यह साल बड़ा ही उलट-पुलट भरा रहा। जहाँ एवरेस्ट बेस कैंप जैसी बड़ी और यादगार यात्रा हुई, वहीं मणिमहेश परिक्रमा जैसी हिला देने वाली यात्रा भी हुई। इस वर्ष बाकी वर्षों के मुकाबले ऑफिस से सबसे ज्यादा छुट्टियाँ लीं और संख्यात्मक दृष्टि से सबसे कम यात्राएँ हुईं। केवल नौ बार बाहर जाना हुआ, जिनमें छह बड़ी यात्राएँ थीं और तीन छोटी। बड़ी यात्राएँ मलतब एक सप्ताह या उससे ज्यादा। इस बार न छुटपुट यात्राएँ हुईं और न ही उतनी ट्रेनयात्राएँ। जबकि दो-दिनी, तीन-दिनी छोटी यात्राएँ भी कई बार बड़ी यात्रा से ज्यादा अच्छे फल प्रदान कर जाती हैं।
ज्यादा न लिखते हुए मुख्य विषय पर आते हैं:
1. जनवरी में स्पीति यात्रा (4 से 12 जनवरी) - इंदौर के सदाबहार मित्र डॉ. सुमित शर्मा के साथ
जनवरी में लद्दाख तो काफ़ी पहले देख चुका था। इस बार स्पीति देखने की इच्छा थी। शिमला, किन्नौर होते हुए स्पीति का रास्ता सालभर खुला रहता है, बशर्ते कि सर्दियों में बहुत ज्यादा बर्फ़बारी न हो। यदि ज्यादा बर्फ़बारी हो भी जाये, तो भी यह रास्ता एकाध दिन के लिये ही बंद रहता है। रीकांग पीओ से काज़ा तक आना-जाना बस से किया। काज़ा देखना, लोसर देखना और फिर की मोनेस्ट्री व किब्बर गाँव का भ्रमण यादगार रहा। लेकिन योजना बनाने में कमी और यातायात के अत्यधिक सीमित साधनों के कारण हम इस यात्रा का उतना आनंद नहीं ले पाये, जितना लेना चाहिये था। शहरों में रहते हुए हमेशा कुछ न कुछ करने की आदत पड़ी रहती है, हमेशा व्यस्त रहने की आदत रहती है। स्पीति में मामला उलट था। वहाँ कुछ भी काम नहीं था - कुछ भी नहीं। शायद हमारी इस व्यस्त रहने की आदत के चलते स्पीति दो दिनों के बाद ही बोरियत भरा लगने लगा।
इस यात्रा के बाद एहसास हुआ कि बिजनेस करना मेरा स्वभाव नहीं है। नागटिब्बा जाना इसी का एक हिस्सा था। एक ट्रैकिंग टूर डिजाइन किया था। नागटिब्बा जाना बेहद आसान है, इसलिये जिसने पहले कभी ट्रैकिंग नहीं की, उसके लिये भी यह ट्रैक सर्वोत्तम है। लखनऊ के पंकज जी ने इसके लिये तय राशि का भुगतान किया था, जबकि बाकी कई अन्य मित्र ‘अपना खर्चा अपने आप’ वाले थे। बर्फ़बारी अभी तक नहीं हुई थी, इसलिये यह ‘विंटर ट्रैक’ उतना मज़ेदार नहीं बन सका, जितनी कल्पना की थी।
असल में हमें इस दौरान शिमला जाना था - अपनी पहली सालगिरह मनाने। नई दिल्ली से कालका तक शताब्दी एक्सप्रेस में आरक्षण था और कालका से शिमला तक हिमालयन क्वीन एक्सप्रेस में। लेकिन हम लेट हो गये और शताब्दी छूट गयी। साथ जाने वालों में नोयड़ा के रहने वाले साढ़ू-कम-मित्र नरेंद्र और उनकी पत्नी शामिल थे। ट्रेन छूट गयी तो आनन-फानन में कार्यक्रम में तब्दीली की और बाइक उठा ली। देवप्रयाग होते हुए चंद्रबदनी पहुँचे। फिर लंबगाँव होते हुए नचिकेता ताल। थोड़ी-सी बर्फ़ मिली, जहाँ दोनों परिवारों में अच्छी-खासी मस्ती की। भागमभाग का कार्यक्रम था, फिर भी यह लघु यात्रा अच्छी रही।
