29 सितंबर 2016
सुबह साढ़े पाँच बजे इंदौर रेलवे स्टेशन पर मैं और सुमित बुलेट पर पहुँचे। बाइक पार्किंग में खड़ी की और सामने बस अड्ड़े पर जाकर महू वाली बस के कंडक्टर से पूछा, तो बताया कि सात बजे बस महू पहुँचेगी। क्या फायदा? तब तक तो हमारी ट्रेन छूट चुकी होगी। पुनः बाइक उठायी और धड़-धड़ करते हुए महू की ओर दौड़ लगा दी।
खंड़वा जाने वाली मीटरगेज की ट्रेन सामने खड़ी थी - एकदम खाली। सुमित इसके सामने खड़ा होकर ‘सेल्फी’ लेने लगा, तो मैंने टोका - ज़ुरमाना भरना पड़ जायेगा। छह चालीस पर ट्रेन चली तो हम आदतानुसार सबसे पीछे वाले ‘पुरुष डिब्बे’ में जा चढ़े। अंदर ट्रेन में पन्नी में अख़बार में लिपटा कुछ टंगा था। ऐसा लगता था कि पराँठे हैं। हम बिना कुछ खाये आये थे, भूखे थे। सुमित ने कहा - नीरज, माल टंगा है कुछ। मैंने कहा - देख, गर्म है क्या? गर्म हों, तो निपटा देते हैं। हाथ लगाकर देखा - ठंड़े पड़े थे। छोड़ दिये।
पातालपानी पहुँचे। उम्मीद थी कि इसमें पीछे एक इंजन जोड़ा जायेगा। हालाँकि अगले स्टेशन कालाकुंड़ तक ढलान है, दूसरे इंजन की आवश्यकता नहीं है। लेकिन कालाकुंड़ से ऊपर पातालपानी तक आने के लिये दूसरा इंजन लगाना पड़ता है, तो इस दूसरे इंजन को वापस कालाकुंड़ ले जाने के लिये पातालपानी से नीचे जाने वाली ट्रेनों में जोड़ दिया जाता है।
सुमित के पास एक बड़ा वाला कैमरा था। डी.एस.एल.आर. तो नहीं था, लेकिन उससे कम भी नहीं था। एक ‘कैमरा-बैग’ में उसके कंधों पर यह लटक भी रहा था। इधर मैंने भी अपना बड़ा कैमरा निकाल लिया। मैं अक्सर पैसेंजर रेलयात्राओं में बड़ा कैमरा नहीं निकालता हूँ - बेवजह लोग पूछताछ करते हैं। छोटा कैमरा रखता हूं। स्टेशन आता है, तो चुपके-से जेब से निकालकर बोर्ड का फोटो लेकर फिर वापस जेब में रख लेता हूँ।
सुमित ने बड़े कैमरे से शायद ही कोई फोटो लिया होगा, सभी फोटो अपने मोबाइल से लिये। फिर भी आसपास बैठे यात्रियों को लग रहा होगा कि हम पता नहीं कौन हैं। एक महीने बाद यह लाइन बंद हो जायेगी, तो हो सकता है कि हम कोई पत्रकार आदि हों और इस पर अंतिम यात्रा कर रहे हों। हालाँकि कहा किसी ने ज्यादा कुछ नहीं, लेकिन ध्यानाकर्षण तो हो ही रहा था।
पातालपानी से कालाकुंड़ तक इंजन केवल ब्रेक लगाने के काम आता है। ट्रेन में इंजन न हो और ब्रेक मारने की सुविधा हो, तो यह बिना इंजन के भी दस किलोमीटर की यह दूरी आसानी से तय कर जायेगी। पातालपानी समुद्र तल से लगभग 572 मीटर ऊपर है जबकि कालाकुंड़ 260 मीटर ऊपर। अब हम मालवा के पठार से नीचे उतर चुके थे और विंध्य पर्वतों के साये में यात्रा कर रहे थे। एक नज़र आगे के स्टेशनों और उनकी ऊँचाईयों पर डाल लेते हैं - चोरल (340.3), मुख्त्यारा बलवाड़ा (265.56), बड़वाह (193.61), ओंकारेश्वर रोड़ (176.78)।
