8 जनवरी 2016
सुबह उठा तो सबसे पहले बाहर रखे थर्मामीटर तक गया। रात न्यूनतम तापमान माइनस 6.5 डिग्री था। कल माइनस 10 डिग्री था, इसलिये आज उतनी ठण्ड नहीं थी। आपके लिये एक और बात बता दूं। ये माइनस तापमान जरूर काफी ठण्डा होता है लेकिन अगर आपको बताया न जाये, तो आप कभी भी पता नहीं लगा सकते कि तापमान माइनस में है। महसूस ही नहीं होता। कम से कम मुझे तो माइनस दस और प्लस पांच भी कई बार एक समान महसूस होते हैं। सुमित को भी ज्यादा ठण्ड नहीं लग रही थी।
हां, आज एक बात और भी थी। बर्फ पड रही थी। आसपास की पहाडियां और धरती भी सफेद हो गई थी। लेकिन जैसी स्पीति में बारिश होती है, वैसी ही बर्फबारी। एक-दो इंच तो छोडिये, आधा सेंटीमीटर भी बर्फ नहीं थी। लेकिन कम तापमान में यह बर्फ पिघली नहीं और इसने ही सबकुछ सफेद कर दिया था। बडा अच्छा लग रहा था। सुमित ने परसों पहली बार हिमालय देखा था, कल पहली बार बर्फ देखी और आज पहली बार बर्फबारी। वो तो स्वर्ग-वासी होने जैसा अनुभव कर रहा होगा।
आज की योजना थी कि ‘की’ गोम्पा देखते हुए किब्बर तक जायेंगे। समय पर किब्बर पहुंचेंगे तो रुकने की भी कोशिश करेंगे और फिर कल धनकर जाना रद्द कर देंगे। वैसे भी धनकर का आकर्षण उसकी झील है, लेकिन बर्फ पड जाने के कारण झील ‘विलुप्त’ हो गई होगी, इसलिये अब हम न झील तक जायेंगे और न ही धनकर। कभी गर्मियों में आयेंगे, तब दोनों स्थान देखेंगे।
साढे नौ बजे काजा से चल पडे। करीब पांच-छह किलोमीटर दूर एक नाला पुल से पार करने लगे तो जमा हुआ एक झरना दिखाई दिया। तुरन्त गाडी रुकवा ली। तकरीबन आधा किलोमीटर उस नाले के साथ साथ पैदल चलना पडा और हम इस ऊंचे जमे हुए झरने के नीचे थे। अच्छा फोटो लेने के लिये नाला भी पार करना था लेकिन यह कहीं जमा था, कहीं जमा नहीं था। जमे हुए हिस्सों के ऊपर चलकर इसे पार करना बेहद रोमांचकारी अनुभव था।
बर्फ भी पड रही थी और हवा भी तेज चल रही थी, तापमान माइनस दस से कम पहुंच गया होगा। हाथ जेब से बाहर निकालते तो उंगलियां ठण्डी पडने लगतीं। फिर भी हम ‘जांबाजों’ ने इस झरने के खूब फोटो खींचे। वापस आधा किलोमीटर सडक पर आये तो सुमित ने कहा कि उसका चश्मा वहीं झरने के पास छूट गया है। यह कहकर वो उसे लाने दौड गया। ड्राइवर ने भी कहा कि चश्मा वो ले आयेगा, सुमित को जाने की जरुरत नहीं है, लेकिन मैंने रोक दिया- लाने दे उसे ही। इन वादियों का एक-एक अनुभव उसे कर लेने दो। हम तो आते-जाते प्राणी हैं, सुमित पता नहीं कभी फिर इधर आयेगा या नहीं।
यहां से चले तो की गांव और की गोम्पा ज्यादा दूर नहीं रह गये। की को किलोमीटर के पत्थरों पर ‘कीह’ लिखा था जबकि अंग्रेजी में इसे Ki और Kee लिखते हैं। स्थानीय लोग भी ‘की’ ही कहते हैं, इसलिये हम भी इसे ‘की’ ही कहेंगे।
गर्मियों में की गांव में बडी चहल-पहल रहती होगी। ज्यादातर घर होटल बन जाते होंगे, कुछ अस्थायी होटल भी खुल जाते होंगे तिरपाल के लेकिन अब यहां चाय की भी दुकान नहीं थी। होगी भी क्यों? सर्दियों में आते ही कितने लोग हैं?