मार्च आते-आते मौसम में गर्मी आने लगती है और मेरा मन ट्रेन यात्रा करने का होने लगता है। पूरे सप्ताह की छुट्टियाँ ली और पहुँच गया पश्चिम रेलवे के बिलीमोरा जंक्शन पर। फिर तो पश्चिम रेलवे की मुंबई डिवीजन और वडोदरा डिवीजन की सभी नैरोगेज लाइनों पर यात्रा कर डाली। विमलेश जी के सहयोग से यह यात्रा बेहद यादगार रही। इसका विस्तृत वर्णन आप पढ़ ही चुके होंगे।
5. एवरेस्ट बेसकैंप ट्रैकिंग (9 मई से 7 जून)
निशा के साथ की गयी यह यात्रा बेशक इस साल की और अभी तक पूरी जिंदगी की एक यादगार यात्रा भी थी और उपलब्धि भी थी। जिस तरह प्रत्येक पर्वतारोही का सपना होता है माउंट एवरेस्ट के शिखर पर चढ़ना, उसी तरह प्रत्येक ट्रैकर का सपना होता है एवरेस्ट बेसकैंप तक जाना। कोठारी जी ने भी एक सप्ताह तक साथ दिया, लेकिन एक दिन वे भी वापस मुड़ गये। एवरेस्ट बेसकैंप के अलावा जिस एक अन्य स्थान पर भी जाना हुआ, वो सही मायनों में बेसकैंप से इक्कीस ही थी। ये थीं गोक्यो झीलें। 4500 मीटर से ऊपर स्थित ये झीलें वाकई नेपाल और हिमालय का नगीना हैं। हम तीन ही झीलें देख पाये, जबकि यहाँ पाँच झीलें हैं। और गोक्यो व खुंबू के बीच में स्थित चो-ला दर्रा - अभी भी इसे पार करना ज्यों का त्यों याद है। ख़राब मौसम में इसे पार करना बेहद कठिन था। इसका यात्रा-वृत्तांत अभी ब्लॉग पर प्रकाशित नहीं किया है। पहले इसे पुस्तकाकार करने की योजना है, लेकिन किन्हीं कारणों से इसमें लगातार विलंब होता जा रहा है। फिलहाल पूरा यात्रा-वृत्तांत लगभग लिखा जा चुका है। एक-दो बार इसे दोहराऊँगा, कुछ करेक्शन करूँगा और प्रकाशक को भेज दूँगा। पुस्तक छप जाने के बाद ही इसे अत्यधिक संक्षेप में ब्लॉग में भी प्रकाशित करूँगा। ऐसी योजना है।
इसमें निशा तो साथ थी ही - धीरज, मनीष और राहुल भी साथ थे। कुल पाँच जने गये थे और वापस लौटे चार। राहुल जीवित नहीं लौट सका। जितना मुश्किल यह ट्रैक था, उससे भी ज्यादा मुश्किल था इसके बाद के हालातों से गुज़रना। बस यही कामना करता हूँ कि किसी भी यात्रा-दल में जितने भी सदस्य जायें, उतने ही वापस भी लौटें। किसी के साथ कोई हादसा, दुर्घटना, अनहोनी न हो।
बड़े अरसे बाद पैसेंजर ट्रेन यात्रा की। गुना से शुरू करके पहले दिन नागदा और रात्रि विश्राम इंदौर में, दूसरे दिन महू से शुरू करके खंड़वा तक मीटरगेज से, फिर खंड़वा-बीड़ और रात्रि विश्राम भोपाल में, तीसरे दिन भोपाल से इंदौर और रतलाम तक पैसेंजर ट्रेन यात्राएँ कीं।
दीपावली के तुरंत बाद बाइक उठायी और हम दोनों निकल पड़े चोपता की ओर - लैंसडाउन, पौड़ी, खिर्सू होते हुए। साथ ही देवरिया ताल, तुंगनाथ और चंद्रशिला तक भी हो आये।
