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डायरी के पन्ने-32

ध्यान दें: डायरी के पन्ने यात्रा-वृत्तान्त नहीं हैं।
इस बार डायरी के पन्ने नहीं छपने वाले थे लेकिन महीने के अन्त में एक ऐसा घटनाक्रम घटा कि कुछ स्पष्टीकरण देने के लिये मुझे ये लिखने पड रहे हैं। पिछले साल जून में मैंने एक पोस्ट लिखी थी और फिर तीन महीने तक लिखना बन्द कर दिया। फिर अक्टूबर में लिखना शुरू किया। तब से लेकर मार्च तक पूरे छह महीने प्रति सप्ताह तीन पोस्ट के औसत से लिखता रहा। मेरी पोस्टें अमूमन लम्बी होती हैं, काफी ज्यादा पढने का मैटीरियल होता है और चित्र भी काफी होते हैं। एक पोस्ट को तैयार करने में औसतन चार घण्टे लगते हैं। सप्ताह में तीन पोस्ट... लगातार छह महीने तक। ढेर सारा ट्रैफिक, ढेर सारी वाहवाहियां। इस दौरान विवाह भी हुआ, वो भी दो बार।
आप पढते हैं, आपको आनन्द आता है। लेकिन एक लेखक ही जानता है कि लम्बे समय तक नियमित ऐसा करने से क्या होता है। थकान होने लगती है। वाहवाहियां अच्छी नहीं लगतीं। रुक जाने को मन करता है, विश्राम करने को मन करता है। इस बारे में मैंने अपने फेसबुक पेज पर लिखा भी था कि विश्राम करने की इच्छा हो रही है। लगभग सभी मित्रों ने इस बात का समर्थन किया था।
पिछले साल अक्टूबर में जब मोटरसाइकिल ली तो पहला लक्ष्य था लद्दाख। वैसे तो जोजी-ला खुलने के साथ ही लद्दाख सडक मार्ग से खुल जाता है लेकिन अगर देखा जाये तो लद्दाख जाने का सर्वोत्तम से भी सर्वोत्तम समय बडा छोटा सा है। वो है रोहतांग खुलने से मानसून आने तक। लद्दाख में वैसे तो मानसून का ज्यादा प्रभाव नहीं पडता लेकिन जम्मू से जोजी-ला और उधर कीरतपुर से केलांग तक मानसून की थोडी सी बारिश भी खूब नुकसान करती है। खूब भू-स्खलन होते हैं। फिर अक्टूबर में मानसून समाप्त होते-होते लद्दाख में तापमान शून्य से नीचे पहुंचने लगता है और सडकों पर ब्लैक आइस जमने लगती है जिसमें मोटरसाइकिल वालों को बहुत खतरा होता है। इसलिये अगर लद्दाख जाने का सर्वोत्तम समय देखा जाये तो मानसून से पहले और रोहतांग खुलने के बाद है। लेकिन यह अवधि बडी सूक्ष्म होती है। हद से हद पन्द्रह दिन। आज जब आप यह पोस्ट पढ रहे हैं तो खबर यह है कि न तो अभी तक रोहतांग खुला है और न ही मानसून आया है। इस बार दोनों काम एक साथ होने वाले हैं। जून के मध्य में रोहतांग भी खुलेगा और हिमालय में मानसून भी प्रवेश करेगा।
अब लिखने से मोहभंग होने लगा है और लिखना मेरी यात्राओं का सबसे बडा आधार है खासकर साहसिक यात्राओं का। अगर मैं ब्लॉग लेखक न होता तो कहीं छुटल्ली-मुटल्ली यात्रा करता और घर में पडा रहता। अब चूंकि लिखना पडता है, चारों तरफ वाहवाही होती है, मुझे देखकर दूसरे मित्र भी घूमने का साहस करते हैं तो यह सब देखकर मैं भी साहसी यात्राओं की तरफ अग्रसर हो जाता हूं। लेकिन अब लिखने की इच्छा कम होने लगी है तो जाहिर है कि साहसी यात्रा की भी इच्छा नहीं होगी। इसके बदले केरल-तमिलनाडु का एक पैसेंजर ट्रेन टूर बनाया था। इसमें केरल-तमिलनाडु की ज्यादातर लाइनों को पैसेंजर ट्रेनों में बैठकर देखना था और स्टेशनों के फोटो खींचने थे। अब मैं इस तरह की यात्राओं को ब्लॉग में नहीं लिखता हूं तो यह मेरे लिये बडी राहत की बात थी। इसके लिये मैंने पूरा एक खाका तैयार कर लिया था कि कब कहां से किस ट्रेन में बैठना है और शाम तक कहां पहुंचना है। मेरी रात या तो ट्रेन के स्लीपर डिब्बे में गुजरती या किसी स्टेशन के रिटायरिंग रूम में। सारा आरक्षण ऑनलाइन कर लिया था- सभी ट्रेनों का भी और रिटायरिंग रूम का भी। जाहिर है कि सारा भुगतान भी हो गया था। बस, एक आरक्षण बाकी था दिल्ली से मंगलौर जाने का। उसमें वेटिंग चल रही थी, इसलिये सोच रखा था कि तत्काल में उसका आरक्षण करूंगा।
इसी दौरान एक मित्र का तत्काल का आरक्षण करने बैठा तो थ्री-जी इंटरनेट होने के बावजूद भी आईआरसीटीसी की वेबसाइट नहीं खुली। ग्यारह बजे थोडी सी खुली, तब तक तो सारा तत्काल समाप्त हो गया था। छुट्टियों का सीजन है, सभी ट्रेनों में भीड होती है, दस बजते ही वेबसाइट पर तत्काल टिकट बुक करने वालों का लोड बहुत ज्यादा बढ जाता है और वेबसाइट नहीं चलती। इस बात ने मुझे डरा दिया। कहीं मेरे मामले में भी ऐसा न हो जाये। फिर उधर बयाना में गुर्जर रेल की पटरियों पर बैठ गये। मेरी ट्रेन को बयाना से ही होकर गुजरना था। अगर कोई और ट्रेन पकडता तो आगे की सारी योजनाएं व सारे आरक्षण ध्वस्त हो जाते। इसलिये केरल-तमिलनाडु जाना रद्द करना पडा। सारी बुकिंग भी रद्द करनी पडी।
अब पहली दफा लद्दाख जाने के बारे में गम्भीरता से विचार किया। लेकिन लद्दाख जाऊंगा तो वापस आकर लिखना भी पडेगा और लिखने का मन नहीं है। बडी देर तक जाऊं-न जाऊं-जाऊं-न जाऊं का विचार आता रहा। फिर आखिरकार फेसबुक पर लिख दिया कि लद्दाख जा रहा हूं। अपनी कोई योजना सार्वजनिक करने का यह सबसे बडा फायदा है कि उसे पूरा करने का दबाव बन जाता है। मेरे तो ध्यान ही नहीं था कि इसमें खर्चा भी होगा। वो तो एक मित्र ने पूछ लिया कि इस पन्द्रह दिन की यात्रा में अमूमन कितना खर्चा हो जायेगा। हिसाब लगाने बैठा तो पन्द्रह हजार का हिसाब आराम से बैठ गया। वो भी तब जब दस दिन अपना तम्बू लगाकर फ्री में सोया जाये। मोटरसाइकिल की टंकी और अपना पेट; ये दो ऐसे खर्चे हैं जिनमें कोई कटौती नहीं की जा सकती। लद्दाख में भोजन महंगा है। फिर किसी आकस्मिक खर्च के लिये भी तैयार रहना पडता है।