बड़वाह और ओंकारेश्वर रोड़ के बीच में नर्मदा नदी है। नर्मदा पार करके हम विंध्य छोड़कर सतपुड़ा के इलाके में प्रवेश कर जाते हैं। ज़ाहिर है कि अब ऊँचाई भी बढ़ेगी - सनावद (195.89), निमार खेड़ी (209.96), कोटला खेड़ी (219), अत्तर (269), अजन्ती (359.58) और खंड़वा जंक्शन (303.32)। हम तो यहीं उतर गये, लेकिन अगर आगे अकोला की तरफ चलते जाते तो हम 400 मीटर से भी ऊपर पहुँच जाते। मेरा खंड़वा-अकोला मीटरगेज का वृत्तांत यहाँ पढ़ सकते हैं।
सुना है कि 31 अक्टूबर 2016 के बाद यह लाइन बंद हो जायेगी। फिलहाल कहाँ तक बंद होगी, यह तो नहीं पता। लेकिन इसके गेज परिवर्तन में दो स्थानों पर दिक्कतें आ रही थीं। एक तो पातालपानी-कालाकुंड़ खंड़ पर। यहाँ जो ढाल है, वह ब्रॉड़गेज के अनुकूल नहीं है, इसलिये दूसरा एलाइनमेंट करना पड़ेगा, यानी रेलवे लाइन कहीं और से निकालनी पड़ेगी। और दूसरी दिक्कत थी महाराष्ट्र में मेलघाट टाइगर रिजर्व। मीटरगेज की लाइन टाइगर रिजर्व से होकर गुजरती है। वन विभाग टाइगर रिजर्व में कोई भी निर्माण संबंधी गतिविधि करने की अनुमति नहीं दे रहा। लेकिन सुना है कि वहाँ भी अनुमति मिल गयी है। तो फिलहाल इस लाइन को महू से खंड़वा तक ही बंद करेंगे या अकोला तक बंद कर देंगे, पता नहीं।
खंड़वा-अकोला के बीच में इस लाइन पर एक अनोखी चीज है - धूलघाट स्पाइरल। यानी पहाड़ी इलाके में कम स्थान में ऊँचाई बढ़ाने के लिये रेलवे लाइन को स्पाइरल का आकार दिया गया है। ब्रॉड़गेज बनने के बाद यह स्पाइरल तो निश्चित तौर पर समाप्त हो ही जायेगा।
नर्मदा जी |
धूलघाट स्पाईरल |
अगला भाग: खंड़वा से बीड़ ट्रेन यात्रा
1. पैसेंजर ट्रेन-यात्रा: गुना-उज्जैन-नागदा-इंदौर
2. मीटरगेज ट्रेन यात्रा: महू-खंड़वा
3. खंड़वा से बीड़ ट्रेन यात्रा
4. भोपाल-इंदौर-रतलाम पैसेंजर ट्रेन यात्रा
बाकी सब तो ठीक है, डॉ साहब से चप्पल लिए या नहीं :P
ReplyDeleteपातालपानी से आगे बढ़ने पे वो झरना कौन सा है, खूबसूरत दिख रहा है.
स्पाईरल - नयी जानकारी मिली
ReplyDeleteदार्जलिंग रेलवे का बतासिया लूप और तिनघरिया लूप के बाद यह भारतीय रेल का तीसरा स्पाइरल लूप या स्पाइरल रेल लाइन है जो खूबसूरती और ऊँची चढ़ाई के लिए प्रसिद्ध है। रतलाम में गेज परिवर्तन के काफी दिनों के बाद अभी अभी बना क्यू ट्रैक भी इस प्रकार के स्पाइरल ट्रैक में शामिल कर सकतें है। इस प्रकार यह तीनों स्पाइरल रेल लाइन तीनों गेज के अनोखे और भारतीय रेल में अपने प्रकार के अकेले लूप या स्पाइरल है। फ़िलहाल पूर्वोत्तर सीमा रेलवे की तरह मीटर गेज भी अब अंतिम चरण में है।
ReplyDeleteदार्जलिंग रेलवे का दोनों लूप नैरो गेज में और धुलघाट का स्पाइरल मीटर गेज में हैं किन्तु रतलाम का क्यू ट्रैक को बड़ी लाइन का स्पाइरल ट्रैक में गिन सकतें है।
ReplyDeleteअगर ये लाइन बंद हो गयी तो एक अध्याय ही समाप्त हो जायेगा ! कुछ लाइन को रेलवे को बनाये रखना चाहिए भले नुक्सान उठाकर ही सही
ReplyDeleteWe used to travel by this route in 1980 to 1998 from ajmer to Kacheguda Meenakshi expresss.
ReplyDelete