अभी हाल ही में डॉ. सुमित के साथ पश्चिमी राजस्थान की बाइक से यात्रा की। इस नौ दिनी यात्रा के लिये सोचा था कि कार्यक्रम इस प्रकार बनायेंगे कि 2500 किलोमीटर से ज्यादा बाइक न चलानी पड़े, लेकिन आख़िरी आँकड़े 2800 किलोमीटर को भी पार कर गये। फलतः रोजाना काफ़ी ज्यादा बाइक चलानी पड़ी और यात्रा का जो सुकून और बेफ़िक्री होती है, वो गायब हो गये। लेकिन थार के म्याजलार, धनाना और आसूतार जैसे इलाकों में घूमना, जहाँ का कोई भी वृत्तांत पढ़ने को नहीं मिलता, बेहद रोमांचक था।
रेलयात्राएँ
इस साल बहुत कम रेलयात्राएँ हुईं - केवल 8564 किलोमीटर। इनमें से आधी यानी 4444 किलोमीटर की यात्रा केवल मार्च के महीने में की थी। मैं अक्सर फरवरी-मार्च और सितंबर-अक्टूबर में रेलयात्राएँ करता हूँ, क्योंकि मौसम अच्छा होता है। इनमें से 117 किमी मीटरगेज में और 408 किमी नैरोगेज में कीं। 2561 किमी पैसेंजर में, 1621 किमी मेल/एक्स में और 4382 किमी सुपरफास्ट ट्रेनों में।
कुछ और बातें
अगर एवरेस्ट बेस कैंप को छोड़ दें, तो यह साल यात्राओं के लिहाज़ से काफ़ी निराशाजनक रहा। दिल और दिमाग़ में लगातार संघर्ष चलता रहा। कभी दिल हावी हो जाता, तो कभी दिमाग़। दिल कहता कि अकेले हो जाओ, एकदम गुमनाम हो जाओ। दिमाग़ कहता कि बाँटते चलो। दोनों बातों के अपने फायदे और नुकसान हैं, लेकिन फायदे-नुकसान देखना दिमाग़ का काम है। मैं चूँकि दोनों के संघर्ष में ज्यादा दिन नहीं रह सकता, कोई न कोई निर्णय तो लेना ही पड़ेगा। इसलिये आगामी साल में आपको लेखन और प्रस्तुतिकरण में भरपूर परिवर्तन देखना पड़ सकता है।
फेसबुक पर दो आईडी हैं - एक मेरी व्यक्तिगत आईडी और एक फेसबुक पेज। व्यक्तिगत आईडी पर पहले 3500 के आसपास मित्र थे, जिनमें से अब 170 के आसपास ही बचे हैं। ये वे लोग हैं जिन्हें या तो मैं अच्छी तरह जानता हूँ या उनसे जुड़े रहना चाहता हूँ। इसकी प्राइवेसी सेटिंग में पहले काफ़ी कठोर सेटिंग कर रखी थी, केवल ये 170 मित्र ही इसे पढ़ सकते थे। लेकिन अब इसमें थोड़ा-सा परिवर्तन किया है और फिलहाल कोई भी इसे पढ़ सकता है। हालाँकि अभी भी कई प्रतिबंध हैं। लगातार फ्रेंड़-रिक्वेस्ट आती हैं, लोग इनबॉक्स में टोकते हैं, लेकिन यदि मैं आपको व्यक्तिगत नहीं जानता या आपसे बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं हूँ, तो आपकी रिक्वेस्ट स्वीकार नहीं की जायेगी। आपके पास फॉलो करने का विकल्प भी है, लेकिन मुझे नहीं पता कि ऐसे फॉलोवर्स जो मित्र नहीं हैं, उन्हें क्या दिखेगा।
इसके अलावा फेसबुक पेज भी है। इसे आपको लाइक करना होता है। आप फॉलो में जाकर See First भी कर सकते हैं। लेकिन कई बार समझ नहीं आता कि कौन-सी बात व्यक्तिगत आईडी पर लिखूँ और कौन-सी इस पेज पर। फिर भी यात्रा-वृत्तांतों से ताल्लुक रखने वालों के लिये पेज को ही लाइक और फॉलो करना ज्यादा उपयुक्त रहेगा। इसमें मित्रता स्वीकार करने या न करने का कोई झंझट नहीं है।
