कल देश-दुनिया में दीपावली थी, लेकिन हमारा गाँव थोड़ा ‘एड़वांस’ चलता है। परसों ही दीपावली मना ली और कल गोवर्धन पूजा। हर साल ऐसा ही होता है। एक दिन पहले मना लेते हैं। गोवर्धन पूजा के बाद एक वाक्य अवश्य बोला जाता है - “हो ग्या दिवाली पाच्छा।” अर्थात दीपावली बीत गयी।
मेरी चार दिन की छुट्टियाँ शेष थीं, तो मैंने इन्हें दीपावली के साथ ही ले लिया था। ‘दिवाली पाच्छा’ होने के बाद आज हमने सुबह ही बाइक उठायी और निकल पड़े। चोपता-तुंगनाथ जाने की मन में थी, तो घरवालों से केदारनाथ बोल दिया। वे तुंगनाथ को नहीं जानते। 4 नवंबर को वापस दिल्ली लौटेंगे।
कल ही सारा सामान पैक कर लिया था। लेकिन गाँव में दिल्ली के मुकाबले ज्यादा ठंड़ होने के कारण अपनी पैकिंग पर पुनर्विचार करना पड़ा और कुछ और कपड़े शामिल करने पड़े। जिस वातावरण में बैठकर हम यात्रा की पैकिंग करते हैं, सारी योजनाएँ उसी वातावरण को ध्यान में रखकर बनायी जाती हैं। पता भी होगा, तब भी उस वातावरण का बहुत प्रभाव पड़ता है। चोपता-तुंगनाथ में भयंकर ठंड़ मिलेगी, लेकिन कपड़े पैक करते समय मानसिकता दिल्ली के वातावरण की ही रही, इसलिये उतने कपड़े नहीं रखे। यहाँ गाँव में ठंड़ ज्यादा थी, तो पुनर्विचार करना पड़ा।
आठ बजे जब निकलने वाले थे, तो ताईजी आ गयीं। अपनी बहू को अर्थात निशा को जब उन्होंने जींस में देखा, तो प्रत्यक्ष तो कुछ नहीं कहा, लेकिन भीतर ही भीतर बहुत-कुछ कहा होगा।
निशा कई दिन से कह रही थी कि लैंसडौन से होकर जायेंगे। पिछले साल जब हम रुद्रनाथ से लौट रहे थे तो श्रीनगर-पौड़ी-कोटद्वार मार्ग से वापस आये थे। लैंसडौन बारह किलोमीटर दूर रह गया था। तब गुमखाल के आसपास के इलाके को देखकर हमने बड़ी वाह-वाह की थी। लैंसडौन पास में ही है, तो इस बार इसे भी लपेट लेने का मन था। लेकिन जब घर से चलने लगे तो निशा ने कहा - “आज हरिद्वार में गंगाजी नहाकर ही आगे बढ़ेंगे।” मैंने कहा - “क्या! तो हमें हरिद्वार से जाना है या लैंसडौन से? दोनों एक साथ नहीं हो सकते।” निशा तपाक से बोली - “लैंसडौन।”
मीरांपुर और बिजनौर के बीच में सड़क थोड़ी ख़राब थी, बाकी एकदम शानदार। नजीबाबाद ने थोड़ा परेशान किया। यहाँ एक फ्लाईओवर बन रहा है, उसके नीचे छोटे वाहन ही चलते हैं, लेकिन ‘मैनेजमेंट’ ऐसा कि ये भी नहीं चल पाते। यहाँ से निकले तो कोटद्वार वाली रेलवे लाइन के ऊपर से गुजरे। ऊपर से ही देख लिया कि पटरियों पर धूल जमी है। आगे जाकर जब इसी लाइन पर फाटक मिला, तो धूल और जंग जगी पटरियाँ ही दिखीं। हो भी क्यों न, आख़िर कई महीनों से यह लाइन बंद जो है। मानसून में कोटद्वार के पास एक नदी का पुल बह गया और रेल लाइन को भी बहा ले गया। हालाँकि काम चल रहा है, लेकिन होता होता ही होगा।