इस समय मेरे खाते में 3000 रुपये थे। अब मैं ये नहीं बताऊंगा कि पिछले महीने की सैलरी कहां गई और उससे पिछले की कहां गई। हालांकि कुछ दिन बाद महीना समाप्त होने से पहले सैलरी आ जायेगी और खाते में लगभग 40000 रुपये हो जायेंगे। इतने पैसों में बडी आसानी से लद्दाख यात्रा भी की जा सकती थी और घर का खर्च भी चलाया जा सकता था- बडी आसानी से। लेकिन फिर भी मन किया कि मित्रों से कुछ पैसे मांगे जायें। आपका लिखने का मन नहीं है और आपको 5000 रुपये दे दिये जायें कि अपना यात्रा-वृत्तान्त लिखो तो आप पर उसे लिखने का दबाव बन जायेगा। सिर्फ दबाव ही नहीं बनेगा, आप अपने पूरे जोश-खरोश से उसे लिखेंगे भी।
पैसे मांगने का काम मैंने आज पहली बार नहीं किया है। पहले भी कई बार ऐसा कर चुका हूं, कई कई महीने मेरी बैंकिंग जानकारियां ब्लॉग पर सार्वजनिक रहा करती थीं। लेकिन इस दफ़ा पहली बार ऐसा हुआ है कि पैसे आये। यह सम्भव हुआ है सुरिन्दर शर्मा जी के कारण। उन्होंने फेसबुक पर मेरी पोस्ट छपते ही 1100 रुपये देने की घोषणा कर दी। हालांकि कुछ मित्रों ने उनकी बडी मजाक बनाई कि सहायता कर रहे हो या शगुन डाल रहे हो लेकिन उनकी इस घोषणा ने बडा सकारात्मक माहौल बना दिया। जो मित्र पहले संकोच करते थे कि पता नहीं कितने पैसे देने उचित रहेंगे, उन्हें एक आधार मिल गया। बहुत से मित्रों ने इसी को आधार बनाकर हजार-हजार ग्यारह-ग्यारह सौ रुपये दिये।
फिर आये मनु त्यागी। उन्होंने मेरे यहां तो कुछ नहीं लिखा, अपने ही यहां लिखा कि चालीस हजार की नौकरी वाला भी स्वयं घूमने जाने के लिये पैसे मांग रहा है। बहुत से मित्र मेरे और मनु के कटु सम्बन्धों के बारे में जानते हैं। एक मित्र ने ही मनु की इस बात का स्क्रीनशॉट मुझे भेजा और कहा- इसकी बडी देर से प्रतीक्षा थी। मनु का ऐसा कहना बिल्कुल स्वाभाविक है। वे मेरे सामने भी मेरी आलोचना करते हैं और पीछे भी आलोचना करते हैं। बिल्कुल स्वाभाविक है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है।
लेकिन दुख तब होता है जब मेरे एक-एक लेख पर तालियां बजाने वाले, वाहवाही करने वाले मित्र मनु के यहां जाकर मुझे गालियां दे रहे हैं। मनु का व्यवहार बिल्कुल भी दोगला नहीं है लेकिन वे मित्र पूर्णतः दोगले हैं। उनकी मैं भर्त्सना करता हूं, धिक्कार है, डूब मरो। आप किसी की आलोचना कर रहे हैं तो सामने भी आलोचना करो और पीठ पीछे भी; इसी तरह प्रशंसा करनी है तो सामने भी प्रशंसा करो और पीठ पीछे भी। सामने कुछ और, पीठ पीछे कुछ और; यह बडी गन्दी बात है।
ये बडी अजीब बात है- हमारे लिये दस हजार रुपये कोई एक आदमी खर्च कर दे तो उसे हम स्पॉंसरशिप कहते हैं लेकिन अगर दस आदमी हजार-हजार रुपये खर्च करे तो उसे हम भीख कहते हैं।
मेरी मासिक सैलरी लगभग 45000 रुपये है, कट-कटाकर मुझे लगभग 35000 रुपये मिलते हैं; दिल्ली में सरकारी मकान मिला हुआ है, चौबीस घण्टे बिजली-पानी की सुविधा है। कुल मिलाकर ऐश की जिन्दगी कट रही है। पैसों की कोई तंगी नहीं है। हां, कभी कभार हो जाती है शॉर्ट टाइम के लिये जब हम अचानक कोई बडा खर्चा कर लेते हैं। अन्यथा कोई तंगी नहीं है। कोई भी यात्रा हो, सब अपने खर्चे से होती है। वो मेरी मौज है कि ट्रेन से जाऊं या बस से; एसी में जाऊं या नॉन-एसी में, कश्मीर जाऊं या कन्याकुमारी, पन्द्रह हजार खर्च करूं या पन्द्रह सौ। वापस आकर अपने वृत्तान्त लिखता हूं; खूब वाहवाहियां मिलती हैं; खूब फोन आते हैं; खूब शाबाशियां मिलती हैं। लेकिन एक समय ऐसा भी आता है जब इन सबसे मन भर जाता है।
यह मैं अपनी बता रहा हूं, दूसरों का मुझे नहीं पता। जब मन भर जाता है तो सोचता हूं कि अपनी जेब से सालाना एक-डेढ लाख रुपये खर्च क्यों कर रहा हूं? अगर ब्लॉग न होता तो मैं कहीं नहीं जाने वाला था। क्या ब्लॉग के लिये इतने पैसे खर्च कर रहा हूं? तब मन में आता है कि इतने जो मित्र हैं, इनसे भी कुछ मिलना चाहिये। मेरी सैलरी कितनी भी हो, लेकिन मन में खूब आता है कि मित्रों से भी कुछ मिलना चाहिये। लद्दाख जैसी महंगी जगहों पर जाता हूं तो सिर्फ ब्लॉग के कारण; मित्रों के कारण। ये सब न होता तो मैं कतई नहीं जाता। अगर जाता भी तो लद्दाख जैसी जगह पर एक बार जाकर देख आता, बार-बार नहीं जाता। एक उदाहरण से इस बात को और स्पष्ट कर देता हूं- अगर यात्रा के दौरान मेरा कैमरा खराब हो जाये तो यात्रा जारी रखने का सारा उत्साह समाप्त हो जायेगा। बहुत सम्भावना है कि बीच से ही वापस लौट आऊं। कैमरे का अर्थ है कि हम दूसरों के लिये यात्रा कर रहे हैं। दूसरे अगर मेरे खर्चे से आनन्द लेंगे तो कुछ समय बाद यह बर्दाश्त से बाहर होने लगेगा और मैं चाहूंगा कि मुझे भी कुछ मिले। पहले भी मांगा है, आज भी मांगा और आगे भी मांगूंगा। आपको अगर मेरे पैसे मांगने से समस्या है तो मेरे खर्चे पर घूमना बन्द करो। ब्लॉग सार्वजनिक बस की तरह है। यहां आ रहे हो तो किराया देने की नीयत भी रखो।
इसे भीख नहीं, किराया कहते हैं।
बाहर विदेशों में यह सब खूब होता है, भारत में नई चीज है। मांगने को सीधे भीख से जोड दिया जाता है। मैं चाहता हूं कि प्रत्येक यात्रा-लेखक समय-समय पर अपने प्रशंसकों से इसी तरह सहायता मांगे। इससे यात्रा-लेखन में एक नई जान आती है। हमें कभी नहीं लगेगा कि हम मुफ्त में क्यों लिख रहे हैं। यात्रा-लेखक ऐसा करने लगे तो विरोध होना बन्द हो जायेगा। यात्रा-लेखन में एक क्रान्ति आ जायेगी, प्रतिस्पर्द्धा बढेगी और सभी लेखक चाहेंगे कि वे अपने प्रशंसकों को शिमला-मसूरी जैसी जगहों की बजाय दुर्गम और साहसिक स्थानों की यात्रा करायें।
त्यागी जी... मनु भाई, जो हुआ सो हुआ। आपकी वेबसाइट बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही है, बडी फैन फॉलोविंग है आपकी। एक बार आप भी ऐसा करके देखिये। दूसरे मित्र भी ऐसा करके देखें। दस हजार नहीं आयेंगे, एक हजार आयेंगे लेकिन ये एक हजार ही हमारे मनोबल को जबरदस्त तरीके से बढा देंगे।