अगली बात, बहुत सारे मित्र मेरे साथ यात्रा करना चाहते हैं। अब शायद ऐसा संभव तो नहीं हो पायेगा। इसकी बजाय आप मुझसे जानकारी ले सकते हैं और बातचीत कर सकते हैं। जो भी मुझे पता होगा, बता दूँगा अन्यथा मना कर दूँगा।
आगामी यात्राएँ
आजकल मैं अपनी आगामी यात्राओं के बारे में बताने से हिचक रहा हूँ - पता नहीं क्यों। लेकिन 2016 के ख़राब और तितर-बितर प्रदर्शन को देखते हुए तय किया है कि 2017 के लिये कोई ठोस रणनीति बनानी चाहिये। फिलहाल सालभर में चार बड़ी यात्राएँ और इनके बीच में छोटी-छोटी यात्राएँ करने की योजना है। बड़ी यात्राएँ वे हैं, जिनमें एक सप्ताह या उससे ज्यादा की छुट्टियाँ चाहिये। तो इसी सिलसिले में 16 से 25 जनवरी तक अंड़मान यात्रा करनी है। 16 जनवरी को दिल्ली से पहले ट्रेन से कोलकाता जायेंगे, फिर फ्लाइट से पोर्ट ब्लेयर। इसी तरह कोलकाता के रास्ते वापसी करेंगे। यह हमारी सरकारी एल.टी.सी. के चार-वर्षीय ब्लॉक का आख़िरी साल है। इस साल में दो एल.टी.सी. लेनी पड़ेंगी।
दूसरी यात्रा करनी है अप्रैल में सिक्किम में गोईचा-ला ट्रैक। 3 अप्रैल को दिल्ली से बागडोगरा के लिये उड़ जायेंगे और वापसी करेंगे 14 अप्रैल को।
तीसरी बड़ी यात्रा की योजना है अगस्त में लद्दाख में स्टोक कांगड़ी की। अभी इसकी बुकिंग नहीं करायी है। इसमें हम फिर से एल.टी.सी. योजना का लाभ उठायेंगे और फ्लाइट से लेह आना-जाना करेंगे।
इनके अलावा तो फिलहाल कोई योजना नहीं है। लेकिन 15-16 फरवरी को शादी की दूसरी सालगिरह के अवसर पर शिमला जाना है - टॉय ट्रेन से। पिछले साल दिल्ली में ट्रेन छूट जाने के कारण शिमला जाना नहीं हो पाया था। बीच में एक-दो दिन के लिये पराशर झील जाने की भी इच्छा है। फरवरी या मार्च में गुजरात में गिर क्षेत्र में मीटरगेज के नेटवर्क को भी कवर करना है। अभी उमेश पंत की पुस्तक इनरलाइन पास पढ़ी, तो आदि कैलाश व ओम पर्वत भी जाने की इच्छा होने लगी है।
इसे देखते हुए लगने लगा है कि आगामी साल भी कहीं तितर-बितर न हो जाये।
पुस्तक प्रकाशन
फिलहाल एवरेस्ट बेसकैंप की पुस्तक पर कार्य चल रहा है। मौका मिलते ही इसे प्रकाशित कर देना है। इससे फुरसत पाकर जैसा मौका बनेगा, वैसा करेंगे।
आपके लिये
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और आख़िर में, निशा का दूसरा नाम दीप्ति भी है। असली नाम तो दीप्ति ही है, लेकिन आम बोलचाल में निशा कहते हैं। जबकि इन दोनों शब्दों के अर्थ एक-दूसरे के बिलकुल उलट हैं - एक अंधेरा, एक उजाला। आज के बाद मैं उसे दीप्ति लिखा करूँगा।
2016 को भूलकर 2017 तैयारी करे सर जी
ReplyDeleteजी बिलकुल पाटिल साहब...
Deleteमैं अब भी फ्रेंड लिस्ट में हूँ यह मेरे लिये सम्मान का विषय है। आपकी सिक्किम यात्रा में साथ देने की कोशिश करूंगा।
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी...
Deleteमित्र..
ReplyDeleteआपका पैमाना कुछ और है, मेरा पैमाना कुछ और...
