जनवरी में वैसे तो दक्षिण भारत की यात्रा उचित रहती है लेकिन हमने स्पीति जाने का विचार किया। हम यानी मैं और सुमित। डॉ. सुमित फ्रॉम इन्दौर। लेकिन स्पीति जाने से पहले हमारे मन में महाराष्ट्र में पश्चिमी घाट में बाइक चलाने का भी विचार बना था। मैं इन्दौर ट्रेन से पहुंचता और वहां से हम दोनों बाइक उठाकर महाराष्ट्र के लिये निकल जाते। इसी दौरान कल्सुबाई आदि चोटियों तक ट्रैकिंग की भी योजना बनी। ट्रैकिंग का नाम सुनते ही सुमित भी खुश हो गया।
लेकिन सुमित की वास्तविक खुशी थी हिमालय जाने में। उधर मेरा भी मन बदलने लगा। महाराष्ट्र के इस इलाके में मानसून में जाना सर्वोत्तम रहता है, जब हरियाली चरम पर होती है। आखिरकार मैंने अपना इन्दौर का आरक्षण रद्द करा दिया और सुमित की दिल्ली तक की सीट बुक कर दी।
इन्दौर से सराय रोहिल्ला तक चलने वाली इंटरसिटी से सुमित दिल्ली आ गया। कुछ देर शास्त्री पार्क घर पर बैठे, कुछ जरूरी बातों पर चर्चा की और ग्यारह बजे घर से निकल पडे। सीधे पहुंचे नई दिल्ली। कोचुवेली से आने वाली और चण्डीगढ जाने वाली सम्पर्क क्रान्ति ठीक समय पर चल रही थी। इसके जनरल डिब्बे खाली पडे रहते हैं। प्लेटफार्म नम्बर दो पर ट्रेन रुकी और मस्जिद के भी काफी पीछे तक इसका आखिरी डिब्बा था और हमें प्लेटफार्म तीन पर जाकर वहां से नीचे ट्रैक पर उतरकर तब जनरल डिब्बे में चढना पडा। बारह बजे ट्रेन चली और हमारी स्पीति यात्रा आरम्भ हो गई।
खाली पडा जनरल डिब्बा |
ठण्ड दिल्ली में भी खूब थी और हम स्पीति की माइनस की ठण्ड के हिसाब से कपडे वगैरह लेकर चले थे। इन्दौर में कम ठण्ड पडती है, फिर भी सुमित के पास काफी कपडे थे और एक बडा बैग पूरा भरा था कपडों, दवाईयों और सूखे मेवों से। मैं तो कभी दवाईयां लेकर नहीं जाता लेकिन डॉक्टर पूरा मेडिकल स्टोर लिये चल रहा था। इसके अलावा तिल के लड्डू भी लाया था जो गुड और तिल मिलाकर बनाये थे। मुझे तो ये लड्डू बडे पसन्द आये।
मौसम ठीक नहीं था और मौसम वेबसाइटें भी बता रही थीं कि एक दो दिन में पश्चिमी विक्षोभ बढेगा और पहाडों में हिमपात होगा। इस एक बात से मुझे बडा डर भी लग रहा था। वैसे तो काजा की सडक बन्द नहीं होती लेकिन ज्यादा बर्फ पड जाये तो एक सप्ताह या दस दिन तक के लिये बन्द भी हो जाया करती है। सुमित का तो अपना क्लिनिक है, शटर खोलना और बन्द करना उसके अपने हाथ की बात है लेकिन मेरी नौकरी है, मुझे निर्धारित छुट्टियों से इतर कहीं भी फंसना अच्छा नहीं लगता। लेकिन जब फंसेंगे, तब की तब देखेंगे, फिलहाल तो काजा ही दिख रहा था।
शाम चार बजे चण्डीगढ पहुंचे। छह बजे के आसपास रीकांग पीओ की बस है। यह एक डीलक्स बस थी, जिसमें सीटें पीछे करने का भी विकल्प होता है। अच्छी नींद आ जाती है। रेलवे स्टेशन से सिटी बस में दस-दस रुपये लगे और हम सेक्टर 43 बस अड्डे पर थे। हिमाचल की बसें यहीं से मिलती हैं।