निशा कई दिन से कह रही थी कि लैंसडौन से होकर जायेंगे। पिछले साल जब हम रुद्रनाथ से लौट रहे थे तो श्रीनगर-पौड़ी-कोटद्वार मार्ग से वापस आये थे। लैंसडौन बारह किलोमीटर दूर रह गया था। तब गुमखाल के आसपास के इलाके को देखकर हमने बड़ी वाह-वाह की थी। लैंसडौन पास में ही है, तो इस बार इसे भी लपेट लेने का मन था। लेकिन जब घर से चलने लगे तो निशा ने कहा - “आज हरिद्वार में गंगाजी नहाकर ही आगे बढ़ेंगे।” मैंने कहा - “क्या! तो हमें हरिद्वार से जाना है या लैंसडौन से? दोनों एक साथ नहीं हो सकते।” निशा तपाक से बोली - “लैंसडौन।”
मीरांपुर और बिजनौर के बीच में सड़क थोड़ी ख़राब थी, बाकी एकदम शानदार। नजीबाबाद ने थोड़ा परेशान किया। यहाँ एक फ्लाईओवर बन रहा है, उसके नीचे छोटे वाहन ही चलते हैं, लेकिन ‘मैनेजमेंट’ ऐसा कि ये भी नहीं चल पाते। यहाँ से निकले तो कोटद्वार वाली रेलवे लाइन के ऊपर से गुजरे। ऊपर से ही देख लिया कि पटरियों पर धूल जमी है। आगे जाकर जब इसी लाइन पर फाटक मिला, तो धूल और जंग जगी पटरियाँ ही दिखीं। हो भी क्यों न, आख़िर कई महीनों से यह लाइन बंद जो है। मानसून में कोटद्वार के पास एक नदी का पुल बह गया और रेल लाइन को भी बहा ले गया। हालाँकि काम चल रहा है, लेकिन होता होता ही होगा।
बिजनौर के पास गंगा बैराज |
अब जब हम यहाँ आ गये तो एक काम और करना आवश्यक हो गया। मुझे रेलवे स्टेशनों के पीले रंग के बोर्डों के फोटो संग्रह करने का शौक है। लेकिन अभी तक मेरे पास इस कोटद्वार लाइन के दोनों स्टेशनों के फोटो नहीं थे - सनेह रोड़ और कोटद्वार। आज इन्हें भी निपटा देने का विचार आ गया।
सनेह रोड़ स्टेशन मुख्य सड़क से एक किलोमीटर हटकर जंगल में है। यह जंगल यूपी और उत्तराखंड़ की सीमा पर जिम कार्बेट का ही विस्तार कहा जा सकता है। यह एक किलोमीटर की सड़क थी तो बेहद खस्ताहाल, लेकिन आनंद भी आ गया। स्टेशन भी एकदम जंगल में है। आसपास और दूर-दूर कोई गाँव गिराँव कुछ नहीं। लगता है कि रेलवे ने शुरू में इसे ‘टेक्निकल स्टेशन’ बनाया हो। निशा को यह जंगल बहुत पसंद आया। वह कुछ समय यहाँ बिताना चाहती थी, लेकिन मैंने सावधान किया - जल्दी निकलो यहाँ से, अभी हम यूपी में हैं।
कोटद्वार का स्टेशन तो शहर के बीच में है। कोई दिक्कत नहीं हुई।
सनेह रोड़ स्टेशन मुख्य सड़क से एक किलोमीटर हटकर जंगल में है। यह जंगल यूपी और उत्तराखंड़ की सीमा पर जिम कार्बेट का ही विस्तार कहा जा सकता है। यह एक किलोमीटर की सड़क थी तो बेहद खस्ताहाल, लेकिन आनंद भी आ गया। स्टेशन भी एकदम जंगल में है। आसपास और दूर-दूर कोई गाँव गिराँव कुछ नहीं। लगता है कि रेलवे ने शुरू में इसे ‘टेक्निकल स्टेशन’ बनाया हो। निशा को यह जंगल बहुत पसंद आया। वह कुछ समय यहाँ बिताना चाहती थी, लेकिन मैंने सावधान किया - जल्दी निकलो यहाँ से, अभी हम यूपी में हैं।
कोटद्वार का स्टेशन तो शहर के बीच में है। कोई दिक्कत नहीं हुई।
सनेह रोड़ स्टेशन की तरफ़ जाती सड़क |
कोटद्वार से आगे पहाड़ आरंभ हो जाते हैं। सड़क अच्छी है, लेकिन स्कूली छात्र-छात्राएँ बाइकों पर ‘एंजॉय’ करते खूब मिले। उनकी यह आवारगी लैंसडौन तक मिली।