तो मेरे लिए तो 2016 की शुरुवात बर्फीली स्पीति से करना और 2016 के अंतिम दिनों मे थार मोटरसाइकिल यात्रा से 2016 को अलविदा कहना यादगार ही रहा...
बीच मे तुम्हारे ही साथ महु-खंडवा-भोपाल-इंदौर की छोटी सी रेलयात्रा भी हो गई...
2017 मे तुम्हारे साथ मे बड़ी रेलयात्रा करने और किसी नन्हे मुन्हे ट्रेक पर ट्रैकिंग पर चलने की प्रबल इच्छा है...
देख़ो क्या होता है...
सही कहा भाई... आपके लिये यह साल बहुत बेहतरीन रहा...
Delete2016 की यात्राओं का सार रूप में सिलसिले लेखा-जोखा अच्छा लगा
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!
धन्यवाद कविता जी...
Deleteआपकी कृपा है गुरुदेव ❤❤❤
ReplyDeleteधन्यवाद भाई जी...
Deleteशुभकामनयें 😊👍😊
ReplyDeleteनमस्कार नीरज जी। एवेरेस्ट बेस कैंप की पुस्तक और थार यात्रा का इंतजार है । उम्मीद है हमेशा की तरह लेखन में नवीनता और नयी अलग अलग जगहों के बारे में उपयोगी जानकारी लिए होगा और रही बात कम रेल व अन्य यात्राओं की और दुखद घटनाओं की तो मैं तो यही कहना चाहूँगा की सबकुछ हमेशा जैसा हम चाहें वैसे नहीं हो पाता और कुछ यात्राओं में कुछ दुखद घट जाता है लेकिन जीवन कभी रुकता नहीं है चलता ही रहता है । यही संसार का नियम है। आपको भी ऐसी दुखद घटनाओं को पीछे छोड़कर आगे चलना ही पड़ेगा। यही उचित रहेगा। कम रेल या बाइक यात्रायें हो सकता है ब्लॉग की लेखन/शब्द सामग्री के संदर्ब में कम हों परंतु आप स्वयं के लिये और पाठको के लिए वो कम उपयोगी नहीं होंगी । नव वर्ष आपके लिए नई ऊर्जा लेकर आये ऐसी आशा है।
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत धन्यवाद...
Deleteभाई किसी को साथ लेकर न् जाना वाले नियम में बदलाव करना होगा आपको
ReplyDeleteइसे किसी अनजान को साथ लेकर न जाना करिये
पहले लोग आपसे जुड़ें , घुले मिलें जब दिल ठुके तो साथ जाएँ
सही कहा आपने...
Deleteसदा खुश रहो नीरज भाई , सुख दुःख की हर इक माला कुदरत ही पिरोती है . आप मौका मिलते ही कुदरत के करीब होते हो . नसीब है . शुभकामनाएं . निशा को हमारे घर में भी निशा ही कहते हैं जैसे वो परिवार की सदस्य हो अब हम नाम कैसे बदलें ? निशा - नीरज बहुत मिलते हैं . हो सके तो हमारे लिए यही रहने दो बेबाकी आप को जो सही लगे :नरेन्द्र प्रदीप
ReplyDeleteभावी ‘लोंग टर्म’ के कुछ संभावित फायदों के लिये उसका नाम बदला है... अन्यथा मुझे भी निशा ही कहना और लिखना पसंद है...
Deleteनीरज जी नमस्कार
ReplyDeleteमैं पहली पहली बार आपकी ब्लॉग पर लिख रहा हु / पिछले २ साल से इस ब्लॉग को पढ़ रहा हु। करीब डेढ़ साल मैं अपने परिवार के साथ १२ ज्योतिर्लिंग की यात्रा पूरी कर ली है / जहा भी गया हूँ सब अनजान जगह लेकिन उस जगह में रुकने का स्थान ढूढ़ना , दार्शनिक स्थल , आने जाने का बेहतर समय और रास्ता जैसी तमाम तैयारी पूरी करने की कला आपकी इस ब्लॉग को पढ कर सीखा है / इसमें गूगल बाबा का भी योगदान है / गूगल मैप ,etrain .info , polaris navigation gps , train status live , जैसे apps की भी मदद मिली / मुझे हिमालय क्षेत्र में घूमना पसंद है / लेकिन कुछ स्थानों परनहीं जा पा रहा हूँ कारण बर्फीली जगह की यात्रा का ज्यादा अनुभव ना होना / मैं मुम्बई में रहता हु / इच्छा है की अगली बार जब आप हिमालय की बर्फीली जगह ( लेह लद्दाख चादर ट्रेक जैसी ) की यात्रा ग्रुप के साथ निकले तो मुझे भी ग्रुप में जगह मिले
धन्यवाद गुप्ता जी...