छह बजे तक अच्छा खासा अन्धेरा हो गया। हमने कुछ कोल्ड ड्रिंक लीं और कुछ चिप्स लिये और अपनी सीटों पर जा बैठे। पहले ही ऑनलाइन बुकिंग कर ली थी और अपनी पसन्द की सीटें चुनकर बुक की थीं। चण्डीगढ से रीकांग पीओ का डीलक्स बस का किराया था 655 रुपये प्रति व्यक्ति।
बस कालका शहर में से निकलकर गई। हालांकि कालका बाईपास भी बहुत अच्छा बना है। कोई यात्री नहीं चढा। कालका के बाद हिमाचल शुरू हो जाता है और पर्वतीय मार्ग आरम्भ हो जाता है। मैं तो उतना उत्साहित नहीं था पर्वतीय मार्ग से लेकिन सुमित का उत्साह देखते ही बनता था।
रात दस बजे शिमला पहुंचे। शहर से बाहर ही बस अड्डा है जो नया बना है और बेहद शानदार बना है। यहां बस रुकी और चल दी। एकाध ही यात्री उतरे और एकाध ही चढे होंगे। इसके बाद बस पहुंची पुराने बस अड्डे पर जोकि रेलवे स्टेशन के पास है। यहां से कई यात्री इसमें चढे। फिर तो किधर से बस निकली, कहां रुकी, कहां नहीं रुकी; मुझे नहीं पता। मैंने सीट पीछे की और कम्बल ओढकर लेट गया। इन बस यात्राओं के कारण ही हम गर्म कम्बल लेकर आये थे। इन कम्बलों ने बस यात्राओं में और आगे स्पीति में भी बहुत काम दिया।
रात एक बजे आंख खुली। नारकण्डा के आसपास थे। सडक के किनारे बर्फ पडी दिख रही थी। पिछले दिनों इधर काफी बर्फ पडी थी और मैंने नारकण्डा की बर्फीली ढलानों के ताजे फोटो इंटरनेट पर भी देखे थे। मैं चाहता हूं कि आजकल में बर्फ तो पडे लेकिन ज्यादा भी न पडे। हम बर्फीले स्पीति को देखना चाहते थे लेकिन वहां फंसना भी नहीं चाहते थे।
कुमारसैन के पास खाने-पीने के लिये बस रोक दी। यहां हमारे पीछे-पीछे ही चण्डीगढ से रीकांग पीओ जाने वाली साधारण बस भी आ गई। एक तीसरी बस शिमला की तरफ मुंह किये भी खडी थी। आदतन मैं इस बस को देखने आगे गया तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा। सुमित को पकडकर लाया-“आ, तुझे एक चीज दिखाता हूं।” सुमित ने देखा तो वो भी खुश हो गया। उस बस की खिडकी खोलकर उसमें अन्दर नींद में लुढके लोगों को देखा। बोला -“पता नहीं काजा पहुंच पायें या नहीं लेकिन काजा के लोग तो देख ही लिये।” बस पर लिखा था- काजा से शिमला। काजा ही हमारी मंजिल है। पहुंच पाना सन्देहास्पद भी है। उस मंजिल से एक बस आई है तो विशेष सम्मान तो बनता है।
यहां हमने भी एक-एक कप चाय पी।
फिर पांच बजे के आसपास आंख खुली। बस बेहद खराब सडक पर चल रही थी और धूल भी खूब उड रही थी। इसका अर्थ था कि हमने किन्नौर जिले में प्रवेश कर लिया है। टापरी तक तो बहुत अच्छी सडक है लेकिन उसके बाद बहुत खराब। अगले दो घण्टे रीकांग पीओ पहुंचने तक हिचकोले ही खाते रहे।