बाइक के पिछले पहिये में आवाज आ रही थी। पहाड़ी इलाका आरंभ होने के बाद यह आवाज और बढ़ गयी। दुगड्डा में इसकी जाँच करवायी तो पता चला कि चेन ज्यादा टाइट है।
लैंसडौन की तरफ़ मुड़ गये। छुट्टी होने के कारण दिल्ली की ख़ूब गाड़ियाँ मिलीं। हमें लैंसडौन रुकना तो था नहीं। केवल देख भर लेना था। और वही हुआ। सात रुपये की पर्ची कटवाकर लैंसडौन में प्रवेश किया और दूसरी तरफ बाहर निकल गये। पहला मोड़ आया भुल्ला ताल का। फिर दूसरा मोड़ आया टिप-इन-टॉप का, लेकिन हम सीधे ही चलते गये और लैंसडौन पीछे छूट गया। असल में हमें भूख लगी थी। हम यहाँ कुछ खाना चाहते थे। लेकिन छावनी क्षेत्र होने के कारण बाज़ार पता नहीं कहाँ छुप गया और हमें कुछ भी पता नहीं चला। किसी से पूछा भी नहीं। ऊपर से पीछे बैठी निशा के निर्देश - हाँ, देख लिया लैंसडौन। गुमखाल चलकर खायेंगे।
गुमखाल में गिनी-चुनी कुछ ही दुकानें हैं। एक पर राजमा-चावल मिले। भूखे पेट अच्छे लगे।
बाइक के पिछले पहिये में आवाज आ रही थी। पहाड़ी इलाका आरंभ होने के बाद यह आवाज और बढ़ गयी। दुगड्डा में इसकी जाँच करवायी तो पता चला कि चेन ज्यादा टाइट है।
लैंसडौन की तरफ़ मुड़ गये। छुट्टी होने के कारण दिल्ली की ख़ूब गाड़ियाँ मिलीं। हमें लैंसडौन रुकना तो था नहीं। केवल देख भर लेना था। और वही हुआ। सात रुपये की पर्ची कटवाकर लैंसडौन में प्रवेश किया और दूसरी तरफ बाहर निकल गये। पहला मोड़ आया भुल्ला ताल का। फिर दूसरा मोड़ आया टिप-इन-टॉप का, लेकिन हम सीधे ही चलते गये और लैंसडौन पीछे छूट गया। असल में हमें भूख लगी थी। हम यहाँ कुछ खाना चाहते थे। लेकिन छावनी क्षेत्र होने के कारण बाज़ार पता नहीं कहाँ छुप गया और हमें कुछ भी पता नहीं चला। किसी से पूछा भी नहीं। ऊपर से पीछे बैठी निशा के निर्देश - हाँ, देख लिया लैंसडौन। गुमखाल चलकर खायेंगे।
गुमखाल में गिनी-चुनी कुछ ही दुकानें हैं। एक पर राजमा-चावल मिले। भूखे पेट अच्छे लगे।
सड़क अच्छी बनी ही है। सतपुली के बाद तो और भी चौड़ी हो जाती है। ज्वाल्पा देवी पर थोड़ी देर रुके और पौड़ी की चढ़ाई आरंभ कर दी।
पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड़ के सबसे ‘गुमशुदा’ जिलों में से एक है। यहाँ एक से बढ़कर एक शानदार स्थान हैं, लेकिन सब के सब पर्दे के पीछे छुपे हुए हैं। हम जैसों को आवश्यकता है उन्हें उघाड़ने की। अगर हम कोटद्वार से आरंभ करें, तो पहले चढ़ाई आती है और आप 2000 मीटर से ऊपर चीड़ के जंगल में पहुँच जाते हैं। यह ‘धार’ या ‘खाल’ केवल पौड़ी ही नहीं, उधर कुमाऊँ तक में फैली हुई है। पौड़ी में इस पर लैंसडौन है तो कुमाऊँ में रानीखेत। इस धार के बाद उतराई है और उसके बाद फिर एक और धार है। यह दूसरी धार बेहद विशिष्ट है। इसके उस तरफ़ गढ़वाल में जहाँ गंगा और अलकनंदा की घाटियाँ हैं, वहीं कुमाऊँ में पिंड़र घाटी है। इस धार से हिमालय का बेहद शानदार नज़ारा दिखायी देता है। पौड़ी शहर इसी पर बसा है। इसके अलावा खिर्सू और गैरसैंण भी इसी पर हैं। कुमाऊँ में ग्वालदम और मुनस्यारी को कौन नहीं जानता?