Deleteव्यक्तिगत आईडी पर पहले 3500 के आसपास मित्र थे, जिनमें से अब 170 के आसपास ही बचे हैं। ये वे लोग हैं जिन्हें या तो मैं अच्छी तरह जानता हूँ या उनसे जुड़े रहना चाहता हूँ। इसकी प्राइवेसी सेटिंग में पहले काफ़ी कठोर सेटिंग कर रखी थी, केवल ये 170 मित्र ही इसे पढ़ सकते थे।
ReplyDelete--------------------------------------------------------------------------------------------------------------
--- इन 170 मे मुझे शामिल रखने के लिए .. धन्यवाद .. नीरज ...
धन्यवाद सर जी...
Delete2016 का लेखा जोखा , सिर्फ आपके लिए ही नहीं हमारे लिए मतलब आप चाहने वालों के लिए भी तितर बितर रहा ! इस बार आपने एवेरेस्ट बेस की किताब पहले छाप दी , ब्लॉग से ! ये सही निर्णय रहा , दोनों तरीके से
ReplyDeleteधन्यवाद योगी भाई...
DeleteJo Gujar gaya use bhul ja yahi waqt ka takaza hai bhai Acha bura waqt aata jaata rahta hai. New year ki advance Badhaia HAPPY NEW YEAR
ReplyDeleteधन्यवाद सुखदेव जी...
DeleteVery best of luck, bhaiya 2017 ke leye....... n dipti jyada positive h nisha se...... :-)
ReplyDeleteधन्यवाद आनंद जी...
Deleteभाई मैने अभी तक आपको जितना पढा़ है, आपकी शख्शियत मुश्किलों के खिलाफ डटे रहना ही है। 2016 के अप्रत्यासित घटनाओं से घबराना नीरज जाट की नियती नहीं हो सकती, संभवत: व्यस्तताओं के कारण परिस्थितियों का पूनर्मुल्यांकन ना हो सका था। आप एक अनुभवी एवं सक्रिय ट्रैकर हैं, आपके अनुभव और साथ की आवश्यकता नये लोगों को हमेशा होगी। दोस्तों यारों के साथ की गयी यात्राओं और एक प्रोफेशनल की यात्राओं में कुछ फर्क तो जरूर होगा। आपकी दोनों को शादी की दुसरी वर्षगांठ की हार्दिक शुभकामनाएं अग्रिम ही स्वीकार करें। मैं भी 12 मार्च से सपरिवार शिमला और मनाली की यात्रा पर जा रहा हुं। आप सदैव सक्रिय रहें यही प्रार्थना है।
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी...
Deleteआपने बिलकुल ठीक कहा है और आपको शिमला-मनाली यात्रा की शुभकामनाएँ...
नमस्कार भाई, एक बात बतायें कि दिल्ली स्टेशन और नई दिल्ली स्टेशन एक ही है या अलग अलग हैं। हमारी ट्रेन हावडा़ कालका एक्स. है और हमें इंदिरा गांधी हवाई अड्डा से दिल्ली स्टेशन जाना है कितनी दूरी होगी? कृप्या दोनों बाते बतायें।
Deleteसर जी, दोनों अलग अलग स्टेशन हैं... एक नई दिल्ली और दूसरा पुरानी दिल्ली... आपकी ट्रेन पुरानी दिल्ली से चलती है...
Deleteएयरपोर्ट से पुरानी दिल्ली आने के लिए मेट्रो सर्वोत्तम है.. एयरपोर्ट से आप मेट्रो पकड़ना और नई दिल्ली मेट्रो स्टेशन पर दूसरी मेट्रो बदलकर चाँदनी चौक उतर जाना... आधा घंटा लगेगा... चाँदनी चौक मेट्रो स्टेशन से आप सीधे पुरानी दिल्ली स्टेशन के सामने निकलोगे...