सात बजे रीकांग पीओ पहुंचे। पीओ समुद्र तल से लगभग 2400 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है यानी नारकण्डा के लगभग बराबर। खुशी की बात ये थी कि यहां बर्फ नहीं थी और न ही आसपास के पहाडों पर दिख रही थी। हां, किन्नर कैलाश के ऊंचे पहाडों में जरूर खूब बर्फ थी। और दुख की बात ये थी कि हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। खराब मौसम की भविष्यवाणी मौसम विभाग पहले ही कर चुका था। आज खराब मौसम का पहला दिन था, अगले कुछ दिनों तक यही हालत रहने वाली है। इसका सीधा अर्थ था कि स्पीति में बर्फ पडेगी। यह हमारे लिये डराने वाली बात थी क्योंकि अभी तक हम स्पीति नहीं पहुंचे थे। बर्फ पडेगी तो सडकें बन्द होंगी और हम वहां नहीं पहुंच सकेंगे।
जिस समय हम पीओ पहुंचे, उसी समय पीओ से काजा जाने वाली बस काजा के लिये चल पडी। हम चाहते तो इसमें आज ही बैठकर शाम तक काजा पहुंच सकते थे लेकिन पूरी रात की बस यात्रा ने हम दोनों को इतना थका दिया था कि एक सुर में दोनों ने तय कर लिया कि आज वाली बस नहीं पकडते। बस अड्डे के पास ही 300 रुपये का एक कमरा लिया और सामान उसमें जा पटका।
हिमाचल परिवहन की वेबसाइट पर अगर आप शिमला से काजा की बस देखेंगे तो एक बस मिल जायेगी। सीधी बस शायद गर्मियों में चलती हो लेकिन आजकल कोई भी शिमला से काजा सीधी बस नहीं चलती। शिमला से वो बस पीओ तक ही आती है। फिर अगले दिन कोई दूसरी बस पीओ से काजा के लिये प्रस्थान करती है। इसलिये अगर आप सर्दियों में शिमला-काजा बस की टिकट बुक करते हैं तो इस तथ्य से भी परिचित रहिये। आपको एक रात पीओ में अतिरिक्त रुकना पड सकता है।
आज का पूरा दिन हमारे लिये खाली थी। कल्पा जाने का विचार बनाया। पीओ और कल्पा के बीच एक ही बस चल रही थी। यह छोटी प्राइवेट बस थी और यही इकलौती बस इधर से उधर और उधर से इधर चक्कर लगाये जा रही थी। दूरी 8-10 किलोमीटर के आसपास ही है। पीओ बाजार से यह बस आई तो हम इसमें चढ लिये और कुछ ही देर में कल्पा जा पहुंचे। कल्पा लगभग 2800 मीटर की ऊंचाई पर है, इसलिये यहां बर्फ थी। ताजी बर्फ थी, रात ही गिरी होगी। बमुश्किल एकाध इंच। मेरे लिये तो यह बर्फ होनी और न होनी समान ही थी लेकिन सुमित का उत्साह देखते ही बनता था। उसने कुछ फोटो खींचकर तुरन्त अपने घर भेजे। घर से रिप्लाई में ‘हाय, हाय’ आनी शुरू हो गई। मातम वाली ‘हाय’ नहीं बल्कि खुशी वाली ‘हाय’।
कल्पा में बाजार में बर्फ जमी पडी थी और ढलान पर सडक पर पैदल चलना मुश्किल हो रहा था। कल्पा को पहले चिनी कहते थे। पता नहीं कल्पा नाम कब पडा। पुरानी हिन्दुस्तान-तिब्बत सडक कल्पा से होकर जाती थी। मैं सोचता था कि यह काफी बडा शहर होगा लेकिन ऐसा नहीं है। यह एक छोटा सा गांव ही है। जिले का मुख्यालय तो नीचे रीकांग पीओ में है। हम कल्पा में घुसे और थोडा ही पैदल चलकर बाहर निकल गये। पूरा दिन बिताना था, तो एक आदमी से ऐसे ही पूछा लिया- मन्दिर किधर है? उसने पूछा- कौन सा मन्दिर? हम बगलें झांकने लगे। कौन सा मन्दिर बतायें? फिर भी कह दिया- कोई भी। उसने एक तरफ इशारा कर दिया।
पता नहीं यह कौन सा मन्दिर था, आप फोटो देखकर जान लेना। लकडी का बना है, अच्छा बना है। बूंदाबांदी तो बन्द हो गई थी लेकिन मन्दिर परिसर में अभी भी कहीं कहीं पानी था। सामने सतलुज के उस तरफ किन्नर कैलाश के सामने बादल थे। हम कैलाश को नहीं देख पा रहे थे।