मेरी निगाहें आज पौड़ी गढ़वाल जिले के ऐसे ही अछूते स्थानों की तरफ़ जाती सड़कों और उनके नामों को ढूँढ़ रही थीं। जैसे लैंसडौन से एक सड़क ताड़केश्वर गयी है। इसी पर लिखा था - लैंसडौन-रिखणीखाल-बीरोंखाल मुख्य जिला सड़क। जिन नामों के भी आगे ‘खाल’ लिखा है, वे सभी ऊपर की धार पर बसे होते हैं और बेहद खूबसूरत स्थान होते हैं। इसके अलावा एक छोटा सूचना-पट्ट और भी लगा था, जिस पर कुछ गाँवों की दूरियाँ लिखी थीं - चुण्डई, चमेठा, सिसल्डी, असनखेत, अधरियाखाल, चखुलियाखाल, ढाबखाल, टवियोंखाल, रिखणीखाल।
सतपुली से आगे लिखा था - एकेश्वर, पोखड़ा, बैजरों, पाबौ। इसी तरह ज्वाल्पा देवी के पास लिखा था - किर्खू 19 किलोमीटर, और इस पर उत्तराखंड़ पर्यटन का लोगो भी बना था। किर्खू के बारे में वापस आकर मैंने पता करने की कोशिश की, लेकिन पता नहीं चल सका।
पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड़ के सबसे ‘गुमशुदा’ जिलों में से एक है। यहाँ एक से बढ़कर एक शानदार स्थान हैं, लेकिन सब के सब पर्दे के पीछे छुपे हुए हैं। हम जैसों को आवश्यकता है उन्हें उघाड़ने की। अगर हम कोटद्वार से आरंभ करें, तो पहले चढ़ाई आती है और आप 2000 मीटर से ऊपर चीड़ के जंगल में पहुँच जाते हैं। यह ‘धार’ या ‘खाल’ केवल पौड़ी ही नहीं, उधर कुमाऊँ तक में फैली हुई है। पौड़ी में इस पर लैंसडौन है तो कुमाऊँ में रानीखेत। इस धार के बाद उतराई है और उसके बाद फिर एक और धार है। यह दूसरी धार बेहद विशिष्ट है। इसके उस तरफ़ गढ़वाल में जहाँ गंगा और अलकनंदा की घाटियाँ हैं, वहीं कुमाऊँ में पिंड़र घाटी है। इस धार से हिमालय का बेहद शानदार नज़ारा दिखायी देता है। पौड़ी शहर इसी पर बसा है। इसके अलावा खिर्सू और गैरसैंण भी इसी पर हैं। कुमाऊँ में ग्वालदम और मुनस्यारी को कौन नहीं जानता?
मेरी निगाहें आज पौड़ी गढ़वाल जिले के ऐसे ही अछूते स्थानों की तरफ़ जाती सड़कों और उनके नामों को ढूँढ़ रही थीं। जैसे लैंसडौन से एक सड़क ताड़केश्वर गयी है। इसी पर लिखा था - लैंसडौन-रिखणीखाल-बीरोंखाल मुख्य जिला सड़क। जिन नामों के भी आगे ‘खाल’ लिखा है, वे सभी ऊपर की धार पर बसे होते हैं और बेहद खूबसूरत स्थान होते हैं। इसके अलावा एक छोटा सूचना-पट्ट और भी लगा था, जिस पर कुछ गाँवों की दूरियाँ लिखी थीं - चुण्डई, चमेठा, सिसल्डी, असनखेत, अधरियाखाल, चखुलियाखाल, ढाबखाल, टवियोंखाल, रिखणीखाल।
सतपुली से आगे लिखा था - एकेश्वर, पोखड़ा, बैजरों, पाबौ। इसी तरह ज्वाल्पा देवी के पास लिखा था - किर्खू 19 किलोमीटर, और इस पर उत्तराखंड़ पर्यटन का लोगो भी बना था। किर्खू के बारे में वापस आकर मैंने पता करने की कोशिश की, लेकिन पता नहीं चल सका।
सतपुली |
अगला भाग: खिर्सू के नज़ारे
1. बाइक यात्रा: मेरठ-लैंसडौन-पौड़ी
2. खिर्सू के नज़ारे
3. देवरिया ताल
4. तुंगनाथ और चंद्रशिला की यात्रा
5. चोपता से दिल्ली बाइक यात्रा
शानदार ज़बरदस्त ज़िंदाबाद
ReplyDeleteबहुत खूब, लेकिन आपने इस बार भी फिर से वही राजमार्ग ले लिया, कुछ हटके पौड़ी पहुँचते तो सही में अछूते मार्ग लोगों को जानने को मिलते। अगले भाग की प्रतीक्षा में।
ReplyDeleteहोगा... अवश्य होगा... कुछ हटके भी कुछ अवश्य होगा... जल्द ही...