एक गुजारिश अपने पाठक मित्रों से भी: हम यात्रा-लेखक हैं। हमारे पास लैपटॉप है, अच्छा मोबाइल है, इंटरनेट कनेक्शन है और अच्छा कैमरा भी। जाहिर है कि हम खाते-पीते प्राणी हैं। लेकिन इसके बावजूद भी हम चाहते हैं कि हमें अपने ब्लॉग लिखने के मेहनताने के ऐवज में कुछ मिले। संकोच के कारण हम सीधे आपसे नहीं कह पाते। इसके अलावा दूसरे काम करते हैं। ब्लॉग में विज्ञापन लगाते हैं, गूगल का एडसेंस लगाते हैं। लेकिन एडसेंस से उतनी कमाई नहीं है। एक क्लिक आ गया, दो रुपये बन गये। अच्छा ट्रैफिक हुआ तो दिनभर में पांच क्लिक, हद से हद दस क्लिक आ जाते हैं। बीस रुपये बन जाते हैं। कसम से हम इन बीस रुपयों को देखकर ही इतने खुश होते हैं कि जैसे खजाना मिल गया हो। किसी की सैलरी चालीस हजार रुपये है, किसी की एक लाख भी होगी लेकिन हर महीने की पहली तारीख को अपनी सैलरी देखकर उतनी खुशी नहीं मिलती, जितनी खुशी ये बीस रुपये दे जाते हैं। इन बीस रुपयों को पच्चीस बनाने के लिये हम यात्रा-वृत्तान्त लिखने से ज्यादा एडसेंस पर मेहनत करते हैं। और जिस दिन पच्चीस रुपये तक बात पहुंच जाती है, वो दिन तो हमारे लिये बडा भव्य दिन होता है। उस दिन हम महाराणा प्रताप बन जाते हैं।
मुझे याद है दो तीन साल पहले जब मेरे और मनु भाई के सम्बन्ध मधुर थे तो मनु ने अपने ब्लॉग को समाप्त करके एक वेबसाइट बनाई थी- वनटूरिस्ट डॉट कॉम। योजना थी कि इसमें कुछ यात्रा-लेखकों को जोडकर सम्मिलित रूप से इसे चलायेंगे। उन्होंने मुझसे बात की थी, सन्दीप भाई से बात की थी, रीतेश गुप्ता जी से बात की थी। सभी को एक साथ जोडने का मकसद था कि इसमें एडसेंस लगायेंगे और उससे हुई कमाई को आपस में बांट लेंगे। चार-पांच लोग एक साथ जुडेंगे तो ट्रैफिक भी बढेगा और एडसेंस से ज्यादा आमदनी भी होगी। यानी बीस रुपये की जगह पच्चीस रुपये आयेंगे। सभी को पांच-पांच रुपये मिलेंगे। ऐसा नहीं है कि इन पांच रुपयों के बिना हमारा गुजारा नहीं चलता लेकिन ये पांच रुपये कितनी खुशी दे जाते हैं, वो ज्यादा मायने रखती है।
हम संकोची लोग हैं। सीधे आपसे नहीं मांग सकते। तो आपको यह शुरूआत करनी चाहिये कि अपने पसन्दीदा लेखक को कुछ पुरस्कार दें। जिस तरह आप रोजाना सुबह सुबह हमारी पोस्टों का इंतजार करते हैं, उसी तरह आपको हर महीने कुछ राशि देने के लिये पहली तारीख का इंतजार करना चाहिये। नियम बना लेना चाहिये। यह राशि पचास रुपये भी हो सकती है, सौ रुपये भी हो सकती है, पांच सौ, हजार या उससे ज्यादा भी हो सकती है। इन छोटी-छोटी राशियों से हमारा हौंसला देखने लायक होता है। आज से ही शुरूआत कीजिये, पहली तारीख है, बडा शुभ दिन है। हो सकता है कि संकोच के कारण आपका पसन्दीदा लेखक इस राशि को न ले, लेकिन आप अडे रहिये, कभी तो उसका संकोच समाप्त होगा ही।