की गांव से आगे थोडा ऊपर की गोम्पा है। यह गेलुक्पा सम्प्रदाय का गोम्पा है। स्पीति घाटी में बौद्धों के तीन सम्प्रदाय हैं। बल्कि तीन ही सम्प्रदाय हैं- गेलुक्पा, साक्य और निंगमा। स्पीति में इन तीनों सम्प्रदायों के गोम्पा हैं। गेलुक्पा का सबसे बडा यानी मुख्य गोम्पा की में, साक्य का कोमिक में और निंगमा का पता नहीं- शायद ताबो या कोई और है। काजा का गोम्पा भी साक्य सम्प्रदाय का है और कोमिक गोम्पा के अधीन है। हमारा ड्राइवर साक्य सम्प्रदाय वाला था लेकिन फ़िर भी ये लोग सभी सम्प्रदायों के लिये समान भाव रखते हैं। कुछ धार्मिक क्रिया-कलापों में ही थोडा बहुत भेद होता है बस।
गोम्पा ऊंचाई पर है इसलिये ज्यादा बर्फ पड रही थी। गोम्पा के गेट के सामने ही गाडी लगा दी और अन्दर घुसे। लामा कुछ पूजा-पाठ कर रहे थे और उनके उस कमरे के बाहर लिखा था- प्रवेश केवल लामाओं के लिये। गोम्पाओं के बारे में मुझे ज्यादा जानकारी तो नहीं है। जितना आप जानते हैं, उतना ही मैं जानता हूं। स्पीति में सीमित संसाधन होने के कारण हर घर से एक लडका या लडकी गोम्पा को दे दी जाती है। लडके को लामा कहते हैं और लडकी को नन या चोमो। लामा और चोमो एक ही गोम्पा में नहीं रहते, अलग-अलग गोम्पा होते हैं। पूजा-पाठ और धार्मिक क्रिया-कलाप सीखते हैं। खासकर धार्मिक ग्रन्थ कंजुर और तंजुर का अध्ययन। कंजुर-तंजुर इतने पवित्र माने जाते हैं कि इनकी प्राचीन हस्तलिखित प्रतियां बेहद संभालकर रखी जाती हैं और विशेष धार्मिक मौकों पर बाहर निकाली जाती हैं और इनकी भी पूजा की जाती है।
एक लामा ने हमें रसोई में बैठा दिया और चाय दे दी। बताया कि गोम्पा में लोगों के रुकने का भी इंतजाम होता है लेकिन आज हम किब्बर में रुकने का इरादा लेकर आये हैं, इसलिये गोम्पा में रुकने के बारे में नहीं सोचा।
एक बडी मजेदार बात हुई। यह बात सुमित उस ड्राइवर से पूछने वाला था लेकिन अकेले में मुझसे पूछ लिया। ड्राइवर का एक भाई कोमिक गोम्पा को दे दिया गया है। सुमित ने पूछा कि उस ड्राइवर का भाई लामा बना होगा या चोमो? मेरी बडी देर तक हंसी छूटती रही- लडकों को लामा कहते हैं और लडकियों को चोमो। अब तुम खुद ही सोच लो कि वो क्या बना होगा। फ़िर तो सुमित भी खूब हंसा। बोला- अच्छा हुआ कि उससे नहीं पूछा।
गोम्पा के अन्दर ज्यादातर कमरों में फोटो लेने की अनुमति नहीं है, इसलिये अन्दर की उत्कृष्ट साज-सज्जा और थंगका के फोटो नहीं ले सका।
जब यहां से निकले तो बर्फबारी भी बढ गई थी और हवा भी। किब्बर और ज्यादा ऊंचाई पर है।
अगला भाग: जनवरी में स्पीति: किब्बर भ्रमण
1. जनवरी में स्पीति- दिल्ली से रीकांग पीओ
2. जनवरी में स्पीति - रीकांग पीओ से काजा
3. जनवरी में स्पीति - बर्फीला लोसर
4. जनवरी मे स्पीति: की गोम्पा
5. जनवरी में स्पीति: किब्बर भ्रमण
6. जनवरी में स्पीति: किब्बर में हिम-तेंदुए की खोज
7. जनवरी में स्पीति: काजा से दिल्ली वापस
behtreen post, yeh series bhi bahut badhiya banti ja rahi hai.