Deletetravalking neeraj bhai !...
ReplyDeletefull family photo pahli bar. very good.
ReplyDeleteबढ़िया बाइक यात्रा । इस यात्रा के कारण हम दिल्ली में मिल नही सके । खैर मजा आया यात्रा को पढ़कर ।
ReplyDeleteउत्तराखंड के पहाड़,चीड़ के जंगल, खाली रास्ता,और बाइक,आपकी इसी तरह की गयी यात्राओ के लेख का इन्त्जार रहता है नीरज जी,पारिवारिक जिम्मेदारियो के कारण बहुत समय से एसी यात्राओ से वंचित मै आपके द्वारा की गयी पहाड़ो की बाइक यात्रा मे ही आनंद के पल तलाशता हुँ.लिखते रहिये,हमे इन्त्जार रहता है.
ReplyDeleteबढ़िया पोस्ट और बढ़िया फोटो। अब कभी कभी किसी पोस्ट में देरी का मतलब समझ मे आने लगा है कि अगले पोस्ट के लिए गुपचुप यात्रा जारी है।
ReplyDeleteनीरज भाई आपकी बाइक यात्रा हमेशा ही अलग यात्रा का अहसास कराती है घर बैठे
ReplyDeleteअगले भाग का इंतज़ार रहेगा बेसब्री से
बहुत सुन्दर यात्रा और शानदार फोटो आनंद आ गया।
ReplyDeleteneeraj bhai is bar kuch kam vistar se likha hai... kher anand aa gaya pad kar, bhut time bad aap ka post padne ko mila...
ReplyDeleteआनंद आना चाहिये... विस्तार महत्वपूर्ण नहीं है...
Deleteअब की बार मेरा भी प्रोग्राम उधर का ही होगा , बाकि जानकारी आपके ब्लॉग से मिल ही जाएगी .
ReplyDeleteयात्रा की शुभकामनाएँ...
Deleteएक शानदार यात्रा की शुरुआत। नीरज भाई आपसे निवेदन है की अपनी लीक से हटकर यात्राओ का रुट मैप का भी एक फोटो डाला करे जिससे हम जैसे दक्षिण और मध्य भारतीय लोग जो उत्तराखंड और हिमाचल को उतना नही जानते उन्हें भी एक मोटा मोटा आइडिया हो जाये इन छुपे हुए पर्यटन स्थालो पर जाने का। धन्यबाद
ReplyDeleteगूगल मैप लगा दिया है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteशानदार यात्रा की शुरुआत।
ReplyDeleteबहुत सुंदर यात्रा वर्णन। फोटो बहुत आकर्षक लगे। पारिवारिक फोटो अच्छे लगतें हैं। जल्दी निकलो यहाँ से, अभी हम यूपी में हैं।- यह डर कब समाप्त होगा।
ReplyDeleteNeeraj Bhai we also planned to visit Chopta in coming weekend. We planned to go there by public transport. Please suggest route and nearby places of Chopta.
ReplyDeleteपहले हरिद्वार या ऋषिकेश पहुँचिये। इन दोनों स्थानों से आपको सीधे ऊखीमठ की बस मिल जायेगी, लेकिन केवल सुबह के समय ही। क्योंकि उत्तराखंड़ के पहाड़ों में रात को बसें नहीं चलतीं। ऊखीमठ से चोपता की बस मिलेगी।
Deleteचोपता के पास तुंगनाथ है और देवरिया ताल भी है।
बहुत अच्छा लगा पढकर विशेष रूप से तुमने अपनी ताई जी के मन की बात को जान लिया जब उन्होंने निशा को जींस 👖 मे देखा,बहुत अच्छा लिखते हो नीरज ,
ReplyDeleteभाई जी लैंसडाऊन बाजार गढ़वाल राइफल के सेण्टर गेट से बाएं मुद कर करीब एक किमी ही है, बिलकुल छोटी सी जगह. ज्वाल्पा देवी हम लोगों की कुलदेवी हैं, मेरा गांव भी यही से १५ किमी दूर है !
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