कल्पा |
रीकांग पीओ बस अड्डा |
काफी ठण्ड थी। फिर भी सुमित ने ठण्ड के हिसाब से कपडे नहीं पहन रखे थे। मैंने पूछा तो बताया कि वो ठण्ड सहन करके स्पीति की तैयारी कर रहा है। मैंने कहा कि स्पीति की तैयारी होती रहेगी। कहीं ऐसा न हो कि स्पीति की तैयारी करते-करते शिमला या चण्डीगढ ही न जाना पड जाये।
वापस रीकांग पीओ आये। नींद आ रही थी। दोनों ने दो घण्टे की नींद खींची। उठे, तो तब तक भी खूब उजाला था। फिर से बाहर टहलने निकल गये। बादल गायब हो चुके थे। धूप निकली थी। सामने किन्नर कैलाश की श्रंखलाएं दिख रही थीं। लेकिन किन्नर कैलाश नहीं दिख रहा था। एक से पूछा तो उसने एक तरफ इशारा कर दिया कि वहां से कैलाश दिखेगा। हम वहां गये तो कैलाश दिख गया। यह 6000 मीटर से भी ज्यादा ऊंची चोटी है। जुलाई अगस्त में इसकी यात्रा होती है और परिक्रमा भी।
रीकांग पीओ से दिखती कैलाश रेंज की चोटियाँ |
खूब ज़ूम करने पर केंद्र में दिखता किन्नर कैलाश |
सुमित रीकांग पीओ में. |
काजा से पीओ आने वाली बस साढे पांच बजे के आसपास यहां आई। इससे स्पष्ट हो गया कि रास्ता खुला है। यहां से नीचे पीओ बाजार में चले गये। बस अड्डा बाजार से कुछ ऊपर है। यहीं डिनर किया और कल के लिये टैक्सी की बात भी की। हम वैसे तो बस से ही जाना चाहते थे, लेकिन जब पता चला कि काजा के लिये एक ही बस चलती है, तो चिन्ता भी होने लगी। पता नहीं कितनी भीड होगी, सीट मिलेगी या नहीं। सीट नहीं मिलेगी तो हम बस में नहीं जाने वाले। एक टैक्सी वाले ने 9000 रुपये बताये और कहा कि मौसम खराब है और रास्ता बन्द हो गया होगा। आगे बढे तो 7000 तक में बात हो गई। दो-तीन टैक्सी वालों के नम्बर भी ले लिये। वरीयता तो बस की ही रहेगी, लेकिन अगर भीड रही तो टैक्सी करनी पडेगी।
बस अड्डे पर कल के लिये टिकट बुक कराने गये तो कहा कि सुबह ही आ जाना। आजकल बस खाली चल रही है। आराम से सीट मिल जायेगी। काफी हद तक सीट की चिन्ता खत्म हो गई।
अगला भाग: जनवरी में स्पीति - रीकांग पीओ से काजा
1. जनवरी में स्पीति- दिल्ली से रीकांग पीओ
2. जनवरी में स्पीति - रीकांग पीओ से काजा
3. जनवरी में स्पीति - बर्फीला लोसर
4. जनवरी मे स्पीति: की गोम्पा
5. जनवरी में स्पीति: किब्बर भ्रमण
6. जनवरी में स्पीति: किब्बर में हिम-तेंदुए की खोज
7. जनवरी में स्पीति: काजा से दिल्ली वापस
उत्साह तो बहुत था,हो भी क्यों ना ?
ReplyDeleteहिमालय पर पहली बार कदम पड़ने वाले थे।
बाकि तुम्हारे साथ ने आग में घी का काम किया।
कुमारसेन में आधी रात को काजा से आई बस में बेठे यात्री उस वक्त वाकई किसी दूसरे ग्रह से आये लग रहे थे,और हैं दोनों इन्हें विस्मयता से निहारते रहे आखिर काजा पहुँच जाना मेरे लिए तो सपना ही था।
आपके साथ यह यात्रा यादगार बन गई डाक्टर साहब...
