्रा-8 (बटालिक-खालसी)
9. लद्दाख बाइक यात्रा-9 (खालसी-हनुपट्टा-शिरशिरला)
10. लद्दाख बाइक यात्रा-10 (शिरशिरला-खालसी)
11. लद्दाख बाइक यात्रा-11 (खालसी-लेह)
12. लद्दाख बाइक यात्रा-12 (लेह-खारदुंगला)
13. लद्दाख बाइक यात्रा-13 (लेह-चांगला)
14. लद्दाख बाइक यात्रा-14 (चांगला-पेंगोंग)
15. लद्दाख बाइक यात्रा-15 (पेंगोंग झील- लुकुंग से मेरक)
16. लद्दाख बाइक यात्रा-16 (मेरक-चुशुल-सागा ला-लोमा)
17. लद्दाख बाइक यात्रा-17 (लोमा-हनले-लोमा-माहे)
18. लद्दाख बाइक यात्रा-18 (माहे-शो मोरीरी-शो कार)
19. लद्दाख बाइक यात्रा-19 (शो कार-डेबरिंग-पांग-सरचू-भरतपुर)
20. लद्दाख बाइक यात्रा-20 (भरतपुर-केलांग)
21. लद्दाख बाइक यात्रा-21 (केलांग-मनाली-ऊना-दिल्ली)
22. लद्दाख बाइक यात्रा का कुल खर्च
good pictures, very good writing, very very good informations.
ReplyDeleteGreat going. Waiting for next post.
धन्यवाद अरुण जी...
Deleteबहुत ही रोचक और ज्ञान प्रद जानकारी के साथ असधारण यात्रा वृत्तांत।
ReplyDeleteमजा आ गया ।
धन्यवाद चौधरी साहब...
Deleteबहुत ही रोचक और ज्ञान प्रद जानकारी के साथ असधारण यात्रा वृत्तांत।
ReplyDeleteमजा आ गया ।
बढ़िया पोस्ट भाई !
ReplyDeleteआप का तो जन्म सफल है , कितनी खुबसूरत दुनिया देख रहे हो
विडियो तो बस लाजवाब है क्या कहने :)
धन्यवाद पाण्डेय साहब...
DeleteFully enjoyed ur post !
ReplyDeleteधन्यवाद महेश जी...
Deleteनीरज भाई अपना ये सफर जल्दी बंद मत करियेगा .....हम जैसों का बहुत नुुुकसान होगा.......
ReplyDeleteअभी दो महीनों तक यह सफर बन्द नहीं हो रहा... आनन्द लेते रहिये।
Deleteफोटोज के साथ vedios का मिश्रण अच्छा है। फोटोज निहायत ही खूबसूरत हैं।
ReplyDeleteपंचर लगाना सीखाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!
आपका भी बहुत बहुत धन्यवाद सलाहुद्दीन साहब...
Deletegood pictures, very good writing
ReplyDeleteधन्यवाद मुकेश जी...
Deleteअति सुन्दर एवं ज्ञान वर्धक वृत्तान्त, आपकी यात्रा निर्बाध यूँही चलती रहे और हमारा ज्ञान वर्धन होता रहे l साधुवाद
ReplyDeleteधन्यवाद गिरीराज जी...
DeleteNeeraj bhai aaj pure paese vasool ho gye hamare.
ReplyDeletephotos ns videos kamaal k h
maza aa gya iss post m.
Aapko aur bhabhiji ko bahut bahut shubhkaamnayen.
धन्यवाद रिंकू भाई... आज पूरे पैसे वसूल हुए हैं... लेकिन पूरे पैसे हर पोस्ट में वसूल होंगे। यह लद्दाख यात्रा है और अभी तक हम लद्दाख भी नहीं पहुंचे हैं।
Deleteयार नीरज यह तो वाकई जम्मू के साथ गलत हो रहा है। बताओ जम्मू में सडक की.क्या हालत थी सडक क्या किचड ही था पर जहां कश्मीर चालू हुआ वहा सडक इतनी,शानदार बनी है।
ReplyDeleteबिजेपी की सरकार को जम्मू के,बारे मे भी सोचना चाहिए।
फोटो मस्त है। आगे के लेख का इंतजार रहेगा।
बिल्कुल सही कहा सचिन भाई... जम्मू इसी की शिकायत करता है।
Deleteअविस्मरणीय....!!
ReplyDeleteविडीयो व फ़ोटोज शानदार आये हैं। इन्हें देखकर समझा जा सकता है कि इस क्षेत्र में प्रकृति कितनी मेहरबाँ है व रास्ता कितना दुश्वार था।
बिल्कुल ठीक कोठारी साहब...
DeleteMAJA AA GAYA
ReplyDeleteधन्यवाद चौधरी साहब...
DeleteMAJA AA GAYA
ReplyDeleteराजस्व इकठ्ठा होता हैं जम्मू से, पैसा लगता हैं कश्मीर में. केंद्र जो पैसा भेजता हैं, मात्र १०% जम्मू में लगता हैं. जम्मू के साथ यह भेदभाव १९४७ से ही हैं. जम्मू हिन्दू बहुल हैं, कश्मीर मुस्लिम बहुल. पर हमारे हिन्दू विरोधी नेताओं को ये सब थोड़े ही दिखाई देता हैं. नीरज जी आपने अपने द्वारा एक बिलकुल नए क्षेत्र की यात्रा कराई धन्यवाद. चलते रहो....वन्देमातरम...