डायरी के पन्ने- 31 .......... डायरी के पन्ने- 33




Comments

  1. Sahi kaha aapne neeraj bhai . ham aapke sath he . Kuch puraskar bhi milna chahiae . Are pathak to itne kanjus hote he ki coment bhi nahi karte . Coment se bhi hoshla badhata he . Or sirf vahvahi bhi kuch kam ki nahi he , gift bhi dena chahiae .

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    1. सही कहा भाई... धन्यवाद आपका।

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  2. जब तनिक समस्यायें आ जायें तो समझिये नियत दिशा में बढ़ते रहने के संकेत हैं। गति आपको निर्धारित करनी है, पर बढ़ते रहिये। विवाह की ढेरों शुभकामनायें

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  3. Neeraj ji mai aap ke hosle ki prashansa karta hu. Jis prakaar aap apne aap ko pesh karte hai jaise ki aap ek koi mirror ho.
    puri niswarthata se aap bas likh dete hai. mai aap ke blog lagbagh 3-4 saal se foolow karta hu aur aapki bahut vichhar ne mujhe prerit kiya hai ki saral bolna kitna saaf aur himmatwala hota hai. Mai aage jarur koshish aur pathako se vinanati karunga ko wo bhi BUS ka kiraya de...... is blog ko padhne ka taki hume aapse is tarah yatra blog padhne mile.

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  4. bhai ab aap ne sahi survat kiraya aap ka adhikar hai

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  5. आपके हौसले और साफगोई की प्रशंसा करनी होगी.
    जो लोग आपके इस कदम की आलोचना कर रहे हैं वे अपना अज्ञान ही प्रदर्शित कर रहे हैं, और वे नहीं जानते कि दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच चुकी है. अज्ञानियों को वैसे भी सदैव माफ किया जाता है, मगर उनके कारण माहौल बिगड़ता है, यह भी तयशुदा बात है. खैर.

    मैं अपनी तरफ से आपको 5001 रुपए इस यात्रा के लिए स्पांसर (प्रायोजक के रूप में) स्वरूप देने की सार्वजनिक घोषणा करता हूँ. और इस ब्लॉग के सभी पाठकों, प्रशंसकों से आ्ग्रह करता हूं कि इस तरह की साहसिक यात्राओं के लिए तन, मन, धन सभी की आवश्यकता होती है, और एक वेतन-भोगी प्राणी के लिए यह संभव नहीं है. यदि आप चाहते हैं कि नीरज जाट की साहसिक यात्राएं जारी रहें, तो पाठकों को प्रायोजक बनना ही होगा, अतः आप भी यथासंभव प्रायोजन राशि का सहयोग प्रदान करें.

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    1. सर जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद। अपनी बैंकिंग जानकारियां मैंने आपको मोबाइल पर भेज दी हैं।

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    2. रवि सर के ब्लॉग से आपके ब्लॉग पर आया हूँ.. काफी दिन हुए यहाँ आये, बीच में काफी ब्लॉग पढ़ना छूट सा गया था.. यहीं से पता चला की आपकी शादी भी हो गई.. बहुत-बहुत बधाई..
      दो बातें कहूँगा, पहली यह की आगे से इधर निरंतरता बनाये रखूँगा..
      दूसरी यह की अभी कुछ फायनेंसियल दिक्कत चल रही है, मगर जैसे ही यह दूर होगी तो जैसा बन पड़ेगा उतनी मदद करूँगा..
      All the best. :)

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    3. धन्यवाद प्रशान्त भाई... आप आये, बहुत अच्छा लगा।

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  6. Bhai app bulkul shai bat khan rahi ho. hum aap ke sath h.kuch to milna chahiae

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  7. नीरज भाई को राम राम,
    कल आपसे व सचिन गोयनकर जी से मुलाकात हुई,दिल से कहुं तो बहुत अच्छा लगा,भाभी जी के हाथो से बनी खीर बहुत ही स्वादिष्ट लगी,
    ओर रही बात पैसे डोनेट की तो यह आपका मत है,चाहे आप पैसे ले या ना ले,कोई पैसे दे या ना दे,इसमे दूसरो को कुछ भी आपत्ती नही होनी चाहिए,

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    1. सही कहा सचिन भाई... वैसे आपकी लाई हुई लीची बडी स्वादिष्ट थीं। हम अभी भी उन्हें खा रहे हैं।