Deleteसीधी बस है एक, जो सदियों से चली आ रही है, हमीरपुर से काजा। ये बस हमीरपुर से शिमला जाती है, फिर रामपुर के आस पास बदली जाती है, फिर इसका साइज़ छोटा करके आगे बढ़ती है। मैं किन्नौर गया हूँ पर अब मेरी ये परबत ज़ूम इन आउट कर के देखने की इच्छा बहुत बलवती होती जा रही है
ReplyDeleteहमीरपुर-काजा बस गर्मियों में भले ही काजा तक जाती हो लेकिन सर्दियों में काजा तक नहीं जाती... रास्ते में ही कहीं, रामपुर या रीकांग पीओ से वापस मुड लेती है... पीओ से काजा की एक ही बस है जो सुबह चलती है.
Deleteनीरज जी,
ReplyDeleteअगर आप उन होटलों (जहां आप ठहरते हैं) के फोन नम्बर भी लेख में दे दें तो हम जैसे लोगों के लिये सहायता हो जायेगी.
संतोष प्रसाद सिंह,
जयपुर.
अब के बाद कोशिश किया करूंगा संतोष जी...
DeletePio ki yade fresh ho gai . Khubsurat village kalpa & Pio he .kinnor kailash gaya tha tab pio me night stay kiya tha or ghumane bhi gaya tha . 2nd time kinnor jane ki bahut irchcha he . Aapbhi chalo august me .
ReplyDeleteधन्यवाद उमेश भाई... अभी से मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता...
Deleteकिन्नर कैलाश की ऊंचाई 6000 मीटर से ज्यादा है, तो क्या जुलाई अगस्त में होने वाली इसकी यात्रा परिक्रमा में श्रृद्धालू लोग इतनी ऊंची चोटी तक जाते हैं?
ReplyDeleteसर, मुझे अभी तक यह पक्का पता नहीं चला है कि किन्नर कैलाश जिसकी यात्रा अगस्त में होती है, की ऊंचाई कितनी है. गूगल मैप पर एक चोटी जरूर 6000 मीटर से ऊंची है, लेकिन उसी की यात्रा होती है, यह स्पष्ट नहीं है... हाँ, ठंगी से छितकुल तक जो परिक्रमा यात्रा होती है, उसमे 6000 मीटर तक नहीं चढ़ते...
Deleteनीरज। पढ कर बहुत अच्छा लगा । सुन्दर विवरण। ओर हाय हाय होने लगी। दुख वाली नही खुशी वाली 😁, ओर फोटोग्राफी बहुत उमदा है तुम्हारी। ये अच्छे कैमरे व कुशल फोटोग्राफी का कमाल है।
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी...
Deleteक्या आप आजकल इस क्षेत्र में है
ReplyDeleteनहीं सर, मैं वहाँ जनवरी में गया था...
DeleteNeeraj bhai...lahaul spiti mein kya farq hai...aur rohtang ke aage se jo rasta jata hai wo pahle lahaul jata hai ya spiti...
ReplyDeleteAur aap january mein kia date ko gaye the?ye to bataya hi nhi
अंसारी भाई... जिला तो एक ही है- लाहौल-स्पीति, लेकिन लाहौल मनाली से आगे रोहतांग पार करके है और स्पीति इधर किन्नौर से आगे स्पीति नदी की घाटी में... जिले का मुख्यालय केलांग है जो कि लाहौल में है. स्पीति का मुख्य शहर काजा है. वैसे लाहौल से स्पीति सीधे जाने के लिए कुंजुम दर्रा पार करना पड़ता है.
Deleteहम 4 जनवरी को दिल्ली से चले थे.
घूमक्कड़ी ज़िन्दाबाद नीरज जी!!!! काफी दिन आपको टिप्पणि न देने के लिए क्षमस्व!!! इस यात्रा विवरण का बेसब्री से इन्तजार है|
ReplyDeleteधन्यवाद निरंजन जी...
Deleteवाइन भी ऐलाउ थी शायद इस यात्रा में क्या रहा?
ReplyDeleteहाँ, एलाऊ थी लेकिन हम दोनों में कोई भी वाइन नहीं पीता...
Deleteवाइन भी ऐलाउ थी शायद इस यात्रा में क्या रहा?