बहुत बहुत धन्यवाद, भाई।
Deleteआप बहुत अच्छे इंसान हो ....
ReplyDeleteसमाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों की तरह आप ने भी वर्ष के अंत में 2016 की यात्राओं का लेखा-जोखा रखा। सबको अपनी अपनी पसंद की पूरी सूचना या जानकारी मिल गयी साथ ही साथ आगामी प्रोग्राम की जानकारी भी। यह सबके लिए किसी पुस्तक की इंडेक्स की तरह है। आगामी सभी प्रोग्राम सफलता और खुशी पूर्वक पूरी हो ऐसी शुभकामना है।
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी...
Deleteनीरज भाई हमें पता है की एक दुखद घटना की वजह से अब आप दूसरों के साथ ट्रेकिंग नहीं कर रहे
ReplyDeleteएक रिक्वेस्ट है अगर संभव हो तो जनवरी या फरवरी में चादर ट्रेक चलेंगे क्या???
पूरा मैसेज आपके मैसेज बॉक्स में भेजे हैं कृपया उसे भी पढ़ लीजियेगा
धन्यवाद तिवारी जी...
Deleteमेरा तो जनवरी फरवरी में लद्दाख जाना नहीं हो पायेगा... आप जाइये और लौटकर अपने अनुभव बताइए...
धन्यवाद तिवारी जी...
Deleteमेरा तो जनवरी फरवरी में लद्दाख जाना नहीं हो पायेगा... आप जाइये और लौटकर अपने अनुभव बताइए...
नीरज भाई मै बस हिन्दी ही पड और समझ सकता हु । आपके सारे लेख मेरे लिए बहुत अनमोल है इन्हें पड़कर ही मै हमेशा यात्रा करता रहूँगा ...आपका बहुत आभार
ReplyDeleteआने वाले वर्ष की सभी यात्राओ की अंग्रिम शुभकामनाएं ...आप पूरी दुनिया घुमे और आप को घूमता देख सबके सब दुनिया घूमने की सोचे ...डी
ReplyDeleteआपकी एवरेस्ट बेस कैंप यात्रा का बेसब्री से इतजार है ।
ReplyDelete2017 की यात्राओं के लिए शुभकामनाएं ।��
नीरज जी, नमस्कार
ReplyDeleteचूँकि मैं अब आपके फ्रेंड लिस्ट मैं नहीं हूँ तो आपकी यात्रा के विषय मई ज्यादा कुछ पता नहीं चलता है मगर आपके पेज को लाइक किया हुवा है और शी फर्स्ट भी किया हुवा है इसलिए थोड़ी जानकारी मिलती रहती है. ब्लॉग पर तो दिन मैं एक बार आना ही आना है यु कहा जाये ये तो दिनचर्या के एक हिस्सा है तो अतिसयोक्ति नहीं होगी. आपसे हमेशा से मिलने का मन था मगर कभी मिल ही पाया इस बार पता चला की आप डेल्ही से कोल्कता जा रहे है तो अगर पटना वाले रास्ते से जायेंगे तो मेरा स्टेशन जसीडीह मिलेगा इस बार निश्चित ही मिलने की कोशिश करूँगा अगर आपकी इच्छा हो तो..हो सके तो कृपया ट्रैन का नाम बताये मिलने आ जायेंगे.
आपका पुराना मित्र
आशीष गुटगुटिया
धन्यवाद आशीष जी,
Deleteहम दिल्ली से सियालदह दूरंतो से जायेंगे। यह ट्रेन जसीडीह से नहीं जाती, इसलिये इस बार मिलना नहीं हो पायेगा।
मुझे आपकी एवरेस्ट बेस कैंप के किताब की बेसब्री से इन्तजार है ।एल टी सी के बारे मे थोड़ा विस्तार से जानने की इच्छा है । कभी समय मिले तो जानकारी साझा कीजिएगा ।अथवा कोई रिफरैन्स दीजिएगा जहाँ से इसके बारे मे जानकारी हासिल कर सकूँ ।
ReplyDeleteआपकी योजनाओ और सोच अपने समय और अपने जगह पर ठीक है समय के साथ सब बदलता है और बदलना चाहिए