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  8. नीरज जी ... आपका लेख पढ़ा ...
    आपके विचार जानकार अच्छे लगे.... आपने अपने लेख में जो कुछ बही कहा मेरे ख्याल से ये सब होना चाहिए... |
    आखिरकार एक ब्लोगर उसके ब्लॉग लेख और जानकारी के फलस्वरूप उसे कुछ पारितोषक तो मिलना चाहिए | उसका उत्साहवर्धण कायम रहता है |
    रीतेश गुप्ता

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    1. रीतेश भाई, बडा अच्छा लगा कि कम से कम एक यात्रा-ब्लॉगर तो मुझसे सहमत हुआ। धन्यवाद आपका।

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  9. नीरज भाई में आप से सदैव सहमत हूं । आखिर आप हम सब के लिए इतनी मेहनत करते हो । उसके परिणाम स्वरूप हम पाठक अगर थोडी सी वित्तीय सहायता कर दें तो मेरा मानना यह है कि इस से व्लोग की क्वालिटी अधिक उत्क्रष्ट होगी । मेरी इस मुद्दे पर त्यागी जी के साथ भी बहस हुयी थी । नीरज भाई इस माह थोडा हाथ तंग है । अगले माह से सहयोग निश्चित तैर पर ।

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    1. चौधरी साहब, इस बात में तो कोई शक नहीं कि इससे ब्लॉग की क्वालिटी और उत्कृष्ट होगी। कोई बात नहीं, जब हाथ मजबूत हों, तब दे देना। बस, कमेण्ट करते रहना, अच्छाईयां कमियां बताते रहना, इससे भी बहुत मनोबल बढता है। धन्यवाद आपका।

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  10. बगैर पैसो के घुमना मुश्कील है
    फिर आपको तो ब्लोग भी लीखना है
    मैं आपको सहयोग तो नहीं करपाउंगा
    लेकीन आपके विचारों से सहमत हुं

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    1. वो तो ठीक है प्रभु जी लेकिन ये तो बताओ कि आपकी सार पास यात्रा का क्या हुआ? दिल्ली से होकर गये और मिले नहीं। गलत बात।

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  11. सहमत
    तार्किक विश्लेषण
    साहसिक यात्रायें जारी रखे नीरज, इन्हें ब्लाग पर पढ़ना अच्छा लगता है।
    कृपया अपनी बैंक डिटेल इनबॉक्स करे।

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    1. धन्यवाद कोठारी साहब, डिटेल आपको फेसबुक पर भेज दी हैं। इसी तरह टिप्पणियां करके हौंसला बढाते रहिये।

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  12. महाशय आप ने इस ब्लॉग मे सब कुछ खरा खरा बता कर बहुत सारे लोगो का कन्फ़्युशन दूर कर दिया और अपना साफ सुथरा पछ रखा । इस से सभी लोगो का सहमत होना जरूरी नहीं है । जो लोग सहयोग नहीं कर सकते उन्हे निंदा करने का कोई अधिकार नहीं है भले ही ओ आप का पाठक बने रहे ।आप हमारे सेलिब्रेटी है । यह हमारे लिए गौरव की बात है । अनावशयक आलोचनों से निराश मत होइगा । शुभ कामनाओ सहित।

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    1. धन्यवाद सर जी आपका बहुत बहुत। आपकी टिप्पणियां बहुत हौंसला बढा जाती हैं।

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    2. This comment has been removed by the author.

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  13. 100% agree wid u Neeraj bhai.
    Hamne aapko sahyog ki shuruaat kar di h jo aage v hota rhega.
    Aapki aagami yatraon k liye shubhkamnaye.

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  14. Sab kuch sahi tha lekh mein, honesty, sincerity and to an extent right approach, but ek baat se sahmat nehi hoon, we are travelers first then blogger or you can fancy that designation as writers. We travel for travel sake not for anyone's else or blog or book or anything..tabhi likhne mein maja aata hai, tabhi jagah ka experience milta hai..mujhe yakin hai aap bhi yatra pehle karna pasand karte honge..blog ke liye koi mehnat nehi karta,,ek samay baad wah wah sab fikaa par jata hai, likhne kaa maan bhi nehi karta lekin ghumne kee iccha ya keh sakte hai nasha barkarar rehta hai..kaal agar yeh blog aap delete kar de ya bandh ho jaay ya aap kisi aise cheez mein fansh jaay, kee aapko likhne kaa mauka hee na mile salo saal, fir bhi aap ghumna nehi chor sakte..

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    1. शुभाजीत जी, आपकी बात से सहमत हूं। लेकिन इंसान मूल रूप से आलसी होता है। वह कोई काम केवल तभी करता है जब या तो उसे किसी बात का डर हो या फिर कोई लालच हो। मैं ब्लॉग सिर्फ लालच के कारण लिखता हूं। पहले प्रसिद्ध होने का लालच था, अब पैसों का लालच भी हो गया है।
      घूमना अलग बात है और ब्लॉग लिखना अलग। अगर ब्लॉग न लिखना हो तो फिर मैं अलग तरीके से घूमूंगा। ब्लॉग की वजह से घूमने का तरीका भी बदल जाता है।
      धन्यवाद आपका।

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  15. पैसे के बल पर प्रथम या दूसरी श्रेणी का घुमक्कड़ नहीं बना जा सकता। घुमक्कड़ को जेब पर नहीं, अपनी बुद्धि, बाहु और साहस का भरोसा रखना चाहिए
    घुमक्कड़ को समाज पर भार बनकर नहीं रहना है। उसे आशा होगी कि समाज और विश्‍व के हरेक देश के लोग उसकी सहायता करेंगे, लेकिन उसका काम आराम से भिखमंगी करना नहीं है। उसे दुनिया से जितना लेना है, उससे सौ गुना अधिक देना है। जो इस दृष्टि से घर छोड़ता है, वही सफल और यशस्वी घुमक्कड़ बन सकता है
    लेकिन घुमकक्‍ड़ी एक सम्‍मानित नाम और पद है। उसमें, विशेषकर प्रथम श्रेणी के घुमक्कड़ों में सभी तरह के ऐरे-गैरे पंच-कल्‍याणी नहीं शामिल किए जा सकते इस प्रकार कुछ समय के लिए उसने घुमक्कड़ी से छुट्टी ले ली थी।