ReplyDeleteHopefully one day, I would get an opportunity to travel with you guys.
उस जमे हुवे झरने या नाला तक जाना उस दिन का सबसे रोमांचकारी काम था।
ReplyDeleteसरिये ने नाला पार करने में काफी सहायता की...
बाकि राह दिखाने जा काम सार्थी का था...
लामा और चोमू वाले किस्से पर अभी भी कभी 2 अकेले में हँसते रहता हु।
वह बहुत मजेदार किस्सा था....
Deleteफोटो पर केप्शन दिया जाना चाहिये।
ReplyDeleteक्योकि लेखक के शब्द फ़ोटो की खूबसूरती को और निखार देते है।
आलस जिंदाबाद...
Deleteलद्दाख या स्पीति जैसे क्षेत्र, जिन्हें बर्फीला रेगिस्तान कहा जाता है। यहाँ के वातावरण में नमी बहुत कम होता है। जिसके कारण -10 डिग्री तापमान पर भी उतना ही ठण्ड महसूस होता है जितना दिल्ली में 5 डिग्री पर। पर हाँ जब बर्फीली तेज हवाएँ चलती है तो रूह जमा देती है।
ReplyDeleteबिल्कुल ठीक कहा आपने...
Deleteलद्दाख या स्पीति जैसे क्षेत्र, जिन्हें बर्फीला रेगिस्तान कहा जाता है। यहाँ के वातावरण में नमी बहुत कम होता है। जिसके कारण -10 डिग्री तापमान पर भी उतना ही ठण्ड महसूस होता है जितना दिल्ली में 5 डिग्री पर। पर हाँ जब बर्फीली तेज हवाएँ चलती है तो रूह जमा देती है।
ReplyDeleteSuperb sir pls aap ne har din kaise kaise kahan se kahan tak ki bus se travel kiya ye sari jankari denge to hame bhi kafi help hogi agar hum akele jane ki sochenge to sath main total kitne paise lage is bat ki bhi jankari den
ReplyDeleteनवीन जी, प्रत्येक जानकारी दी गयी है... ज़रा गौर से पढ़ना।
Deleteसब कुछ जमा हुआ इसी को स्वर्ग कहते है
ReplyDeleteसही कहा...
Deleteकैप्शन की जरूरत नहीं है ! तस्वीरें बोलती हैं !
ReplyDeleteधन्यवाद भाई...
Deleteहैरान कर देने वाला नजारा और आपका हौसला ..
ReplyDeleteधन्यवाद जी ...
Deleteकाजा का रास्ता कैसा है भाई बाइक से जाने के लिए दिल्ली >शिमला> रामपुर > कल्पा >ताबो >काजा> मनाली> दिल्ली
ReplyDeleteबाइक से जाने के लिए बेस्ट है।
DeleteThanks Tiwari Ji...
ReplyDeleteनीरज भाई काश हम भी आपके साथ होते ....
ReplyDeleteनीरज भाईसाब आपसे और तरुण गोयल भाई से प्रेरित होकर मैंने भी ब्लॉग लिखना शुरू किआ है आशा करता हूँ आपको पसंद आएगा
ReplyDeletehttp://paryatanpremi.blogspot.in/
जुलाई से सितम्बर के बीच मैं भी लद्दाख जाने की सोच रहा हूँ। अगर आपका साथ मिल जाये तो सोने पे सुहागा!
ReplyDeletewww.travelwithrd.com
सुमितजी कैसा रहा स्वर्गवासी होने का अनुभव।
ReplyDeleteकैप्शन लगाओ।
Bhai bahut khub bayan kiya apne vahan ki khubsoorti ko, aur jo jankari apne di monks ke bare me.. bahut upyogi hai. jaise gelukpva samprayday ki KEE monastery aur baaki dono ki..
ReplyDeleteवाह मजा आ गया पढकर लगा जैसे हम खुद पहुंच गये!
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