ReplyDeleteनीरज जी इतनी ज्यादा ठण्ड में किस किस तरह के गर्म कपडे साथ ले गए थे अगर वो भी बताते तो पाठकों को सहायता मिलती।
ReplyDeleteबाकि सब तो लाजवाब है ही हमेशा की तरह, क़ज़ा पहुँचने का इन्तजार है।
जो कपडे हम दिल्ली में सर्दियों में पहनते हैं, वे ही साथ ले गए थे... स्पेशल कुछ नहीं...
Deleteमतलब किसी खास तैयारी की जरूरत नहीं है.
Deleteनई जगह की जानकारी मिली ...... रिकांग पियो
ReplyDeleteधन्यवाद रीतेश भाई,...
DeleteAkhir tum sangla valley me pahunch hi gaye,,, bahut phle mene tumse kha tha ki kinnaur ka trip lagao aur tumne kar diya... photos shandar
ReplyDeleteनहीं जी, हम सांगला वैली नहीं गए... सांगला वैली किन्नौर में ही है लेकिन वो बस्पा नदी की घाटी है. हम सतलुज की घाटी में ही हैं और सतलुज के ही साथ साथ वापस आयेंगे... सांगला वैली को वापसी में देखेंगे, अगर समय बचा तो...
Delete"रिकांग पियो " ऐसे लग रहा हे की आप चीन गये हो घूमने !
ReplyDeleteलास्ट फोटो में वो खाने की चीज क्या हे ?
वो मोमो हैं....
Deleteनीरज जी,
ReplyDeleteइस यात्रा लेख के बाद, पहले की तरह, यात्रा का कुल खर्च भी बताएं. ह्मारा एक मित्र भी दिल्ली से काज़ा, पब्लिक ट्रांसपोर्ट से जाना चाहता है. और जैसे की ऊपर "संतोष प्रसाद सिंह" जी ने कहा है कि होटलों (जहां आप ठहरते हैं) के फोन नम्बर भी और लोगों के काम आ सकते हैं.
आभार सहित.
Singh
हाँ सिंह साहब, यात्रा के बाद टोटल खर्च भी बताऊंगा...
DeleteThe way u describe your journey is amazing.very nice.
ReplyDeleteइस लेख का शीर्षक देख कर लगा के आप तिब्बत या चीन यात्रा पर निकल गए हैं पढ़कर जानकारी मिली नए स्थान की । सुन्दर चित्रण...
ReplyDeleteकाफी समय से इस यात्रा वृतान्त का इंतज़ार था। शानदार जबरजस्त जिंदाबाद।
ReplyDeleteWo jagah jo kabhi padhi suni nahin aapke maadhyam se dekh lin...aap mahaan hai Neeraj ji...Jiyo
ReplyDeletemajedar yatra
ReplyDeleteबढ़िया नीरज भाई...
ReplyDeleteचंडीगढ़ जाने का बढ़िया "जुगाड़" बताया..
शिमला का बस अड्डा सचमुच बढ़िया बना रखा है और पुराना जिसने देख रखा हो उसके लिए तो बहुत ही बढ़िया
बर्फ / समुन्दर टीवी पर दो देखते सुनते रहते हैं.. लेकिन पहली बार साक्षात देखने का जो एह्साह होता है वो डाक्टर साहब की प्रतिक्रिया से ही पता चलता है...शब्दों में बयान नहीं हो सकता..
और बढ़िया मंदिर भी बढ़िया मिल गया..
नीरज भाई एक बार आपके साथ किसी यात्रा में साथ चलने की प्रबल इच्छा है देखिए कब पूरी होती है I अपना ब्लॉग भी बना लिए है लेकिन कुछ लिख नहीं पा रहा हूँ ....ये भी एक इच्छा ...आप अपना लेखन जारी रखिए ...मेरी ढेर सारी शुभकामनाए
ReplyDeleteनीरज भाई एक बार आपके साथ किसी यात्रा में साथ चलने की प्रबल इच्छा है देखिए कब पूरी होती है I अपना ब्लॉग भी बना लिए है लेकिन कुछ लिख नहीं पा रहा हूँ ....ये भी एक इच्छा ...आप अपना लेखन जारी रखिए ...मेरी ढेर सारी शुभकामनाए
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