    ऐसे लोग भी निरुद्देश्‍य घुमक्कड़ कहे जा सकते हैं। पर उन्‍हें ऊँचे दर्जे का घुमक्कड़ नहीं मान सकते, इसलिए नहीं कि वह बुरे आदमी है। बुरा आदमी नि‍श्चिंततापूर्वक दस-पंद्रह साल घुमक्कड़ी कैसे कर सकता है? उसे तो जेल की हवा खानी पड़ेगी।
    इसी तरह का एक घुमक्कड़ 1932 में मुझे लंदन में मिला था। वह हमीरपुर जिले का रहनेवाला था। नाम उसका शरीफ था। प्रथम विश्‍वयुद्ध के समय वह किसी तरह इंग्लैंड पहुँचा। उसके जीवन के बारे में मालूम न हो सका, किंतु जब मिला था तब से बहुत पहले ही से वह एकांत घुमक्कड़ी कर रहा था, और सो भी इंग्लैंड जैसे भौतिकवादी देश में। इंग्लैंड, स्‍काटलैंड और आयरलैंड में साल में एक बार जरूर वह पैदल घूम आता था। घूमते रहना उसका रहना उसका व्रत था। कमाने का बहुत दिनों से उसने नाम नहीं लिया। भोजन का सहारा भिक्षा थी। मैंने पूछा - भिक्षा मिलने में कठिनाई नहीं होती? यहाँ तो भीख माँगने के खिलाफ कानून है। शरीफ ने कहा - हम बड़े घरों में माँगने नहीं जाते, वह कुत्ता छोड़ देते हैं या टेलिफोन करके पुलिस को बुला लेते हैं। हमें वह गलियाँ और सड़कें मालूम हैं, जहाँ गरीब और साधारण आदमी रहते हैं। घरों के लेटर-बक्‍स पर पहले के घुमक्कड़ चिह्न कर देते हैं, जिससे हमें मालूम हो जाता है कि यहाँ डर नहीं है और कुछ मिलने की आशा है। शरीफ रंग-ढंग से आत्‍म-सम्‍मानहीन भिखारी नहीं मालूम होता था।

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    1. आहा, राहुल सांकृत्यायन के ‘घुमक्कड-शास्त्र’ के शब्द....
      फिर तो आपको ये भी पता होगा कि राहुल जी नियमित लिखते थे और इसके ऐवज में उन्हें नियमित पैसे भी मिलते थे।

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    2. आपको भी मिलेंगे प्रभु बस थोड़ा धीरज रखिये।

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  16. नीरज भाई आपकी बातो से पूरी तरह सहमत हूँ , खासकर इस बात से की जो भी कहना चाहते हो पुरे हक से कहा हालांकि मैं अभी फाइनल ईयर का स्टूडेंट हूँ फिर भी जितना कर सकता हूँ करना चाहता हूँ पर साथ ही एक छोटी सी सलाह है की आप अपने ब्लॉग पे पहले की तरह अपनी सारी डिटेल्स डाल दीजिये और डायरेक्ट ऑनलाइन पेमेंट का ऑप्शन भी रखा जा सकता है जिस से आपका और हमारा सबका ही काम आसान हो जायेगा और हाँ जो भी महाशय आपको पैसे देते है उनकी फोटो भी लगाई जा सकती है उस पेज पे जिस से बाकि लोगो को प्रेरणा मिलती रहेगी

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    1. धन्यवाद शेखावत साहब, आपकी बात पर अवश्य गौर करूंगा।

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  17. रविरतलामी के ब्लॉग से होते हुये इधर आये। सन 1983 में हमने साइकिल से भारत दर्शन किया था। दोस्तों और घरवालों के चन्दे से। उस समय छात्र थे तो बेहिचक लोगों से मांग भी लेते थे। अनजान लोगों तक से सहयोग मिला है। :)

    मैं जो सहायता बन सकेगी वह तुम्हारे खाते में भेजूंगा। यात्रा की शुभकामनायें। :)

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    1. आपका बहुत बहुत शुक्ला सर...

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  18. Neeraj ji,, aap ki details and saf goi, neat and clean narration, hatta ki , apni salary bhi , bata dena badi ache baat lagti hai,, y ada ap ki qabele dad e tahseen hai,,
    mai bhi aap ka support ker dunga,, but dont stop to share your blog, am also a reader since one year,, shadi ke bad expense badh jate hai,, but don,t blame to one who cannot donate by any risen,
    aur last walo ke comment pe silent mat rahen,
    Riyadh Saudi Arabia

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  19. नीरज आपकी यह पोस्ट पढ़कर कुछ चकित भी हूँ और प्रसन्न भी .
    चकित इस सच्चाई को पढ़कर कि आप ब्लाग लिखने के लिये भ्रमण करते हैं और चूँकि लोग आपके लेखन का लाभ ले रहे हैं इसलिये आप उनसे प्रतिफल चाहते हैं .मुझे लगता था कि भ्रमण और लेखन दोनों ही आपके शौक हैं .(हालाँकि इस तरह लगातार और साहसिक यात्राओं और उनका रोचक वर्णन भी कम विस्मयकारी नही) मेरा विचार था कि लेखक को अगर ज्यादा पाठक मिल रहे हैं तो पाठकों के साथ लेखक की भी बड़ी उपलब्धि है .(जो केवल रस्मी तौर पर टिप्पणी करते हैं उन पाठकों की बात नही है ) यकीनन आपका लेखन कोई सपाट विवरण मात्र नही है .आपके यात्रा-वृत्तान्त साहित्य की निधि हैं .देर-अबेर वे साहित्य-वेत्ताओं की दृष्टि में आएंगे ही .
    प्रसन्नता इस बात की कि आपने बड़ी ईमानदारी से अपनी बात रखी है शायद पहली बार . सारे प्रश्नों का उत्तर भी मिल गया जहाँ तक आपने आर्थिक सम्बल की बात कही है वह मुझे अच्छी लगी . आपके अधिकांश पाठक आपके परिजन जैसे हैं .मैं भी . परिजनों से अपनी बात कहना जरा भी गलत नही बल्कि उचित ही है . सहयोग करना अपनी इच्छा है .आप कुछ दिनों का विश्राम अवस्य लें लेकिन यह सच है कि सभी पाठक कोरी वाह..वाह करने वाले नही हैं .मैं भी कोई सूत्र पाना चाहती हूँ .आखिर विवाह का उपहार भी तो बनता है .