ReplyDeleteसही कहा गुप्ता जी... धन्यवाद आपका...
Deletevery good and informative matter including new bijli master and tube repair master.shandar photos and videos.
ReplyDeleteहा हा हा... धन्यवाद सर जी...
DeleteNeeraj Bhai. Video se kathanak aur jeevant ho utha hai......Prateet hota hai swaym ghoom rahe hon..
ReplyDeleteधन्यवाद आलोक जी...
DeleteHamesha ki tarah ananddayak post .vakai jammu ke sath bhedbhav hota hai
ReplyDeleteधन्यवाद कुशवाहा साहब...
Deleteइतना शानदार कीचड़ वाला नैशनल हाईवे पहली बार देखा !
ReplyDeleteहा हा हा... सही कहा भाई...
Deleteआप मोबाइल व कैमरा चार्ज के लिए पावर बैंक क्यों नहीं रखते हैं ? … ..नुकसान हमें हो रहा है, कम फोटो का
ReplyDeleteनुकसान??? आपको पता भी है कितने फोटो हैं इस पोस्ट में??? पूरे पचास फोटो हैं, इतने फोटो कभी किसी पोस्ट में नहीं लगाये।
Deleteकम फोटो की शिकायत है तो बन्द करिये यहां आना... हम तो कम ही फोटो लगायेंगे...
Sorry, नीरज जी कृपया बुरा मत मानिये,
Deleteआपकी यात्राओं का वर्णन व छायांकन बहुत ही सुन्दर है, इसलिए भावुकतावश… ..
This comment has been removed by the author.
Deleteसर जी, जब भी कम फोटो होते हैं, मैं स्वयं ही कम फोटो होने की बात मान लेता हूं। लेकिन आज तो इतने फोटो थे कि कभी इतने फोटो नहीं आये। फिर भी अगर कम फोटो होने की शिकायत मिलती है तो मुझे अच्छा नहीं लगता। मैंने जो भी कुछ कहा, उसके लिये क्षमाप्रार्थी हूं।
Deleteसिंथन टॉप पसंद आया और उसपर हर छोटी से छोटी चीज पर आपकी विशेषज्ञ टिपण्णी, सोने पे सुहागा
ReplyDeleteएक सामान्य सवाल : आप फोटो किस मोड में खींचते हो.
ज्यादातर फोटो मैन्युअल मोड में और कुछ ऑटो मोड में भी... बाद में घर आकर थोडी सी एडिटिंग करता हूं ताकि फीके दिख रहे फोटो के रंग निखरकर सामने आ जायें।
Deletetour ke saath-saath bahut saari jankaari bhi de dete ho neeraj....good work...............ANURAG
ReplyDeleteधन्यवाद अनुराग जी...
Deleteneeraj bhai me vidio nahi dekh pa rha hu apne system par kya karna hoga.
ReplyDeleteये वीडियो यू-ट्यूब पर हैं। क्या आपके सिस्टम में यू-ट्यूब चलता है? कभी-कभी यू-ट्यूब नहीं चलता। उसके लिये शायद कुछ सेटिंग में बदलाव करना होता है। ज्यादा नहीं जानकारी मुझे।
Deleteबढ़िया पोस्ट भाई
ReplyDeleteजगह बहुत खूबसूरत है मगर रास्ता काफी ख़राब है
धन्यवाद चौधरी साहब...
Deleteतस्वीरें सुंदर ह
ReplyDeleteधन्यवाद जीशान जी...
DeleteLadhakh trip ki jayada photos lagana
ReplyDeleteफोटो के बारे में कहने की जरुरत ही नहीं है। मुझे जितने लगाने हैं, मैं लगाऊंगा।
Deleteलद्दाख बाइक यात्रा-5 (पारना-सिंथन टॉप-श्रीनगर) yatra ka pura varnan padha bahut achcha laga. Nisha ki himmat par hame bahut hi garv hai. लद्दाख यात्रा aapke liye bahut hi sukhad, aur mangalmaya ho. God bless u both Neeraj and Nisha. Nisha Beta keep it up. I proud of u.
ReplyDeleteगोसाईं साहब, आपका बहुत बहुत धन्यवाद। आपका सन्देश निशा तक पहुंचा दिया है। प्रणाम कर रही है।
DeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteबहुत ही रोचक यात्रा वृतांत .... सिंधन पसंद आया.... |
ReplyDeleteफोटो भी हमेशा की तरह लाजबाब लगे....
Neeraj ji, you are a very adventurous person. Travel more, write more..
ReplyDeleteWow...very interesting post with stunning pics.
ReplyDeleteThanks,
Neeraj Ji, aapka yeh shandaar journey ko salute!! Best post laga mujhe!!
ReplyDeleteगजब !!!!! ये मौसम और ये रास्ते !!!
ReplyDelete