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    1. धन्यवाद गिरिजा जी... आपकी टिप्पणियां हमेशा ही बहुत मनोबल बढाती हैं... इन्हीं की वजह से ब्लॉग लिखता रहता हूं अन्यथा काम करने का किसका मन करता है?

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  20. बढ़िया है नीरज, किसी को पैसा देना है तो दीजिये, फ़ालतू में कबीर के दोहे मत गाईये की इतना कमाते हो, अपने पैसे से घूमो |

    अपने से ही घूम रहे हैं, आगे भी घुमते रहेंगे | तुम लिखते रहो, आगे बढ़ते रहो

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    1. मेरे मन की बात कह दी तरुण भाई, धन्यवाद आपका।

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    2. हाँ कबीर के दोहे नही पर नीरज जाट के दोहे तो गा ही सकते हैं
       घुमक्कडी के लिये रुपये-पैसे की जरुरत नहीं है,
      रास्ते में दूसरे घुमक्कड़ने खाना खाने के लिए पैसे माँगे तो इन्हे बुरा लगा ।
      भगवान के नाम पर किसी ने 10-20 रुपये की पर्ची कटवाने को कहा तो इन्होंने कहा मेरी एक रुपये की श्रद्धा है एक रुपये की काटो
      और अपनी साली के जूते चुराने के पैसे भी नही दिये
      मैं सोच रहा था कि इस बड्डे पर केक तो कटेगा नहीं, कहीं से केक का फोटो ही खींच लूं। जा पहुंचा एक कन्फ़ैक्शनर की दुकान में।
      अजी भईया, केक है क्या?
      हाँ है।
      भाई, असल में एक बात है। मुझे केक का फोटो खींचना है। खरीदना नहीं है।
      नहीं भाई, ऐसे नहीं होगा। फिर तो केक का डिब्बा फट जायेगा। उसे खरीदेगा कौन?
      देख ले यार। कर ले किसी तरह।
      ठीक है पर पैसे लूँगा।
      कितने?
      बीस रूपये।
      रहने दे।
      पैसे के मामले में मना करते देर नहीं लगती। फिर उससे कहा कि भाई, छोड़ केक-वेक को। तू मुझे दूर से दिखा दे। मैं डिब्बे का ही फोटो खींच लूँगा।
      बोला कि उसके पांच रूपये लूँगा।
      रहने दे।

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    3. अरे वाह, सुमित जी... मेरी सभी पोस्टें पढ रखी हैं। केवल पढ ही नहीं रखीं, बल्कि याद भी हैं। लेकिन यात्रा करना अलग बात है और ब्लॉग लिखना अलग बात। कितना आनन्द आता होगा आपको ये सब पढने में....

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  21. अनावशयक आलोचनों से निराश मत होइगा ।

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  22. फेसबुक पर सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी जी के दिये लिंक से यहाँ पहुँचा। आपकी बात से सहमत हूँ। पता नहीं क्राउडफंडिंग जैसी चीज को भारत में लोग सहजता से क्यों नहीं लेते। बहुत से विदेशी ब्लॉगर, फ्रीवेयर सॉफ्टवेयर डैवलपर आदि अपनी वेबसाइटों, ब्लॉगों पर डोनेशन के विकल्प लगाये मिलते हैं।

    मैं हिन्दी कम्प्यूटिंग सम्बन्धी कुछ मुफ्त सॉफ्टवेयर बनाता रहा हूँ। बताने की आवश्यकता नहीं कि इस कार्य में कितनी मेहनत, समय, ऊर्जा और धन भी लगता है। हालाँकि मेरे सॉ़फ्टवेयर एक वर्ग विशेष के लिये ही उपयोगी रहे होंगे। तो जब पहली बार एक सज्जन ने मुझे 1100 रुपये भेजे तो मुझे भी बड़ा अच्छा लगा कि किसी ने मेरी मेहनत का मूल्य समझा। आज तक केवल दो लोगों ने ही मुझे ऐसा सहयोग प्रदान किया है। आपकी ही तरह मैं भी सरकारी नौकर हूँ और ठीक आमदनी है लेकिन जैसा आपने कहा कि इस प्रकार के कार्य में संसाधन झोंकने पर यदि ऐसा कोई सूक्ष्म सहयोग भी मिलता है तो अच्छा लगता है।

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    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद शर्मा जी...

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  23. नीरज भाई, आपकी ब्लॉग पोस्ट पढ़कर दिमाग के बहुत सारे जाले साफ हो गये, कि कोई तो है जो साफगोई से लिखने वाला है, हम भी बहुत कुछ लिखना चाहते हैं पर हाँ लिख नहीं पाये, हम भी अब अधिकतर अपने ब्लॉग पर तब ही लिख पाते हैं, जब उसके लिये कुछ पैसे मिलते हैं, नहीं तो लिखने को तो बहुत है पर और भी काम बहुत से हैं, तो बेहतर है कि पहले अपने अन्य काम निपटा लिये जायें, अब लिखने से कमाई होने लगे तो कोई बुराई भी नहीं है, और इसे लालच नहीं कहेंगे इसे क्राउडसोर्सिंग कहेंगे, याने कि बहुत सारे लोग मिलकर आपकी मदद कर रहे हैं और आप उनके सपनों को पूरा कर रहे हैं। आपका खाता नंबर भेज दीजियेगा, हम भी कुछ स्पांन्सर करेंगे ।

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    1. आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूं रस्तोगी जी... खाता नम्बर आपको फेसबुक पर भेज दिया है... आपका बहुत बहुत धन्यवाद...

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  24. आपकी साफगोई पसंद आई

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  25. आपकी ईमानदारी बहुत पसंद आई !! वैसे घूमते तो बहुत है, लिखते भी बहुत है , लेकिन आपकी ईमानदारी, साफगोई और समझदारी आपके व्यक्तित्व और लेखनी को परिपक्वता देती है।
    Please share your account details.

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    1. सर जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद। यहां ब्लॉग पर अपनी एकाउण्ट डिटेल इस बार मुझे अच्छी नहीं लग रही है। कृपया अपनी ई-मेल आईडी दे दीजिये या फेसबुक आईडी। आपसे व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क करूंगा।

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  26. आपके इस विचार से सहमत हूँ कि हमें ब्लॉगिंग के लिए पाठकों से स्पांसरशिप मिलनी चाहिए। वैसे गूगल ने हिन्दी ब्लॉगरों के लिए एडसेंस लाकर इस ओर एक सार्थक कदम तो उठाया ही है। सादर ... अभिनन्दन।।

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    1. हां जी, बिल्कुल। गूगल ने हिन्दी ब्लॉगरों के लिये बहुत अच्छा काम किया है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद हर्षवर्धन जी...

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  27. सिद्धार्थ जोशी जी के फेसबुक पोस्ट से आप तक पहली बार पहुँचा हूँ! आज का आपका ब्लॉग पढ़ा - फिर कभी पुराने भी पढूंगा! आपने काफी स्पष्टता और एक हद तक दृढ़ता से अपनी बात कही है! यूँ मैं आपकी माँग से पूरी तरह सहमत हूँ लेकिन फिलहाल कुछ भेजने का इरादा नहीं है क्यूंकि अभी पन्द्रह मिनट पहले ही तो आपका ये ब्लॉग पढ़ा है और फिर नीचे कुछ कमेन्ट ! यूँ भी मैं कोई अमीर आदमी नहीं जिस तरह पुस्तकें खरीदता हूँ, उसी तरह कुछ खर्च यहाँ भी किया जा सकता है! उम्मीद है आपको मेरी बात कबीर का दोहा नहीं लग रही होगी जैसा कि ऊपर किसी ने कमेन्ट किया ! कुल मिलकर ये कि मैं इस पूरे मामले से प्रभावित तो हूँ ही, कुछ उत्सुक भी हों गया हूँ कि ये किस तरह की शुरुआत है१ और हाँ, पश्चिम में इस प्रथा के होने की जानकारी मुझे है! ऊपर के कमेंट्स से ये जानकारी भी मिली कि हाल ही में आपका विवाह भी हुआ है = यूहीं सलाह देने का मन हों रहा है कि अपनी पत्नी को क्वीन की तरह रखियेगा और ब्लॉग या यात्रा के लिए उनकी उपेक्षा ना कीजियेगा! विद्या भूषण अरोरा https://www.facebook.com/vidyabhushan.arora

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    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद अरोरा साहब... आप पहली बार यहां आये हैं। ब्लॉग में बहुत कुछ पढने जैसा है, आप अवश्य प्रभावित होंगे और इतना मुझे विश्वास है कि नियमित रूप से टिप्पणियां भी किया करेंगे।

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  28. भाई जी आप सही हें हम आपके विचारों से सहमत हैं।

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  29. Saaf kehna sukhi rehna aur ye baat neeraj Bhai me hai

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  30. आपकी साहसिक यात्रा ,बहुत सुन्दर तरीके से प्रस्तुति वर्णनातीत |
    ऐसा ही हौंसला बनाए रखिये |

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  31. जैसे अपने देश मे सभी मुद्दे पर पूरा देश दो भागो मे बंट जाता है चाहे वह बहस का मुद्दा हो या ना हो इसी तरह यहा भी हो रहा है । हालांकि यह ठीक नहीं है फिर भी इस बहस से लोगो के अपना अपना विचार जानने को मिल रहा है । शायद यह भविष्य मे और भी बलागरों के लिए उपयोगी साबित हो ।

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    1. हां जी सर, बिल्कुल। कुछ तो नतीजा निकलेगा ही।

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  32. सभी के विचार पढ़े और यहीं से पता चला कि आपका अभी हाल ही में विवाह हुआ है इसके लिए बहुत-बहुत हार्दिक मंगलकामनाएं! मुझे पहाड़ की यात्राएं बहुत पसंद है लेकिन घर-गृहस्थी और ऑफिस की भाग-दौड़ में कभी कभार ही गांव जाकर ही तसल्ली कर लेते हैं। आपके साहसिक यात्राओं को सचित्र पढ़ते पढ़ते मन का उसमें डूब जाना अच्छा लगता है। अब तो शादी के बाद यात्रायें दुकेली होंगी क्या ऐसा होगा?

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    1. धन्यवाद कविता जी... शादी के बाद सभी यात्राएं दुकेली ही हो रही हैं।

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  33. चलो बहुत बढ़िया, अब आगे की यात्रा करो। शुभकामनाएं।

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  34. नीरज जी आप सारी आलोचनाएँ छोड़ कर निश्चिन्त घूमते रहिये मेरी तरफ से आपको २५०० का योगदान मैंने आपको बहुत पहले भी
    कहा था पर अपने मना कर दिया था कोई बात नहीं देर आये दुरुस्त आये।

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  35. नीरज जी, यात्रा रुकनी नहीं चाहिए। कृपया मेरे मोबाइल 9471991574 पर अपना बैंकिंग जानकारियां भेज दें। आपका मित्र ।

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  36. नीरज जी, यात्रा रुकनी नहीं चाहिए। कृपया मेरे मोबाइल 9471991574 पर अपना बैंकिंग जानकारियां भेज दें। आपका मित्र ।

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  37. एक जगह आपने लिखा है कि आप ब्लाग लिखने के लिए घूमते है तो इस तरह जैसा हम पढ़ते है | यदि ब्लाग न लिखना हो तो कैसे घूमेगे | शुरुवात में तो आपकी ईच्छा होती होगी कि पाठक मिले |अब जब लोग आपको पढने लगे तो आपको यह समझ आया कि आप दूसरो के लिए घूमते है | अभिरुचि का व्यव्स्यी करण करना चाहते है | सही है आप भी तो इसी भोतिक्वादी बाजारी व्यवस्था के ही एक अंग है |

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46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब